सावधानी.....यह कविता है किसीकी कहानी नहीं...यह कविता सिर्फ कवयित्री की कल्पना की उपज है
हम खुद से बिछड़ रहे हैं
हालात बिगड़ रहे हैं
अब कहाँ उड़ पायेंगे
पंख मेरे झड़ रहे हैं
तूफाँ कुछ अजीब आया
हिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं
महफूज़ मकानों में बसे थे
वो मकाँ अब उजड़ रहे हैं
हमसफ़र साथ थे कई
पर आज बिछड़ रहे हैं
आईना है या हम हैं 'अदा'
अक्स क्यूँ बिगड़ रहे हैं ??
हाँ तो अब आप टिपियाने का सोच रहे हैं ...अरे नहीं भाई जबरदस्ती थोड़े न कह रहे हैं..उ का है कि खाली याद दिला रहे हैं कि हमरा 'पंख' 'बाल' नहीं झडा है महराज/महराजिन.....बस एतने याद रखिये,......गिरेगा......माकिल कुछ समय बाद ....का ? .......पंख...बाल ...और का !!!
हमसफ़र साथ थे कई
ReplyDeleteपर आज बिछड़ रहे हैं
सही बात कही .;;
अब कहाँ उड़ पायेंगे
पंख हमारे झड़ रहे हैं .
पंख तो झड़ने न दे जी ..यही पंख है जो न जाने कहाँ कहाँ जाते हैं कविता रचा जाते हैं इसी तरह से सुन्दर सी ..इसी सोच में हम टिपिया दिए हैं :)
बहुत खूब।
ReplyDeleteझड़ते हैं पंख सबके बस वक्त हो मुनासिब।
हर दिन के साथ उम्र की सीढ़ी पे चढ़ रहे हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
वाह किस अदा दे आप हमसे टिप्पणी की चाह दर्शा रही हैं जी। और हम भी दे ही रहे हैं, कहीं ऎसा न हो की न देने पर हमारे पंख की जगह बाल झरने लग जायें...
ReplyDeleteउडने के लिये पंख नही हौसला चाहिये
ReplyDeleteसही वक्त पर सही फैसला चाहिये
बहुत खूब लिखा है आपने देखिये मैने भी तुकबन्दी कर दी.
लो जी, इतनी अच्छी रचना पढकर बिना टिपियाये कैसे निकल सकते हैं? तो लिजिये यही कहेंगे कि नायाब...
ReplyDeleteरामराम.
हम खुद से बिछड़ रहें हैं
ReplyDeleteनहीं ...आप खुद से जुड़ रहें हैं
आप खुद ही आईना हैं
आईना को आईना से मत उलझाइए
अक्स बिगड़ ही जाएँगे
बीच से हट जाइए
आईना साफ हो जाएगा ।
एक सुंदर रचना ...
जो आत्म छवि से मुक्त होने का संदेश दे रही है ।
आपकी हरेक रचना एकसे बढ़ के एक होती है ..ऐसे हालात जीवन में आते हैं , जहाँ लगता है ,कि , किसीने मेरे पँख छाँट ,एक पिंजरे में क़ैद कर दिया हो ..रूह तक छटपटा गयी हो !उसपे भी पहरे लगे हों!
ReplyDeleteहमसफ़र साथ थे कई
ReplyDeleteपर आज बिछड़ रहे हैं
bahut khub
hamsafar saath they kai,
ReplyDeletepar aaj bichchad rahe hain........
bahut hi achchi line hai......
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महफूज़ मकानों में बसे थे
वो मकाँ अब उजड़ रहे हैं
hamare makaan mein koi nahi basa tha......... na hi hamara makaan ujad raha hai....... sb kuch badhiya se chal raha hai........
heheheheheheheheh
अदाजी ,
ReplyDeleteआपने जो 'बिखरे सितारे 'पे comment दिया , वो आपकी विनय शीलता दर्शाता है ...वरना , हाथ कंगन को आरसी क्या !
झुकके नमन तो मैंने करना चाहिए !
आपकी टिप्पणी द्वारा मिलने वाली हौसला अफ़्ज़ायी तथा ज़र्रानवाज़ी मुझे प्रेरित करती है ...कैसे शक्रिया कहूँ ?स्नेह बनाये रखें!
