इस धरा पर
जो अँधेरा है,
वो
रात्रि है, अज्ञानता की
इस
तिमिर की चुनौती
स्वीकार करनी होगी,
और
पार करना ही होगा,
यह बीहड़,
लेकर हाथों में ज्ञानदीप,
अगर
स्वयं बुझ भी गए तो क्या !
दे दो न
ज्योति
आगत के हाथों में,
एक न एक दिन
सवेरा हो ही जाएगा
और
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....
अगर स्वयं बुझ भी गए तो क्या !..दे दो न
ReplyDeleteज्योति..आगत के हाथों में..बहुत ही सार्थक रचना
एक न एक दिन
ReplyDeleteसवेरा हो ही जाएगा
और
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....
सार्थक और प्रेरक रचना
सुन्दर
एक न एक दिन
ReplyDeleteसवेरा हो ही जाएगा
और
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....
सार्थक और प्रेरक रचना
सुन्दर
एक न एक दिन
ReplyDeleteसवेरा हो ही जाएगा
और
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....
सार्थक और प्रेरक रचना
सुन्दर
जो बलिदान हुए हैं पहले , व्यर्थ ही तो जा रहा है ना ...
ReplyDeleteमगर फिर भी उम्मीद की ज्योत तो जला कर रखनी ही है ...
शुभ हो ..!!
सुन्दर , सार्थक और प्रेरणात्मक रचना ।
ReplyDeleteस्वयं बुझ भी गए तो क्या !
ReplyDeleteदे दो न
ज्योति
आगत के हाथों में,
एक न एक दिन
सवेरा हो ही जाएगा
और
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....
जिजीविषा को अनूठे शब्द दिए हैं आपने...रोम स्पंदित हुए.
बहुत अच्छा लगा इसे पढना...
अँधेरा रात्रि है
ReplyDeleteतिमिर की चुनौती
स्वीकार करनी होगी
पार करना ही होगा,
यह बीहड़,
दे दो ज्योति
आगत के हाथों में,
एक न एक दिन सवेरा हो ही जाएगा
तुम्हारा बलिदान निरर्थक नहीं जाएगा....
एक आशावान दृष्टिकोण को सही स्थान पर प्रक्षेपित करती कविता....
बधाई!
स्वयं बुझ भी गए तो क्या !
ReplyDeleteदे दो न
ज्योति
आगत के हाथों में,
एक न एक दिन
सवेरा हो ही जाएगा
और
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....
बहुत सुन्दर आशा ही जीवन है। आभार।
आप बहुत सुंदर लिखती हैं, सार्थक लिखती हैं, प्रेरणात्मक लिखती हैं, कलात्मक लिखती हैं। आज की इस पोस्ट से भी लोगों को प्रेरणा मिलेगी।
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आयेगी।
आशावादी दृष्टिकोण को दर्शाती यह रचना भी खूब रही।
आभार स्वीकार करें।
sunder post..
ReplyDeletechitr bhi mnbhaawan hai...
जानते बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जायेंगे,
ReplyDeleteआतिशी हालात किन्तु, कब सुधर पायेंगे ।
सार्थक और प्रेरणात्मक रचना
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