(यह व्यंग मैंने लिखा है, पाश्चत्य सन्दर्भ में, अगर यह घटना आज पश्चिम में हो तो कैसी होगी , पात्रों के नाम हैं
सैम, रीटा, लकी, उर्सुला और रेवन, कहानी शुरू होती है कि सैम और रीटा को वनवास प्रस्थान की आज्ञा मिल गयी है )
हलकी चिकोटी काटी उसने
ले गई किनारे धकिया कर
फिर 'सैम' से बोली 'रीटा'
अपनी बात इठलाकर
कितनी क्यूट स्टेप-मॉम है
डैड भी कितने प्यारे हैं
फोर्टीन वीक्स का वेकेशन दिया है
किस्मत के चमके सितारे हैं
ऐसी शुभ घड़ी में हनी !
तुम कोई पंगा मत डालो
पिकनिक का डब्बा पैक करो
और ट्रेलर की चाभी उड़ा लो
अब अडल्ट हो गए हैं हम, हनी
इन-लास् का हर वक़्त झगड़ा है
मेरा मूड, यहाँ नहीं रहने का
पिअर-प्रेशर भी तगड़ा है
इतनी सी तो शर्त हैं उनकी
गहने-कपड़े छोड़ जाओ
वैसे भी वेकेशंस का रुल है
कच्छा-बनियान ही पाओ
दंडक-लैंड के कॉटेज की
चाभी अगर मिल जाती
तो वेकेशन की खुशियाँ भी
चार-गुनी बढ़ जातीं
एक बात और कहती हूँ
'लकी' को लेकर मत आना
साफ़ साफ़ मना कर देना
या फिर कर देना कोई बहाना
प्राइवेसी में हमारी
बड़ा खलल पड़ जाता है
जब देखो तो वह काटेज के
आगे-पीछे मंडराता है
'उर्सुला' बेचारी यहाँ पर
निपट अकेली रह जावेगी
जब लौट कर हम आवेंगे
कितनी बातें सुनावेगी ?
इस बार सिर्फ हम दोनों ही
वेकेशन मनाने जावेंगे
हो सके तो 'रेवन' को भी
वहाँ पर बुलवावेंगे
कित्ता ब्लैक और टाल है
कित्ता हेंडसम लगता है
काली शर्ट और जींस में
डेन्जल वाशिंगटन लगता है
पिछले सारे डीफ्रेन्सेस भूला कर
उससे हाथ मिलाना है
इस बार वेकेशन में मेरे सैम
पिछला लोचा सुलझाना है
बहुत ही अद्भुत। मुझे इस बात का डर है कि कहीं लोग इसका विरोध न करने लगें और इसे व्यंग्य के बजाय कुछ और न कहने लगें। फिर भी ये है बहुत ही तगड़ा...
ReplyDeleteनदीम,
ReplyDeleteइसका विरोध क्यों करेंगे ?
मैंने तो पश्चिम की मानसिकता बताई है की यहाँ के लोग किस तरह सिर्फ अपनी ही सोचते हैं जब की भारतीय मानसिकता कितनी विशाल है.....हमलोग बड़ों का आदेश ईश्वर की वाणी समझते है और खुद का आस्तित्वा सबसे बाद में आता..
यह सिर्फ एक तुलना है पूरब और पश्चिम में और कुछ नहीं....
फिरंगी रामायण !
ReplyDeleteवाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह !
bhaut accha vyang hai.
ReplyDeleteएक बात और कहती हूँ
ReplyDelete'लकी' को लेकर मत आना
साफ़ साफ़ मना कर देना
या फिर कर देना कोई बहाना
प्राइवेसी में हमारी
बड़ा खलल पड़ जाता है
जब देखो तो वह काटेज के
आगे-पीछे मंडराता है
bahut badhiya likha hai
lajwaab. ye angrej to yahi kahenge.
badhai.
वाह अदा जी,
ReplyDeleteबड़े रोचक तरीके से आपने सच्ची बात कही है। भले ही आपने व्यंग्य लिखा हो लेकिन हम सभी जानते है कि न केवल विदेशों में बल्कि अपने देश में इसी तरह की मानसिकता पनप रही है। व्यंग्य होते हुए भी यह आधुनिका समाज का शर्मसार करने वाला सच है। कम शब्दों में, इतने रोचक तरीके से इतनी गहरी बात लिखने का यह बहुत तरीका है।
वाह सुन्दर
ReplyDeleteसही तस्वीर है आज की --
bahut behtareen hai...maine hui nah mere blog par kai aur logo ne padhkar saraha hai.......
