Saturday, August 1, 2009
चोर के घर डाका
मेरी नज़र में हिंदी ब्लॉग जगत की एक खूबसूरत कविता.
जिसे मैं हर दिन पढ़ती हूँ.... जब भी पढ़ती हूँ तो लगता है पूरा जीवन शुरू से जी गयी हूँ...
और यह काम मैं हर रोज़ करती हूँ....चुपके से....
लेकिन अफ़सोस की बात इस कविता का मालिक एक चोर है, वो कहीं से कुछ भी चुरा लाता है और छाप भी देता है ..
उसपर से कहता भी है 'आप को बुरा भी लगा हो तब भी मैं हटाने वाला तो हूँ नहीं' ह्न्म्म्म्म्म ......
हमने भी सोचा बच्चू को कुछ सबक सिखाया ही जाए...फिर क्या था उस चोर की 'ब्रांड नेम' कविता हम चुरा लाये हैं,.....चोर के घर डाका हा...हा..हा...हा... अभी तक तो सोया हुआ है कल जब उठेगा तो कितना रोयेगा.......
उसे भी तो पता चले कि वो अगर सेर है तो मैं २ सेर हूँ उसकी दीदी....
कहते हैं चोरी की हुई हर चीज़ ज्यादा अच्छी लगती है.... आपने उस चोर के ब्लॉग पर ये कविता पढ़ी है अब मेरे ब्लॉग पर यह कविता कैसी लग रही है जारा बताइयेगा.......उसके ब्लॉग से बेहतर है न ?????
तो ये रही वो बेहद खूबसूरत कविता जो आपका भी मन मोह लेगी, मेरा विश्वास कीजिये... साथ ही यह भी बताइयेगा मेरी हाथ की सफाई आपको कैसी लगी...क्योंकि किसी दिन आपके भी ब्लॉग पर मैं हाथ साफ़ कर सकती हूँ....अगर किसी को एतराज़ हो तो अभी ही बता दीजियेगा...बाद में हमको दोष मत दीजियेगा...
कवि : दर्पण शाह 'दर्शन'
संदूक
आज फ़िर,
उस कोने में पड़े,
धूल लगे को,
हाथों से झाड़ा,
तो...
धूल आंखों में चुभ गई।
संदूक का,
कोई नाम नहीं होता...
...पर इस संदूक में,
एक खुरचा सा नाम था,
सफ़ेद पेंट से लिखा।
तुम्हारा था या मेरा,
पढ़ा नही जाता है अब।
खोल के देखा उसे,
ऊपर से ही,
बेतरतीब,
पड़ी थी...
'ज़िन्दगी'।
मुझे याद है......
...माँ ने,
'उपहार' में दी थी।
पहली बार देखी थी,
तो लगता था,
कितनी छोटी है।
पर आज भी ,
जब पहन के देखता हूँ...
बड़ी ही लगती है,
शायद...
...कभी फिट आ जाए।
नीचे उसके...
तह करके...
सलीके से...
रखा हुआ है,
...'बचपन' ।
उसकी जेबों में देखा,
अब भी,
तितलियों के पंक ,
कागज़ के रंग,
कुछ कंचे ,
उलझा हुआ मंझा,
और,
...और न जाने क्या क्या ?
कपड़े,
छोटे होते थे बचपन में,
जेब बड़ी.
कितने ज़तन से,
...मेरे पिताजी ने, मुझे,
ये 'इमानदारी' सी के दी थी ।
बिल्कुल मेरे नाप की ।
बड़े लंबे समय तक पहनी।
और कई बार...
लगाये इसमे पायबंद ,
...कभी मुफलिसी के,
और कभी बेचारगी के,
पर,
इसकी सिलाई उधड गई थी,
...एक दिन।
जब,
भूख का खूंटा लगा इसमे।
उसको हटाया,
...नीचे,
पड़ी हुई थी 'जवानी',
उसका रंग...
उड़ गया था, समय के साथ साथ।
'गुलाबी' हुआ करती थी ये....
अब पता नही...
कौनसा नया रंग हो गया है?
