Tuesday, July 27, 2010

आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे ...


निगाहों में रख लो या दिल में बसा लो मुझे
हाथों की लकीरों में लिल्लाह सजा लो मुझे

मैं डूबती जाती हूँ इक कुंद सी आवाज़ हूँ 
थामो तो मेरा हाथ बाहर तो निकालो मुझे 

वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी हुई हूँ
आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे  

सबने यही कहा, अगर दो शेर और जोड़ सकूँ तो कोई बात बने.....
तो ये रहे तीन अशआर...उम्मीद है पसंद आयेंगे....

बैठे हो लेके हाथों में तुम आज मेरा चेहरा
तेरी ही ज़िन्दगी हूँ किसी शक्ल में ढालो मुझे

मुझे क्या गरज है अब जो होना है हो जाए 
बहका दिया है तुमने, अब तुम्हीं सम्हालो मुझे

हमने कब पिया है, और कैसे हम बहक गए ?
अब सुराही थाम ली, पैमानों से न टालो मुझे    




28 comments:

  1. उम्दा अभिव्यक्ति ,शानदार तस्वीर व प्रस्तुती...

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  2. आजकल पांव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे,
    बोलो कभी तुमने देखा है मुझे उड़ते हुए...

    जय हिंद...

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  3. वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे ...

    ग़ज़ल और तस्वीर दोनों ही उदासी बयान कर रही है ...!

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  4. इस सदाशिकायती की शिकायत विद्यमान रहेगी -
    सब कुछ बहुत सुन्दर, लेकिन इतना कम क्यों है?

    सदैव आभारी।

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  5. मो सम कौन जी,
    हमको लग रहा था कि ई शिकाइत आएगी ...
    उ क्या है न कि आज कल दीमागवा ज़रा काम नहीं कर रहा है...
    कुछ देर चलने के बाद जाम हो जाता है...
    हाँ नहीं तो..!!

    बाकी कोसिस करेंगे इसको पूरा करने का कुछ समय के बाद तब आपको सूचित भी कर देंगे....
    सदैव आभारी..!

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  6. कभी कभी निश्चिंत पड़े रहना का मन करता है।

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  7. वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे
    Aapki rachana pe kin alfaaz me tippanee kee jay??

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  8. आजकल पांव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे,
    बोलो कभी तुमने देखा है मुझे उड़ते हुए...

    very b'ful!!!

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  9. शानदार प्रस्तुती...

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  10. उम्दा अभिव्यक्ति और शानदार प्रस्तुती!

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  11. वाह वाह खुबसूरत अभिव्यक्ति, आजकल ब्लॉग की दुनिया में बड़ी खूबसूरत नज्मे पढने को मिल रही है. कही बादल हाथ मांग रहे है तो कही आंधी से हाथ पकड कर उड़ा ले चलने की गुजारिश.

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  12. निगाहों में रख लो और दिल में बसा लो मुझे
    हाथों की लकीरों में लिल्लाह सजा लो मुझे
    बहुत ही नाज़ुक अहसास....

    मैं डूबती जाती हूँ इक कुंद सी आवाज़ हूँ
    थामो तो मेरा हाथ बाहर तो निकालो मुझे
    सुन्दर....अभिव्यक्ति

    वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे
    सबसे शानदार.
    इसे मुकम्मल ग़ज़ल कीजिए न...दो शेर और.

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  13. वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे

    lajwab lagi ye pankti

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  14. यह कुंद सी आवाज बहुत मर्मस्‍पर्शी है.

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  15. वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे
    बहुत सुन्दर ...

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  16. वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे

    AANDHIYAN LEKE KAHAN JAYENGI,
    YUHIN AAKASH MEIN GHUMAYENGI...

    beutiful ahsas..

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  17. @ उ क्या है न कि आज कल दीमागवा ज़रा काम नहीं कर रहा है...
    कुछ देर चलने के बाद जाम हो जाता है...
    हाँ नहीं तो..!!
    ------------

    what would be irnova if goldva rusts?

    सीरियसली, इतनी अच्छी गज़ल कम शेरों के कारण अधूरी सी लग रही थी। आश्वस्ति पाकर अच्छा लगा।

    धन्यवाद।

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  18. बेहद शुक्रिया,
    अब मुकम्मल लग रही है गज़ल।

    पढ़ा है कि आजकल बहुत व्यस्त हैं आप, समय निकालकर आपने दो शेर और डाले, यकीन मानिये रचना की खूबसूरती और भी बढ़ गई है।

    पुन: धन्यवाद।

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  19. वो धूल का ज़र्रा हूँ मैं बस यूँ ही पड़ी रहती हूँ
    आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे
    उम्दा अभिव्यक्ति

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  20. क्या बात है..उम्दा!!

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  21. जिंदगी को यूँ हवाओं को समर्पित किया ...उसने सब कुछ पा लिया ... उम्दा ख्यालात

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  22. खूबसूरत सी रचना........

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  23. वाह जी छा गए तुस्सी. बहुत अच्छी गज़ल लिखी है.
    बधाई.

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  24. आदत कहाँ पीने की, पर जाने क्यूँ बहक गए
    सुराही थाम ली है, पैमानों से न टालो मुझे
    वाह सभी लाज़वाब

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  25. बेहतरीन। लाजवाब।

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  26. आदत कहाँ पीने की, पर जाने क्यूँ बहक गए
    सुराही थाम ली है, पैमानों से न टालो मुझे

    वही तो, अपने बहुत जल्दी टाल दिया था...शुक्रिया और शेर जोड़े आपने, हर शेर बहुत ख़ूबसूरत है.

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