चमन तरस गया था रंग-ओ-बू के लिए
लिए चाक गिरेबाँ कहाँ तक फ़िरते हम
इस्तेमाल ख़ारों का किया रफ़ू के लिए
क्या शाख़, कली, गुँचे, बूटे, फूल डाल के
हँस दिए गुलिस्ताँ की आबरू के लिए
चाक=फटा हुआ
ख़ारों= काँटे
रफ़ू=सिलाई की एक किस्म जो फटे हुए कपड़ों पर की जाती है
गुँचे=फूलों का गुच्छा
ख़ारों= काँटे
रफ़ू=सिलाई की एक किस्म जो फटे हुए कपड़ों पर की जाती है
गुँचे=फूलों का गुच्छा
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दीदी,
ReplyDeleteसुबह सुबह ये चित्र देख कर तबियत प्रसन्न हो गयी
गाना भी बहुत अच्छा लगा
रचना में चाक, ख़ारों, रफ़ू, गुँचे का अर्थ बता दें
वाह ..
ReplyDeleteगाना सुनकर आपकी शुरुआती दो लाइनों पर जा ठहरा......
ग़नीमत है के फिर से बहार आ ही गई
चमन तरस रहा था रंग-ओ-बू के लिए ..
आभार...
वाह!
ReplyDeleteइस्तेमाल खारों का किया रफ़ू के लिए.
क्या बात है और फिर गीत सुनकर और आनन्द आ गया.
आज आपकी पोस्ट है डीलक्स थाली की तरह।
ReplyDeleteतस्वीर, शेर और गाना सब कुछ बेहतरीन, बहुत शानदार। लेकिन हम भी अपने फ़र्ज से पीछे नहीं हटने वाले हैं, शिकायत करके ही रहेंगे - ’कि दिल अभी भरा नहीं।’ ऐसी पोस्ट इतनी छोटी क्यों रखती हैं आप, कम से कम पिछली दो पोस्ट्स के ब्राबर तो होनी ही चाहिये थी।(इसके बाद आप का तकियाकलाम, कापीराईट के डर से हम तो नहीं लिखेंगे)
दीदी,
ReplyDeleteमेरी विनती पर भी गौर किया जाये
(चाक, ख़ारों, रफ़ू, गुँचे का अर्थ)
इस्तेमाल ख़ारों का किया रफ़ू के लिये।
ReplyDeleteख़ूबसूरत पक्ति। पढ कर आनद आ गया।
@ ham daal chuke hain gaurav..in shabdon ka arth..
ReplyDeleteदाउद ने मेराज से कहा कि 'चाक' गिरेबां पर बेहतर है कि 'रफू' कर लिया जाय , अलबत्ता कभी - कभी 'गुंचे' में भी 'खार' मिल जाते हैं , इसलिए मेराज भाई इन छोटी-छोटी बातों से परेशान न हुआ करो ! इस तरह दाउद भाई ने मेराज को खयाली 'गुंचा' दे दिया !
ReplyDeleteदीदी,
ReplyDeleteसबसे पहले तो अर्थ बताने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और तकलीफ के लिए क्षमा
अब रचना की बात .....
ये लाइन बड़ी गहरी लगी जिसका अर्थ अभी अभी पता लगा
....... इस्तेमाल ख़ारों का किया रफ़ू के लिए
ये लाइन भी शानदार है
चमन तरस रहा था रंग-ओ-बू के लिए.....
यानि कुल मिला कर मौ सम कौन जी की बात समझ में आ गयी पोस्ट डीलक्स थाली की तरह है (हर बार की तरह )
मुझ अज्ञानी पाठक की और से हो रही परेशानी के लिए फिर से क्षमा और अर्थ बताने का आभार
गौरव,
ReplyDeleteऐसी बात नहीं है ..मुझे पहले ही अर्थ डालने चाहिए थे...
तुमने याद दिलाया....
दीदी हूँ शुक्रिया नहीं कहूँगी....
@ अमरेन्द्र..
ReplyDeleteई दाउद मेराज का मामला हम नहीं समझे ..
खैर..बता देना कभी..
खुश रहो...!
अदा जी , हम तो तस्वीर को ही देखते रह गए । अप इतनी खूबसूरत चित्र भेजती हैं , मैं तो सब को सेव कर लेता हूँ । आभार ।
ReplyDeleteरफू करने के लिए खारों का इस्तेमाल ठीक नहीं ...
ReplyDeleteखुद अपने हाथ कटने का खतरा होता है ...
उर्दू ज्ञान बढ़ रहा है हमारा भी ...
ग़ज़ल में एक शेर और होना चाहिए था ...!
चित्र बहुत ही खूबसूरत है ...!
उम्दा ...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteलिए चाक गिरेबाँ कहाँ तक फ़िरते हम
ReplyDeleteइस्तेमाल ख़ारों का किया रफ़ू के लिए
बहुत बढिया शेर भी और चित्र भी ।
vaah...vaah,sher to kamalke hai. sunanaa bhi ek sukhad anubhav hai.
ReplyDeleteअरबी/फारसी के लफ्ज़ों से सजाई गयी शानदार शायरी।
ReplyDeleteआपकी सूचना पर ये साहस के पुतले ब्लॉगर। पोस्ट में आपका नाम सम्मिलित कर लिया गया है।
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व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
दीदी,
ReplyDeleteसुबह सुबह ये चित्र देख कर तबियत प्रसन्न हो गयी
गाना भी बहुत अच्छा लगा
क्या बात है और फिर गीत सुनकर और आनन्द आ गया.
ReplyDeleteADA DI MAFI CHAHUNGA DERI SE AANE KE LIYE....
ReplyDeleteWORK LOAD ZYADA THA PAR AB FREE HOON...
UR BROTHER
SANJAY BHASKAR
चित्र, गीत और संगीत। कलात्मक त्रिवेणी।
ReplyDeleteग़नीमत है के फिर से बहार आ गई है
ReplyDeleteचमन तरस गया था रंग-ओ-बू के लिए
बहुत खूब .
कमाल की पंक्तियाँ है, बहुत सुन्दर, आवाज़ के तो क्या कहने, बहुत खूब!
ReplyDeletereally beautiful...
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
kal galti se ye comment pichli post par kar diya tha...
ReplyDeleteमिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली,
इसी तरह से बसर, इसी तरह से बसर,
हमने ज़िंदगी कर ली,
मिले न फूल तो...
अब आगे जो भी हो देखा जाएगा,
खुदा तराश लिया, खुदा तराश लिया,
और बंदगी कर ली...
मिले न फूल तो...
जय हिंद...
जबरदस्त...!!!
ReplyDeleteदेर..बहुत देर से आने पर भी कमेंन्ट थोड़ी ना बदलेगा.
बहुत से ज्यादा ख़ूबसूरत है ये चित्र और रचना दोनों ही...
Helo Ada ji :)
ReplyDeleteWaah waah waah!!
Bahut hi khoobsurat :)
Regards,
Dimple