कविता किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकती है पर बात लक्ष्मण रेखा लांघने की है पहले की लक्ष्मण रेखा तो फिर भी असरदार होती थी आज की का पता नहीं रामायण में सबसे मर्यादित तरीके से प्रतीकात्मक रूप इस बात को बताया होगा की लक्ष्मण रेखा लांघने से क्या हो सकता है ??? लगता है इसीलिए राम पर सारा इलज़ाम आया है (आज के ज़माने में लक्ष्मण रेखा के मतलब बदल गए हैं ) मैं ऐसा पूछना कभी सही नहीं मानूंगा की माँ सीता ने लक्ष्मण रेखा क्यों लांघी थी ?? (कारण कुछ भी रहे हों ) हम चाहें तो भी इस घटना को स्त्री और पुरुष विभाजित नहीं कर सकते , ये सन्देश मानव( स्त्री पुरुष दोनों) को रहा है
@हम चाहें तो भी इस घटना को स्त्री और पुरुष विभाजित नहीं कर सकते , ये सन्देश मानव( स्त्री पुरुष दोनों) को रहा है
दीदी, मुझे इस टिपण्णी के लिए क्षमा कर दें,मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ मुझे कमेन्ट लिखना (और ब्लॉग लिखना) दोनों ही नहीं आता ज्ञान और उम्र दोनों के हिसाब से आपसे छोटा हूँ
नज़ारे कब बदलते हैं जब खुलतीं हैं खिड़कियाँ
ReplyDeleteहाँ मौसम कुछ बदलता है पट बंद होने के बाद
kitni sachchi baat kahi ,man ko chhoo gayi .
ReplyDeleteतो दर खुल गया, माशाल्लाह,
कल के ही क़तआत आज भी दोहरा रहा हूँ
ज़हर पीता हूँ बनामे मैकशी तेरे बगैर
बेकरारी बन गयी आवारगी तेरे बगैर
यूँ तो तन्हा, झूठे वो ग़म ग़ुसारों का हुज़ूम
इक तमाशा बन गयी है ज़िन्दगी तेरे बगैर
भगवान् जाने तुम कैसे पुरषोत्तम कहलाते हो ???
ReplyDeleteकविता किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकती है
पर बात लक्ष्मण रेखा लांघने की है
पहले की लक्ष्मण रेखा तो फिर भी असरदार होती थी आज की का पता नहीं
रामायण में सबसे मर्यादित तरीके से प्रतीकात्मक रूप इस बात को बताया होगा की लक्ष्मण रेखा लांघने से क्या हो सकता है ???
लगता है इसीलिए राम पर सारा इलज़ाम आया है (आज के ज़माने में लक्ष्मण रेखा के मतलब बदल गए हैं )
मैं ऐसा पूछना कभी सही नहीं मानूंगा की माँ सीता ने लक्ष्मण रेखा क्यों लांघी थी ?? (कारण कुछ भी रहे हों )
हम चाहें तो भी इस घटना को स्त्री और पुरुष विभाजित नहीं कर सकते , ये सन्देश मानव( स्त्री पुरुष दोनों) को रहा है
दूसरे की पतित को पावन करना...
ReplyDeleteऔर खुद की पावन को पतित कहना...
वाह राम...!
ReplyDeleteपुरषोत्तम ?
छोड़ो वह अग्निपरीक्षा भी ,
वह सब तो बाद की बारी है ।
क्यों भ्रूण में मारी जाती है ,
इसलिए की बस वह नारी है ?
"खुशियाँ मुकर जातीं हैं हरेक हादसे के बाद...."
ReplyDeleteItna badiya title diya hai!!
You are fantastic writer...
Amazing
Regards,
Dimple
खुशियां मुकरा करती हैं, खुशदीप नहीं...
ReplyDeleteजय हिंद...
@हम चाहें तो भी इस घटना को स्त्री और पुरुष विभाजित नहीं कर सकते , ये सन्देश मानव( स्त्री पुरुष दोनों) को रहा है
ReplyDeleteदीदी,
मुझे इस टिपण्णी के लिए क्षमा कर दें,मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ
मुझे कमेन्ट लिखना (और ब्लॉग लिखना) दोनों ही नहीं आता
ज्ञान और उम्र दोनों के हिसाब से आपसे छोटा हूँ
@ Pyare Gaurav,
ReplyDeleteTumhara apna nazariya hai aur use vyakt karna bhi chahiye...ismein bura bhi kya manana...
ek number ke buddhu ho...
didi...
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteMaaf kijiyga didi kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa
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