तस्वीर-ए-जाना बन दिल में, उतर आओगे तुम
भँवर साज़िश रचते रहे, डूबोने की तुम्हें
सागर की तहों से मगर, उभर आओगे तुम
ढूँढा किये तुम्हें हम, कहाँ-कहाँ हर जगह
कभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम
बिछ गईं हज़ार आँखें, तेरी ही रहगुज़र में
मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम
लिए फ़िरते हो पहलू में, रक़ीब हर जगह
कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
हर एक के दिल में उतर जायेगी ये गज़ल....
ReplyDeleteवाह क्या खूब लिखा है...
ReplyDeletegam ka dariya hi sahi lekin tar jaaoge tum..
बिछ गईं हज़ार आँखें, तेरी ही रहगुज़र में
मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम
वाह...
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मेरी रचना अनुभूति...
ख़ूबसूरत प्रस्तुति..... आभार
ReplyDeleteआदरणीय अदा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचा हूं ,
… प्रस्तुत कविता भी बहुत भावनात्मक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है …
लिए फ़िरते हो पहलू में, रक़ीब हर जगह
कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
......बहुत पसन्द आया
आप स्वस्थ , सुखी , हों , हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
संजय भास्कर
wah wah...i m simply ur fan...thanks 4 coming on my blog...it was so incouraging. thanku.
ReplyDeleteआशावादिता की अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteग़म का है दरिया सही, पर तर जाओगे तुम
ReplyDeleteतस्वीर-ए-जाना बन दिल में, उतर आओगे तुम
gam ki dariya ko bade pyare shabdo me ukera aapne...:) saath hi chitra sanyojan wo to lajabab hai!!
bahut hi sundar gazal kahi hai aapne
ReplyDelete`ढूँढा किये तुम्हें हम, कहाँ-कहाँ हर जगह'
ReplyDeleteक्या पता था, इस तरह हो जाओगे गुम :)
इस गज़ल को पढ़कर लगता है कि काव्य मंजूषा या स्वप्न मंजूषा की जगह आशा जीजिविषा नाम भी आप पर खूब फ़बेगा:)
ReplyDeleteबहुत अच्छे से सकारात्मक भाव प्रकट किये हैं, चित्र की भी जितनी तारीफ़ की जाये, कम है।
बहुत खूब।
लिए फ़िरते हो पहलू में, रक़ीब हर जगह
ReplyDeleteकहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
bahut bhav hai aapki kavita mai
'तुम' के लिए इतनी सारी दुआएं ,उससे इतनी सारी उम्मीदें !
ReplyDeleteलिए फ़िरते हो पहलू में, रक़ीब हर जगह
ReplyDeleteकहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
kyaa baat keh di!! waah bahut khoob... andar tak chooh gaye itne pyare shabd :)
Regards,
Dimple