Saturday, August 22, 2009
बोलते पत्थर ........(एक नज़्म चोरी की) भाग -२
हरकीरत हकीर......
नाम बोलो तो लगता है कुछ बोला है.....
रचनाएँ पढो तो लगता है कुछ पढ़ा....
तस्वीर देखो तो लगता हैं कुछ देखा .......
और चोरी करो तो लगा कि कुछ चुराया......
यकीन कीजिये यहाँ से चुराने के लिए सोचना भी कित्ता खतरनाक था आप सोच भी नहीं सकते......अरे दूसरी जगहों से तो चुराना मेरे लिए ऐसे था जैसे.....अपने ड्रेसिंग टेबल पर जाना और काज़ल लगाना..... लोग अगर नाराज़ भी होते न तो हम सम्हाल लेते.....कैसे ???? अरे Experience,,,, confidence !!!!!
लेकिन ये मामला थोड़ा टेढा है.....आपलोग समझ रहे हैं न.....अब क्या हैं अच्छी चीज़ें हमेशा कुर्बानियां लेतीं ही रहतीं हैं, शायद इस खूबसूरत रचना को भी ज़रूरत थी एक कुर्बानी की ...तो भाई मैं हाज़िर हो गई.... अब अगर कोई ऐसी-वैसी बात हो गयी और मुझे कुछ हो गया तो कृपया १ मिनट का मौन ज़रूर रखियेगा....
हरकीरत जी का परिचय उनकी जुबानी...
क्या कहूँ अपने बारे में...? ऐसा कुछ बताने लायक है ही नहीं बस - इक-दर्द था सीने में,जिसे लफ्जों में पिरोती रही दिल में दहकते अंगारे लिए, मैं जिंदगी की सीढि़याँ चढती रही कुछ माजियों की कतरने थीं, कुछ रातों की बेकसी जख्मो के टांके मैं रातों को सीती रही। ('इक-दर्द' से संकलित)
और अब पढिये एक नायब कृति, जिसे अनगिनत लोगों ने सराहा है......और आज एक बार फिर मौका मिल रहा है पढने का और सराहने का......
(१)
बोलते पत्थर ........
जब कभी छूती हूँ मैं
इन बेजां पत्थरों को
बोलने लगते हैं
ज़िन्दगी की अदालत में
थके- हारे ये पत्थर
भयग्रसित
मेरी पनाह में आकर
टूटते चले गए
बोले......
कभी धर्म के नाम पर
कभी जातीयता के नाम पर
कभी प्रांतीयता के नाम पर
कभी ज़र,जोरू, जमीन के नाम पर
हम ..............
सैंकडों चीखें अपने भीतर
दबाये बैठे हैं ........!!
(२)
मन्दिर मस्जिद विवाद ....
वह ....
कुछ कहना चाह रहा था
मैंने झुक कर
उसकी आवाज़ सुनी
वह कराहते हुए धीमें से बोला......
मैं तो बरसों से चुपचाप
इन दीवारों का बोझ
अपने कन्धों पर
ढो रहा था
फ़िर......
मुझे क्यों तोड़ा गया ....?
मैंने एक ठंडी आह भरी
और बोली, मित्र .......
अब तेरे नाम के साथ
इक और नाम जुड़ गया था
'मन्दिर' होने का नाम ......!!
(३)
भ्रूण हत्या ......
मन्दिर में आसन्न भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
तुम क्यों यूँ मौन बैठे हो......??
वह बोला .......
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
(४)
आतंक के बाद ......
सड़क के बीचो- बीच
पड़े कुछ पत्थरों ने ...
मुझे हाथ के इशारे से रोका
और कराहते हुए बोले.....
हमें जरा किनारे तक छोड़ दो मित्र
मैंने देखा .....
उनके माथे से
खून रिस रहा था
मैंने पूछा ....
'तुम्हारी ये हालत....?'
वे आह भर कर बोले .....
