हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना
उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
पोशीदा है ज़मीन के, हर ज़र्रे पर दिलकश बहार
उतरो ज़रा आसमान से, आएगी नज़र वो, देखना
सोया किया क़रीब ही, फ़रिश्ता दश्त-ए-दिल का
ख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है शजर, देखना
वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें ...आवाज़ 'अदा' की ..
बहुत ही अच्छा गाना लगता है यह।
ReplyDeletebahut sudar rachna
ReplyDeleteaapko padna achha lagta hai
mere blog mai is bar "ek tara"
बस एक शेर और चाहिये ।
ReplyDelete‘तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना’
ReplyDeleteडूबते को उसी का सहारा, दे मारा खंजर, देखना :(
बहुत खूब कहा है
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत!
ReplyDeleteप्रेमरस.कॉम
तकदीर की वीरानियों / बेरंग दीवारों और दर-ब-दर 'उसके' आँधियों में उड़ते फिरने के विरुद्ध एक तिनका ,पोशीदा ज़र्रे और खुशबू के सहारे काफी हैं !
ReplyDeleteबेहतर रचना !
उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
ReplyDeleteतिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
सादर,
डोरोथी.
’उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
ReplyDeleteतिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना’
आंधियों ने ही तो तिनके को ऊंचा भी उठाया है, वरना तो क्या तिनका और क्या तिनके की जात?
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं आपने।