विष वृक्ष की तरह फैलते
इस डाह में,
भर दो अणुशस्त्रों की आग,
जिसकी लपट से
झुलसे चेहरों को,
अपनी असलियत पर आने दो,
गलाने पर जो तुले हैं
हमारी अस्मिता-तरु को,
उन सांप्रदायिक डालियों को काट डालो ,
ख़ूब लड़ें हम आओ मिलकर,
मगर टूटने की बात न करें,
हो जाने दो हाहाकार,
बस एक बार,
कर लो हर फसाद,
बह जाने दो हर मवाद,
द्वेष की काली काई निकल जाने दो,
उज्जवल स्फटिक पथ बन जाने दो,
आलोकित हो जाएगा
रास्ता उत्थान का,
फिर हो जाएगा नव-निर्माण
हमारे मन के वृन्दावन का...
बहुत सुन्दर भावना !
ReplyDeleteद्वेष की काली काई निकल जाने दो,
ReplyDeleteउज्जवल स्फटिक पथ बन जाने दो,
बेहद सुन्दर
दीदी ,
आपकी पोस्ट से [डेशबोर्ड में] सुबह सुबह चरण कमल के दर्शन करके मन पावन हो गया
धन्यवाद
आज दिन के प्रारंभ में ही चरण-युगल के दर्शन हुये, दिन अच्छा बीतेगा।
ReplyDeleteवाह, इन आदर्शों की चाह में कब से राहें तक रहे हैं हम।
ReplyDeleteशांति का संदेश आक्रोश के माध्यम से! नव-निर्माण कि आशा का स्वागत॥
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबधाई।
फिर हो जाएगा नव-निर्माण
ReplyDeleteहमारे मन के वृन्दावन का...
bahut uttam rachana
www.deepti09sharma.blogspot.com
एक सकारात्मक रचना है ये.
ReplyDeleteद्वेष की काली काई निकल जाने दो,
ReplyDeleteउज्जवल स्फटिक पथ बन जाने दो,
आलोकित हो जाएगा
रास्ता उत्थान का,
फिर हो जाएगा नव-निर्माण
हमारे मन के वृन्दावन का....
बहुत खूब ....
ईश्वर हर दिल से द्वेष और ईर्ष्या को विदा करे ...आमीन
आजकल आपके ब्लॉग जैसा गेट आप कही और भी नजर आ रहा है ...
कहाँ देखा था ...कुछ याद नहीं आ रहा !
@ गेटअप
ReplyDeletenice...
ReplyDeletevery beautiful... deep and pure!
ReplyDeleteRegards,
Dimple