ये थका-थका सा है जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है
ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीन तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है
ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने
है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने
ReplyDeleteहै निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
wakai ye laazwaab hai
क्या अदा जी,
ReplyDeleteहम तो तारीफ़ करने के लिये भी तरस गये थे।
किताब, सिनेमा जैसे अभिव्यक्ति के साधनों से ब्लॉग इसीलिये भी बेहतर लगते हैं क्योंकि इसमें त्वरित रेस्पांस ले दे सकते हैं। कमेंट बॉक्स फ़ोर खोल दिया आपने, इसका आभार अलग से।
पोस्ट बहुत शानदार, लेकिन शिकायत भी है कि इतनी छोटी रचना क्यों डालती हैं आप(तारीफ़ ही लग रही है न ये भी?
सदैव आभारी।
"मेरा मन महकता गुलाब है" -- waah!!
ReplyDeleteKhoob kahi hai aapne...
Regards,
Dimple
आपके हसीं रुख पर नया नूर है,
ReplyDeleteमेरा दिल मचल गया मेरा क्या कसूर है...
जय हिंद...
@ ओ खुशदीप जी..
ReplyDeleteये विम्मी जी की फ़ोटू नहीं है ..
हां नहीं तो...!!
ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
ReplyDeleteBAHUT HI SUNDER PANKTIYA HAI....
DIDI AAJ SARI KASAR NIKAL LUNGA..
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