यह हमारी चोरी करने की तीसरी रात थी...., निकले तो थे ये सोच कर कि हम चोरी करेंगे किसी अच्छी सी नज़्म की, या फिर किसी दिल फरेब ग़ज़ल की, पहुँच भी गए थे ऐसे ही एक मकां पर, सुना था ...इस ज़मीन पर गज़लें गुनगुनातीं हैं, नज्में रक्स करतीं हैं और कहानियाँ मुस्कुराती हैं, लेकिन वहाँ जो मिला उसके आगे सारी गज़लें झुकी हुईं थीं, नज्में बिछी हुई थी, और कहानियाँ सज़दा कर रही थी... बस हम वही लेकर चले आये... आपके लिए... जो न कोई कहानी है, न अफ़साना, न ग़ज़ल, न ही नज़्म......ये एक हकीक़त है और सिर्फ हकीक़त, जो हक़दार है एक-एक हिन्दुस्तानी की सलामी की, और आज हमें यकीं है, सलामी... ज़रूर मिलेगी ...
यह संस्मरण है हिंदी ब्लॉग जगत के बहुत ही रौशन सितारा श्री गौतम राजरिशी जी का, जो भारतीय सेना में 'मेजर' हैं, ज़ाहिर है कुछ इन्हें 'मेजर साहब' कहते हैं, कुछ 'गौतम जी' और कुछ प्यार से 'हुजूर' भी कहते हैं
राजरिशी जी हैं तो मेजर लेकिन ग़ज़ल से ऐसी आशनाई न आपने देखी होगी न ही हमने देखी है, लोग इनकी ग़ज़लों को 'मीर साहब' की ग़ज़लों से कम नहीं मानते ...इनकी कलम से उभरे जज़्बात पढ़नेवालों में उम्मीद जगाती है, जो भी पढता है जहाँ होता है, वही से इन्हें कड़क सेलूट मारता है....
मेजर साहब की तारीफ़ करने की ताब हममें कहाँ होगी भला....हम ठहरे एक अदना चोर...हम आपको एक लिंक देंगे इस लेख के अंत में, उस पर क्लीक करेंगे और वहीँ पहुंचेंगे जहाँ पूरी दुनिया 'मेजर साहब' बारे में क्या कहती है इसकी झलक मिलेगी आपको.... फिलहाल हम अर्पित करते हैं कुछ श्रद्धा-सुमन मेजर गौतम राजरिशी जी के साथ, एक 'वीर बांकुड़े' को ...
मेजर ऋषिकेश रमानी - शौर्य का नया नाम
विगत दस-एक सालों में, जब से ये हरी वर्दी शरीर का एक अंग बनी है, इन आँखों ने आँसु बहाने के कुछ अजब कायदे ढ़ूंढ़ निकाले हैं। किसी खूबसूरत कविता पे रो उठने वाली ये आँखें, कहानी-उपन्यासों में पलकें नम कर लेने वाली ये आँखें, किसी फिल्म के भावुक दृश्यों पे डबडबा जाने वाली ये आँखें, लता-रफ़ी-जगजीत-मेहदी-ब्रायन एडम्स की आवाजों पर धुंधला जाने वाली ये आँखें, मुल्क के इस सुदूर कोने में फोन पर अपनी दूर-निवासी प्रेयसी की बातें सुन कर भीग जाने वाली आँखें, हर छुट्टी से वापस ड्यूटी पर आते समय माँ के आँसुओं का मुँह फेर कर साथ निभाने वाली ये आँखें---- आश्चर्यजनक रूप से किसी मौत पर आँसु नहीं बहाती हैं। परसों भी नहीं रोयीं, जब अपना ये "यंगस्टर" सीने में तेरह गोलियाँ समोये अपने से ज्यादा फ़िक्र अपने गिरे हुये जवान की जान बचाने के लिये करता हुआ शहीद हो गया।