तुम इंसानों के किए गुनाह ही
इन माथों से बहते हैं .....!!
हरकीरत जी के लिए... .
यह रचना साभार निम्नलिखित लिंक से ली गयी है.....
http://harkirathaqeer.blogspot.com/
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lagta hai payrol pe bhi badmashiyaan khatm nahi hongi....
ReplyDelete...abhi fir 'giraftaar' karta hoon aapko 'hirasat' main leta hoon...
"और बोली, मित्र .......
अब तेरे नाम के साथ
इक और नाम जुड़ गया था
'मन्दिर' होने का नाम ......!!"
wah ispe to harkarit ji ke paas jaake bhi comment kar aaya...
to ye baat hai...
...miss robin hood ..
janta ka janta dwara janta ke liye...
...blog poora 'loktantrik' hai.
शुक्र है.....................
ReplyDeleteके आपने नाम के साथ छापी है जी...'
वरना आपकी ऐसी वाट लगती के...
आपको नानी याद आ जाती..........
oye.......
ReplyDeletedarpan bhi...!!!!
आदरणीय मनु जी,
ReplyDeleteमैं तो :
नज़म, ग़ज़ल सब है तेरा..
भईया सब कुछ है तेरा
बहिनी सब कुछ है तेरा
तेरा तुझको अर्पण क्या जावे मेरा
अच्छा किया कि नाम क्रेडिट दे दिया. और भी अच्छा किया होगा यदि उनसे ईमेल द्वारा अनुमति ले ली होगी. नाम का क्रेडिट, लिंक एवं यदि संभव हो तो, अनुमति लेना ही किसी और की रचना के पुनर्प्रकाशन की स्वस्थ परम्परा है.
ReplyDeleteइस बारे में मैने कुछ दिन पूर्व ताऊ पत्रिका में भी लिखा था.
यहाँ पढ़िये:
http://taau.taau.in/2009/07/29_06.html
आशा है अन्यथा नहीं लेंगी.
हरकीरत जी तो एक बेहतरीन नज़्मकारा हैं ही.
ये चोरनी बड़ी दिलदार और चतुर है ...चोरी भी कर ले और चोर भी न कहलाये
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें ..!!
वाकई इन नज़्मो को पढकर लगता है कि कुछ पढा है.
ReplyDeleteसुन्दर-
ReplyDeleteबहुत आभार.
श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामनाएं-
आपका शुभ हो, मंगल हो, कल्याण हो |
कृपया ये लिंक भी देख लें-
http://bhartimayank.blogspot.com/2009/08/blog-post_22.html
श्री गणेशाय नमः
ReplyDeleteतस्वीर देखो तो लगता हैं कुछ देखा .......
ReplyDeleteऔर चोरी करो तो लगा कि कुछ चुराया......
इस जर्रा नवाजी का शुक्रिया अदा जी .....हालांकि ..ये नाम मुझे जरा भी पसंद नहीं ...!!
और ये मेरी रचनायें चुरा कर जो आपने मुझे सम्मान दिया मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ....वो भी खुद एक हुनरमंद स्त्री से.....जिसमें मुझ से कई गुना ज्यादा प्रतिभा है ...!
मनु जी के कान खिंचियेगा जिन्होंने मुझे फोन कर इतना भड़का दिया की तुंरत चली आई ...
और ये ....नज़्म चोरी भाग - २ का क्या मतलब है ....??
" नज़म, ग़ज़ल सब है तेरा.. " ....हा...हा...हा...ये ग़ज़ल कौन सी मेरे नाम कर दी .......???
अदा जी इसे चोरी नहीं कहते ....और आपने शुरुआत में जो भूमिका बांधी है उसे पढ़ कर तो चेहरे पर मुस्कराहट खेल गयी ...आपकी दिलेरी की दाद देती हूँ ...चोर हो तो आप जैसा .....!!
lo ji ab to aapko harkirat ji ki bhi sahmati mil gayi ...........licence mil gaya hai phir dar kahe ka..........maje se chori kijiye aur hamein aise hi padhwate rahiye.
