आकांक्षा यादव का लेख 'ईव-टीजिंग और ड्रेस कोड' पढ़ा 'चोखेर बाली' पर तो एक व्यंग लिखने की इच्छा हुई, सुना है भारत में अब नवयुवतियों को ड्रेस-कोड का पालन करना होगा, मन व्यथित हुआ की यह कैसा दिमागी-दीवालियापन है, क्या हमारे देश के पुरुष वर्ग का चरित्र इतना शिथिल है की वह मात्र लड़कियों के कपड़ों की लम्बाई-चौड़ाई पर टिका हुआ है, जबकि पश्चिम में कपड़ों का प्रयोग महिलाएं कितना और कैसे करती हैं किसी से छुपा नहीं फिर भी यहाँ के पुरुष वर्ग का चरित्र बहुत ऊँचा है, इस ड्रेस-कोड की भर्त्सना केवल नारियों को नहीं पुरुषों को भी करना चाहिए, क्योंकि यह सिर्फ और सिर्फ पुरुषों की कमजोरी दर्शाता है और कुछ नहीं, उँगलियाँ आपकी ओर हैं, हमारी ओर नहीं.....
बड़े अरमानों से,
खुद को सजाया
हर डिस्टेम्पर,
खुद पर आजमाया,
न जाने कितनी साडियां,
खुद पर निसार की
तब कहीं जाकर,
एक पर दिल आया
झुमके बालिओं की
हर खेप से मुखातिब हुई
कितने नेकलसों को,
फिर गले लगाया
मैंचिंग के गुरों की,
हर पोथी पढ़ डाली
फैशन का कोई ज्ञान,
न किया मैंने जाया
बार बार आईने से ,
भिड़ती रही थी,
इस साजो श्रृगार में,
पूरे तीन घंटे लगाया
टोरंटो की सड़कों पर,
बिजली गिराने का
मैंने प्रोग्राम
और इरादा बनाया
निकल पड़ी अपनी,
मतवाली चाल से
दिलों पर तीर चलाने,
पर नैनों के कटार
तो म्यान में ही रहे
चलाने को मिले नहीं
कहीं कोई बहाने
शमा तो जलती रही
उचक उचक कर
पर सारे परवाने जैसे
हड़ताल पर चले गए
मेरी अदाओं के ढेले
घूम घूम कर
मुझ पर ही गिरने लगे
हुस्न के जादू
अबाउट टर्न हो
मुझपर ही फिरने लगे
अब मेरे ज़हन में सोच के
बादल घुड़मुड़ाने लगे
अजीब अजीब से ख्याल
मन में भी आने लगे
यह देश घोर संकट में है
ये अपनी समस्याओं से
कैसे लड़ते हैं ?
जब सड़कों पर
एक लड़की तक नहीं छेड़ते हैं
इन्हें भारत से इसका कोर्स
मंगवाना होगा
इसको हर कालेज
में लगवाना होगा
समझाना होगा
लड़कियां छेड़ना एक
खूबसूरत रिवाज़ है
अगर आप ये रिवाज़
नहीं निभायेंगे
तो हम भारत की बालाएं
बिन छिड़े ही मर जाएँगी
और भारतीय संस्कृति की
अनुपम धरोहर अपने बच्चों
को भला कैसे दे पाएँगी.....
अगर आप ये रिवाज़
ReplyDeleteनहीं निभायेंगे
तो हम भारत की बालाएं
बिन छिड़े ही मर जाएँगी
और भारतीय संस्कृति की
अनुपम धरोहर अपने बच्चों
को भला कैसे दे पाएँगी.....
bahut jabardast vyang hai,,,
bikul sahi kaha hai aapne iska virodh hona hi chahiye,,,,
ड्रेस कोड कान्सेप्ट ही गलत है..ये किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता!! आपने अच्छा मसला पेश किया रचना के माध्यम से, साधुवाद!!
ReplyDeletesahi likha hai aapne,
ReplyDeleteacchi rachna !!
वाह बहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeleteबिषय को अलग नजरिये से देखने का अंदाज अच्छा लगा।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
विचारोत्तेजक मुद्दा. रचना बहुत खूबसूरत. छिडना और छेडना मानसिकता की देन है न कि ड्रेस का.
