बात तब की है जब यहाँ ओट्टावा में फिल्म 'कभी ख़ुशी कभी ग़म' आई थी....मैंने कहा है न हम हमेशा पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने जाते हैं....इस फिल्म को भी हम सभी देखने गए, यहाँ के फिल्म हॉल में...ऐसी फिल्मों को हॉल में देखने का अपना ही आनंद होता है...मैं, मेरे तीनो बच्चे (मृगांक, मयंक और प्रज्ञा ) और संतोष जी गए थे देखने...
इस फिल्म में एक दृश्य है जहाँ शाहरुख़ और काजोल का बेटा stage पर भारत का राष्ट्रीय गीत प्रस्तुत करता है...मुझे याद है..जैसे ही यह गीत शुरू हुआ..मेरे बगल में बैठा हुआ मृगांक उठ कर खड़ा हो गया ....पीछे से आवाज़ आई अरे बैठो भाई...उसे खड़ा देख मैं भी खड़ी हो गई, फिर मेरे साथ मेरा पूरा परिवार...हमें देख कर हमारे आस-पास के अधिकतर लोग खड़े हो गए और फिर शायद पूरा हाल खड़ा रहा जब तक कि राष्ट्रीय गान समाप्त नहीं हो गया.. मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे...मन में कैसा भाव आया की शायद कह नहीं पाऊँगी....गर्व, अभिमान और न जाने क्या-क्या...गीत के समाप्त होने के बाद पूरा हाल तालियों की गड़गडाहट से गूँज उठा था...विदेश की धरती पर अपने राष्ट्रीय गीत के लिए सिनेमा हॉल में खड़े होने की पहल मेरे बेटे ने की थी...आज भी लोग इस बात को याद करते हैं...
बचपन से मेरी माँ ने यह आदत डाली हुई है, हम सबको ...हम कहीं भी हों, किसी भी हाल में हों अगर राष्ट्रीय गान बज रहा है तो वो ख़ुद सावधान की मुद्रा में खड़ी हो जातीं हैं और हमें भी ऐसा ही करने को कहती रहीं हैं...मृगांक नानी की बात अब तक नहीं भूला है... ऐसा है मेरा मृगांक...
मुझे इतना मालूम है अगर हम अपने राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रीय गान को सम्मान देंगे तो दूसरों को देना ही पड़ेगा...इसलिए कटिवद्ध हो जाइए ऐसा करने के लिए...प्रण कर लीजिये, अपने तिरंगे और राष्ट्रगान को सम्मान देंगे चाहे कुछ भी हो जाए...
हो सके तो आप हमारे राष्ट्रीय गान के समापन तक सावधान की अवस्था में खड़े रहें... .
जय हिंद..!!
सम्मान देना चाहिये
ReplyDeleteपर अब वह जज्बा कहाँ!
पहले तो हर फिल्म के अंत में राष्ट्रीय गान होता था और कोई भी हिलता नहीं था और खड़ा रहता था.
जरुर सम्मान देना चाहिये.
ReplyDeleteहम तो खुद ही देते है,हमें किसी को कहना नहीं पडता,......जितना प्यार हम खुद से करते हैं उतना हमारे देश से भी करना चाहिए हमें...जय हिन्द !
ReplyDeleteमैं गोवा में हूं यहां फ़िल्म के शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान होता है और ख़ुशी की बात ये है कि सब लोग खड़े होते हैं,बहुत अच्छा लगता है,
ReplyDeleteरष्ट्रीय गान को हम क्या सम्मान दे पाएंगे ? उस को सुन कर खड़ा होना हमें सम्मानित करता है
बहुत अच्छी पोस्ट,
मृगांक को स्नेहाशीष
मंजूषाजी
ReplyDeleteनमस्कार !
विदेश की धरती पर अपने राष्ट्रीय गीत के लिए सिनेमा हॉल में खड़े होने की पहल कर आपके बेटे मृगांक ने निश्चय ही राष्ट्र भावना के प्रति मिले संस्कारों का परिचय दिया ।
जयहिंद मृगांक !
