1)
मसरूफ़ियत में भी हम रस्में उलफ़त निभाते हैं
बेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती
कहने को तो सारी क़ायनात हमारी ही है,
बस उनके ही दीदार की जुगत नहीं मिलती
है चर्चा बड़ा शहर में, हम खुशकिस्मत हैं
इक उनसे ही अपनी कभी किस्मत नहीं मिलती
जाँ जाए कि रहे वादा तो निभाएँगे ही हम
इस बात पर हमारी,उनसे नीयत नहीं मिलती
2)
चुपके से सो जाते हैं....
देखा है तुम्हें आज
कई सदियों बाद
उम्र कि परछाईयां
नज़र आती थीं तुम पर
सवालों के कारवां
उफन पड़े थे
निगाहों से
पूछा तो नहीं
हम फिर भी बताते हैं
किस्सा-ए-दिल
अपना हाल सुनाते हैं
जिस दिन तुमने
निगाहें फ़ेरी थीं
उसी दिन,
वफ़ा की मौत हो गई थी
सब्र चुपके से खिसक गई
और
उम्मीद भी फ़ौत हो गई
हम तेरी जफ़ा से
कफ़न उतार
अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
बाद में,
तेरी यादों के साथ
उसे दफ़ना आये थे
तब से हर रोज़
उस मज़ार पे जाते हैं
जी भर के तुम्हें
खरी-खोटी सुनाते हैं
उसपर भी अगर
जी नहीं भरता
तो अश्कों के दीप जलाते हैं
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
कब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं
ReplyDeleteग़र क़फ़न में लिपट रही हों वफ़ा और ज़फ़ा के रिश्ते, तो उम्र की परछाईयाँ बेमानी ठहरेंगी ।
और, जिससे सरोकार ही टूट चुका हो, उससे इतने सवाल क्यों ?
लगता है, ज़ज़्बों की रौ में अल्फ़ाज़ गड्ड-मड्ड हो गये हों !
ज़फा करने वालों पर क्यों आंसू करें बर्बाद .. !!
ReplyDeleteजो भी हो, पसंद आया यह अंदाज भी!
ReplyDeleteपसंद आया आपका यह अंदाज भी
ReplyDeleteजिसमें-
देखा है तुम्हें आज
कई सदियों बाद
उम्र कि परछाईयां
नज़र आती थीं तुम पर
सवालों के कारवां
उफन पड़े थे
निगाहों से
पूछा तो नहीं
हम फिर भी बताते हैं
....
जी भर के तुम्हें
खरी-खोटी सुनाते हैं
उसपर भी अगर
जी नहीं भरता
तो अश्कों के दीप जलाते हैं
एक वही तो है
जिसे कुछ भी, कैसा भी
कह देते हैं :
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
कब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं
मसरूफ़ियत में भी हम रस्में उलफ़त निभाते हैं
ReplyDeleteबेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती
हा हा ...बेरोजगारों की ऐसी पूछ ..!!
अब का किया जाए..
ReplyDeleteunemployementwa
बढ़ गया है न जी !!!!
वाह !
ReplyDeleteAaj aapke geet sun payee..behad aanad mila..shukriya!
ReplyDeleteलाजवाब जी. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
है चर्चा बड़ा शहर में, हम खुशकिस्मत हैं
ReplyDeleteइक उनसे ही अपनी कभी किस्मत नहीं मिलती
जाँ जाए कि रहे वादा तो निभाएँगे ही हम
इस बात पर हमारी,उनसे नीयत नहीं मिलती
वाह क्या अदा है
और
एक वही तो है
जिसे कुछ भी, कैसा भी
कह देते हैं :
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
कब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं
लाजवाब अदा जी आपकी कलम को कमाल ही कहूँगी बधाई
उसपर भी अगर
ReplyDeleteजी नहीं भरता
तो अश्कों के दीप जलाते हैं
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
कब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं
bahut hi sudar alfaas
कहने को तो सारी क़ायनात हमारी ही है,
ReplyDeleteबस उनके ही दीदार की जुगत नहीं मिलती
सुन्दर
जी भर के तुम्हें
ReplyDeleteखरी-खोटी सुनाते हैं
उसपर भी अगर
जी नहीं भरता
तो अश्कों के दीप जलाते हैं
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
कब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं
gulzar ko gariyate ho aur khud hi gulzaar hua chahte ho.
badiya likha hai di..
bahut badiya...
कफ़न उतार
अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
"aaj hi humne badle hai kapde...."
"बेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती" इस मिस्रे ने देर तक गुदगुदाया!
ReplyDeleteअपनी व्यस्तता से निपट कर आता हूँ जब तक ब्लौग-जगत में आपस, आप जाने कितना कुछ लिख चुकी होती हैं!!!
...और कितने आदमी थे कि खबर आप तक उतनी दूर पहुँच गयी, हैरान हूँ। आपकी हर टिप्पणी मेरे ब्लौग पे मायने रखती है, लेकिन इसे हटा रहा हूँ। आप समझ जायेंगी, ऐसा समझता हूँ।
@ ब्लौग-जगत में वापस....
ReplyDeleteअरे हाँ, उस "अभिमान" शब्द के लिये शुक्रगुजार हूँ...
ReplyDeleteइन खूबसूरत अशआरों के लिए,
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें।
Hello :)
ReplyDeleteRocking lines!!
"और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
कब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं"
Very very touchy! Hats off!
Sincere n pure attempt to portray feelings!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
कहने को तो सारी क़ायनात हमारी ही है,
ReplyDeleteबस उनके ही दीदार की जुगत नहीं मिलती.....bahut khoobsurat likha apne....
वाह-वा!
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
"चुपके से सो जाते है जो खुशनसीब है,
ReplyDeleteवो क्या करें,जिनके बिस्तर ही सलीब हैं!"
सुन्दर भाव और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति.
’सच में’
मसरूफ़ियत में भी हम रस्में उलफ़त निभाते हैं
ReplyDeleteबेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती
दूसरी लाइन तो एकदम मस्त है..
और बहुत ही ज्यादा सही भी है.....
जब जब किस्मत ने बेरोजगार किया है..तब तब वक्त का बहुत अभाव हो जाता है .
:)
मसरूफ़ियत में भी हम रस्में उलफ़त निभाते हैं
ReplyDeleteबेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती
sahi hai !!
kabhi agar be-rojgaar ho gaye to bura nahi lagega.
ha ha ha
mujhe bahut pasand aaya.
हम तेरी जफ़ा से
कफ़न उतार
अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
बाद में,
तेरी यादों के साथ
उसे दफ़ना आये थे
तब से हर रोज़
उस मज़ार पे जाते हैं
जी भर के तुम्हें
खरी-खोटी सुनाते हैं
bahut zabardast shbd nikle hain apki lekhni se
badhai !!!
Di aapka Prashna (sa kuch) accha hai:
ReplyDeleteमसरूफ़ियत में भी हम रस्में उलफ़त निभाते हैं
बेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती...
Uttar hai.....
humein 'interview' se kab fursat, tum 'Project' se kab khali,
lo ho gaya milna julna , na hum khali na tum khali.
Padh liya ,
uttar bhi de diya...
ab?
ab, ZZZZZZZZZZzzzzzzzzzzssssssss.......
चुपके से सो जाते हैं !!
मसरूफ़ियत में भी हम रस्में उलफ़त निभाते हैं
ReplyDeleteबेरोज़गारी में भी उनको फ़ुर्सत नहीं मिलती...बधाई