Saturday, July 10, 2010

तुम्हारा बलिदान निरर्थक नहीं जाएगा....

इस धरा पर
जो अँधेरा है,
वो
रात्रि है, अज्ञानता की
इस
तिमिर की चुनौती
स्वीकार करनी होगी,
और
पार करना ही होगा,
यह बीहड़, 
लेकर हाथों में ज्ञानदीप,
अगर  
स्वयं बुझ भी गए तो क्या !
दे दो न
ज्योति
आगत के हाथों में,
एक न एक दिन
सवेरा हो ही जाएगा
और 
तुम्हारा बलिदान
निरर्थक नहीं जाएगा....


13 comments:

  1. अगर स्वयं बुझ भी गए तो क्या !..दे दो न
    ज्योति..आगत के हाथों में..बहुत ही सार्थक रचना

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  2. एक न एक दिन
    सवेरा हो ही जाएगा
    और
    तुम्हारा बलिदान
    निरर्थक नहीं जाएगा....
    सार्थक और प्रेरक रचना
    सुन्दर

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  3. एक न एक दिन
    सवेरा हो ही जाएगा
    और
    तुम्हारा बलिदान
    निरर्थक नहीं जाएगा....
    सार्थक और प्रेरक रचना
    सुन्दर

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  4. एक न एक दिन
    सवेरा हो ही जाएगा
    और
    तुम्हारा बलिदान
    निरर्थक नहीं जाएगा....
    सार्थक और प्रेरक रचना
    सुन्दर

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  5. जो बलिदान हुए हैं पहले , व्यर्थ ही तो जा रहा है ना ...
    मगर फिर भी उम्मीद की ज्योत तो जला कर रखनी ही है ...

    शुभ हो ..!!

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  6. सुन्दर , सार्थक और प्रेरणात्मक रचना ।

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  7. स्वयं बुझ भी गए तो क्या !
    दे दो न
    ज्योति
    आगत के हाथों में,
    एक न एक दिन
    सवेरा हो ही जाएगा
    और
    तुम्हारा बलिदान
    निरर्थक नहीं जाएगा....


    जिजीविषा को अनूठे शब्द दिए हैं आपने...रोम स्पंदित हुए.
    बहुत अच्छा लगा इसे पढना...

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  8. अँधेरा रात्रि है
    तिमिर की चुनौती
    स्वीकार करनी होगी
    पार करना ही होगा,
    यह बीहड़,
    दे दो ज्योति
    आगत के हाथों में,
    एक न एक दिन सवेरा हो ही जाएगा
    तुम्हारा बलिदान निरर्थक नहीं जाएगा....


    एक आशावान दृष्टिकोण को सही स्थान पर प्रक्षेपित करती कविता....
    बधाई!

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  9. स्वयं बुझ भी गए तो क्या !
    दे दो न
    ज्योति
    आगत के हाथों में,
    एक न एक दिन
    सवेरा हो ही जाएगा
    और
    तुम्हारा बलिदान
    निरर्थक नहीं जाएगा....
    बहुत सुन्दर आशा ही जीवन है। आभार।

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  10. आप बहुत सुंदर लिखती हैं, सार्थक लिखती हैं, प्रेरणात्मक लिखती हैं, कलात्मक लिखती हैं। आज की इस पोस्ट से भी लोगों को प्रेरणा मिलेगी।
    वो सुबह कभी तो आयेगी।
    आशावादी दृष्टिकोण को दर्शाती यह रचना भी खूब रही।
    आभार स्वीकार करें।

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  11. sunder post..

    chitr bhi mnbhaawan hai...

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  12. जानते बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जायेंगे,
    आतिशी हालात किन्तु, कब सुधर पायेंगे ।

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  13. सार्थक और प्रेरणात्मक रचना

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