लेकिन वे ओट्टावा के निवासी थे । यहां हिंदुस्तान में ऐसी घटना हो तो लोग ख़ुद खड़े होने की बजाए पहले खड़े होने वाले को बिठा कर ही दम ले ।
… और कहने को हम स्वय को औरों से अधिक सभ्य - सुसंस्कृत कह्ते हैं ।
मेरा भारत महान !!
विविधता से परिपूर्ण आपकी सब पोस्टें पढ़ता देखता हूं , बधाइयां हैं !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
सम्पूर्ण परिवार को नमन।
ReplyDeleteबता नहीं क्या भाव छिपा है राष्ट्रीय गान में कि ऱोमांच से रोंगटे खड़े होने लगते हैं ।
ReplyDeleteआखिर बेटा किसका है मृगांक...?
ReplyDeleteलाजवाब....!!!
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण !
ReplyDeleteजय हिंद !!
राष्ट्रगान को सम्मान देना अति आवश्यक है, यह हमारे राष्ट्र का सम्मान है!
ReplyDeleteहो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
ReplyDeleteजिस तरह फूलों से होती है चमन की ज़ीनत
समय हो तो इस कविता नुमा अंशों को पढ़ें और अपनी माकूल राय दें
बाज़ार,रिश्ते और हम http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html
शहरोज़
इतना सम्मान एक बार पंडित नेहरू ने दिया था वो रेल मे चढने वाले थे और रेल भी चलनी शुरू हो गयी थी तभी वहाँ आस पास के किसी स्कूल से राष्ट्र गान सुनाई दिया और उनका एक पांव रेल की सीढी पर था और एक प्लेट्फ़ार्म पर और रेल चल दी मगर जब तक राष्ट्र गान पूरा नही हुआ वो ऊपर नही चढे भले ही लोग चिल्लाते रहे ये वाक्या बचपन मे हमारी प्रिंसीपल ने सुनाया था जो दिल मे ऐसा बैठ गया कि आज भी हम उतना ही आदर देते हैं यहाँ तक कि पलक भी नही झपकाते थे हिलना तो दूर की बात थी।
ReplyDeleteइस्मत जैदी वाली ही बात मैं लिखने वाली थी की एक बार हमने गोवा में फिल्म देखि वहाँ फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान होता है जिस पर सभी दर्शक खड़े होते हैं...उस समय कितने सम्मान जनक भाव आये गोवा थियेटर वालो और उन सब के प्रति जो इसके लिए खड़े हुए थे...बता नहीं सकती. लेकिन अफ़सोस की बात की हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ कर.और मृगांक के बारे में जान कर.
बचपन में राष्ट्रगान को मैं भारतीयता और भारत से जोड़ कर देखता था और इसलिए राष्ट्रगीत का विधिवत सम्मान करता था पर जब से गुरु रविंद्रनाथ टेगोर के इस गीत कि उत्पत्ति के विषय में पता चला और इस गीत के शब्दार्थ को जाना तो इस गान का सम्मान करना भूल गया. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस गीत को राष्ट्रगान के लिए सिर्फ इसलिए चुना था क्योंकि ये विदेशी साजों पर आसानी से बज जाता है वर्ना सभी लोग इस गीत कि जगह वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बनाने के लिए सहमत थे. इन बातों का पता चलने के बाद मैं जन गण मन का सम्मान नहीं कर पता. ...... शायद मेरी मुर्खता....या कुछ और....
ReplyDeleteनि:संदेह. एकदम सहमत. किसी भी देश के राष्ट्रीय गान को उतना ही सम्मान देना चाहिये जितना अपने देश के राष्ट्रीय गान को. और फिर अपने राष्ट्रीय गान की तो बात ही अलग है.
