Monday, November 22, 2010

हिंदी ब्लॉग जगत के स्वर्णिम दिन काहे को उकताए हैं ?


बहुते दिन बाद हम तो, आज ईहाँ पर आयें हैं
मगर देख हैरान हम हूँ, सब धुरंधर ठंढाए हैं 
न कहीं गर्जन-तर्ज़न, न कोई चिल्लाये है 
आरोप-प्रत्यारोप भी, एकदम दुम दबाये हैं 
फिर काहे सार्थक लेखन पर, असार्थक बदली छाये हैं, 
ग़ज़ल-कविता घिसट रही है, कहनी-कथा घिघियाये हैं 
का सब पोलिटेकली करेक्ट होने का भारी कसम उठाये हैं ?
या वक़्त ने सबकी लेखनी को, जम कर जंग लगाए है
अथवा कल्पना की उड़ान छोटे ब्रेक पर जाए है
ब्लॉग जगत के शूर-वीर काहे को मुरझाये हैं
हिंदी ब्लॉग जगत के स्वर्णिम दिन अभी काहे उकताए हैं ? 





9 comments:

  1. साँस निकालने के लिये भरना भी जरूरी है, तनिक साँस तो भर लेने दीजिये।

    ReplyDelete
  2. किसने कहा आपसे? देखिये Nice अंकल हमेशा की तरह अपनी "गर्जना" लेकर आये तो हैं… :) :) :) वो भी सबसे पहले…

    ReplyDelete
  3. या वक़्त ने सबकी लेखनी को, जम कर जंग लगाए है
    अथवा कल्पना की उड़ान छोटे ब्रेक पर जाए है...
    अब हमारे जैसा अदना ब्लॉग क्या कहें इस बात पर ..:):)

    ReplyDelete

  4. न कहीं गर्जन-तर्ज़न, न कोई चिल्लाये है’

    सर्दी का मौसम जो आ गया :)

    ReplyDelete
  5. वाणी जी से सहमत अब हम तुच्छ लोग क्या अख सकते हैं :)

    ReplyDelete
  6. :)...इसका मतलब क्या है...? धुरंधर बतलाएं...!

    ReplyDelete
  7. "आपकी चिंता जायज है। देखिये न ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे लोग तो ब्लॉगिंग में आ गये हैं, हम जैसे। बताईये क्या तो स्टैंडर्ड रह गया है ब्लॉग जगत का, चिट्ठा जगत में मो सम कौन, मैंगो पीपल जैसे ब्लॉग्स की पोस्ट टॉप रैंक पर पहुंच जाती हैं कभी कभी। ये आपका बड़प्पन है कि इतने गंभीर विषय पर किसी अनधिकारी,अवांछित ब्लॉगर को सीधे से हतोत्साहित न करके धुरंधरो, वरिष्ठों और स्थापित ब्लॉगर्स को उनकी शक्ति और स्वर्णिम इतिहास की याद दिला रही हैं। आचार संहिता बननी ही चाहिये, जिसमें एक प्रावधान ऐसा हो कि जो भी ब्लॉगिंग करना चाहता है उसे टॉप चालीस के कम से कम आठ या दस धुरंधरों के अनुशंसा-पत्र पेश करने ही होंगे। हिन्दी सेवा के लिये ऐसे त्याग करने ही होंगे आप को। आप साधुवाद, धन्यवाद और आदर्शवाद जैसे सभी अच्छे वादों की पात्रा हैं:)

    ReplyDelete