ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म अर्थात ईश्वर या परम सत्य को जानता है, अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर को जानने वाला " और जो वेद-पुराणों तथा अन्य महान पुस्तकों का ज्ञाता, पूजा-पाठ, विधि-विधान, मंत्रोचारण, यज्ञं, तथा अन्य संस्कारों जैसे विवाह, यज्ञोपवित इत्यादि ,को करने में दक्ष हो उसे 'पंडित' कहते हैं...इसलिए 'ब्राह्मण' और 'पंडित' में काफी फर्क है...जो 'ब्राह्मण' है कोई ज़रूरी नहीं वो 'पंडित' भी है...
मैं स्वयं ब्राह्मण हूँ लेकिन मैं 'पंडित' नहीं हूँ....
कई प्रश्न मेरे हृदय में उमड़ते रहते हैं...और सबसे बड़ा प्रश्न जो मुझे सालता है वह है 'गोत्र' का...
हम ब्राह्मणों के अपने गोत्र भी होते हैं...जैसे मेरा गोत्र है 'कश्यप'.....और भी कई गोत्र हैं, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, अगस्त इत्यादि.....और इन गोत्रों में भी कोई गोत्र सर्वश्रेष्ठ होता है और कोई उससे कम ....
जहाँ तक मुझे पता है ये गोत्र ऋषियों के 'गुरुकुल' से आए हैं...इन गुरुकुलों ने एक तरह से अपनी वंशावली की स्थापना की, अर्थात जिस ऋषि के गुरुकुल में जिन-जिन ब्रह्मण विद्यार्थियों ने शिक्षा प्राप्त की थी ..उन विद्यार्थियों को उन ऋषि राज का नाम धारण करना पड़ता था .... जैसे कश्यप ऋषि के गुरुकुल में पढ़ने वाले समस्त विद्यार्थी को 'कश्यप' नाम धारण करना पड़ा जिसे 'गोत्र' कहा गया ....इसे आप एक तरह से alumni वाली बात कह सकते हैं.... उदाहरणार्थ, St . Xavier's कॉलेज से पढ़ कर निकलने वालों को 'जेवेरियन' कहा जाता है ...:)
मेरी समस्या यहीं पर आती है... उस ज़माने में भी कुछ 'गुरुकुल' ज्यादा विख्यात या ज्यादा पोपुलर रहे होंगे...और ख़ुद को बड़ा मानते होंगे....और यह कारण भी होगा कि उस गुरुकुल से से पढ़ कर निकलने वाले विद्यार्थियों को दूसरे विद्यार्थियों से श्रेष्ठ माना जाता होगा...तो वह 'गोत्र' भी श्रेष्ठ माना जाने लगा जैसे आज के सन्दर्भ में कह सकती हूँ....Harvard University और वहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों की अपनी ही बात है .....भारत की बात करते हैं, IIT Delhi और IIT Khadakpur के दो विद्यार्थी पास होकर बाहर आते हैं... हो सकता है IIT Delhi से पढ़कर निकलने वाले स्टुडेंट को ज्यादा बेहतर माना जाता है....क्यूंकि IIT Delhi ज्यादा पोपुलर है ....यहाँ तक तो बात ठीक भी मानी जायेगी....लेकिन यह बात गले नहीं उतरती कि पिता IIT graduate है तो उसके बच्चों को भी वही दर्ज़ा मिले...और उससे बच्चो के बच्चों को भी मिलता ही जाए....यह बात उचित नहीं है... और उससे भी बड़ी बात यह है कि...जिस बात में 'रक्त' का कोई लेना-देना नहीं है...फिर भी इसे 'रक्त' से जोड़ दिया जाता है ....जो सर्वथा अनुचित है...
हाँ, एक ही गोत्र में विवाह नहीं होने का कारण आध्यात्मिक कहा जा सकता है...या फिर एक अच्छी सोच कही जा सकती है....लेकिन इसमें रक्त सम्बन्ध वाली कोई बात नहीं है...एक ही गुरुकुल में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थी आपस में 'गुरुभाई' माने जाते थे...इस कारण उनके परिवारों में भी यही सम्बन्ध माना जाता था...और यही कारण था कि उनमें आपस में विवाह वर्जित था....
अब से कुछ समय पहले तक भी ..एक ही मोहल्ले या एक ही गाँव के लड़के-लड़की की शादी से लोग कतराते थे...यहाँ तक कि जिस गाँव में एक गाँव की लड़की व्याही जाती थी ...उसी गाँव से लड़की अपने गाँव में लाना भी लोग स्वीकार नहीं करते थे लोग ....ख़ैर यह तो कुछ पहले की बात है...
