ख्याल आते रहे
सोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही
इशारों को कैसे
जुबां दे दें हम
मोहब्बत बच जाए
दुआ निकलती रही
रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
रूह थी वो मेरी
लहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
बेवजह तुम
क्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
बेवजह तुम
ReplyDeleteक्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
====
बेहतरीन रचना. अद्भुत बिम्बो ने चार चाँद लगाया है.
खास तौर पर
पत्थर की इक नदी
गुजरती रही
वाह क्या कहने
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुजरती रही
bahut khaubsurat kavita hai....amarjeet kaunke
अदाजी
ReplyDeleteवाह!क्या अदा है! मान गऐ जी,आपकी कलम से निकलने वाले एक एक शब्द मे वो जान है की पढते पढते विचारो मे बेसुध भाव से खो जाना हम पाठको के लिए आसान हो गया। आपकी कलम से कमाल के शब्दो का उदगम होता है।
शायद इतना गहराई से लिखने के लिए अपने आपको पात्रता मे जीना पडता होगा ।
सुन्दर एवम बेहतरीन कविता पाठ के लिऐ आपको खुब खुब बघाई।
आभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
कम शब्द...गहरी बातें
ReplyDeleteयूं ही आते रहे ख़याल ...शुभकामनायें ..!!
ReplyDeletewaah !
ReplyDeleteरूह थी वो मेरी
ReplyDeleteलहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
wow di !!!
you always write awesome but this is the best line from all of ur creation....
...marvellous, awesome !!
di mujhe bahut bahut pasand aaiye ye line. aur mera chor man jo soya tha jaag utha hai.
Aur itni "MOTI MOTI :) " baatein ?
chori to karni hi padegi....
once again awesome.
and when i say i mean it.
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
अदभुत रचना..ठगा सा बार बार पढ रहा हूं.
रामराम.
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
waah ! ada ji, waah, in panktiyon ka jawab nahi hai koi. aapki kalam ki sabse teekhi dhaar hai ye. itni khoobsurat hain ye panktiyan ke mere paas shabd nahi hai tareef keliye. bas aap samajh lijiyega.
प्यार के किसी वैकल्पिक स्रोत की चाह के बिना भी कविता अपने भीतर के द्वंद को उकेरती है. शब्दों की आसानियाँ भी कविता के प्रभाव को रोचक करती है. आपने बहुत अच्छा लिखा है, पसंदआया.
ReplyDeleteरूह थी वो मेरी
ReplyDeleteलहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
"यूँ हीं.." kuch kuch 'Ada' is ada se likhti rahi..
uski yeh rachna kabhi dil ko, to kabhi rooh ko chhuti gayi...
-Sheena
Good morning,
ReplyDeleteIt is one of the finest creations of yours!
Amazing meaning, fantastic lyrics & emotionally dipped in true feelings!
Take care! Nice day!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
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ReplyDeleteहर शब्द के एक-एक अक्षर में सरस्वती की कृपा है आप पर आपा। काश ऐसा हमारे साथ भी होता....
ReplyDeleteबेवजह तुम
ReplyDeleteक्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
BEHTAREEN
swapana ji , bahit hi sundar prem kavita ... aapne bahut hi acchi tarah se express kiya hai ...apni bhaavnaao ko .. badhai sweekar kare...
ReplyDeletenamaskar.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
अदा जी,बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteरेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
कम लफ्जों में सुन्दर अभिव्यक्ति ..बहुत पसंद आई यह शुक्रिया
बेहतरीन रचना है बहुत पसंद आयी
ReplyDeleteआईना तो वो
ReplyDeleteसीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
bahut hi sunder bhav
आईना तो वो
ReplyDeleteसीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
KYA LAJAWAAB AUR KHOOBSOORAT BHAAV HAIN IS RACHNA MEIN.... SHABD NEHI HAI KUCH KAHNE KO
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
बहुत खूब !क्या बात कही है .