शौर्य ने एक नया नाम लिया खुद के लिये- ऋषिकेश रमानी । अपना छोटु था वो। उम्र के 25वें पायदान पर खड़ा आपके-हमारे पड़ोस के नुक्कड़ पर रहने वाला बिल्कुल एक आम नौजवान, फर्क बस इतना कि जहाँ उसके साथी आई.आई.टी., मेडिकल्स, कैट के लिये प्रयत्नशील थे, उसने अपने मुल्क के लिये हरी वर्दी पहनने की ठानी। ...और उसका ये मुल्क जब सात समन्दर पार खेल रही अपनी क्रिकेट-टीम की जीत पर जश्न मना रहा था, वो जाबांज बगैर किसी चियरिंग या चियर-लिडर्स के एक अनाम-सी लड़ाई लड़ रहा था। आनेवाले स्वतंत्रता-दिवस पर यही उसका ये मुल्क उसको एक तमगा पकड़ा देगा। आप तब तक बहादुर नहीं हैं, जब तक आप शहीद नहीं हो जाते । कई दिनों से ये "शहीद" शब्द मुझे जाने क्यों मुँह चिढ़ाता-सा नजर आ रहा है...!!! छः महीनों में तीन दोस्तों को खो चुका हूँ...पहले >उन्नी, फिर >मोहित और आज ऋषि ।
सोचा कुछ तस्वीरें दिखा दूँ आप सब को इस unsung hero की, शौर्य के इस नये चेहरे की:-
भारतीय सेना अपने आफिसर्स-कैडर्स पर गर्व करती है, जिन्होंने हमेशा से नेतृत्व का उदाहरण दिया है। स्वतंत्रता के बाद की लड़ी गयी हर लड़ाई का आँकड़ा इस बात की कहानी कहता है... चाहे वो 47 की लड़ाई हो, या 62 का युद्ध या 65 का संग्राम या 71का विजयघोष या फिर 99 का कारगिल और या फिर कश्मीर और उत्तर-पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ़ चल रहा संघर्ष।
हैरान करती है ये बात कि देश के किसी समाचार-पत्र ने ऋषि के इस अद्भुत शौर्य को मुख-पृष्ठ के काबिल भी नहीं समझा...!!!
i salute you, Rushikesh !
और अब लिंक :
http://gautamrajrishi.blogspot.com/2009/07/blog-post_31.html
जय हिंद !!!
पढ़ा था इसे गौतम के ब्लॉग पर. सलाम करता हूँ इनके जज्बे को.
ReplyDeleteनमन मेरा है वीरों को चमन को भी नमन मेरा।
ReplyDeleteसभी प्रहरी जो सीमा पर है उनको भी नमन मेरा।
नहीं लगते हैं क्यों मेले शहीदों की चिताओं पर,
सुमन श्रद्धा के हैं अर्पण उन्हें शत शत नमन मेरा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
स्वप्ना जी, बधाई हो इस बार आपने धाँसू खजाने पर हाथ मारा है. यहाँ आप आँख मूँद के भी चोरी करती तो भी जो हाथ में आता नायब ही होता. आपको आर्श्चय होगा जान कर कि कल सुबह ही मैंने इस पोस्ट को फिर से पढा था और आज कि सुबह को भी आपने संजीदा कर दिया है. मैं जितने भी सलाम करूँ शहीद मेजर रमानी को सब कम होंगे. गौतम जी कि कलम ने ज़िन्दगी को घोल कर स्याही बना रखी है उसी से चमकते हैं शब्द, जो हर पढ़ने वाले को अपने से ही लगते हैं. गौतम राजरिशी एक जिंदा और मुखर इंसान है. आपका फिर से आभार गौतम जी के यहाँ से चुराने के लिए.
ReplyDeleteजय हिंद ...!!
ReplyDeleteइतनी बढ़िया पोस्ट चुराने के लिए आभार ..!!
पढा था गौतम जी के बलाग पर आँखें नम हो गयी थी नमन है उनके तीनो दोस्तों को और बाकी शहीदों को गौतम जे के लिये बहुत बहुत आशेीर्वाद आपका भी धन्यवाद इस सुन्दर पोस्ट के लिये ऐसी चोरी तो रोज़ रोज़ करा करें
ReplyDeleteisi post ke baare main pankaj subeer saab ne bhi apni blog main likha hai, aur unhone bhi kya khoob likha hai:
ReplyDeletehttp://subeerin.blogspot.com/search?updated-max=2009-07-29T07:53:00%2B05:30&max-results=1
p.s.:chori main main bhi kahin na kahin shaamil hoon....