मैं आज की बात करती हूँ...'ब्राह्मण' तो कई देखती हूँ ..लेकिन ब्रह्म को जानने वाला एक भी नहीं....उस ब्राह्मण की आज भी खोज है मुझे, जो अपने 'ब्राह्मण' नाम को चरितार्थ करते हुए 'ब्रह्म' को जान पाया हो ...सच पूछा जाय तो कभी-कभी यह भी लगता है कि क्या सचमुच इस नाम का आज के सन्दर्भ में कोई अवचित्य रह गया है ? 'पंडित' बनना फिर भी आसन है 'ब्राह्मण' बनना बहुत कठिन...
हाँ नहीं तो...!!!
एकदम सच कह दिया.. हाँ नहीं तो...
ReplyDeleteजैसे कश्यप ऋषि के गुरुकुल में पढ़ने वाले समस्त विद्यार्थी को 'कश्यप' नाम धारण करना पड़ा जिसे 'गोत्र' कहा गया
ReplyDeleteअन्य गोत्रों के लिए यह सिद्धांत सही है परन्तु कश्यप के गोत्र के लिए नहीं - काश्यप का क्षेत्र गुरुकुल की परिधि से कहीं दूर तक विस्तृत है. कारण यहाँ है.
मातृकुल, पितृकुल दुनिया भर में पाए जाते हैं - परन्तु गुरुकुल के सिद्धांत ने भारत को विशिष्ट स्थान दिलाया
वैसे कश्यप तो हमारा भी गोत्र है मगर ब्राह्मण!! :)
ReplyDeleteसंग्रहणीय प्रस्तुति!
ReplyDeletegyanvardhak lekh kuchh spastikararan liye hue
ReplyDeleteअच्छी जानकारी।
ReplyDeleteकश्यप तो हमारा भी गोत्र है ...
ReplyDeleteपर ....!
Par kya
Deleteअदा जी नमस्कार, आपकी उपरोक्त सभी बातों से मैं सहमत हूँ क्योंकि ब्राहमण और पंडित इन शब्दों को मैं भी ठीक इसी तरह से परिभाषित करता हूँ बस फर्क ये हैं कि आपकी परिभाषा शास्त्रीय है और मेरी परिभाषाएं चालू भाषा में होती हैं. गोत्र परंपरा कि उत्पत्ति के विषय में, मैं भी ऐसी ही कल्पना करता हूँ. कुल मिलकर आपने इस विषय पर मेरी चालू सोच को सुन्दर जामा पहनाया. धन्यवाद.
ReplyDeleteपंडित जी मेरे मरने के बाद,
ReplyDeleteबस इतना कष्ट उठा लेना,
मेरे मुंह में गंगाजल की जगह,
थोड़ी सी मदिरा टपका देना...
जय हिंद...
आपने अच्छी पोस्ट लिखी है लेकिन जहाँ तक मेरी समझ कहती है कि गोत्र का गुरुकुल से कोई संबध नही है शायद .....गोत्र का सबंध शायद वंशावली से है..जैसे पराशर रिषि की संतानें पराशर गोत्र की मानी जाती हैं....
ReplyDeleteगुरुकुल का इतना महत्व होना निश्चय ही उस समय में ज्ञान को अत्यधिक महत्व देने के कारण हुआ होगा। हमें अपने ज्ञानप्रधान समाज पर गर्व है।
ReplyDeleteहम आपकी बात से सहमत हैं.वैसे आजकल के युग में कर्म की प्रधानता है.ब्राम्हण जाति में उत्पन्न होने से ही कोई ब्राम्हण कहलाने योग्य नहीं हो जाता, वैसे कर्म भी करना आवश्यक है.
ReplyDeleteपैदा तो मै भी एक ब्राहमण के घर ही हुयी मगर आज आपने मेरे ब्राहमण होने पर सवाल खडा कर दिया। सोचती हूँ कितनी ब्राहमण रह गयी हूँ। आभार।
ReplyDeleteसही कहा । पंडित तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन ब्राह्मण मिलना मुश्किल है ।
ReplyDeleteसच कहा.
ReplyDeleteअच्छा लेख
कश्यप तो हमारा भी गोत्र है ...लेकिन ..
ReplyDeletegood article.
ReplyDeleteअदा जी ....अच्छा लेख ,,,नयी जानकारी ,,,,/हमारी जाति में तो खुद के गोत्र के साथ - साथ , माँ , दादी , नानी के गोत्र में भी शादी वर्जित है ,,,,/ गोत्र में शादी होने का एक वैज्ञानिक मत यह भी है की अलग - अलग तथा दूर के गोत्र में शादी करने पर भावी पीढ़ियों में अनुवांशिक रोगों की प्रायिकता कम रहती है ,,,,,,,आपका तर्क भी सही हो सकता है की एक गोत्र के सभी आपस में भाई-बहन होते है ,,,,/ ब्राह्मण शब्द का सही अर्थ बताया है आपने ,,,,इस जानकारी पूर्ण लेख के लिए धन्यवाद !!!
