काँच के रिश्तों
का टकराना
टूटना,
और दूरियाँ, बढ़ जाना
न जाने
ये सिलसिला
कब रुकेगा
शायद तब
जब
रिश्ते
टूट जायेंगे
फिर, इतने काँच हम कैसे
समेट पायेंगे ?
कोई न कोई तो चुभेगा
और
तब !
एक रिश्ता बनेगा
जिसमें
दरार होगी
और यकीन मिट
जाएगा
रिश्ता
शक़ में लिपट
जाएगा !
सच जब रिश्ते टूटते हैं तो वो दिल को चुभ जाते हैं.. तब उनसे रिसता है दर्द और कहलाते हैं 'दर्द के रिश्ते'..सुंदर रचना
ReplyDeletebahut sundar rachna sacchai darsaati hai.
ReplyDelete....क्या बात है...!! अरे गज़ब....इक टूटे हुए कांच की बिना पर आपने कितनी बड़ी इतनी सहजता से कह दी.....क्या बात है....क्या "अदा"है....!!
ReplyDeleteजब रिश्ते टूट जाएँगे
ReplyDeleteफिर,इतने काँच हम कैसे
समेट पाएँगे ?
कोई न कोई तो चुभेगा
और तब !
एक रिश्ता बनेगा
जिसमें
कोई दरार न होगी ....
क्योंकि -
इस रिश्ते का कोई नाम न होगा
जो होगा
लेकिन यकीन की जरूरत न होगी
और शक की गुंजाइश न होगी
क्योंकि यह रिश्ता सांसों सा अपना होगा
यह रिश्ता सीधा अस्तित्व से उपजेगा
और सब रहस्यों के द्वार खोलेगा !!!!
kya baat hai 'ada' ji kamal ka likhti hai aap.
ReplyDeleteफिर, इतने काँच हम कैसे
समेट पायेंगे ?
कोई न कोई तो चुभेगा
और
तब !
aapki abhivyakti lajwaab.
padh kar hi kuch mahsoos ho jata hai.
badhai.
रिश्तो के दर्द को आपकी कलम का सहारा मिला, शायद अब ये टूटने से बच जाये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
वाह
रिश्ते कांच के हों तो टूटना लाजिमी है ...मजबूत होने चाहिए ना..फेविकोल के जोड़ के तरह ..!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...बधाई...!!
लगता है आजकल रिश्ते भी कांच के होते जारहे हैं. बिल्कुल उसी तरह टूटते हैं जोरदार आवाज के साथ.
ReplyDeleteरामराम.
वाह कमाल की,बात कही है आपने सुन्दर शब्दों और भावनाओ के साथ.
ReplyDeleteदरअसल रिश्ते हमारे ख्याबों के प्रतिबिम्ब ही तो हैं.
और ख्याबों के बारे में कहें तो ये के:
"ख्याब शीशे के हैं, किर्चों के सिवा क्या देगें,
टूट जायेंगें तो, ज़ख्मों के सिवा क्या देगें"
"सच में" पर सुन्दर comments के लिये धन्यवाद!
kaanch ke rishtey hain to sambhalna hi padega varna to tootenge hi ,bikhrenge hi....phir sametne mein kab aaye hain ye rishtey.
ReplyDeletebahut bahiya prastuti....badhayi
रिश्ते के मिट जाने से भी खतरनाक है रिश्ते में शक का समाहित हो जाना
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है सादगी के साथ.
बेहद खूबसूरत रचना । आभार ।
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