बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
चाह कर भी उन्हें ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें लगाने लगी हैं सेक हमें
आब से घिरते रहे आग बुझाई न गई
कौन है हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
थी खबर हमको मगर तुमको जताई न गई
तार-तार हो गए हम जब तार-तार तुम कर गए
तार होकर भी रिश्तों की तारें बचायी न गई
दर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
राह में उनकी नजर हम है बिछाए बैठे
अब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
कुछ तो है बात के चेहरे पे कई सोग पड़े
हंसती है कैसे 'अदा' रुख से रुलाई न गई
चाह कर भी उन्हें ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें लगाने लगी हैं सेक हमें
आब से घिरते रहे आग बुझाई न गई
कौन है हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
थी खबर हमको मगर तुमको जताई न गई
तार-तार हो गए हम जब तार-तार तुम कर गए
तार होकर भी रिश्तों की तारें बचायी न गई
दर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
राह में उनकी नजर हम है बिछाए बैठे
अब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
कुछ तो है बात के चेहरे पे कई सोग पड़े
हंसती है कैसे 'अदा' रुख से रुलाई न गई
तार-तार हो गए जो तार-तार कर गए
ReplyDeleteतार होकर एक तार हमसे बचायी न गई
शब्दो का खूबसूरत सामंजस्य ---
प्रवाहशील बेहतरीन रचना ---
हम कौन हैं, क्या है, क्यूँ हैं, कहाँ हैं
ReplyDeleteजानते थे हम पर तुमसे बताई न गई
-बहुत उम्दा भाव. अच्छी लगी रचना!!
हंसती रहो हमेशा अदा ...रुख से रुलाई को कर विदा...!!!
ReplyDeleteबात कुछ है ज़रूर जो शक्ल पे ये सोग है
ReplyDeleteहँस रही है तू 'अदा' रुख से रुलाई न गई
क्या बात है !
.आपका लेखन प्रशंसनीय है । पढ़कर आंनदित हो जाता हूँ ।
ReplyDeleteजुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
waah bahut khub
दर्द का देखो असर कैसा ये अजीब रहा
ReplyDeleteबात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
Bahut Umda sher !!
jitna likhe kam hai !!
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
वाह अदा जी , लाजवाब रचना। पता नही आप ऐसी-ऐसी रचनायें अपने किस पिटारे से लेकर आतीं हैं,।
बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteबधाई !
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
jazbaat ki bahut khoobsurat
tarjumaani...
ek achhee takhleeq....
C O N G R A T S !!
---MUFLIS---
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
...........
ishq bada daravana hai...
...galib ne bhi kaha tha...
हम यहाँ आधे बसे और कहीं आधे बसे हैं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
.....canada V/S India ?
kay khoob tarah se likha hai aapne di...
if not best, then atleast one of the best line i've ever read...
बहुत खूबसूरत। बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeletesocha tha bna lenge tumko apna ek din
ReplyDeletepar dil ki baat hooto tak laai na gyi
kya khoob likha hain apne
wah wah