...nikal leta hoon patli gali se !!
asha karta hoon ki di aap ne jo moderater laga rakha hai uske wajh se aap mera comment post nahi karengi or kisi ko mere uppar shque nahi hoga... (haha...)
o betaaaaaaaaa....
ReplyDeletemoderator hata diya !!
जय हिंद ...!!
ReplyDeleteइतनी बढ़िया पोस्ट चुराने के लिए धन्यवाद....
जय हिंद.....
"शौर्य ने एक नया नाम लिया खुद के लिये- ऋषिकेश रमानी । अपना छोटु था वो। उम्र के 25वें पायदान पर खड़ा आपके-हमारे पड़ोस के नुक्कड़ पर रहने वाला बिल्कुल एक आम नौजवान, फर्क बस इतना कि जहाँ उसके साथी आई.आई.टी., मेडिकल्स, कैट के लिये प्रयत्नशील थे, उसने अपने मुल्क के लिये हरी वर्दी पहनने की ठानी।.... "
ReplyDeleteहम लोग तो बस उस वीर को सलाम ही कर सकते है ! मगर फिर वही पुराने सवाल दिल में तूफ़ान मचा देते है ! अभी कुछ सप्ताह पूर्व एक रिपोर्ट पढ रहा था, शीर्षक था; “सेना के तीनो अंगो में अधिकारियो की अभूतपूर्व कमी” वो एक कहावत है कि 'जब जागे तभी सबेरा' ! रक्षा सम्बंधित सभी हल्कों में वर्षो से यह चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ है कि देश में सेना के प्रति युवाओ में उत्साह निरंतर कम होता जा रहा है और जो अधिकारी सेना में हैं भी, वे समय से बहुत पहले ही स्वेच्छा से सेवानिवृत हो जा रहे है! और जिसका परिणाम है सेना में अधिकारियो की अभूतपूर्व कमी! और यह बात फिर से उजागर हुई, नई दिल्ली में जारी रक्षा सम्बन्धी संसदीय समिति की रिपोर्ट में ! सेना में अधिकारियो की अभूतपूर्व कमी से परेशान एक संसदीय समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि वह एक योजनाबद्ध ढंग से तुंरत कारवाही कर इस ओर ध्यान दे, और इससे सम्बंधित विसंगतियों और कमियों को तत्काल दूर करे !
इस अभूतपूर्व कमी के कई कारण और खामिया समिति ने गिनाई है जिनमे से कुछ है ; युवाओ द्वारा सैन्य कैरियर को कम प्राथमिकता, चयन सम्बन्धी प्रक्रिया का कठोर होना और चयन तथा पदोन्नति का निष्पक्ष और पारदर्शी न होना ! लेकिन इसके साथ ही मेरा मानना यह भी है कि देश और समाज में पनपती बहुत सी ऐंसी विसंगतिया भी इसका प्रमुख कारण है जो एक होनहार युवा शक्ति को सेना की ओर आकर्षित करने में अक्षम है !
जैसा कि अभी कुछ समय पहले रक्षा मंत्री ने ख़ुद ही स्वीकार किया कि हमारे सैन्य बल भारी मात्रा में सैन्य सामान की कमी से जूझ रहे है ! जो है भी, वह भी भ्रष्ट राजनीती और नौकर शाही के चलते घटिया दर्जे का है ! अब सवाल उठता है कि ५ साल तक सत्ता में रहने के बाद हमारे ये लोकतंत्र के ठेकेदार इसकेलिए एक दूसरे पर दोष मढ़ रहे है, तो यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी थी ?
हम अपने रक्षा बजट में तो हर साल बड़ी-बड़ी रकम सेना और सैनिक साजो-सामान के लिए प्रावधान करते है लेकिन हकीकत में उसका कितना प्रतिशत उस कार्य में खर्ज कर पाते है, वह ज्यादा शोचनीय विषय है! यह कह देना कि युद्ध छेड़ दो, बहुत आसान है ! लेकिन कभी यह सोचा कि इस युद्ध को लड़ने के लिए हमारे सैनिको के पास प्रयाप्त मात्र में उन्नत हथियार और साजो-सामान मौजूद है भी या नहीं ! चंद मिसाइले बना लेने भरसे हर युद्ध जीता नहीं जा सकता, अगर ऐसा होता तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली कहलाने वाला देश इतने सालो से अफगानिस्तान में आज भी इस तरह झक क्यों मार रहा होता ?