ReplyDeleteमैं आपके इस लेख में कुछ बाते और जोड़ना चाहूँगा : 1. ब्राह्मण को द्विज भी कहा गया है ,जिसका अर्थ है दूसरा जन्म अर्थात जिसने मां-बाप से मिले जन्म के अलावा अपने होने का अर्थ जान लिया ,उसका दूसरा जन्म हो जाता है अन्य अर्थों में इसका मतलब हुआ जिसने जीवन के विस्तार और इसकी अनंतता को पहचान लिया । ब्रह्म शब्द का भी अर्थ विस्तार ही होता है । इसी शब्द से बना है ब्रह्माण्ड अर्थात् जिसका विस्तार अनंत है । 2.निश्चित रूप से आज पंडित तो बहुत मिल जाते हैं, पर ब्राह्मण बिरले ही । 3. गौत्र के संबंध में भी आपके विचार से सहमत हूँ ...गौत्र जरूरी नहीं कि किसी व्यक्ति विशेष के नाम से ही रखा गया हो, बहुत से गौत्र पूजा पद्धति से जन्में तो किसी समुदाय या जाति विशेष में उनके कार्यों में इस्तेमाल होने वाले प्रतीकों से । यह एक ऐसा प्रतीत है जो आनुवंशिकता से जुड़ा हुआ है और बंद समाज का गौरव सूचक ।
ReplyDeleteकाफी दिन बाद एक सुन्दर और विचारणीय लेख पढने को मिला...
ReplyDeleteबार बार पढने योग्य...
aur haan,
ReplyDeletepandit ji ki photuwaa bhi achchhi hai...
'ब्राह्मण' तो कई देखती हूँ ..लेकिन ब्रह्म को जानने वाला एक भी नहीं....उस ब्राह्मण की आज भी खोज है मुझे, जो अपने 'ब्राह्मण' नाम को चरितार्थ करते हुए 'ब्रह्म' को जान पाया हो ...
ReplyDeleteपंडित कई मिल जायेंगे मगर ब्राह्मन नहीं ...
सहमत हूँ ...
गोत्र तो मेरे परिवार में भारद्वाज कहा जाता है, परंतु स्वयम् को कभी ब्राह्मण कहने का साहस नहीं हुआ, क्योंकि “जन्मना जायते शूद्र:” पैदा तो हाड़-मांस से भरी चमड़ी ही होती है. “ब्रह्मा जानादि ब्राह्मण:” जो अपने ब्रहम स्वरूप तो जानने का दावा कर सकता है वही ब्राह्मण है. है कोई ब्राह्मण, जो कृष्ण की तरह घोषणा कर सके कि “मै ब्रह्म हूँ ?”
ReplyDelete(टिप्पणी बक्से के सीमित क्षेत्र के कारण, इस बात पर विस्तार से हम अपनी नई पोस्ट “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कौन हैं हम? पर लिख रहें हैं, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी, लिंक साथ ही दिया है ताकि असुविधा न हो) http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/07/blog-post_29.html
प्रभो आज कृष्णजी होते तो उनपर भी उंगली उठ जाती, कि वह कैान सा गोवर्धन पर्वत है जिसे आप एक अंगुली से उठाये थे हमें भी दिखायें. (ब्रम्ह) का अर्थ है जो सुव्यवश्थित आप को दिखे, अर्थात् भौतिक परिस्थितियां, वो चाहे जिवित हो या निर्जिव . जिसका इस पृथ्वी पर रहना एक प्रयौज्य हो, प्रयोजन नहीं. जिसका विचार निर्विकार सत्य के प्रति हो असत्य के तरफ नहीं, जो एक जरुरतमंन्द को रोटी देना जाने आशाराम बापू जैसे को नहीं, ऐसे को अपने आप ब्रम्ह दिखने लगेगा. ब्रम्ह को जानना है तो हमसे सम्पर्क करें--- sdmishrajs@gmail.com
Delete:)
ReplyDeleteRAM,
ReplyDeletemaine brahman ke darshan kiye hai, wo unke saamipye ka anubhav har samay karta hoo....
Maine jana hai Brahma ko
ReplyDeleteKatoch gotra
ReplyDeleteBrahmin Gotra nice concep in gotra vali...keep growing with good work
ReplyDeleteThnx for details
ReplyDeletebrahmin gotra nice discription
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