(समय की कमी है ..एक पुरानी कविता आपकी नज़र..)
अँधेरे में मेरी खुशियाँ
तुमने त्याग-पत्र दे दिया है,
मैंने भी तब से ख़ुश रहने का
व्रत ले लिया है.....!!
अँधेरे में मेरी खुशियाँ
दोहरी हुई बैठी थीं;
चिर अविदित सी।
जाने कहाँ से,
तुम चले आए,
प्रज्ञं, ज्ञानी, धीमान की तरह।
यति बन कर
अनुसन्धान करते रहे तुम।
मेरा स्वर्ग,
मेरे हाथों में देकर,तुमने त्याग-पत्र दे दिया है,
मैंने भी तब से ख़ुश रहने का
व्रत ले लिया है.....!!
हमेशा खुश ही रहना होगा...
ReplyDeleteखुश रहना ही चाहिए ...हर परिस्थिति में ...
ReplyDeleteवैसे आप व्यस्त किस काम में हैं आजकल ..??
यह वृत सदा सफतापूर्वक बना रहे ...यही दुआ है
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत रचना,,...
ReplyDeleteमंजूषा जी आपका लेखन काफी सराहनीय है | यूँ ही लिखती रहें | मेरे ब्लॉग में इस बार आशा जोगलेकर जी की रचना |
सुनहरी यादें :-4 ...
इस से अच्छी बात क्या हो सकती है खुश रहो कीमत कुछ भी चुकानी पडे। बहुत खूब। बधाई।
ReplyDeleteAapka vrat sada safal rahe!
ReplyDeleteवंडरफुल !
ReplyDelete‘मैंने भी तब से ख़ुश रहने का
ReplyDeleteव्रत ले लिया है.....!! ’
अच्छा क्या॥ वो अनूप शुक्ल जी का लोगो है ना- मौज करो खुश रहो :)
पुराने चावलों की सुगन्ध बरकारार है!
ReplyDelete--
इस उपयोगी पोस्ट की चर्चा
आज के चर्चा मंच पर भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/337.html
भगवान करे आपका व्रत कभी न टूटे।
ReplyDeleteआशा का उजास फ़ैलाती खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
aapki khushi din duni raat chauguni badhti rahe...rachna bahot achchi lagi.
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