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हाँ तो चोरी की गयी रचनाओं की श्रृंखला में मेरी दूसरी पेशकश....इस रचना के मौलिक अधिकार जिनके पास हैं वो शहर से बाहर हैं, शायद १-२ दिन के लिए...उन्हें तो पता भी नहीं है क्या हो रहा है....लेकिन शायद चोरी का मतलब भी यही होता है, जिसका सामान चोरी जाए उसे पता ही न चले....!!!!
किशोर जी की कहानियों की तारीफ करना तो वैसा ही है जैसे....सूरज को घी दिखाना....न्न्न्नहीं नहीं मेरा मतलब है सूरज को दीया दिखाना...पढियेगा तो पता चल जायेगा, हम क्या कहना चाह रहे हैं..
Kishore Choudhary :
रेत का समंदर, माटी का घर, उड़ती धूल, तपते दिन, ठंडी रातें, अपनों की छावं, बिछड़े मित्रों की स्मृतियाँ, मुस्कुराते दर्द, ऊँघती खुशियाँ, लाल मिर्च की चटनी और बाजरे की रोटी के बीच इन सब से बेमेल कॉफी पीने की तलब हर समय...
ये था किशोर जी का परिचय उन्ही की ज़बानी :
और अब पढें एक ऐसी रचना जिसे आप एक साँस में ही पढ़ जायेंगे...क्यों यकीन नहीं आया....तो लगी शर्त !!!!! आप शुरू तो कीजिये.... क्या कहा जीतने पर क्या मिलेगा.....वही एक और चुराया हुआ माल .....हा हा हा हा ....
देयर इज समवन हू स्टिल लव्ज यूमन के दौड़ते घोड़ों का रमझोल अनियंत्रित निरंकुश सा बीते दिनों के दृश्यों को इतनी तीव्र गति से बदल रहा था कि कोई स्पष्ट घटना स्थिर नहीं हो पा रही थी, डिजिटल पटल पर आ रहे संकेतों में अवरोध उत्पन्न होने पर दिखाई पड़ने वाले पिक्सल की तरह सब कुछ उलझा-उलझा गतिमान था। बस में बारह घंटे बिताने के कारण पैरों में सूजन सी दिखाई पड़ी स्पोर्ट्स शूज के तस्मों को ढीला करते हुए पांवों को अन्दर ठूँसा और सीट के ऊपर सामान रखने की रैक से ट्रोली बैग उतारा सिर्फ़ तीन सीढियां उतरने में कोई मिनट भर का समय लगा, ज़िन्दगी के उलझे तंतुओं की मानिंद रात भर सोये पैर दिशा तलाशने में समय ले रहे थे। शीशे सा पिघलता बदन होगा या फ़िर उखडी बिखरी साँसें, कितने दिन बाद मिलूँगा... दिन कहाँ अब तो वे महीनों में बदल चुके हैं दीवार पर टंगा कलेंडर न बदलने से कुछ रुकता थोड़े ही है।
प्लेटफार्म पर बैग टिकाने के बाद रात को खरीदी पानी की खाली हो चुकी बोतल को पास ही एक कूड़ेदान में फैंकते हुए स्वयं को एक बंधन से मुक्त किया और सोचने लगा अब क्या करे... यहाँ से ऑटो लेकर सीधा ही पहुँच जाए या फ़िर किसी होटल में रुक कर फ्रेश हो ले, अनिर्णय में कई ऑटो रिक्शाओं को पार करते हुए सिन्धी केम्प बस अड्डे से लगभग आधा किलोमीटर दूर निकल आया हालात अब भी वही थे क्या करे? पोलो विक्ट्री से पहले चाय नाश्ते की एक बड़ी पुरानी और मशहूर दूकान के आगे स्टूल खींच कर बैठ गया, यहाँ ग्यारह बजे तक दैनिक मजदूरों, राजधानी में अपना काम करवाने आने वालों और आस पास स्थित सरकारी कार्यालयों में काम करने वालों का जमघट लगा रहता है। मख्खन लगी ब्रेड के साथ दो चाय पीने के समय तय कर लिया कि शर्मा सदन में नहाया जाए फ़िर देखेगा।
सीलन भरे कमरे का किराया मात्र अस्सी रुपये, मात्र इसलिए कि इस तरह की यात्राओं ने सदैव उससे प्रीमियम पेमेंट वसूल किया है, रात को शायद इस कमरे में किसी ने जी भर के दारू पी होगी गंध अभी भी तारी थी दीवारों पर पान गुटके का पीक फैला था थोड़ी ताजा हवा की उम्मीद में खिड़की के पास खड़ा हुआ तो वहाँ भी जाली में बुझी हूई बीड़ियों के साथ नीले सफ़ेद पाउच फंसे थे, बाहर छतों पर कपड़े सूख रहे थे लेकिन उसने तय किया वह अपना बैग हरगिज नहीं खोलेगा कमरे की गंध को अपने साथ नहीं ले जाना चाहता था वो। बड़ी ग़लती की यहाँ आके ऐसी किसी होटल में आज तक नहीं रुका था वो।
