Friday, November 12, 2010

मैंने भी तब से ख़ुश रहने का व्रत ले लिया है.....!!

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(समय की कमी है ..एक पुरानी कविता आपकी नज़र..)

अँधेरे में मेरी खुशियाँ 
दोहरी हुई बैठी थीं;
चिर अविदित सी।
जाने कहाँ से, 
तुम चले आए,
प्रज्ञं, ज्ञानी, धीमान की तरह।  
यति बन कर 
अनुसन्धान करते रहे तुम।
मेरा स्वर्ग,
मेरे हाथों में देकर,
तुमने त्याग-पत्र दे दिया है, 
मैंने भी तब से ख़ुश रहने का
व्रत ले लिया है.....!!

12 comments:

  1. हमेशा खुश ही रहना होगा...

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  2. खुश रहना ही चाहिए ...हर परिस्थिति में ...
    वैसे आप व्यस्त किस काम में हैं आजकल ..??

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  3. यह वृत सदा सफतापूर्वक बना रहे ...यही दुआ है

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  4. बहुत ही ख़ूबसूरत रचना,,...

    मंजूषा जी आपका लेखन काफी सराहनीय है | यूँ ही लिखती रहें | मेरे ब्लॉग में इस बार आशा जोगलेकर जी की रचना |
    सुनहरी यादें :-4 ...

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  5. इस से अच्छी बात क्या हो सकती है खुश रहो कीमत कुछ भी चुकानी पडे। बहुत खूब। बधाई।

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  6. ‘मैंने भी तब से ख़ुश रहने का
    व्रत ले लिया है.....!! ’

    अच्छा क्या॥ वो अनूप शुक्ल जी का लोगो है ना- मौज करो खुश रहो :)

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  7. पुराने चावलों की सुगन्ध बरकारार है!
    --
    इस उपयोगी पोस्ट की चर्चा
    आज के चर्चा मंच पर भी है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/337.html

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  8. भगवान करे आपका व्रत कभी न टूटे।

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  9. आशा का उजास फ़ैलाती खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
    सादर,
    डोरोथी.

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  10. aapki khushi din duni raat chauguni badhti rahe...rachna bahot achchi lagi.

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