अब कहाँ उड़ पायेंगे
ReplyDeleteपंख मेरे झड़ रहे हैं
sunder likhaa hai ji aapne..
सही है |
ReplyDeleteसंवेदनाओं का फ़ेवीकोल लगायें/पंख झड़ने से बचायें!
ReplyDeleteअरे ये पोस्ट तो बड़ी रहस्यमयी है. कई बार पढ़ने के बाद स्पष्टीकरण का प्रयोजन औत टारगेट समझ नहीं आया. वैसे रचना अच्छी बन पड़ी हैं आप तो जिस भी अंदाज़ में लिखती हैं वह जबरदस्त ही होता है.
ReplyDeleteआईना है या हम हैं 'अदा'
ReplyDeleteअक्स क्यूँ बिगड़ रहे हैं
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is rachna ko 'nayaab' keh kar kuch aur 'nayaab' kar rahe hai..
itni achhi kavita ke saamne hamaare shabd jo kam pad rahe hai...
-Sheena
बहुत ख़ूबसूरत, लाजवाब और शानदार रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDeleteमेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
सुन्दर ख़याल, मगर चेतावनी के अनुरूप हम टिपियायेंगे नहीं !
ReplyDeleteकिशोर जी,
ReplyDeleteमैं सिर्फ इतना ही कहना चाहती थी की यह सिर्फ कविता है...
मह्फ़ूज साहब,
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. मेरी प्रार्थना है कि सब कुछ वैसा ही हो जैसा आप चाहते हैं.
गोदियाल जी,
ReplyDeleteहमारी इतनी हिम्मत कि हम 'चेतावनी' दें ....
हम तो 'सावधानी' कि बात कर रहे थे..
आपा आदाब
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगी ये पंक्तियां। वैसे आपको मैं बता दूं कि आपके न पंख झड़ेंगे और न ही बाल गिरेंगे। आप हमेशा यंग रहेंगी, फोर एवर फोर एवर...
बहुत अच्छी रचना है आपकी...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
zindagi ki sachchayi ko kitni khoobsoorti se bata diya aapne.............sach aisa hi to ho raha hai..........waah.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल है
ReplyDelete---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
mujhe pasand aayi rachna
ReplyDeleteआईना है या हम हैं 'अदा'
ReplyDeleteअक्स क्यूँ बिगड़ रहे हैं ??
Wah di hamesha hi itna accha likhte rahogi to aapki mazaak udane ka mauka kab milega...
"aks shayad badal gaya mera,
aaina bewafa nahi hota.
jaate jaate bata gaya wo mujhe,
door maane juda nahi hota."
P.S>>>
अब कहाँ उड़ पायेंगे
पंख मेरे झड़ रहे हैं
"pelaastik surjaaary" kahe nahi karwa let ho bachwa....
...ghabran nahi haan hum kuch karte hain...
....chamkaadar ka pankh chal jaiyega?
दर्पण बचवा,,
ReplyDeleteगए रहे पलास्टिक सर्जरी करवाने ...डाक्टर बहुते पैसा माँगता रहा...तो हम पूछे कि अगर हम पलास्टिक लेकर आवें तो दाम कुछ कम होगा का.....इ सुनते ही डाक्टर कोम्मा में चला गया है....हम अब डरे नहीं जा रहे हैं कहीं उसको फुल स्टाप न लग जावे...
विश्वास नहीं होता तूफाँ के होंसले पर
ReplyDeleteतेज धूप का सफ़र
हम खुद से बिछड़ रहे हैं
ReplyDeleteहालात बिगड़ रहे हैं ...sunder bhav..
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ..बेहतरीन अशआर
ReplyDeletebhut khubsurat andaj .
ReplyDeleteaji bal to theek hai kuch danto par bhi ho jaye .
abhar
आईना है या हम हैं 'अदा'
ReplyDeleteअक्स क्यूँ बिगड़ रहे हैं
gajab likhti hain aap bhi ada ji.
अच्छा लिखा है आपने । अच्छा है क्योंकि मौलिक है, इसी प्रकार सृजन करती रहें ।
ReplyDelete-स्याह
kya khubsoorat likhatin hain aap .. hum toh deewane ho gaye .
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