ReplyDeleteअदा जी
ReplyDeleteआपने एक चोरी की नज्म से
कितने काम एक साथ कर दिए
एक अच्छी नज्म पढ़ने को मिली
एक अच्छे ब्लॉग से परिचित करा दिया
एक अच्छी अदाकारा से मिलवा दिया
.... कहीं जलन तो नहीं हो रही ?
धन्यवाद !!!
आपकी यह अदा भी हमें पसंद आई ।
हरकीरत जी,
ReplyDeleteजान-बख्शी के लिए शुक्रिया....
नज़्म की चोरी भाग-२, से मेरा तात्पर्य था नज्म की चोरी ऐसी दूसरी बार हुई है, इसके पहले दर्पण नाम के शक्श ये काम कर चूका है.....और मनु जी आपको इस लिए भी भड़का रहे थे क्योंकि पहलेचोरी हुई नज़्म उनकी थी और चुराने वाला मेरा छोटा भाई..अब आप देख रहीं हैं न उनका कितना सोचा समझा प्लान था और आपके काँधे पर बन्दूक रख कर मनु जी किस पर निशाना लगा रहे थे, अच्छा हुआ आपने उनकी बात नहीं मानी....मुझे तो वैसे भी वो कुछ ठीक नहीं लगते हैं....sssshhhhh
दूसरा बात....मैं आपके नाम कहाँ कोई ग़ज़ल कर पाउंगी....क्योंकि ग़ज़ल मैं लिख ही नहीं पाई हूँ ....आज तक....जो लिखा है सारी की सारी बे-बहर उसमें आप फिट नहीं होंगी.......और सब दूसरी प्रजाति के लिए हैं.....हाहाहाहाहाहा
लेकिन रफी साहब की गाई हुई एक ग़ज़ल आपके लिए गा रही हूँ......सुनियेगा ज़रूर......हाँ इसे सुन कर लोग हमें शक की नज़र से देख सकते हैं....लेकिन आप साफ़-साफ़ सारा इल्जाम मुझ पर डाल कर किनारे हो जाइयेगा.....
मनु जी के कान खिंचियेगा जिन्होंने मुझे फोन कर इतना भड़का दिया की तुंरत चली आई ...
ReplyDelete:(:(
अब आप देख रहीं हैं न उनका कितना सोचा समझा प्लान था और आपके काँधे पर बन्दूक रख कर मनु जी किस पर निशाना लगा रहे थे, अच्छा हुआ आपने उनकी बात नहीं मानी....मुझे तो वैसे भी वो कुछ ठीक नहीं लगते हैं...sssshhhhh
:( :( :( :(
heeyaan ye mil ID aur pass word maangat hai....
aur huwaan binaa-jaane bhoojhe chhap diyaa hamraa comment.....!!!!!
:(:(:(:(:(:(:(:(
भारती जी,
ReplyDeleteजलना हम औरतों का गहना है....हम न जलें तो दुनिया से सारी रौनक ही न चली जावेगी !!!!!!
ये क्या हो रहा है....??ये क्या हो रहा है....??ये क्या हो रहा है....??ये क्या हो रहा है....??.....चोर और साहूकार सब मिलकर दिवाली मना रहें हैं क्या.....??और मज़ा यह कि पुलिस आदि यानि दर्शक पाठक और श्रोता आदि सब के सब मस्ती मार रहें हैं.....!!!
ReplyDeleteबहुत ही स्वीट चोरी करती हैं मेरी आपा...उम्दा..बहुत अच्चा लगा
ReplyDeleteस्वप्न मंजूषा शैलजी जी
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
प्रज्ञा को भी जन्मदिन की बधाई।
हेपी बर्थ डे!!!!
आप जीयो हजारो साल, साल के दिन हो पचास ह्जार!!!
अभार/मगलकामनाओ सहीत
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
खमत खामणा का महत्व