बहुत देर प्रतीक्षा के बाद भी नल से गरम पानी नहीं आया और अब उसका सामर्थ्य भी जवाब देने लगा, तीन सिगरेट पी चुकने के कारण मुंह का स्वाद कैसेला होता हुआ आंखों तक आ गया, स्मृतियों के वातायन से झांकते दृश्यों के बीच पैताने का सूरज सर तक चढ़ आया, उसने बैग से सिर्फ़ तौलिया निकाला और बाल्टी से पानी उड़ेल कर बाहर आ गया, बदन में हरारत अब भी वैसी ही थी। सो चेक आउट... अपनी जेब पर निगाह डाली कमरे में इधर उधर देखा और कुछ अलसाये हुए मौसम के इस दिन में सड़क पर पहुँच गया।
स्नेहा से कल ही तय हुआ था आने के बारे में इसलिए ज्यादा कुछ प्लान करने की जरूरत नहीं थी फोन पर बिना किसी अनुनय विनय या फ़िर आग्रह के लगभग तय हो ही जाता था कि कब मिलें, ओटो वाले ने पूछा साब इधर ही, नहीं बाएँ अन्दर ले लो, यूनिवर्सिटी के दो नंबर गेट से सौ मीटर आगे एक बार फ़िर दायें और फ़िर बाएँ मुड़ते ही सामने एक बड़ी बिल्डिंग के सामने रुकवा लिया, पचपन रुपये का भुगतान कर खुले पड़े एक छोटे से दरवाजे को पार कर सामने बैठे निर्जीव से दो लोगों को संबोधित करते हुए कहा स्नेहा... रूम नंबर पन्द्रह... है क्या ? उन्होंने उसके सामने देखने की जगह माईक ऑन कर उसके शब्दों को दोहरा दिया।
कावेरी गर्ल्स होस्टल के भीतरी भाग से बाहर खड़ी कारों और भीतर टहल रही शोर्ट जींस अधोमुखी टी शर्ट वाली लड़कियों की जांच परख में दिल नहीं लगा, जिज्ञासावश वह मिलने आए आगंतुकों और बाउंड्री वाल की ऊँचाई को टटोलता रहा, एक होंडा सिटी एक जेन... रहने दो कई गाडियां थी। उसको लगा कि हो न हो ये ओमनी जरूर अपनी जगह पर खड़ी खड़ी हिलेगी । बाहर क्यों खड़े हो ? अन्दर आओ ना। स्नेहा का वही स्वर सुनाई दिया जो उसको बरसों से आश्वस्त करता आ रहा था, बैग लिए विजिटर रूम में सोफे पर सीधा बैठ गया, स्नेहा ने बताया मैं चेज करके आती हूँ, जाती हूई वह कुछ मोटी दिखाई पड़ी भूरे ट्राउजर पर पहने सफ़ेद अपर पर लिखा था नो वे।
वह शायद इतनी मोटी नही थी पहले, उन दिनों स्नेहा के भीतर और बाहर महत्वाकांक्षाएं सहज देखी जा सकती थी, ब्रांडेड कपडों तक उसकी पहुँच नहीं थी तो किसी मैगजीन से कॉपी कर ख़ुद अपने लिए एक ड्रेस सिलवा ली थी और दर्जी को एक ही हिदायत दी कि अगर ये इस फोटो के जैसी ना दिखी तो एक भी पैसा नहीं मिलेगा। उसी ड्रेस में कॉलेज के आगे लगे एक फव्वारे पर पाँव रख कर तीन फोटो खिंचवाए वे आज भी उसके पास रखे हैं। ब्रांडेड कपड़ों के प्रति ही नहीं वरन हर एक नाम जो स्थापित और बिकाऊ होने के साथ अभिजात्य होने का विश्वास प्रकट करता था उसे अपनी और खींच लेता था।
हेप्पी बर्थ डे कहते हुए पहली बार उसके गोल चहरे को छुआ तब स्नेहा ने एक रहस्यमयी मुस्कान से उसको देखा था ये दिन कई बोझिल दिनों के बाद आया था सहेलियों के साथ एक गुप्त पार्टी मम्मी की स्वीकृति से संपन्न हो चुकी थी कुछ गिफ्ट कुछ कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें और थोड़ा सा एकांत , ऐसे में भी उसको सिर्फ़ यही पूछना याद आया "तुम्हारी ये टी शर्ट ओरिजनल एडिडास की है क्या ?"