Aap kee rachnaon pe main kabhee kuchh comment de nahee saktee!
ReplyDeletehttp:/shamasansmaran.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
auraten kuchh bhee likh de to aadmi vaah vaah karte hee hen.
ReplyDeletewah wah rachna ji kya likha hai aapne.....
ReplyDelete:)
beside joke....
......
परमजीत बाली
रंजना [रंजू भाटिया]
अर्शिया अली
....are all female, that i can tell you for sure with my 27 years of experience.
मियाँ दर्पण,,
ReplyDeleteअगर आपसे पहले मेरा कमेन्ट होता तो...?
मुझे भी आप वाह-वाह लिखते..?
और ये अनाम जी ने पाहिले ऐसा क्या लिखा था जो डिलीट हो गया..
ReplyDeleteऔर ये वाला तो नहीं हुआ...जिसका आपको पता था के हो जाएगा....
शायद कुछ बहुत बेकार लिखा होगा ....
है ना अनाम जी..?
आईना तो वो
ReplyDeleteसीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही |
ये कविता ' यूँ ही ' नहीं लिखी है, गहरी सोच है इसमें |
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ReplyDeletekya bat hai
ReplyDeletebhaut dil ke kreeb lagi ye rcahna
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ReplyDeletelily......
ReplyDeletemaine tumhare liye 'ye' zarror nahi likha par har roz ek nahi nazm likhta hoon....
...Tumhare liye !!
sirf Tumhare lye.
ada ji,
ReplyDeleteरेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
behad khoobsurat khyal.hairan hun men padh kar, aap aise likh kaise lete ho ?????
badhai.
कमाल की रचना है, अदा जी,
ReplyDelete"कैसे कह देते हो बात इतनी बडी,
एक सरमाया दर्द का छुपाया होगा."
are baap re gazal ???
ReplyDeleteख्याल आते रहे
सोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही
ye theek hain
इशारों को कैसे
जुबां दे दें हम
मोहब्बत बच जाए
दुआ निकलती रही
ye kya hai ???? tell tell ???
रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
bahut sundar hai, accha hai
parantu, kyon hai ????
रूह थी वो मेरी
लहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
ye bhi sundar hai lekin kyon sundar hai ?
बेवजह तुम
क्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
matlab kya hai tera ?
आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
isko ulta kar.
jawaab chahiye
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही...
adaji, aap lajavab likhati he.. hna
mujhe is chaar panktiyo ne khasa prabhavit kiya aour me daad deta hu ki aapne behichak in panktiyo ka istmaal kiya...kyoki jin shbdo ka upyog kiya he vo apane aap me virodhabhaas liye hue he// kisi rachna me esa upayog kam dekhane me aataa he/
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
वाह...गागर में सागर भर दिया आपने.....आपकी लेखनी मन मोह रही है.....अदा जी.....अद्भुत |
रेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुजरती रही
ada ji,
geeta ji ki baat bikul sahi. pahli bar aya hun apke blog par, mugdh ho gaya.
बेवजह तुम
ReplyDeleteक्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
OMG!!!!!!!! wat a lines ........ m tychd to d core f ma haaaaaaaart..... u know ....... I wish I kud be u....... I really want to be a writer as u r...... u r a pearl among the stones...... main ........ likhne ke andaaz aur use of syllables aur words se bahut hi impressed hoon......
main highly obliged hoon ki mujhe aapki itni achchi rachna padhne ko mili........
Bubye n TC
1ce agn thnx fo sharing,........
A+++++++++++++
Regards..........
You write so well!
ReplyDeleteI saw on utube- listening to you recite your poems!
Wow...
I think I must have gone back dozens of times to listen to you again.
Aap bahut gifted hein! :) WOW...
aapki is rachna ke aage main nat mastak ho gaya hun ada ji. mere paas koi shabd nahi hain iski tareef mein hairan hun ki aapse ab main kya kahun.
ReplyDeleteरेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
mere shabd maun ho gaye hain.