ReplyDeleteबात तो बिल्कुल सही है, कविता बहुत अच्छी लगी
ReplyDelete---
पढ़िए: सबसे दूर स्थित सुपरनोवा खोजा गया
आज तो उनका,
ReplyDeleteकुछ अलग ही अंदाज है,
लडकियां छेड़ने का,
अजब ये रिवाज है,
क्या परम्पराओं का धनी,
यही , वो भारत समाज है...?
मगर हाय यदि ऐसा ही है,
तो बड़ा जुल्मो सितम हमारे साथ हुआ,
हम तो छेड़ न पाए किसी को ,पहले ही,
किसी और के हाथ में, अपना हाथ हुआ,,,,,
और अब घर में ...छेड़ नहीं ..छिडी रहती है ..अजी घनघोर ..विश्वयुद्ध ....
जी.....
ReplyDeleteलड़कियों पर तो ड्रेस-कोड सरासर गलत है..
इस ड्रेस कोड के खिलाफ तो हम भूख-हड़ताल पे भी बैठ सकते हैं...
:)
इन्हें भारत से इसका कोर्स
मंगवाना होगा
अपना बायो-डाटा ...
जगह जगह सड़कों से मिले प्रमाण-पत्रों सहित आपको मेल करता हूँ...
आशा है के विदेश में लोग इस कला का महत्व समझेंगे...
हमेशा मस्त-मस्त लिखती हैं आप..
वाह क्या बात है कड़वी गोली चासनी में लपेट कर दी है. आपने बड़े मजेदार तरीके से कहा, पढ़ते समय मजा आ गया.
ReplyDeletemuddha bahut shia uthaya hai,badiya rachana.
ReplyDeleteमंजूषा जी,
ReplyDeleteशायद, हमारे यहाँ कालेज जाया ही इसीलिये जाता है कि छेड़खानी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
एक गंभीर मुद्दे पर सार्थक कविता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत खूब कही
ReplyDeleteआज पहली बार शायद आ रहा हूँ आपके पन्ने पर....आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणियों का कायल तो पहले से था और अब आपकी जबरदस्त लेखनी का हो गया हूँ।
ReplyDeleteजय हो ....
ReplyDeleteये मानसिकता पर निर्भर करता है
ReplyDeletebikul sahi kaha hai aapne
ReplyDeletebadiya rachana
समाज के लिये एक चिंतनीय़ बिषय पर मन को छूती रचना
ReplyDeleteSAHEE BAYAAN KARI .....KHUBSOORAT RACHANA
ReplyDeletesateek aur sarthak..
ReplyDeleteaapne bhi to sadiya sadiya nisar ki .
ReplyDeletebhai kaoun chedega vha?ha par hmare jmane me to sadi phnne valo ko bhi chedne me mharth hasil tha .bhut acha ktaksh hai .hrek insan apne khud se puch le?kya usne apne jeevan me is bhartiy parmpara ka nirvah kiya hai ya nhi?
dhnywad.
dress code lagu karna hi galat hai aur use drishti mein rakhte huye aapne jo vyangya kiya hai wo kabil-e-tarif hai.........likhti rahiye aise hi..............bahut badhiya.
ReplyDeleteबहुत अच्छा व्यंग्य...काफ़ी अच्छे तरीके से बयान किया है!
ReplyDeleteमैं ड्रेस कोड का पक्षधर हूं
मैं मानता हूं की सभी शिक्षण संस्थानों में ड्रेस कोड होना चाहिये लेकिन लडके और लडकियों दोनों के लिये!
अगर सिर्फ़ एक पर लगाया जायें तो वो ग्लत है...
रिवाज तो अपनी जाने पर अभिव्यक्ति सरल तरल अजब गजब है-रवानी है रचना में और रवानी तभी आती है जब रचना दिल से फ़ूटे,वैसे मनस शास्त्री आप की बात से सहमत हैं कि लड़किया सजती संवरती ही इसलिये हैं ,जी जैसा आपने लिखा
ReplyDeleteपुन: साधुवाद