उम्र की दलदल में धीरे-धीरे
सरकते अपनों की काया,
ओझल होते देख
आँखें छलछला उठीं हैं,
मगर ये आँसू
इन्द्रधनुषी रंगों,
में हौले से क्यों तब्दील हो गए हैं ?
आशा की नई उषा
उतरती दिखती है, शायद..
यही कालचक्र है..
जो बरा वो बुताया जाएगा,
और जो बुत गया
वो जल कर फिर आएगा....
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !
ReplyDeleteआपकी चेट बाद में मिली ...माँफ कीजियेगा जबाब नहीं दे पाया
कैसे है अब आपके पिताजी भारत जाने के बाद ?
जी हाँ! यही कालचक्र है..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से कालचक्र की बात की है। and the show goes on.......
ReplyDeleteपिक्चर - परफ़ैक्ट हमेशा की तरह।
आभार।
पहले तो मुझे लगा शीर्षक कुछ गलत हो गया है... लेकिन रचना पढने के बाद स्पष्ट हो गया की बुताया ही जायेगा |
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना....
bahut hi sunder rachna
ReplyDeletekabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
सृजन की आस बनाये रखें।
ReplyDeleteमाफ़ कीजिएगा ये बरा क्या होता है???
ReplyDeleteआश-निराश के दो रंगों से
ReplyDeleteदुनिया ‘तू’ ने बनाई .... :(
बरा और बुता एक अरसे बाद सुना !
ReplyDeleteनीलेश जी.
ReplyDelete'बरा' का अर्थ जलना होता है जैसे दीया का जलना...
मेरे कहने का अर्थ है जो दीया जलाया गया वो बुझेगा...
आशा है मैं स्पष्ट कर पाई..
good
ReplyDeletekaalchakr ka achcha vernan...bahot achchi rachna.
ReplyDeleteअदा जी, धन्यवाद!
ReplyDeleteAdaa ji aapne toh itni sahi baat kya gehron shabdon mein keh di...!!
ReplyDeleteVery true..
Talented... u r genius :)
Regards,
Dimple