ReplyDeleteमृगांक पर, आप पर, ऐसे संस्कार देने वालों पर और ऐसे विचार रखने वालों पर गर्व का अनुभव करता हूं।
ReplyDeleteअनुकरणीय काम करने की प्रेरणा देती पोस्ट।
सदैव आभारी।
बहुत बढ़िया ज़ज्बा है ।
ReplyDeleteराष्ट्रिय गान को सम्मान देना हम सबका फ़र्ज़ है ।
लेकिन आजकल यह ज़ज्बा कम होता जा रहा है।
बहुत ही सुंदर जी, हम भी ओर हमारे बच्चे भी ऎसा ही करते है, बल्कि बच्चे ज्यादा करते है, लेकिन यह यु टुब मै जो अभिताव वच्चन की आवाज मै अंदेश आ रहा, क्या यह दिखावा नही??? फ़िरंगियो की आवाज मै हमे आजादी का संदेश दे रहा है??? पहले खुद इसे सीखना चाहिये ... धन्यवाद
ReplyDeleteमेरे बच्चे भरतियो के संग अग्रेजी मै कभी बात नही करते, हिन्दी मै ही करते है, चाहे टूटी फ़ुटी हिन्दी बोले , लेकिन उन्हे मान है अपनी हिन्दी पर
yahan mumbai me bhi film shuru hone se pahle rashtra gaan jarur hota hia aur iske samman me sabhi log apni jagah per khade ho jate hai...wakai bahut achcha lagta hai...26 january aur 15 august per yahan sabhi society me agal alag jhandotolan hota hai aur lagbhag sabhi jagah mike per hi rashtr gaan hota hai aise me to subah na jane kitni baar saawdhan ki mudra leni padti hai ab aadat hi bachpan se aisi padi hai ki kaan me jan gan man pada nahi ki wahi jad gye...hilne ka to sawal hi nahi hota :)aapke aur aapki family ke prati vishesh samman sahit,
ReplyDeleteshubham.
@ हमें देख कर हमारे आस-पास के अधिकतर लोग खड़े हो गए और फिर शायद पूरा हाल खड़ा रहा जब तक कि राष्ट्रीय गान समाप्त नहीं हो गया..
ReplyDeleteये पढ़ कर (और मन की आँखों से वो दृश्य देख कर) मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए
बहुत अच्छा लेख पढने को मिला आज.... हृदय में देशभक्ति के तार कुछ ये धुन बजा रहें हैं ( पता नहीं क्यों )
माँ का दिल बन कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं सी बेटी बन याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको उतना तड़पाता है तू
तुझ पे दिल कुर्बान
तू ही मेरी आरजू, तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जान।
बरसों पहले नेपाल गया था ..संयोग से वहां एक पिक्चर देखने चला गया पिक्चर के शुरूआत में ही नेपाल की श्री पांच को सरकार के सम्मान में दिखाए जाने वाले चित्रों और राष्ट्रगान को देख सुन कर पूरा हॉल खडे हो गया था ....
ReplyDeleteअभी पिछले दिनों कई बार यहां दिल्ली में पिक्चर देखने जाना हुआ तो अब यहां भी यही परंपरा निभाई जा रही है ..राष्ट्रगान के सम्मान में खडे होने में जो फ़ख्र महसूस होता है ..वो तो बस हमीं जानते हैं .....
इससे अच्छा सन्देश और क्या होगा!
ReplyDeleteजरुर सम्मान करना चाहिए ...
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ReplyDeleteगर्व है आपकी राष्ट्रीय भावना पर ..
ReplyDeleteयहाँ की टिप्पणियों में भी अच्छी जानकारियाँ मिलीं !
खड़ा होना तो चाहिए ...मगर कई स्कूल में तो शिक्षक भी नहीं जानते की राष्ट्रगान सुनते समय सावधान की मुद्रा में होना चाहिए ..
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
बिलकुल जी जरुर जरुर सम्मान देना ही चाहिए हम तो घर में भी जब टी.वि पर कोई कार्यकम आता है संबंधित और राष्ट्र गान होता है तब भी जरुर खड़े हो जाते है |
ReplyDeleteजाने कितने सुन्दर भाव से भर देता है राष्ट्र गान जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है |
आभार