Tuesday, July 28, 2009

नीम हकीम ख़तरा-ऐ-जान....

'समीर लाल उड़नतश्तरी वाले' लेख पढ़ कर उनके नाम की विवेचना करते करते, मुझे एक कहावत ही कहते है शायद याद आ गयी :
'नीम हकीम ख़तरा-ऐ-जान' बचपन से इसका मतलब यही जाना की जिसे आधा ज्ञान हो उससे खतरा होता है, अंतरजाल की ख़ाक छान ली कहीं मिला:
नीम हकीम खतरा जान (A little knowledge is a dangerous thing.)
कहीं मिला :
Neem Hakeem = Means = A physician lacking in full knowledge of his profession OR A half baked physician . Khatra - e - Jaan = Means = Danger ...
लेकिन हर बार मुझे लगा कही कुछ ठीक नहीं है, कहीं हम उस बेचारे हाकिम के साथ तो ज्यादती नहीं कर रहे, काफी जद्दो-जहद के बाद मुझे इसका असली मतलब समझ में आया है,
वैसे मुझे सबने कहा आप ऐसे ताबड़-तोड़ पोस्टिंग करती हैं.......अच्छा नहीं लगता है......हमें कमेन्ट करने के भी तो सोचना पड़ता है......हुम्म्म्म्म...सॉरी...माफ़ी...बस last chance दे दीजिये please अब ऐसी गलती नहीं करुँगी.... इसके बाद की पोस्टिंग कल ही करुँगी...... हे हे हे ही ही ही ही.... नहीं करुँगी
खैर, तो मैंने जो 'नीम हकीम ख़तरा-ऐ-जान' का सही अर्थ समझा है, सोचा आपलोगों को भी बता ही दूँ, क्योंकि आइन्दा आप भी तो यही इस्तेमाल करेंगे....और मेरे हिसाब से यही इसका असली अर्थ भी है,
वो है:

वो हकीम जो नीम के पेड़ के नीचे सो रहा है, उसकी जान को खतरा है.......

अब आप सब बताइए यही सही अर्थ है या नहीं ??????
और यह अर्थ मैं समीर जी और विवेक जी को समवेत समर्पित करती हूँ, अग्रिम गुरु दक्षिणा के रूप में .....
'अदा'

11 comments:

  1. इसको हम ऐसा भी तो कह सकते हैं ........... "वो हकीम जो नीम के पेड़ के नीचे सो रहा है, उससे सबकी जान को खतरा है".....

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  2. हमने तो सुना था कि , 'नीम ने हकीम को खतरा जान लिया है ,'

    वैसे कुछ लोग यहाँ तक कहते हैं कि नीम हकीम के लिये खतरा है क्योंकि नीम काफ़ी रोगों को ठीक कर देता है और रोगियों के अभाव में हकीम के भूखों मरने की नौबत आ जाती है :)

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  3. इसी को कहते हैं 'अध् जल गगरी छलकत जाय ' यानि आप मा से कौनुओ का एकर मतबलै नहीं बूझात बा किछु किछु अदा बुझिन यहू गीता कै रहसबाद के तरह कई ठो मतबल बाटे , काव -काव अहै इ बताये दिहेन तो रहसबाद केस |

    अदा जी ,
    कम से कम आप कबीरा और .....के बहाने से के आलावा किसी अन्य ब्लॉग चौपाल पर गईं पर आपने केवल नाक की सीध में ही देख मुख्य लेख ' धर्म और साम्प्रदायिकता वाले आलेख को अवश्य देखें इसी के साथ मेरे दुनिया में और भी बहुत कुछ है देखें जरुर से ज़रूर |

    अब आईये रस्म अदाएगी भी कर लें

    चौपाल पर आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद , बहुत आभारी हूँ वगैरह वगैरह
    आप स्वयम समझदार हैं, हो जो कम लगे
    जोड़ लीजियेगा |

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  4. ek bat hai kisi na kisi ki jaan ko khatra haiu hi
    acha kiya bata diya

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  5. ई आप सब क्या अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं. सब गड़बड़झाला हो रहा है. 'नीम हकीम खतरा-ए-जान' का सही अर्थ 'युवा' ने काफी मंथन करके निकाला है कि " हकीम अगर नीम का एक्सपर्ट हो तो खतरे में भी जान आ जाती है". (कुल मिलाकर ऐसे में सबको खतरा हो जाता है).

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  6. कहीं नीम से इलाज करनेवाले हकीमों से जान को तो खतरा नहीं होता !!

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  7. आप लोग गलत अर्थ न लगायें.

    यह एक बहुत गंभीर नारा है और यह पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित है.

    इस नारे के माध्यम से नारेबाज ने यह संदेश देने का प्रयास किया है:

    जिस तरह ऐलोपैथी और उसके डॉक्टरों के पीछे भागते भागते इस दुनिया से हकीम लुप्त प्रायः हो चुके हैं और हासिल आया शून्य. बल्कि और बड़ी बिमारियाँ होने लग गई हैं और ऐसे ही हकीम की तरह एक दिन नीम भी लुप्त हो जायेगा अगर आप टूथ पेस्ट के पीछे और माऊथ वाश के पीछे भागे तो. और हाथ आयेगा नकली डेन्चर.

    इससे बेहतर है नीम बचाओ और उसकी दातून करो और दांतों को मजबूत रखो. पर्यावरण सुरक्षित रखो.

    अतः

    नीम हकीम खतरा- ऐ-जान

    हकीम की तरह ही नीम की जान को भी खतरा है.

    -स्वामी समीरानन्द की प्रवचन माला से.

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  8. hnm...

    बहुत ज्ञान मिला है आज तो..
    मैं धन्य हुआ..
    सभी को प्रणाम....
    :)

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  9. मुझे तो बचपनमे लगता था , नीम की जान को खतरा होता है , गर हकीम उसके नीचे सो जाय तो ..और , पेड़ गर उस कारन गिर जाता है ,तो हकीम की जानको भी खतरा ...! असली बात तो तब पता चली जब, काफ़ी सारे 'नीम हकीमों' ने मुझपे अपनी दवाईयाँ आज़मायीं...!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://lalitlekh.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

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  10. समीर जी ने तो दिव्य ज्ञान प्रस्तुत कर दिया। वाह प्रभु, वाह...

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  11. थारो भोत-भोत धनबाद्जी जो थम्हनै कड़वे नीम को इतणा याद कर लिया और एक हरियाणवी लोक कथा भी सुणल्यो.. एक बै [बार] एक बुढिया बीमार हो गई उसका बोल निकलणा भी बंद होग्या था,उस गाम [गांव] म्हं कोई नीम हकीम भी नहीं था ,हर आदमी अपनी अपनी सलाह दे रहा था किसी ने कहा इसके मुंह पर पानी के छींटे दो,तो कोई कहरहा था इसको जूता सुंघा दो एक कहने लगा इसे गर्म-गर्म हलवा खिला दो,बुढिया यह सुन बोल उठी इस हलवे आले की भी सुन लो लोगो
    तो हे लोगो कहानी का moral है समीर लाल जी की सुनो और नीम बचाओ
    श्याम सखा श्याम

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