बगल में ही पड़ी हुई थी
'आवारगी',
....उसमें से,
अब भी,
शराब की बू आती है।
४-५ सफ़ेद,
गोल,
खुशियों की 'गोलियाँ',
डाली तो थीं,
संदूक में,
पर वो खुशियाँ...
.... उड़ गई शायद।
याद है...
जब तुम्हारे साथ,
मेले में गया था,
एक जोड़ी वफाएं,
...खरीद ली थी।
तुम्हारे ऊपर तो पता नहीं,
पर मुझपे ये अच्छी नही लगती।
और फ़िर...
इनका 'Fashion' भी,
...नहीं रहा।
'Joker' जैसा लगूंगा...
इसको लपेटकर।
...और ये शायद...
'मुस्कान' है।
तुम, कहती थी न....
जब मैं,
इसे पहनता हूँ,
अच्छा लगता हूँ।
इसमें भी,
दाग लग गए थे,
दूसरे कपडों के।
हाँ...
...इसको,
'जमाने' और 'जिम्मेदारियों'
के बीच....
रख दिया था ना ।
तब से पेहेनना छोड़ दी।
अरे...
ये रहा,
'तुम्हारा प्यार'।
'valentine day' में,
दिया था तुमने।
दो ही महीने चला था,
हर धुलाई में,
सिकुड़ जाता था।
खारा पानी...
...ख़राब होता है,
इसके लिए,
भाभी ने बताया भी था,
...पर आखें,
...आँखें ये न जानती थी।
चलोssssss....
........
बंद कर देता हूँ,
सोच के...
जैसे ही संदूक रखा,
देखा,
यादें तो,
बाहर ही छूट गई,
बिल्कुल धवल,
Fitting भी बिल्कुल सही
...लगता था,
आज के लिए ही,
खरीदी थी
us 'वक्त' के बजाज से जैसे,
कुछ लम्हों की...
कौडियाँ देकर
चलो,
आज फिर,
इसे ही...
पहन लेता हूँ !
अब जो भी टिपण्णी करें 'दर्पण शाह 'दर्शन' जी की कविता के लिए और 'मयंक शैल' की चित्रकारी के लिए करें, मैंने तो सिर्फ चोरी की है...एक बेहद खूबसूरत कविता की...
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चोर के घर डाका
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हिहिहिही....
ReplyDeleteहोहोहोहोहोहोहोहो.....
बड़ी मेरी नज़्म और मेरे कमेन्ट चुराते थे बच्चू....
आज आया है ऊँट पहाड़ के नीचे......
अदा जी आप बहुत जल्दी जल्दी पोस्ट करती हैं...अभी ज़रा ठहर के कीजियेगा....
ये फोटो देख-देख कर जैसे खिचडी में घी जैसा डल रहा है...
वाह,,वाह,,वाह,,,
मयंक बेटे को बधाई दीजियेगा,,,
चोरी और सीनाजोरी ...अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे
ReplyDeleteहा हा हा ..बहुत मजा आया ..!!
बहुत बढिया चोरी !
ReplyDeleteये डकैती भी खूब रही मगर चोरी की एफ आई आर की कॉपी मय लिंक तो देना चाहिये थी...कहाँ कब क्या चोरी हुआ जो डकैती अन्जाम दी गई...फिर तह में जा खबर ली जाती. :)
ReplyDeleteतो यही दुआ है कि आप ऐसी चोरी रोज़-रोज़ करें...
ReplyDeleteसुन्दर कविता पढवाने के लिए बहुत-बहुत आभार
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteJuly 26, 2009 10:12 PM
ReplyDeleteदर्पण साह "दर्शन" said...
aapki ye ghazal apne blog ke lates post main bhi daal di hai chori karke,
aasha hai kshama karienge aur nahi bhi karein to bhi post se hatane wala to main hoon nahi.
July 26, 2009 10:12 PM
इ रहा इकबाल-ए-जुर्म सरकार...
और इ रहा लिंक माई बाप:
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2009/07/blog-post_5560.html
हुजूर आप ही बताइए अब हम जो किये उ ठीक किये की नहीं किये...
