सत्य के लिए किसी से भी नहीं डरना...गुरु से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं.....
......हजारी प्रसाद द्विवेदी , वाण भट्ट की आत्मकथा
इंतज़ार शत्रु है , उस पर यकीन मत करो
......सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ...जंगल का दर्द
जो गुलाम है उसका न कोई व्यक्तित्व है न जीवन, उसका समस्त ज्ञान व्यंग्य है, उसकी भावनाएं कुंठाग्रस्त हैं..
.....भगवती चरण वर्मा...सीधी सच्ची बातें
समाज को मानवीय और मनुष्य को सामाजिक बनाना ही मुक्ति का एकमात्र पंथ है
.....फणीश्वर नाथ रेणु ...परती परिकथा
उम्र के साथ जैसे चेहरा बदलता है, वैसे ही शायद मन की दुनिया का बाहर की दुनिया के साथ सम्बन्ध भी बदल जाता है
.....मोहन राकेश .....अँधेरे बंद कमरे
इन्सान रास्ता चुनता ही कहाँ है, वह तो केवल चलता ही जाता है, जो लोग रास्ता सुझाते हैं वो दम्भी, छिद्रान्वेषी लोग हैं, वे अक्सर चलते ही कहाँ है ?
......भीष्म साहनी....पटरियां
ऐसे भी लम्हे होते हैं, जब हम बहुत थक जाते हैं...स्मृतियों से भी और तब खाली आँखों से बीच का गुजरता हुआ रास्ता देखना ही भला लगता है
......निर्मल वर्मा....चीड़ों की चांदनी
कृपया ऐसे ही, और भी भावप्रवण, विचारोंत्तेजक लाइन पोस्ट करें. उपरोक्त पोस्ट प्रशंसनीय है.
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