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग, काफी कुछ कह दिया आपने इस रचना मे।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, तीखा वार है "आधुनिक समाज" पर.......
ReplyDeleteबेचारा लकी, आखिर मोडर्न भाभी जो मिली है !! रावण की प्रस्नैलिटी की तारीफ़ भी बहुत खूब की है आपने !
ReplyDeleteHa ha ha a bahut badiya maja aa gaya padkar..aapke vyang bahut sateek hote hain..
ReplyDeleteek mene bhi likha hai samay ho to aakar dkehiyega.
प्राइवेसी में हमारी
ReplyDeleteबड़ा खलल पड़ जाता है
जब देखो तो वह काटेज के
आगे-पीछे मंडराता है
हा हा हा हा ..
आगे पीछे मंडराता है..
क्या बात है बहुत ही ज़बरदस्त
आपका दीमाग किस मिटटी का बना है अदा जी , चुन-चुन कर लाती हैं आप !!!
SHABDJAAL KHOOB RACHAAAA.........
ReplyDeleteHello,
ReplyDeleteGood evening :)
Very beautifully written.
You do great work with every creation of yours!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
aa Lajwab prastuti....padhkar anand aa gaya.
ReplyDelete"युवा" ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
युवा जी,
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए हार्दिक धन्यवाद, बस एक सवाल मेरे मन में कुलांचे मार रहा है वह यह की सारी दुनिया आगे जारही है और आप रिवर्स गेयर मैं हैं ऐसा क्यों, आपकी तस्वीर युवा से बालक कैसे हो गयी भला........????
क्लियर करें......
वाह, पढ़कर मज़ा आ गया.
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ,यही तो फर्क है पूरब और पश्चिम में |पर ये भी उतना ही सत्य है की चाहे कितनी ही पश्चिम की संस्क्रती अपना ले हम अपनी जड़ो से जुड़े ही रहेगे |सेम और रीता भी कभी प्राइवेसी से तंग आ जावेगे |
ReplyDeleteहम छोटे थे तब ये गीत गाते थे
राम चले वन को माता हम भी चले जावेगे
बेटा तुमको भूख लगेगी खाना कहा खाओगे
ले चलेगे डिब्बा रोटी खाते चले जावेगे
राम चले बन को माता हम भी चले जावेगे |
शोभना जी,
ReplyDeleteआपकी बातें दिल को छू जाती हैं..आपकी टिपण्णी यूँ लगती है जैसे आप मेरे सामने बैठी हों और मुझसे बातें कर रहीं हों...
यहाँ मैं सोच के आया था, कुछ डायलाग पढूंगा, सुना है कई प्रकार की ....... होती हैं, पर यहां तो तबियत रंगी रंगी हो गई, अक्सर ब्लागिंग की दुनिया में ढूंडते कुछ हैं मिल कुछ जाता है,
ReplyDeleteअच्छा लगा कुछ महानुभव की हाजरी यहाँ पहले से है मैं जा रहा हूँ बिना अपना प्रचार लिंक छोडे 'सच कहना मना है' नोट करले
बढिया व्यंग्य रचना है।
ReplyDeleteapka vyang bahut hi accha hai. padh kar maza agaya.
ReplyDeleteMohammed Umar Kairanvi said...
ReplyDeleteयहाँ मैं सोच के आया था, कुछ डायलाग पढूंगा, सुना है कई प्रकार की ....... होती हैं,
?????
kyaa faramaayaa diyaa hujoor ne...?
अद्भुत सेंस ओफ़ ह्युमर!!
ReplyDeleteadaji dhnywad .kuch nata hi aisa ban jata gya hai ki sab apna sa lgta hai
ReplyDeleteshayd vicharo ki smanta ?
बाप रे....कितना दूर तक सोचती हैँ आप...
ReplyDeleteरामायण का फिरंगी वर्ज़न....
अभी तक अपने दिमाग में ऐसा धांसू आईडिया क्यों नहीं आया?...
बढिया व्यंग्य ....
दिल से बधाई स्वीकार करें
हा हा हा
ReplyDeleteबेहतरीन प्रतिभा दिखाई है
अदा जी बहुत सुन्दर काटाक्ष किया किया है आज की पश्चिमी सभ्यता मेंमें रंगती जाती पीढी पर भले ही आप ने इसे नाम फिरंगी रामायण दिया हो पर पश्चिमी सभ्यता मेंमें रंगते लोगो के लिए सबक भी है
ReplyDeleteमेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084