आस्था और अध्यात्म का शहर 'बनारस'..!!
कहते हैं दुनिया के किसी भी कोने में हम रहें ...मुक्ति 'बनारस' में ही मिलती है....शायद यही वजह है कि ईसा मसीह को भी 'बेतलेहेम से बनारस' आना पड़ा.....मुक्ति के लिए..
ईसा मसीह ने १३ साल से ३० साल तक क्या किया, यह रहस्य की बात है..
इस अन्तराल ईसा मसीह का जीवन कहाँ बीता यह लोगों को मालूम नहीं है..
क्या ईसा मसीह ही सेंट ईसा (Saint Issa) थे और भारत आये थे?
निकोलस नोतोविच (Nicolas Notovitch) एक रूसी अन्वेषक था, उसने कुछ साल भारत में बिताये, बाद में, उन्होने फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीज़स क्राइस्ट' (The unknown life of Jesus Christ) नामक पुस्तक लिखी है।
निकोलस के मुताबिक यह पुस्तक हेमिस बौद्घ आश्रम (Hemis Monastery) में रखी पुस्तक (The life of saint Issa) पर आधारित है।
उस समय हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाख के उस भाग में था जो भारत का हिस्सा था, हांलाकि इस समय यह जगह तिब्बत का हिस्सा है।
१३ से १४ वर्ष की उम्र के दरमियान नाज़रेथ के जीज़स आध्यात्म की तलाश में तीर्थ पर निकल गए और आ पहुंचे भारत जहाँ नाजरेथ के जीज़स 'ईसा', धर्मगुरु और इस्रायल के मसीहा या रक्षक बन गए...
ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आये थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था
उन्होंने यहां अपना समय बौद्घ धर्म से प्रेरित होकर इसके बारे में पढ़ने में बिताया, और उसके बाद बौद्घ धर्म की शिक्षा दी।
हिमालय की वादियों में जीज़स को योग की दीक्षा मिली और सर्वोच्च अध्यात्मिक जीवन भी, .यही उन्हें 'ईशा' नाम भी मिला जिसका अर्थ है, 'मालिक' या स्वामी...हालाँकि ईश्वर के लिए भी इन शब्दों का विस्तृत रूप उपयोग में लाया जाता है ...जैसे कि 'ईश उपनिषद' ......में 'ईश', 'शिव' के लिए भी कहा गया है....
अगले कुछ वर्षों तक हिमालय की वादियाँ जीज़स के लिए दूसरा घर बन गईं ....इस दौरान उन्होंने आज के शहर ऋषिकेश की गुफाओं में आराधना की.....गंगा के तट, हरिद्वार में भी उन्होंने कई वर्ष व्यतीत किये....
फिर ....जीज़स ने बनारस की यात्रा की...... वही 'बनारस' जो भारत के अध्यात्म का हृदय है...जो शिव की नगरी और गहन वैदिक अध्ययन का केंद्र है.....यहाँ जीज़स ने स्वयं को सर्वोच्च योग साधना में डूबो दिया..और उपनिषदों जैसे महान ग्रंथों के तत्व-विचार में लीन हो गए....
जीज़स ने पवित्र जगन्नाथपुरी की यात्रा भी की, जो उस समय बनारस के बाद शिव की दूसरी नगरी थी...जहाँ उन्होंने गोवर्धन मठ की सदस्यता ग्रहण कर मठ के जीवन को आत्मसात किया ......
यहाँ उन्हें योग औए दर्शनशास्त्र पूर्णरूप से संलग्न मिले.....और अंततोगत्वा सार्वजनिक रूप से वो सनातन ज्ञान का विस्तार करने लगे......
बहुत जल्द ही जीज़स लोगों में लोकप्रिय हो गए ....वो विचारक और उपदेशक के रूप में बहुत सफल रहे...लेकिन कुख्याति ने बहुत जल्द उनको कोपभाजन बना लिया.....इसका मुख्य कारण था, वो वेदों का ज्ञान हर सतह के लोगों को देने में विश्वास करते थे ...जिनमें निम्न वर्ग के लोग भी आते थे.....जो अन्य मठाधीशों को मंज़ूर नहीं था...फलतः उनकी हत्या की साजिश रची जाने लगी.....
जीज़स को अपनी हत्या की साजिश का भान हो गया था इसलिए उन्होंने जगन्नाथपुरी छोड़ना श्रेयष्कर समझा ...और पुनः हिमालय की ओर रवाना हुए....इस्रायल लौटने से पूर्व उन्होंने बहुत सारा समय, एक बौद्ध मठ में बिताया, जहाँ उन्होंने गौतम बुद्ध के निर्वाण पर अध्ययन किया..
