जनाब रिफ़त 'सरोश' साहब की ये ग़ज़ल है, ये ग़ज़ल मुझे बहुत बहुत बहुत पसंद है.....
बहुत साल पहले उन्होंने मुझसे कहा था 'बेटा ये मेरी किताब है, और अब तुम्हारी है मैं चाहता हूँ आप इसमें से अपनी पसंद की ग़ज़लों को धुन में ढालें और गायें' वो दिन और आज का दिन नहीं कर पायी मैं, अब जाकर पता चला की वो इस दुनिया में रहे ही नहीं...बस मन कुछ बैठ सा गया...एक कच्ची-पक्की सी धुन बनायीं है...जो अभी बन ही रही है......अब पता नहीं कब बने.... जो भी बनी है सुन लीजिये...
शायर : जनाब रिफ़त 'सरोश'
संगीत : संतोष शैल
आवाज़ : स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा'
किसने कहा हुजूर के तेवर बदल गए
रुख की शिकन गयी है न माथे के बल गए
उलटी पड़ी है आज मोहब्बत की हर बिसात
ये शातिराने दैहर अजब चाल चल गए
उस अंजुमन में जब उठे सरगराँ उठे
उस अंजुमन में जब भी गए सर के बल गए
क्या लेके जाएँ बज़्म-ए-सुख़न में सिवा-ए-दिल
अल्फाज़ फ़िक्र-ओ-फन की तमाज़त से जल गए
मंजिल पुकारती ही रही ठहरिये 'सरोश'
हम बे-खुदी-ए-शौक़ में आगे निकल गए
achhi prastuti....wah
ReplyDeleteमंजिल पुकारती ही रही ठहरिये 'सरोश'
ReplyDeleteहम बे-खुदी-ए-शौक़ में आगे निकल गए
क्या बात है!!बहुत सुन्दर. आपकी पसन्द काबिले तारीफ़ है.
किसने कहा हुजूर के तेवर बदल गए
ReplyDeleteरुख की शिकन गयी है न माथे के बल गए
WAH !
सुन्दर प्रस्तुति है बधाई।
ReplyDeleteवाकई काबिले तारीफ । शुकून दे रही है आपकी आवाज । कई शब्दों के अर्थ नहीं समझ पाया जो उर्दू के अल्फ़ाज थे । गजल सुनकर पढ़ने से कही बेहतर लगा । बधाई
ReplyDeleteada ji,
ReplyDeleterifat sarosh sahab ki is umda gazal ko aapki umda aawaaz aur santosh ji ki umda mausiqui ne lajawaab bana diya.
aap yakeen karein main ise 5 baar sun chuka aur abhi 50 baar aur sun sakta hun. neeshoo ji ne bilkul theek kaha aapki aawaaz bahut hi sukoon de rahi hai.
dil khush ho gaya.
badhai
lajawab,isepadhwane ke liye aabhar.
ReplyDeleteमंजिल पुकारती ही रही ठहरिये 'सरोश'
ReplyDeleteहम बे-खुदी-ए-शौक़ में आगे निकल गए
mujhe aapaki in pankatiyo se isaq ho gaya .....kya kare.......bahut khub
आपकी आवाज़ माशा-अल्लाह !!
ReplyDeleteमैं अब कुछ भी कहने के काबिल नहीं रहा
बस सुन रहा हूँ आपकी आवाज़
लाजवाब ग़ज़ल और आपकी जादुई आवाज़ ........ मज़ा आ गया
ReplyDeleteवाह....मुझे भी बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteजनाब रिफ़त 'सरोश' साहब की गज़ल पढ़ना अच्छा लगा और फिर उसकी संगीतमयी प्रस्तुति..वाह!! अच्छा गाया.
ReplyDeleteसंगीत मैं ढालने का प्रयास सराहनीय है | अच्छा लगा सुन कर |
ReplyDeleteSUKHAD ANUBHAV !
ReplyDeleteसुरों का बेहतर चयन, धुन की नज़ाकत भी बरकरार, संजीदा एहसास भी.
ReplyDeleteA complete Package indded!!!
bhut hi surili gajal .badhai
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-इन देशभक्त महिलाओं के जज्बे को सलाम-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
achi gazal hai..magar me net slow hone ke karan sun na skai..dukh hai
ReplyDeleteada ji,
ReplyDeletebahut hi mithi awaaz mein ye gazal suni. bahut acchi prastuti hai aapki.
kyaa khoob gaayaa hai aapne....
ReplyDeleteaur santosh ji ki dhun...kamaal ki dhun banyee hai unhone...
ab tak jaane kitnaa sun chukaaa hoon...
मंजिल पुकारती ही रही ठहरिये 'सरोश'
ReplyDeleteहम बे-खुदी-ए-शौक़ में आगे निकल गए
बहुत ही बढिया....
सुन्दर प्रस्तुति....
आपकी आवाज़ सुन के पुरानी गायिका 'शारदा' की याद आ गई
नमस्कार अदा जी गजाल पढ़ कर बहुत अच्छा लगा और आप की आवाज ने उसकी खूबसूरती और बढा दी
ReplyDeleteमेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
apki awaaz uffff ! ! ! !
ReplyDeleteapki awaaz sun raha hun aur bas doob gaya hun.
ReplyDeleteapki awaaz mein ek ajeeb se kashish hai ada ji jo baar-baar sunne ko majboor kar rahi hai.
bas main sun raha hun..
sun raha hun..
sun raha hun..
bahut khoobsurat ghazal, lajwab matla!! lekin aapki aawaaz me nahi sun paaye kya aap gaatee haiN?
ReplyDeleteइसे ही ढूंढते-ढूंढते फ़िर से आपका ब्लॉग मय कमेंट्स पढ़ लिया।
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