कहाँ खो गए ? स्नेहा लौट आई थी हाथ में दो कप चाय और एक पोलिथीन। अब भी तुम्हारी एक आदत नहीं बदली जहाँ होते हो वहाँ रहते नहीं। वह चाय पी रहा था तब स्नेहा ने बैग खोला और उसमे पोलिथीन रख दिया।
"अब कहाँ जायेंगे ?"
"चलो बाहर देखते है"
"महारानी पेलेस चलें?"
"नहीं दोबारा वहाँ नहीं"
"फ़िर"
"यहीं पास में एक अच्छा होटल है"
"ओ के"
"ऑटो लेके चलते हैं "
"नहीं .... पैदल ठीक है ना "
"समझा करो यूनिवर्सिटी के पास ही है कोई देखेगा... ऑटो सही रहेगा"
स्वागत कक्ष में बैठा व्यक्ति ऐसे मुस्कुराया जैसे वे दोनों उसके बरसों पुराने ग्राहक हों, रेट कार्ड इस निवेदन के साथ आगे बढाया कि सिर्फ़ डीलक्स ही खाली हैं। स्नेहा ने आँख से लड़के को बैग उठाने का इशारा किया, इस अधिकार प्रदर्शन में ही दोनों की सुरक्षा थी जिसकी परवाह सिर्फ़ स्नेहा को थी।
तीसरे माले का कमरा संख्या तीन सौ आठ लम्बाई चौडाई बीस गुणा तीस, एक तरफ़ मेहमानों के लिए सोफा सेट और एक छोटी सी टेबल पास ही कालीन बिछा था और उसके पार एक आठ फीट लंबा चौडा पलंग। स्टूल को पाँव से सरकाते हुए खिड़की के पास ला कर बाहर नीचे सड़क पर दौड़ रहे वाहनों में स्नेहा की आँखें खो गई वह भी उसके पीछे कंधों पर हाथ रख कर बाहर देखने लगा। इस घड़ी में व्यंजनायें, अलंकार, रूपक, छंद, दोहे यानि सब कुछ निष्प्रभावी था। स्नेहा बाथरूम में चली गई, खिड़की से आते उदास हवा के झोंकों ने याद दिलाया की चार घंटे से उसने सिगरेट नहीं पी है। सिगरेट तो है भी नहीं उसके पास, वह कभी भी स्नेहा के सामने नहीं पीता हालाँकि ऐसा नहीं है कि वह जानती नहीं।
बाथ टब को उसने गरम पानी से भरा और लिक्विड सोप को उसमे ही घोल दिया , अभी अभी नहा कर गई स्नेहा की गंध वह इन सब सौन्दर्य प्रसाधनों के बीच पहचानने का प्रयास करने लगा। कुछ नहीं है कहीं ... सब झूठ सब फरेब... इसके सिवा कि स्नेहा है तो वह भी है। रात भर का सफ़र दिन की थकान और तम्बाकू के अभाव में मंद पडी
रक्त गति के कारण लगा शायद इसी टब में नींद आ जायेगी। वैसे बड़ी अजीब है ये देह कभी कभी तो नींद रात भर नहीं आती... टब खाली करके शोवर के नीचे कुछ देर खड़े रहने के बाद ख़ुद को पोंछता हुआ वह बाहर आ गया।
पलंग पर लेटी स्नेहा के पास जाकर वह भी लेट गया उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और रूम की लाईट को डिम कर दिया। अचानक उसको लगा स्नेहा की कलाई पर कई स्पीड ब्रेकर उभर आए हैं, उसने फ़िर से छुआ और इस बार विश्वास होने पर हाथ को अपनी आंखों के सामने कर लिया। पूरी कलाई पर पन्द्रह बीस कटने के निशान थे किंतु उनकी उम्र ज्यादा नहीं थी। कटी कलाई ने दोनों के बीच खड़े बाँध में सुराख़ कर दिया। उसने दूसरा हाथ गरदन के पास रखते हुए स्नेहा को अपने और करीब खींच लिया। वह उसकी बाहों में सिमट आई चहरे को सीने से इस तरह सटा लिया जैसे कई दिनों बाद कोई अपने घर लौट कर आया हो और अपने सर को तकिये के नीचे रख सो जाए। एक तरल स्पर्श किसी रोमांटिक पल में दर्द की बूँद की तरह टपका, स्नेहा की आंखों का पानी उसकी बांह तक पहुँचा, कुछ बूंदें सीने के बालों में अटकी रह गई।
वाट हेप्पंड...