पश्चिम की ओर यात्रा शुरू करने से पहले भारत के गुरुओं ने जीसस को कुछ स्पष्ट निर्देश दिए थे .....जीसस को मालूम था कि इस्रायल पहुँच कर, कुछ दिनों में उनकी मृत्यु अवश्यम्भावी है, इसलिए भारत में उनका भला चाहनेवालों गुरुओं ने उनसे करार किया था कि हिमालय से चंगा करने वाला द्रव्य उनको दिया जाएगा और ....यह द्रव्य उनको भेज कर स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि जब भी ...ऐसा प्रतीत हो उनकी मृत्यु अब निश्चित है.....कोई भी उनका शिष्य जो बहुत ही विश्वासपात्र हो यह द्रव्य उनके शीश पर डालता रहे.......और अगर आप बाईबल पढें तो क्रूस से उनके पार्थिव शरीर को उतारने के बाद मेरी मग्दलेन ने लगातार तीन दिनों तक इसी द्रव्य को प्रयोग ईसा मसीह के शरीर पर किया, तब, जब उन्हें 'टूम्ब' में रखा गया था.....और वहीं से वो तीसरे दिन जी उठे थे ....
ऐसा मानना है कि अपने जीवन के अंत में ईसा मसीह स-शरीर स्वर्ग चले गए थे ...लेकिन संत मैथ्यू और संत जोन, दोनों जो कि ईसाई मत के प्रचारक थे, साथ ही प्रत्यक्षदर्शी भी थे, ने कभी भी ऐसी कोई बात नहीं कही......क्योंकि उन्हें मालूम था, उनसे अलग होकर ईसा मसीह स्वर्ग नहीं......भारत आये थे....
ईसा मसीह के स्वर्गारोहण की बात सिर्फ संत मार्क और संत लुके ने ही कही है......जबकि दोनों ही उस समय वहाँ उपस्थित नहीं थे.......
और सच्ची बात भी यही है कि ......वो भारत ही आये थे...हाँ यह हो सकता है कि उन्होंने अपने योग का प्रयोग किया हो ...ऊपर उठ कर यहाँ तक आने के लिए जो कोई नयी बात नहीं थी.....तब योगी ऐसा किया भी करते थे.......
२ री शताब्दी के लिओन के संत इरेनौस द्वारा भी इस बात की पुष्टि की गई है कि ईसा मसीह ने ३३ वर्ष कि आयु में अपना शरीर नहीं त्यागा था ...उनका कहना है कि ईसा मसीह ने पचास से ऊपर अपनी ज़िन्दगी जी थी दुनिया छोड़ने से पहले......जब कि उनको सलीब पर ३३ साल की उम्र में टांगा गया था...इसका अर्थ यह होता है कि .....क्रुसिफिक्शन के बाद २० वर्षों तक वो जीवित रहे ...हालाँकि संत इरेनौस की इस दलील ने कई ईसाई मठाधीशों को बहुत परेशान किया है.....आज भी वेटिकन ने धर्म की राजनीति का खेल खेलते हुए ......ईसा से सम्बंधित न जाने कितने तथ्यों को छुपाया हुआ है, फिर भी मानने वाले मानते हैं कि वो अपनी माता और पत्नी 'मेरी मग्द्लेन' के साथ भारत ही आये....बाद में उनकी एक पुत्री भी हुई थी 'सारा' ........कहा जाता है उनकी माता मरियम की कब्र आज भी कश्मीर में है......
सच्चाई भी यही है कि चाहे वो किसी भी धर्म के हों.........धर्म गुरुओं तक तो अपनी मुक्ति कि लिए 'बनारस' की शरण में आना ही पड़ता है...और कोई रास्ता नहीं है ...!!!
कमेंट बाद में,
ReplyDeleteपहले सक्रियता सं. सात की बधाई।
लक्की सेवन हर क्षेत्र में लक्की हो आपके लिये।
दीदी
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा लेख
विषयांतर :
सोचता हूँ जाऊँगा बनारस मैं भी क्योंकि ....मैंने संत श्री अमिताभ बच्चन की बात सुनी है ..वो कहते हैं .... "खाई के पान बनारस वाला...... खुली जाए बंद अकल का ताला "
ये प्रवचन आप यहाँ सुनिए
http://www.youtube.com/watch?v=4qdLmNBvBt8
उन्ही के ज्ञान का प्रयोग फिर से हुआ इस रूप में
http://www.youtube.com/watch?v=CDH__vXP27M
:))
अच्छा लगा इसे पढना.
