Sunday, July 26, 2009

प्रतिष्ठा पांचाली की...

पांचाली तुम्हें किस रूप में करुँ मैं स्मरण ?
भार्या कहूँ तुम्हें, पर किसकी कहूँ ?
या मातृतुल्य सोच कर करूँ मैं नमन ?
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

पाँच पति पाकर हुआ तुम्हें अभिमान !
एक ने भी भार्या का क्या दिया तुम्हें सम्मान ?
सम्मानित जीवन का बस दे दो उदाहरण !
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

चौपड़ की गोटी बनी, रिक्त सा जीवन पाया
बिन सोचे-समझे पांडवों ने तुझपर दाँव लगाया
अब बनो वस्तु से नारी और करो मनन
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

फिर नहीं देखा कुलवधुओं को दाँव पे चढ़ते
बस देखा पति को प्रिया की आन पर मरते
सोच द्रौपदी सोच ! अरे कुछ तो करो चिंतन
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

कोई सुभद्रा किसी सभा में कभी न बुलवाई गयी
किसी हिडिम्बा की साड़ी किसी दुर्योधन के हाथ न आई
अपमान की पराकाष्ठा कितनी थी गहन
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

पाँचों के प्रति तेरा समर्पण, कहाँ प्रतिष्ठित माना गया ?
यह तिरस्कार इतिहास में फिर कहाँ जाना गया ?
इस अनुचित रीति का चल न पाया चलन
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

सब बनने की लालसा में तू कुछ न बन पाई !
पत्नी का स्थान रिक्त रहा, तू माता भी न कहलाई !
भोग्या से भार्या तक की दूरी थी कठिन
पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

17 comments:

  1. सब बनने की लालसा में तू कुछ न बन पाई !
    पत्नी का स्थान रिक्त रहा, तू माता भी न कहलाई !
    भोग्या से भार्या तक की दूरी थी कठिन
    पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण

    shakti का smaran karaati है paanchaali की katha .......... adhbudh naari paatr lisne mahabhaarat का हर lamha jiya है.......अपने shonit से seenchaa है............ pranaam है मेरा उस naari shakti को...

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  2. पाँच पति पाकर हुआ तुम्हें अभिमान !
    एक ने भी भार्या का क्या दिया तुम्हें सम्मान ?
    सम्मानित जीवन का बस दे दो उदाहरण !
    पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?
    sundar rachna

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  3. द्रौपदी का दर्द उभर कर आया है...बधाई.

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  4. यहीँ तो हमारे पुराणों/प्राचीन ग्रंथों ने अन्याय किया है ...! पांचाली ने अर्जुन से अधिक प्यार किया इसलिए उसे सज़ा ...जबकि ,उसका वरण अर्जुन ने किया था ॥!
    वाह !..माँ ने अपने 5 बेटों से बिना देखे कह दिया ,जो लाये हो पाँचों बाँट लो ,तो हुक्म सर आँखों पे ...! सारे के सारे इतने नामर्द थे ,कि , माँ से कह न सके , तथ्य क्या है ?जब सारे पांडव, स्वर्ग की और चले जा रहे थे.... पांचाली पीछे रह गयी...उसने सहायताके लिए गुहार की,तो धर्मराज ने कह दिया,मुड़ के देखोगे तो स्वर्ग प्राप्त नही होगा....! नतीजन,किसी ने मुड़ के नही देखा...! ये सिला मिला पांचाली को....
    जब कभी ये सब पढ़ती हूँ,तो एक ज़बरदस्त बगावत करने का मन करता है...सदियों से नारी को केवल एक 'भोग्य' वस्तू मान के समाज चला आ रहा है...

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  5. bahut achhi rachna|
    badhaai|

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  6. yeh nari ki vytha mhabharat kal se aaj tak kisi na kisi roop main hai,aur main aaj tak yeh nahin samajh paya jue main panchali ko danv par lagane ke bad bhi woh dharmraj kaise they?