नथिंग
टेल मी
वुड यु लाईक टू लिसन टू मी ?
वाट डू यु थिंक ... वाई आई एम हियर?
सुमित आया था। हम दोनों एक रेस्त्रां में गए। पता नहीं क्यों पर मैं उसके साथ सब कुछ बरदाश्त कर सकती हूँ उसके बिना कुछ नहीं... ये मेरी बरदाश्त ही है जिसे तुम छू रहे हो, उभरी चमड़ी के नीचे कई बरसों का प्यार सिला हुआ है। सुमित ने कहा मैं तुमसे प्यार करता हूँ तो मेरे हाथ में टूटी चूड़ी का एक टुकडा था उसे मैंने अपनी कलाई पर चला दिया और खून आ गया। उसने मुझे बीते दिनों, इस बीच आई मुश्किलों के बारे में बताया अपने कुछ दोस्तों की बातें की फ़िर कहा आई लव यू... मैंने फ़िर अपना हाथ काट दिया। सुमित ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोकने की कोशिश की, मैंने पूछा जब इतने दिन मिलने नहीं आए क्या तब भी मुझे याद करते थे या अब भी किसी की... उसने मेरे तमाचा जड़ दिया। वह टेबल पर रखे मेरे हाथों पर अपना सर रख कर रोने लगा... आईस्क्रीम पिघल चुकी थी वेटर से कहा इसे ले जाओ दूसरी लाओ।
पिछले साल इसी रेस्त्रां में दिन कैसे बीत जाता था यह याद दिलाने लगा सुमित, ढेर सारे गिफ्ट, चोकलेट, क्रीम शेक, पिज्जा और इन्हे खाने से दिन ब दिन बढ़ते जा रहे बोडी वेट के कारण मजबूरी में बदली गयी जीन्सेज और भी बहुत कुछ याद दिलाया उसने फ़िर बोला तुम परेशां क्यों हो मैं अब भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ... मैंने उसी चूड़ी से अपना हाथ काट लिया। वह बार बार चिल्लाने लगा आई लव यू... आई लव यू... उसने जितनी बार कहा मैंने उतनी बार अपने हाथ को काटा। उसकी आंखों में आंसू थे और सामने मेरे हाथ से टपकती खून की बूँदें... मैंने सुमित का रूमाल अपने हाथ में बाँध लिया क्योंकि अब मेरी हिम्मत ख़त्म हो गई थी मैं इस से ज्यादा दुखी नहीं देख सकती थी उसको।
सुमित के बारे में बताने को हज़ार अफसाने थे स्नेहा के पास पर अर्धनिंद्रा की स्थिति में सुनाई दिया " वाट काईंड ऑफ़ रिलेशन वी हेव... वेयर आर वी गोइंग... इज देयर एनी डेस्टिनेशन... "
चुप्पी पलंग तोड़ती रही बेगानी सांसों की महक बिखरती रही।
स्नेहा उठी, खुले बाल उसके चहरे पर बिखर गए होठों को इस तरह चूमा जैसे किसी दुआ पढने वाले के हाथों में सूखे गुलाब की पत्तियां आ गिरे दोनों करीब से करीब आते जा रहे थे पर दूरी बढ़ती जा रही थी इस पल में कई जनम समा गए थे विदैहिक अनुगूंज में बज रहे राग से सिर्फ वियोग के स्वर बिखर रहे थे किसी की आँखे रो रही थी किसी का दिल... दोनों में से किसी ने कहा "देयर इज समवन हू स्टिल लव्ज यू..."
कहते है उस रात स्नेहा सोयी नहीं
और स्नेहा का वह मित्र अब भी सूखे दरख्तों से, पत्थरों पर जमी काई से, मरी हूई चिडियाओं से एक ही बात दोहराता है "देयर इज समवन..."
नोट: इस पृष्ठ पर उपलब्ध सभी चीज़ें चोरी की है....अतः अनुरोध है की आप अपनी टिपण्णी रचना के रचनाकार को ही समर्पित करें...हाँ अगर दिल करे तो मेरे हाथ की सफाई या मेरी पसंद पर आप टार्च की रौशनी डाल सकते हैं....इससे मुझे प्रोत्साहन मिल सकता है और मेरी अगली चोरी के लिए प्रेरणा भी...धन्यवाद..