ReplyDeleteजिज्ञासावश प्रश्न...आप बनारस आयीं हैं?
इसका पोस्ट से कुछ लेना देना नहीं...कौतुहलवश पूछा...:)
इस मुक्ति घाट के बारे में पहले भी पढ़ चुकी हूँ यहाँ ...
ReplyDeleteनयी तरह की जानकारी है !
@ अविनाश जी,
ReplyDeleteबनारस मैं गई हूँ, लेकिन तब बहुत छोटी थी...
हाईट तो अब भी उतनी ही है मेरी, बस उम्र बड़ी हो गई है...:)
"जी"...!!!
ReplyDeleteज्यादा नहीं हो गया?
मेरे लिए आशीष वचन ही उपयुक्त रहते..
मेरा शहर है..या मैं उस शहर का हूँ, कहना ज्यादा उचित है, इसीलिए जिज्ञासा हुई.
जीज़स क्राइस्ट के बारे में ये पहले पढ़ा है, फिर से पढना और राजेंद्र प्रसाद घाट की तस्वीर देखना अच्छा लगा.
आपने जवाब दिया, आभार!
:)......
ReplyDeletepata nahi sachchai jo bhi ho, padh kar achchha laga.........sargarbhit lekh!!
यह तो अपने आप में एक नयी तरह की जानकारी है. बनारस जाने का भी मन होने लगा है. सबसे सुने है. देखते है कब समय मिलता है?
ReplyDeleteएकदम नई जानकारी ..धन्यवाद ........
ReplyDelete@ अविनाश...आज कल ब्लॉग जगत में बहुत सम्हल कर संबोधन करना पड़ता है न जाने कब कौन कैसे बुरा मान जाए...हा हा हा..
ReplyDeleteवर्ना आशीर्वाद तो है ही तुम्हारे लिए..
ईसा मसीह भारत आये थे और कश्मीर हिमालय की गुफाओ में कही रहे ये तो पढ़ा था पर वो बनारस भी गये थे ये जानकारी नई है | मै बनारस की हु पर कभी बनारस में भी इस बारे में नहीं सुना था और ना ही उनके कोई निसान थे | हा हिन्दू बौद्ध और जैन धर्म का तो नाता रहा है पर ईसाई समुदाय का नाता आज पता चला है ये काफी नई जानकारी है | क्या वास्तव में ये सच है विश्वास नहीं होता है |
ReplyDeleteअदा जी ,
ReplyDeleteबनारस और बेतेलहम के बारे में पता नहीं सच क्या है ? पर एक बात जो मैंने गौर की है उस पर कभी आप भी सोचियेगा ! ईसाई , इस्लाम , हिंदू ,यहूदी ,बौद्ध ,जैन ,सिक्ख,पारसी धर्मों के अलावा कोई धर्म ऐसे ? दुनिया में जिनका कोई नामलेवा हो याकि आपने उनके बारे में सुना भी हो ?
मतलब ये कि दुनिया की धार्मिक आबादी का 'ज्यादातर हिस्सा' उन्हीं धर्मों को मानता है जोकि 'एशिया' में ही जन्मे !
अफ्रीका / दोनों अमेरिका / यूरोप और आस्ट्रेलिया के मुकाबले देवत्व का ध्वजवाहक अकेला एशिया :) भला क्यों ? :)
यह पुस्तक पढ़ी है, शारीरिक यात्रा से अधिक लाभकारी है बनारस की बौद्धिक यात्रा।
ReplyDeleteकहा था कि कमेंट बाद में करूंगा, एक जानकारी आपको देना चाहता हूँ। इसी थ्योरी पर बेस्ड एक इंगलिश फ़िक्शन किताब ’रोज़ाबेल लाईन’ आई है, जो मैंने पढ़ी तो नहीं लेकिन एक बहुत ही authentic person, सौभाग्य से मैं उनसे परिचित भी हूँ, ने इतनी तारीफ़ की है कि अब ये किताब पढ़नी ही होगी।
ReplyDeleteरोचक जानकारी है जी, आभार।
अदा जी नमस्कार . मैंने कभी आपके बारें में पढने की कोशिश नहीं की क्योंकि मुझे हमेशा यही लगा की आप मेरे आस - पास हो और मेरे परिवार की ही हो . नहीं जानती थी की सात समुन्द्र पर हो . अब दुःख लग रहा है . सच अब क्या कहूँ ......
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