अवरुद्ध-रुद्ध हुआ कंठ मेरा आपका जो प्यार देखा
झाँझ झंकृत हो गया मन हृदयंगम जो दुलार देखा
प्रणय तूलिका से भाव रचना स्नेह अपरम्पार देखा
सजल दृष्टि छलक छलकी प्रेम गौरव अपार देखा
प्राण-प्राण बसी श्वास-सरगम यही जीवनाधार देखा
मोहपाश में है गात-गात, मन नेह नेह निहार देखा
अरुण यह मधुमय देश
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।
- जयशंकर प्रसाद
शायद ..आप में से कुछ ने इस गीत को पहले भी सुना हो....मुझे नया गीत रिकॉर्ड करने का समय नहीं मिला...सोचा श्री जयशंकर प्रसाद जी की अमर कृति को भी सुन लीजिये...इस गीत को हिंद-युग्म द्वारा आयोजित संगीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था....
आवाज़ : स्वप्न मंजूषा 'अदा'
संगीत : श्री संतोष शैल
इतना सुन्दर गीत, और आपकी आवाज ने तो सचमुच इसमें चार चाँद लगा दिए ...
ReplyDelete@ प्राण-प्राण बसी श्वास-सरगम यही जीवनाधार देखा - सही है , सांस की धुकधुकी भी तो घड़ी की लय है , जीवन की मात्रा , काल - मात्रा और ताल - मात्रा भी !
ReplyDeleteसुबह प्रसाद - मय हुई !
इन छायावादी साहित्यकारों को स्वर देना चुनौती
है , गेयता और छायाभास दोनों को बनाये रखने का !
यह निबहा है , खुशी हुई !
निराला का गीत '' वर दे वीणा वादिनि .... '' को
स्वर मिले और निबहे भी , तो स्वरानंद-विधान में
'' मंगल कुंकुम सारा '' सा संयोग हो !
आभार !
सुन्दर गीत...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति रही!
ReplyDeleteडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक has left a new comment on your post "अवरुद्ध-रुद्ध हुआ कंठ मेरा आपका जो प्यार देखा...":
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति रही!
आपकी पुनर्प्रस्तुति की क्या बात है... जय शंकर प्रसाद तो प्रवाहमान कवि हैं लगता ही नहीं कि आप कविता पढ़ रहे हैं लगता है जैसे बहती नदी देख रहे हैं
ReplyDeleteअच्छा है, पहले सुना है.
ReplyDeleteकाजल कुमार Kajal Kumar has left a new comment on your post "अवरुद्ध-रुद्ध हुआ कंठ मेरा आपका जो प्यार देखा...":
ReplyDeleteआपकी पुनर्प्रस्तुति की क्या बात है... जय शंकर प्रसाद तो प्रवाहमान कवि हैं लगता ही नहीं कि आप कविता पढ़ रहे हैं लगता है जैसे बहती नदी देख रहे हैं
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक has left a new comment on your post "अवरुद्ध-रुद्ध हुआ कंठ मेरा आपका जो प्यार देखा...":
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति रही!
dono hi bahut pasand aaye
ReplyDeleteaapka geet bahut achchha hai.
awaj par tippani karna to bemani hi hai.
behad khubsurat
अवरुद्ध हुआ कंठ जो आपका प्यार देखा ...
ReplyDeleteसुन्दर शब्द पिरो दिए ...
जयशंकर प्रसाद जैसे अद्भुत रचनाकार की रचना को स्वर देने इतना आसान कार्य नहीं ...आसान कार्य आप करती ही कहाँ हैं ...:):)
कविता कई बार सुन चुकी हूँ ..हर बार पहले से भी ज्यादा भाती है ...
हाँ ये गीत पहले भी सुना है ..और फिर से सुन कर वही सुकून मिला है.
ReplyDeleteखूब जुगलबंदी की है.आवाज़ तो अल्लाह का करम है..बहुत ही मीठी!
ReplyDeleteवाणी गीत has left a new comment on your post "अवरुद्ध-रुद्ध हुआ कंठ मेरा आपका जो प्यार देखा...":
ReplyDeleteअवरुद्ध हुआ कंठ जो आपका प्यार देखा ...
सुन्दर शब्द पिरो दिए ...
जयशंकर प्रसाद जैसे अद्भुत रचनाकार की रचना को स्वर देने इतना आसान कार्य नहीं ...आसान कार्य आप करती ही कहाँ हैं ...:):)
कविता कई बार सुन चुकी हूँ ..हर बार पहले से भी ज्यादा भाती है ...
आज सुन लो तुम्हें बताती हूँ
ReplyDeleteमैं देवी बनने से कतराती हूँ....
hmm, hmm ..hmm..sahi hi hai na :)
प्रवीण पाण्डेय has left a new comment on your post "बिन लोगों की ये महफ़िल है मेरा दिल घबराए ....":
ReplyDeleteयाद सताती है उनकी पर याद नहीं रह पाती है,
जब धुँधले बादल के रथ पर सज्जित आती दिख जाती है ।
Avinash Chandra has left a new comment on your post "अवरुद्ध-रुद्ध हुआ कंठ मेरा आपका जो प्यार देखा...":
ReplyDeletedono hi bahut pasand aaye
aapka geet bahut achchha hai.
awaj par tippani karna to bemani hi hai.
behad khubsurat
प्रस्तुति सुन्दर और आनन्ददायिनी है, मनोहारी भी!
ReplyDeleteसाधु-साधु!
सुन्दरतम अभिव्यक्ति ।
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