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  7. सब बनने की लालसा में तू कुछ न बन पाई !
    पत्नी का स्थान रिक्त रहा, तू माता भी न कहलाई !
    ======
    यही यथार्थ है. और इस यथार्थ पर आपकी पैनी नज़र ---- वाह वाह

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  8. "Bharya kahoon....
    .....karoon main samarna?"
    Panchali was good or bad ,that's not the concerned and what haapend to her was also not...
    the only concerned is that the condition of a women has still been or not...
    i remembered one thing said by manu ji...
    maY be it's not contemprary but then too i would like to quote it...

    ...the thing which women does and the thing which women suffer even if a part of it is tolerated by man then he would be treated as a god...

    ...however those thing are included in women's daily routine...

    ...i salute you manu ji...

    i salute u women...

    ...i salute u "ada".

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  9. Darpan ji,
    I am really impressed by Manu ji's and your perspective towards WOMAN, this gives us hope, that things are NOT that bad, Also you have given entirely different angle of thought to the poem, and that is great...
    Once again my sincere thanks to you for your worthy comment....

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  10. gahre samvedansheel adbhut vichar.........kya khoob likha hai aur panchali ke dard ko bakhubi bayan kiya hai............kitna gahra sach likha hai..........aaj to tarif ke liye shabd kam pad rahe hain.

    kabhi mere blog par bhi aaiyega.
    vandana-zindagi.blogspot.com

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  11. sabhi ne jo kaha uska samarthan karti hun...sundr abivyakti

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  12. पांचाली की वास्‍तविक स्थिति को आपने सटीक ढंग से चित्रित कर दिया है .. बधाई !!

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  13. दिगंबर जी, शमा जी, विनय जी, वर्मा जी, वंदना जी, संगीता जी, मिथिलेश, पवन जी, अर्चना जी,
    आप का ह्रदय से धन्यवाद करती हूँ, आप लोगों ने हमेशा मुझे प्रत्साहित किया है...
    विनय जी की बातों से मुझे एक और ऐसी ही रचना लिखने को प्रेरित किया है बहुत जल्द मैं धर्मराज युधिष्ठिर पर भी कुछ लिखूंगी...
    बस आज दिल किया की आप लोगों को बता दूँ की मैं नत मस्तक हम आप हमेशा मेरे साथ होते हैं, मेरी किसी भी रचना को उसकी त्रुटियों के साथ अपना लेते हैं, आप सच-मुच मेरे अपने हैं...बस
    धन्यवाद... ऐसे ही अपना स्नेह बनाये रखिये..अनवरत...अविरल....

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  14. hnm...
    हमारा कमेंट लेट हो गया तो हमारा नाम ही काट दिया आपने.....???
    भाई थोडा बहुत तो प्रोत्साहित हम भी करते होंगे.....?
    नहीं.......???
    :(

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  15. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता है। मुझे पता नहीं लेकिन अगर द्रॉपदी के साथ यह अन्याय सतयुग में हुआ था, तो भी आज तो हर गली मुहल्ले में द्रॉपदी जैसी नारी मिलेगी। कहने का आर्थ इतना ही है कि भले ही युग बदल गया हो, स्वार्थ की मानसिक प्रवृत्ति मनुष्य में नहीं बदली है। आपकी कविता ने हिला दिया...

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  16. कोई सुभद्रा किसी सभा में कभी न बुलवाई गयी
    किसी हिडिम्बा की साड़ी किसी दुर्योधन के हाथ न आई
    अपमान की पराकाष्ठा कितनी थी गहन
    पांचाली तुम्हें किस रूप में करूँ मैं स्मरण ?

    पाँचों के प्रति तेरा समर्पण, कहाँ प्रतिष्ठित माना गया ?
    bahut alg vishay par likha hai aapne .aur bahut sateek prshn
    bhumukhi prtibha ki dhni hai aap .
    badhai

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