इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं
क़ब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं
राह में तेरे संग चलते हैं पर दामन भी बचाते हैं
फ़िर आँखों में धूल झोंक कर, अपने घर आ जाते हैं
साजों की हिम्मत तो देखो, बिन पूछे बज जाते हैं
जब उनपर कोई थाप पड़े तो, गुम-सुम से हो जाते हैं
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से तो हटाते हैं
वो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
देखें तुझको या ना देखें, फर्क हमें क्या पड़ता है
साया भी ग़र तेरा छू ले, हम वहीं तर जाते हैं
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteदेखें तुझको या ना देखें, फर्क हमें क्या पड़ता है
ReplyDeleteसाया भी ग़र तेरा छू ले, हम वहीं तर जाते हैं
बहुत खूब !!
लाजवाब रचना .......
ReplyDeleteek din me ham kai baar mar jaate hain...........sach me, iss jindagi me to pata nahi ...har pal sayad marte hain......:(
ReplyDeletebahut umda......:)
इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैंक़ब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं
ReplyDeleteराह में तेरे संग चलते है पर दामन भी बचाते हैं फ़िर आँखों में धूल झोंक कर, अपने घर आ जाते हैं
अच्छा लगा ।
हर बार बहा कर ले जाती हैं । इतना तैरायेंगी तो एक दिन डूब ही जायेंगे ।
ReplyDeleteGAHRI SOOCH HAI..
ReplyDeletekamaal ki abhiwyakti.....dub gayi....
ReplyDeleteवाह दिल की लगी भी खूब है..साये को दूर से देख कर भी निहाल हैं..और छू ले तो सोने पे सुहागा..जनाब तार ही गए..बहुत खूब.
ReplyDeleteआपकी ये गज़ल कल २/७/१० शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली गयी है.
आभार.
साजों की हिम्मत तो देखो, बिन पूछे बज जाते हैं
ReplyDeleteजब उनपर कोई थाप पड़े तो, गुम-सुम से हो जाते हैं,
बेहतरीन रचना अभिव्यक्ति...आभार
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से तो हटाते हैं
ReplyDeleteवो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
क्या बात है , वाह ....
बहुत अच्छे ( चित्र और रचना दोनों )
तो एक बार फिर से
भावों की गहराई में
आपने पहुचाया है ......
आँखें खोली हैं अन्दर जब हमने
फिर कुछ नया बसा पाया है .......
इस गहराई में दिख रही
सुन्दर भावों के नगरी को
लगता है आपने ही बनाया है
देखें तुझको या ना देखें फर्क हमें क्या पड़ता है...
ReplyDeleteवाह क्या बात है....!!
एक शे'र याद आया , कहीं पढ़ा था...
ज़माना हो दीवाना, कब किसे कुछ फर्क पड़ता है
मगर क्यूँ कैस की सुनकर के लैला कसमसाती है..
इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं
ReplyDeleteक़ब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से तो हटाते हैं
वो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
kaise sab kuchh likha diya in dono me hi aapne...behad khubsurat :)
भावपूर्ण ग़ज़ल..बढ़िया लगा..
ReplyDeleteVery nice ghazal.
ReplyDeleteGood.
बहुत सुन्दर भावों से लिखी गई कविता
ReplyDeleteरचना का तो जवाब नही, मगर पेंटिंग भी लाजवाब है.किसने बनाई?
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल..
ReplyDeleteचुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से तो हटाते हैं
ReplyDeleteवो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
bahut khoob.
हमेशा की तरह ... बहुत अच्छा
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