ऐसे ही उत्तराखंड के अपने एक करीबी जानकार की कहानी यहाँ याद आ रही है, जिनका पिछले दिसम्बर में निधन हो गया ! उनके पति भारतीय सेना में थे और अक्तूबर १९८७ में श्रीलंका में एलटीटीइ के साथ संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हो गए थे ! तब इनकी शादी हुए मुश्किल से दो साल ही हुए थे ! बेटा जो कि अब खुद भी सेना में है, तब माँ के पेट में ही था! उस माँ ने दुनिया के सारे दुःख तकलीफे झेलते हुए इस बेटे को जन्म दिया, इसकी परवरिश की, पढाया लिखाया और जब बेटा अठारह-बीस साल का हुआ तो खुसी-खुसी उसे भी सेना में भेज दिया! अभी दिसम्बर में जब उन्होंने प्राण त्यागे तो अपने युवाकाल में पति की कुर्वानी दे चुकी वह अबला, इसी चिंता के साथ मरी कि बेटा भी फौज में है, और २६/११ के बाद देश में युद्ध के बादल घुमड़ रहे है, न जाने उसके पीछे बेटे का क्या हो ? हम बड़ी आसानी से घर में बैठकर कह देते है कि पाकिस्तान पर अटैक कर देना चाहिए, मै यह कदापि नही कह रहा कि देश के सम्मान और अपने आत्मसम्मान को हमे छोड देना चाहिये, मगर क्या कभी आपने ईमान्दारी से सोचा कि हम उस आक्रमण के लिये क्या योगदान देने जा रहे है? उन माँ-बाप के दिलो पर क्या बीतती होगी जिनका इकलौता बेटा फौज में है ? अगर उनके बेटे को युद्द के मोर्चे पर कुछ हो जाता है तो हम उन असहाय मा-बाप के लिये क्या करते है, जिनका बुढापे का सहारा देश पर कुर्बान हो गया ? क्या चंद रूपये और तकमे ही इनकी कुर्बानियों की कीमत है ?
लम्बी टिपण्णी के लिए क्षमा !
वंदे मातरम, वंदे मातरम,
ReplyDeleteवंदे मातरम, वंदे मातरम
मातरम, वंदे
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
सस्य श्यामलां मातरंम् .
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम्॥
कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम्॥
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे॥
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम्॥
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम्॥
बहुत पसंद आया
ReplyDelete---
'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
main tareef karne baithungi,to shabd kam honge major ke liye,unhe to bahut aage jana hai.......
ReplyDeletevery good ADA ji
ReplyDeleteबढिया पोस्ट के लिए आभार।
ReplyDeleteHaardik नमन.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
ऋशिकेष की यादों को जिंदा बनाये रखने के लिये आपको सलाम करता हूँ, मैम...
ReplyDeleteएक प्यारी-सी लड़की है दूर कही बैठी हुई जो खुल कर शोक भी नहीं मना सकती है...वो भी आपको शुक्रिया कह रही है...
मेजर साहब,
ReplyDeleteये आपका बड़पपन है कि आप शुक्रिया कहने आये, लेकिन आपके शुक्रिया के लायक मैंने कोई काम नहीं किया है, बल्कि मैं नत-मस्तक हूँ आपकी हर बात के आगे, शुक्रिया मेरा स्वीकार करें, आपकी ग़ज़लों के लिए, नज्मों के लिए, कहानियों के लिए और सबसे बढ कर हमारे देश के प्रहरी होने के लिए.....
अगर आप स्वीकार कर लेंगे तो कम से कम हम दोषी होने के अहसास से थोडा सा बच जायेंगे...
और उनके भी ऋणी हैं हम सब जिनका ज़िक्र आपने किया, उनके आगे तो सिर्फ हाथ ही जोड़ पायेंगे हम..
ह्रदय से आभारी हैं...
जय हिंद ! !
आपने क्या चुराया है अदा जी...?
ReplyDeleteकुछ भी नहीं..
सब कुछ तो ज्यों का त्यों है मेरे पास...या बोले तो सभी के पास.....
ये भी तो मेरे kaleje का tukdaa ही है.
darpan की raeh..