वाह...!
ReplyDeleteखूब नहले पे दहला मारा है।
बड़ी मेरी नज़्म और मेरे कमेन्ट चुराते थे बच्चू....
आज आया है ऊँट पहाड़ के नीचे......
बधाई!
आपने चोरी नहीं की है, बल्कि एक अनमोल रचना हम लोगों तक पहुंचाकर बहुत ही महान काम किया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि लेखक महोदय भी इस कथित डकैती से गदगद हो गये होंगे। काश कभी हमारी भी किसी रचना पर डाका पड़ता....
ReplyDeleteआप ऐसी चोरी यदि रोज करें तो अच्छा होगा बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई ।
ReplyDeleteखूबसूरत और प्रशंसनीय चोरी । चित्र तो पता नहीं क्यॊं दिख ही नहीं रहा, पर दर्पण जी की कविता की प्रस्तुति लाजवाब है । आभार ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है
ReplyDelete----
चाँद, बादल और शाम
:-)
ReplyDeleteHAHAHAHA!!
Very very good!! :-)
Amazing
Regards,
Dimple
चोरी की हो या डकैती की कविता बहुत सुंदर है । पढवाने का शुक्रिया ।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteतु डाल-डाल मै पात-पात, बहुत ही खुबसुरत चोरी।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteili ko dekho kitni khush hai wo...
ReplyDelete:(
(are nahi ye to khushi ke aansu m.. m... mera mera matlab khushi ki simley hai)
thanks to kahoonga nahi...
(Jo karna hai kar lo)
सुन्दर कविता पढवाने के लिए बहुत-बहुत आभार
ReplyDeletecomments to main darpan ji ke blog main de aayi thee...unki kalam ka jadu to hum aksar dekhtey hai ...
ReplyDeletepar aapki chori ka bhee javaab nahi..seedhe daka dala bhee to kuber ke khajane main ...haha
pahli baar koi chori achchi lagi..:))
mummy,
ReplyDeleteaap bhi chori karne lage ho??
hey bagwaan ham aapko kya samjhe aur aap kya nikle ????
I was not able to understand the poem but im sure this one is REALYYY good one otherwise my mom would have not gone to this extent
keep up the good work mom i mean 'GOOD WORK...'
get it !!!!
ha...ha...ha...
चोर के घर पर मोर - वाह वाह!
ReplyDeletewah di.. sach mein blog jagat ki sabse behtareen kavita hai.. bahut hi pyari aur emotions se bhari hui.. janab ka link de, feed add kerna chhaoonga.. :)
ReplyDeleteचोरी बहुत खूबसूरत है. जिसकी चोरी हुई है वह एफ आई आर लिखवाये तो शायद कुछ कार्यवाई हो.
ReplyDeleteवैसे इसी बहाने सुन्दर रचना से रूबरू होने का मौका मिला
आपने चोरी की तो है पर माल हम सबने बॉ्टकर खाया है:)
ReplyDeletepata nhi? ye teesri bar post kar rhi hootippni .
ReplyDeletechori ka mal bant diya greebo me robinhood ki tarh to isme sfai dene ki jrurat kha hai?hamre pas snduke hi hmari anmol dhrohar hai is mrmsprshi rachna ke liye darpanji ko badhai aurshubhkamnaye .
aapko dhnywad .aisi chopriya krti rhe aur apna mal bhi lutati rhe .
chori ka mal bant diya garibo me robinhood ki tarh .to sfai dene ki kaha jrurat hai adaji .
ReplyDeletebhut ytharth vadi kavita hai .darpan ji ko is sundar rchna ke liye bdhai aur shubhkamnaye .aur aap aisi choriya karti rhe aur sath me apna mal bhi lutati rhe .
dhnywad
hahahh hahahahh hahahah bhut khub adaa ji
ReplyDeletesaadar
praveen pathik
9971969084
इस ब्लौग-जगत में "संदूक" जहाँ छपी है, मैंने सब जगह अपनी उपस्थिति दी है तो ये कैसे छूटता...
ReplyDeleteहम तो कब से दीवाने हैं इस नज़्म के...