रौनकें मेरे दिल की चुरा लीजिये.
देना है कुछ मुझे तो सजा दीजिये
लब हैं सूखे हुए जैसे साहिल कोई
आह की इनमें कश्ती चला लीजिये
खिल उठे हैं तसल्ली के बूटे, कई
शाखे-उम्मीद पर भी उगा लीजिये
हैं सदी की कतारों में लम्हे खड़े
गिन नहीं पायेंगे इनको सजा लीजिये
नीम-बाज आँखें कब से हैं सूनी पड़ीं
मुट्ठी भर ख्वाब इनमें छुपा लीजिये
है कहाँ कोई महफूज़ ज़माने में, तो
एक जन्नत सा पिंजरा बना लीजिये
महफूज़ कहाँ है कोई इस जहान में
ReplyDeleteजन्नत सा एक पिंजरा बना लीजिये
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल के खुश रखने को...
स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएं!
रेत से सूखे हैं होंठ आज मेरे
ReplyDeleteआह की कश्ती है चला लीजिये
बूटे तसल्ली के अब खिल उठे हैं
उम्मीद की टहनी पर उगा लीजिये
नीम-बाज़ आँखें खाली पड़ी हुई हैं
मुट्ठी में ख्वाब लेकर छुपा दीजिये .......
इस तरह का ही गर लिखते हो आप.......
इक अपना शागिर्द हमें भी बना लीजिये.....!!
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ReplyDeleteमहफूज़ कहाँ है कोई इस जहान में
ReplyDeleteजन्नत सा एक पिंजरा बना लीजिये....
...di shubh shubh bolo azadi ke din to kum se kum.
:)
क्या अभिव्यक्ति है ! इसे कहते हैं कविता !!
ReplyDelete"लम्हें खड़े हुए हैं सदी की कतार में
गिनेंगे आप कैसे,इनको सजा लीजिये "
" नीम-बाज़ आँखें खाली पड़ी हुई हैं
मुट्ठी में ख्वाब लेकर छुपा दीजिये
महफूज़ कहाँ है कोई इस जहान में
जन्नत सा एक पिंजरा बना लीजिये"
जाने कितने अर्थ! छोटी छोटी पंक्तियाँ समेटे हैं।
लम्हें खड़े हुए हैं सदी की कतार में
ReplyDeleteगिनेंगे आप कैसे,इनको सजा लीजिये
amazing....
..lady gulzaar.
baat afsana ban jaiyegi,
ReplyDeletebus thodi hawa dijiye.
baat afsana ban jaiyegi,
ReplyDeletebus thodi hawa dijiye.
रेत से सूखे हैं होंठ आज मेरे
ReplyDeleteआह की कश्ती है चला लीजिये
कितना दर्द बिखेरा है आपने इन शब्दो के साथ.
बेहतरीन रचना
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeletebahut sundar.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गजल..........
ReplyDeleteजाने क्या है जो भीतर से मचल के कह रहा है इस गजल में...
है कहाँ कोई महफूज़ ज़माने में, तो
ReplyDeleteएक जन्नत सा पिंजरा बना लीजिये
बेहतरीन जी. स्वतंत्रता दिवस की घणी रामराम.
Jannat aur pinjra. Wow...usually I dont think of them together! But you used them together so beautifully!
ReplyDeleteek ek sher shandar hai, bhut khoobsurt, akhiri line behad jabrdast hain.
ReplyDeleteखिल उठे हैं तसल्ली के बूटे, कई
ReplyDeleteशाखे-उम्मीद पर भी उगा लीजिये
Bahut khoob sher kaha !!
आपके मन में उठने वाले भाव शब्दों में एक खूबसूरत अंदाज़ में सजा लेती हैं आप. आह की कश्ती का खयाल बढिया है.
ReplyDeleteख़ूबसूरत अंदाज़े-बयाँ!
ReplyDeleteनीम-बाज आँखें कब से हैं सूनी पड़ीं
ReplyDeleteमुट्ठी भर ख्वाब इनमें छुपा लीजिये
bhut khoob
"है सदी की कतारों में लम्हे खड़े.." एक बेमिसाल मिस्रा है मैम....
ReplyDeleteऔर फिर एक जन्नत-सा पिंजरा की सोच पर सर खुद-ब-खुद शायरा के लिये सम्मान में झुक जाता है!!
नीम-बाज आँखें कब से हैं सूनी पड़ीं
ReplyDeleteमुट्ठी भर ख्वाब इनमें छुपा लीजिये
bahut khoobsurat khayal!!!!
हैं सदी की कतारों में लम्हे खड़े
ReplyDeleteगिन नहीं पायेंगे इनको सजा लीजिये
नीम-बाज आँखें कब से हैं सूनी पड़ीं
मुट्ठी भर ख्वाब इनमें छुपा लीजिये
है कहाँ कोई महफूज़ ज़माने में, तो
एक जन्नत सा पिंजरा बना लीजिये
be-had khoobsurat khayal. main bahar gaya tha bahut miss kiya hun aapki kavita ko.
shukriya