संस्कृति, संवेदना, शिष्टाचार, सभ्यता ...ये मानवीय मूल्य हैं ...किसी एक देश की थाती नहीं है...
ऐसा नहीं है कि सिर्फ हमारा देश ही इसमें अग्रणी है...बहुत से देश है....ज़रुरत है अपने सामान्य ज्ञान को पजाने की ....
हम बस इसी ठसक में जीते रहते हैं कि हम सोने की चिड़िया वाले देश के हैं....हमारी संस्कृति के आगे किसी की संस्कृति नहीं है.....लेकिन पारिवारिक मूल्य बहुत से देशों में, बहुत मज़बूत है...मसलन कनाडा, इटली, फ़्रांस, मक्सिको, ethiopia वैगेरह वैगेरह ...दरअसल इन मूल्यों को दरकिनार किया ही नहीं जा सकता ..कारण स्पष्ट है 'मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है'...
कहा जाता है कि फिल्में अक्सर समाज का दर्पण होती हैं..और सच पूछिए तो कितनी ही बातों को उजागर कर जातीं हैं...बहुत पहले एक फिल्म देखी थी 'father of the bride ' उसे देख कर लगा था.. ये सब कुछ तो हमारे देश के जैसा ही तो है...ठीक उसी तरह लड़की का पिता खर्चे से परेशान, ठीक उसी तरह फरमाईश की फेहरिश्त....ठीक वैसा ही पिता का खुद पर कम से कम खर्च करने की कोशिश करना...कहने का मतलब ये है कि बेटी का बाप...जहाँ का भी हो बिलकुल वैसा ही होता है...जैसा होना चाहिए...
इन देशों में भी अपने बच्चों के प्रति माता-पिता का बहुत प्रेम देखने को मिलता है ...हाँ हमलोगों की तरह अँधा प्रेम नहीं होता है...आखिर हर किसी को अपना जीवन जीना ही पड़ता है तो फिर समय से उसे जीवन की सच्चाई से दो-चार करा देने में बुराई क्या है...और यही यहाँ के माँ-बाप करते हैं...१८ वर्ष का जब बच्चा हो जाता है, उसे दुनिया में संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते हैं..
संस्कृति का ह्रास भारत में जितनी तेज़ी से हो रहा है शायद अन्य किसी भी देशों में नहीं हो रहा है ....आप खुद अपने आस-पास देख लीजिये....पाश्चात्य सभ्यता को गाली देने वाले लोगों के ही घरों में देखिये ...क्या वो सभी उसी के ग्लैमर में नहीं चौन्धियाये हुए हैं....कहने को तो सभी बढ़-चढ़ कर विदेशों और विदेशी सभ्यता को गाली देते हैं, लेकिन पहला मौका मिलते ही ..विदेशी बन जाते हैं....घर बाहर, अन्दर भीतर सब जगह पश्चिमी लबादा ओढ़े ही लोग मिलेंगे....बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढाना, अंग्रेजी पहनावा, अंग्रेजी स्टाइल में रहना......ये जिम, ये McDonald, ये फास्ट फ़ूड...हज़ारों बातें....ये माल, ये flyover ...नक़ल करने में हमारा देश सबसे आगे है....लेकिन पलट कर गाली देने में भी कम नहीं है.... शुक्र मानिए कि विदेशों के दर्शन की वजह से कुछ अच्छी बातें हो रहीं हैं...मसलन रेलवे stations अब बहुत साफ़ हैं...लोगों में civic sense में बढ़ोतरी हुई है... विदेशी कम्पनियों के कारण काम करने के माहौल में फर्क आ रहा है...लोग समय के पाबन्द हो रहे हैं...याद कीजिये जब बैंको से अपना पैसा निकालने के लिए घंटों लाइन में खड़े होना पड़ता था......शुक्र हैं विदेशी बैंकों का जिन्होंने ...ऐसे ऐसे timings और facilities दी कि भारतीय बैंकों को नाकों चने चबवा दिए...अब उनके कॉम्पिटिशन की वजह से ये भी सुधर रहे हैं....
