कवियों, लेखकों और साहित्यकारों की,
एक कवयित्री चाहिए,
जिसका रंग गोरा,
कद ५ फीट ३ इंच
और बायें गाल पर तिल हो,
जिसने ख़ूब ख़ूबसूरती पाई हो,
और अपनी हर कविता में
मर्दों की, की धुनाई हो,
ऐसा हो तो और अच्छा हो
कि उसके हर लेख में
नारी शक्ति की चर्चा हो,
एक युवा कवि चाहिए
जो लगभग ५५ का हो,
जो भी उसने लिखा हो
कोई समझ न पाया हो,
चाहे पहले कुछ भी लिखा हो,
पर अब क्षेत्रीयता विरोध अपनाया हो,
साथ ही यह पक्का कर लेना
वो यू.पी., बिहार का जाया हो,
दलित वर्ग का भी कवि देखो
वह पैदायशी दलित होना चाहिए,
मोटा-ताज़ा ना हो
दलित ही दिखना चाहिए,
एक और कैटेगोरी आई है
जो धर्म निरपेक्षता कहलाएगी,
इसमें सिर्फ़ और सिर्फ़
मुसलमान कवि ही आएगा,
जो अलीगढ़ के आस-पास
ही पाया जाएगा,
कैसे भी पकड़ कर लाओ
उसको हमारे पास,
बस हिन्दू-विरोधी न हो
यह बात होनी है ख़ास,
बाल कवियों की भी श्रेणी है
यह कवि उस जगह पाओगे,
जहाँ बच्चे ग़ायब होते ज्यादा
ढूँढने का बस तुम कर लो इरादा,
मझोले कद का हो और शक्ल से
शरीफ लगता हो,
अन्दर से चाहे घाघ हो,
पर ऊपर से ख़ूब जंचता हो,
इतने से ही हमारा सारा काम
अजी चल जाएगा,
वर्ना हिंदी-विकास का कोटा
साफ़-साफ़ रुल जाएगा,
अरे जल्दी कुछ करो भाई
वर्ना समझो कि शामत आई,
फण्ड अलोकेशन समाप्त होने का
महीना आया है,
और ट्रेजरी ने भी
जम कर याद दिलाया है
अगर ये राशि नहीं खर्ची तो,
वो सारे पैसे ले जायेगी
और हिंदी साहित्य पुरस्कार की
नैयाँ ऐवें ही डूब जायेगी,
हिंदी विकास का धंधा
फिर मंदा हो जाएगा,
और जाने कितनों के
घर का चूल्हा,
भी ठंडा हो जाएगा ...
५ फुट ३ इंच थोड़ी छोटी नहीं हो गयी ?
ReplyDeleteकविता से ज्यादा गद्य लगा, जो भी हो, व्यंग्य तो बढिया है ....
लिखते रहिये ....
गाल पर तिल ना हो तो भी चलेगा
ReplyDeleteऔर लम्बाई में छूट भी मिलेगी ...
बस थोडा कुछ लेना -देना होगा ...
अब हिंदी साहित्य के विकास पर इतना -सा कुछ तो करना ही पड़ता है...
लगे हाथ इन सबके रेट भी तय कर दिए जाते तो :)
ReplyDeleteभई बाकी तो सब गुण मिलते हैं मगर जरा धर्मनिर्पेक्ष हैं यही सब से बडा दुर्गुण है वर्ना सुन्दर \भी हूँ काला तिल भी है --- आदि आदि देख लो अगर सिफारिश चल सकती है कुछ छूट दे कर?
ReplyDeleteअदाजी,
ReplyDeleteकमल करती हैं आप भी...
पूरा धोबी पछाड़ दिया..
कुछ तो ख्याल रखतीं...!
एक एक शब्द सच.:) मजा आ गया पढकर.
ReplyDelete`एक कवयित्री चाहिए,
ReplyDeleteजिसका रंग गोरा,
कद ५ फीट ३ इंच
और बायें गाल पर तिल हो, .......'
ओह, यह कहीं ‘अदा’ तो नहीं :)
साहित्य का विकास निश्चित है।
ReplyDeleteलाजवाब पोस्टिंग. हिंदी की दुर्दशा के लिए टीवी भी ज़िम्मेदार है.
ReplyDeleteयह अप्रकशित विज्ञापन अब बिना प्रकाशित हुए भी सभी लोगों को पता है ।
ReplyDeleteक्या हुआ अदाजी? दो दिन हो गये, आपका ब्लॉग स्टैंडस्टिल है.. कमेंट्स तक रिलीज़ नहीं हुये। सब ठीक तो है?
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