प्यार, इश्क, मोहब्बत इन शब्दों में, एक अलग सी धनक होती है । कोई, किसी भी उम्र में हो, मन रूमानी ख्यालों से भर उठता है । इश्क का असर कुछ ऐसा होता है, कि दुनिया खूबसूरत हो जाती है। मौसम रंगीन और समा बस सुहाना-सुहाना हो जाता है। प्यार के
इस रंगीन एहसास को महसूस करने के लिए जरुरत होती है, एक अदद उस शख्स की, जिसे देख कर दिल बरबस बोल उठता है, यही तो है वो, जिसका मुझे इंतजार था।
मुझे नहीं मालूम लड़कों को क्या अहसास होता है, शायद लड़के पहली नज़र में प्यार कर बैठते होंगे, लेकिन अधिकतर लड़कियों के साथ ऐसा नहीं होता है । सपने देखना लड़कियों की आदत है, और सपनों में सपनों का राजकुमार का होना लाज़मी। बेशक वो किसी रियासत का राजकुमार न हो, लेकिन अपने राजकुमार की एक छवि, हर लड़की के मन में होती ही है, जिसे वो हकीक़त में भी देखना चाहती है । अपने मन में बनाई, इस छवि के अनुरूप ही वह, अपने प्यार को तलाशती है। अक्सर पढ़ती हूँ, नारी के मन की बात तो, ब्रह्मा भी नहीं जानते, तो आइए आज कम से कम, इस बारे में जानने की कोशिश करते हैं, आखिर लडकियाँ अपने साथी (प्रेमी या पति) में कौन सी खूबियाँ देखना चाहतीं हैं ।
1. ईमानदारी और विश्वास, ये वो दौलत है, अगर आपने कमा लिया, तो आपसे बड़ा अमीर कोई नहीं, ये दोनों गुण, हमेशा से ही एक
अच्छे रिश्ते की रीढ़ है। हर लड़की चाहती है, कि उसका साथी ऐसा हो, जिस पर सारी दुनिया, आँख बंद करके यकीन करे । जहाँ तक हो सके, अपनी प्रेमिका के सामने, किसी और से भी, कभी झूठ मत बोलिए, लड़की के मन में एक आशंका तो आ ही जाती हैं, जब ये इतनी सफाई से मेरे सामने झूठ (किसी और से ही सही) बोल सकता है, तो क्या पता कल मुझसे भी बोल ही सकता है, कुछ ऐसे ही ख्याल मन में आ जाते हैं । आपके बिना जाने ही, रिश्ते में हेयर लाइन फ्रैक्चर आ जाता है । हर लड़की चाहती है, कि उसका साथी उनके अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार रहे । लेकिन ऐसी बातों से, विश्वास दरक जाता है । याद रखिये, ईमानदार और विश्वासी पुरुष लड़कियों को बहुत पसंद हैं ।
2. लडकियाँ चाहती हैं
कि उनका पार्टनर उसकी और उसके परिवार की इज्जत करने वाला हो। साथ ही उसके
मन में अन्य लड़कियों के प्रति भी आदर का भाव हो। दूसरी लड़कियों के प्रति सिर्फ 'आदर' का ही भाव हो, 'फ्लर्ट' का भाव न हो । फ्लर्ट-व्लर्ट जैसी बातें, लडकियाँ ज़रा कम झेलतीं हैं । 'किसी भी कीमत' पर अपनी प्रेमिका या पत्नी के सामने, आप किसी दूसरी लड़की को अहमियत न दें। अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं, कुल्हाड़ी पर पैर मार रहे हैं । इन मोस्ट ऑफ़ दी केसेस, जब लड़की, किसी लड़के से प्रेम करती है, तो वो. 200% डेडीकेटेड होती है । उसके डेडीकेशन का हजारवां हिस्सा भी, लड़के में नहीं होता है, और ऐसे में, किसी दूसरी लड़की को तवज़्ज़ो देना, आपकी प्रेमिका के भाग जाने के लिए काफी है । लड़कियाँ, 100% अटेंशन चाहतीं हैं, और अपने प्रेमी का 200% प्यार । अब वो ज़माना भी नहीं रहा कि, आपने मन-ही-मन प्रेम कर लिया औए लड़की को टेलेपैथी से पता चल गया, आप उससे प्रेम करते हैं। जी नहीं, सिर्फ मन ही मन प्यार करने की आदत से भी आपको, बाहर निकलना पड़ेगा, और लड़की सिर्फ प्रेम नहीं, प्रेम का इज़हार भी चाहती है, आपको अपनी प्रेमिका से कहना पड़ेगा, आप उससे प्यार करते हैं, बल्कि उसे महसूस भी कराना पड़ेगा । लडकियाँ, बहुत जल्दी शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाना चाहतीं, और अगर आपने ऐसा करने के लिए दबाव डाला तो, आपकी प्रेमिका के बिदकने के बहुत चांस हैं । लडकियाँ, रोमांस ज्यादा पसंद करतीं हैं, बनिस्पत क्रूड शारीरिक सम्बन्ध के ।