हमलोग कितने अजीब हैं...अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलते देख ख़ुश होते हैं.....घर में अंग्रेजी बहू आ जाए तो ...गर्व से सीना चौड़ा कर लेते हैं .....विदेश का वीजा मिल जावे तो फट से हवाई जहाज में बैठ जावें, भारत में, बेशक उनके बच्चे सारा दिन अंग्रेजी में गिटिर-पिटिर करते रहें....और अंजेलिना जोली-ब्रैड पिट बने घूम रहे हों...लेकिन गाली ज़रूर देंगे...अंग्रेजी सभ्यता को ...
क्यों नहीं हम इनकी सिर्फ़ अच्छाईयों को अपनाते हैं, मसलन ईमानदारी, समय की पाबन्दी, कानून को मानना...सोचने वाली बात ये हैं कि वैसे ही हमारे समाज में भ्रष्टाचार, चोरी, घूसखोरी, पाखण्ड जैसी बीमारियाँ तो हैं ही, इनके भी दुर्गुण अगर हम अपना लेवेंगे तो क्या हाल होगा हमारा और हमारे समाज का..
हम तो हैरान थे देख कर...जब निपट देहात में लोग कहते हैं....'ऐ बेटा, तनी डोरवा तो बंद कर दो' या फिर 'तनी राइस्वा तो लीजिये'
शायद भारतीयता का अर्थ अब 'दोहरापन' हो गया है...हाँ नहीं तो...!!
बहुत अच्छा लगा आपका ये लेख । हम नकल भी उन चीजों की कर रहे हैं जो न की जाये तो ही अच्छा होगा पर अच्छी चीजों को अपनाने में हम अक्सर चूक जाते हैं जैसे कि हमाराकाम पूरी ईमानदारी और अपनी पूरी मेहनत से करना और अपने अच्छे काम पे गर्व करना । चलता है कभी नही कहना । समय की पाबंदी । स्वच्छता । शिष्टाचार । विनम्र मृदु भाषा । मुस्कुराकर हर काम करना आदि ।
ReplyDeleteअरे, कहाँ दीपावली पर चिन्तित हो चलीं...:)
ReplyDeleteसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,
ReplyDeleteकितना बदल गया इनसान,
कितना बदल गया इनसान...
जय हिंद...
जो भी आये, अच्छा हो, गच्चा नहीं।
ReplyDeleteाज चिन्तन की राह पर हो। हाँ तो दोहरे हम कब नही थे? आपको व परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteसही है!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
Bahut achchha laga padh kar. Jahaan tak meraa samajhnaa hai, ye sab hamaari hypocritical soch ka nateeja hai. Aaj kal to ham itne hypocrite hote ja rahe hain ki ham ye sochne ki bhi jehmat nahi uthaate ki humaare "kathni aur karni" me kitnaa fark hai
ReplyDeleteRegards
Fani Raj
पहले भी पढ़ा था ये पोस्ट आज भी पढ़ ली . सही है, पश्चिम का अन्धानुकरण करने पर उनके समाज की बुराई भी इम्पोर्ट कर लेते है हम लोग .
ReplyDeleteचिंतन परक शैली में !...मतलब द्वैध को लतियाता हुआ आलेख ! बधाई !
ReplyDeleteहमारी मानसिकता पर बहुत ही सटीक चोट.हम कब दोगलेपन से उभर पायेंगे? ..दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteआप सभी को खासकर इमानदार इंसान बनने के लिए संघर्षरत लोगों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें....
ReplyDeleteइसके पुर्व आपने इसे बुरा नहीं माना था........ याद करें :(
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं॥
कड़वी हकीकत का सटीक प्रस्तुतिकरण. वास्तव में बुराई और अच्छाई हर जगह है. इंसान कब , कहाँ , कैसे और किसका चयन करता है , यह उसके विवेक, और उसकी मानसिकता पर निर्भर करता है. ज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं
ReplyDeleteकथनी व करनी में अन्तर तो होना ही चाहिये जी,नहीं तो दुनिया कैसे चलेगी। पर दोनों उचित होनी चाहिये। दोहरापन तो सभ्यता की निशानी है, अन्दर नन्गे हैं तो क्या ढंकने कपडे पहनने का दोहरापन नहीं करेंगे।
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