Saturday, July 25, 2009

किसी के मारे हम कहाँ मरते...

किसी के मारे हम कहाँ मरते,
हमें तो सब्र-ओ-क़रार ने मारा

जान तो फिर भी अटकी रही,
तुम न आए,इंतज़ार ने मारा

गुलों से हैं लिपटे यही भरम था
दामन में छुपे खार ने मारा

शिकस्त-ऐ-ज़िन्दगी से कैसा गिला
मौत हारी हमसे,इस हार ने मारा

20 comments:

  1. गुलों से हैं लिपटे यही भरम था
    दामन में छुपे खार ने मारा


    -बढ़िया है.

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  2. आपने फिर एक लाजवाब शेर शाया की है। मैं तो बिल्कुल निःशब्द हूं। खैर, फिर भी अच्छा लगा कि इतना अच्छा शेर आपने सुनाया। रात तक एक और चाहिए।

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  3. जान तो फिर भी अटकी रही,
    तुम न आए,इंतज़ार ने मारा

    दिल को छू लेने वाले शेर हैं इस बार.......

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  4. बेहतरीन
    इंतज़ार ने मारा
    बहुत खूब

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  5. Waah ! Waah ! Waah !

    Kya baat kahi aapne.........khoobsoorat rachna....

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  6. जान तो फिर भी अटकी रही,
    तुम न आए,इंतज़ार ने मारा,

    wah sahi kaha nadeem ji shaam tak ek aur chahiye...

    makadiey jaane ki na fursaat na kafiyat.
    bus yun hua saqui,khumar ne maara.

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  7. बहुत खूबसूरत गजल। बहुत बहुत बधाई।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  8. किसी के मारे हम कहाँ मरते,
    हमें तो सब्र-ओ-क़रार ने मारा
    गुलों से हैं लिपटे यही भरम था
    दामन में छुपे खार ने मारा
    अब क्या कहूँ दिल को छू गयेबहुत ही लाजवाब शेर हैं बहुत बहुत बधाई आपकी कलम की खूब्सूरती के लिये शुभकामनायें

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  9. जान तो फिर भी अटकी रही,
    तुम न आए,इंतज़ार ने मारा
    bahut sundar rachna

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  10. sab kuchh saay hota hai ......bahut hi sundar.......badhiya

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  11. बहुत ही सुंदर .. वाह !!

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  12. बहुत सुंदर भाव लिए कहा है आपने...
    हलकी हलकी सी बहर से निकली हुयी ग़ज़ल भी क्या मजा देती है..
    :)

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  13. मनु जी,
    मैंने तो सोचा भी नहीं था कि आप कोई टिपण्णी भी करेंगे...
    इसे ग़ज़ल कहना ग़ज़ल कि तौहीन होगी, ये जो हलकी-हलकी बहर से बाहर वाली रचना को क्या कहते हैं, कम से कम हम जैसे लोग उसे कोई नाम तो दे-दें और खुश हो जाएँ...
    बताइयेगा PLEASE....

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  14. दर्पण जी ,
    मयक़दे जाने की न फ़ुर्सत न कैफ़ियत
    बस यूँ हुआ साकी, ख़ुमार ने मारा
    बहुत ही खूबसूरत शेर आपका ..
    आपके आने से बस यही कह सकते हैं
    ये कौन आया रौशन हो गयी महफ़िल जिसके नाम से...

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  15. मुझे बहुत पसंद आई ये रचना

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  16. शिकस्त-ऐ-ज़िन्दगी से कैसा गिला
    मौत हारी हमसे,इस हार ने मारा

    लाजवाब शेर ,,

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