ये तब की बात है जब मैं दिल्ली में रहती थी ...sidhhartha extesion , pocket -c, हम नए-नए दिल्ली आए थे, आस-पड़ोस बहुत अच्छा, सबसे मिलना जुलना होता ही रहता था...अब भी कहते हैं लोग, तुम जब थी तो बात ही कुछ और थी...और हम ख़ुश हो जाते हैं , सोच कर कि हमारा भी असर था ...ground floor में, रहते थे पाण्डे जी (असली नाम नहीं है ) चन्द्रशेखर जी (तब प्रधान मंत्री थे ) उनके पी.ए. थे....
आई .ए .एस, थे , हम भी बड़े ख़ुश होते थे...मुझे छोटी बहन कहते थे वो....उनकी पत्नी बस यूँ समझिये कि गऊ थीं....इतनी सीधी कि बस पूछिए मत....
अब जो मैं कहने जा रही हूँ उसे आप मज़ाक मत समझिएगा ..ये बिल्कुल सच है...
पिछले कई दिनों से देखती थी पाण्डे जी की गाड़ी खड़ी ही रहती थी और...श्रीमती पाण्डे गेट पर...मैं ऑफिस जाते वक्त उनको खड़ी पाकर नमस्ते करती और चली जाती... जब लगातार ३ दिन उनको सुबह ऐसे ही गेट पर खड़ी पाया, तो मैंने तीसरे दिन पूछ ही लिया...क्या बात है भाभी...भईया नहीं हैं क्या घर पर...उनकी गाड़ी भी यहीं खड़ी रहती है...कहने लगीं...अरे का बताएं...उन्खा तो भायार्लेस हो गया है..येही वास्ते एकली खड़ी रहती है....मुझे बात बिल्कुल समझ नहीं आई...मैंने फिर पूछा क्या हुआ है उनको ?
कहने लगीं...अरे का कहें उन्खा भायार्लेस हो गया है ...चार दिन से बिछौना में पड़े हैं....देहिया तोड़ देता है ई ससुरा भायार्लेस.....अब मेरी बारी थी आसमाँ से गिर कर देहिया तोडाने की...मैं एक दम से ऐसे चीख पड़ी जैसे कारू का खज़ाना मिल गया हो...अच्छा अच्छा...वायरल हो गया है....इस ज्ञान की प्राप्ति का सुख जो मुझे उस दिन मिला था ..वो वर्णनातीत है....भाभीजी के कहने और मेरे समझने के बीच का जो समय था ...उन पलों में मेरी मनोदशा क्या हुई थी उसे बयान नहीं कर पाऊँगी....जब तक उनकी बात नहीं समझी थी...उस बैचैनी को इज़हार कर पाना मेरे लिए असंभव है....अब मैं समझ सकती हूँ आर्कमिडीज क्यों दौड़ गया था....सड़क पर..यूरेका.... यूरेका करता हुआ ...
हाँ नहीं तो...!!!
व और भा के चक्कर में कई बार उलझे हम भी ...
ReplyDeleteकोई भी सी कर रहा था , बहुत देर तक उलझने के बाद समझ आया कि बात वाईस चांसलर की हो रही थी ...!
मन रोक के रखिये, सच में दौड़ने लगेंगी।
ReplyDeleteपरिस्थितिजन्य कारणों से अभिव्यक्तियों में ऐसे संकट अक्सर आते हैं !
ReplyDeleteचलिए जी नहीं ही पूछेंगे की वे कितनी भोली हैं...
ReplyDeleteयूरेका यूरेका यूरेका...
वैसे ये एकदम ही स्वाभाविक है, जब हम किसी नई भाषा के कोइ शब्द सुनते हैं तो हम पहले-पहल आमतौर पर ऐसा ही उच्चारण करते हैं...
सच्ची तस्वीर॥ कभी कभी व्यक्ति जल्दी शादी कर लेता है और कैरियर देर से शुरू होता है तो ऐसी स्थिति हो जाती है। पाण्डेय जी को प्रणाम कि उन्होंने माडर्न होने के नाम पर पत्नी का साथ नहीं छोडा॥
ReplyDeleteआदाब !!
ReplyDeleteछोटी सी पर बड़ी दिलचस्प बात । हाँ नहीं तो ---
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण!
ReplyDelete--
बहुत-बहुत बधाई!
आज के चर्चा मंच पर भी आपकी पोस्ट की चर्चा है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/335.html
मजेदार !
ReplyDeleteसबसे पहले आप लोग को मारे तरफ से स्प्रम नमस्कार, आप का ब्लॉग देखा बहुत अछा लगा आप लोग को भी हमारे तरफ से बहुत बहुत ध्यंयबाद .मे आशा करता हू की आप लोग एसी तहर मेरा साथ दे क्यू के मे इस ब्लॉग जगत मे अभी एक डम अकेले हू ओर आप लोग का साथ लेना चाहता हू
ReplyDeleteसबसे पहले आप लोग को मारे तरफ से स्प्रम नमस्कार, आप का ब्लॉग देखा बहुत अछा लगा आप लोग को भी हमारे तरफ से बहुत बहुत ध्यंयबाद .मे आशा करता हू की आप लोग एसी तहर मेरा साथ दे क्यू के मे इस ब्लॉग जगत मे अभी एक डम अकेले हू ओर आप लोग का साथ लेना चाहता हू
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