3. आज की
लडकियाँ चाहती हैं, कि उनका पति या प्रेमी उसे समानता की नजर से देखे। भारत
मुख्यत: पुरूष प्रधान देश है। बचपन से ही लड़कियों को अपने पति के अधीन
रहने की सीख दी जाती है। बदलते परिवेश के साथ लड़कियों की सोच में भी,
आमूल परिवर्तन हुआ है। उनका मानना है, कि पति-पत्नी जीवन रथ के दो पहिए की तरह
हैं, जिनका समान होना जरुरी है । आपका बहुत ज्यादा कंट्रोलिंग होना, शुरू-शुरू में लड़की मान भी लेगी, लेकिन बहुत जल्दी ऊब जायेगी, वो चाहेगी, कि आप उसके सपने पूरे करने में उसका, ख़ुशी-ख़ुशी साथ दें । कई बार ऐसा भी होता है, पति या प्रेमी कह देता है, जो तुम्हारे जी में आये करो, लेकिन पत्नी या प्रेमिका, ये नहीं चाहती हैं । वो चाहतीं हैं, उनके हर फैसले में आप शामिल हों । आपको नहीं पसंद है, फिर भी आपको पसंद करना होगा और साथ भी देना होगा, अब ये आप कैसे करते हैं, ये सोचिये । लेकिन ऐसा ही है :):)
4. लडकियाँ चाहती हैं कि उसका प्रेमी या पति, उनकी भावनाओं की कद्र करे और हमेशा एक मजबूत आधार की तरह उसका साथ दे । कितनी भी सक्षम लड़की हो, चाहे वो रज़िया सुलतान हो, परन्तु भावनात्मक रूप से लड़की, अपने प्रेमी या पति के सामने , एक साधारण, नाज़ुक सी लड़की ही बनी रहना चाहती है । लड़की अपने प्रेमी या पति को एक मजबूत पेड़ की तरह देखना चाहती है, जिससे लता लिपटी होती है । लेकिन लता अपना वजूद खोना नहीं चाहती । वो यह भी चाहती है, कि जब आप कभी कमज़ोर हो रहे हों आपके लिए 'टेक' बन जाए।
लड़कियों को बहादुर लड़के पसंद हैं, अपने प्रेमी या पति में वो पौरुष देखना चाहतीं हैं । उनका दिल करता है कि, उनका प्रेमी या पति, हिंदी फिल्म के हीरो की तरह , उसके सम्मान के लिए, हर किसी से टकरा जाए, उसे बचा कर निकाल लाये, फिर चाहे वो भावनात्मक मुसीबतें हों, या दस-बीस गुण्डे :)
5. अधिकतर लडकियाँ, लड़कों की सूरत से ज्यादा सीरत पर मरती हैं,
इसलिए वे चाहतीं हैं कि उनका पार्टनर देखने में चाहे जैसा भी हो, लेकिन इंटेलिजेंट हो, वाचाल नहीं हो, लेकिन वाक्-पटु हो । वो एक शरीफ इंसान ज़रूर हो । शरीफ का मतलब ये नहीं, कि वो 'मुंडू' हो, ज़रुरत पड़ने पर उसे एग्रेसिव भी होना चाहिए । इधर-उधर दिल फेंकने वाले लड़के, लड़कियों को बिलकुल नहीं पसंद । और जो लड़के सिर्फ लड़कियों से ही दोस्ती करते रहते हैं, उनके सामने गिरे-पड़े रहते हैं, ऐसे लड़के तो लड़कियों को पसंद ही नहीं होते । ऐसे लड़कों को समझदार लडकियाँ "भैया" बना कर निकल लेतीं हैं । कई लड़कों को ये खुशफहमी होती है, कि लडकियां बदमाश लड़कों को पसंद करतीं हैं, जो, कूल, नाटी, धुरफंदरई करने में उस्ताद होते हैं, वो इस मुगालते में होते हैं, कि लड़कियाँ, उनसे बहुत इम्प्रेस्ड रहतीं हैं । सच्चाई ये है कि, लडकियाँ सिर्फ इम्प्रेस्ड, ही होतीं हैं, वो भी बहुत क्षणिक, उनसे प्रेम या शादी, नहीं करतीं ।
6. लड़कियों को बहुत बोलने वाले लड़के नहीं पसंद, क्योंकि लडकियाँ खुद बहुत बोलतीं हैं, अगर दोनों बोलने लगे तो सुनेगा कौन ? लड़कियों को सागर की तरह शांत और गहरे लड़के पसंद हैं । अगर कोई बोलने वाला भी हो तो अनाप-शनाप बोलने वाला नहीं, बस यूँ समझ लीजिये कि 'जंजीर' फिल्म का अमिताभ या 'आनंद' का राजेश खन्ना, लड़कियों के फेवरेट हैं । लड़कियों को ह्यूमर पसंद आता है, लेकिन छिछोरापन नहीं । जहाँ तक हो सके गालियों से दूर रहे । गालियाँ लड़कियों को 'पुट ऑफ़' कर देतीं हैं । जो लड़के हर वक्त अपनी तारीफ करते हैं, ऐसे लड़के, लड़कियों को पसंद नहीं । लडकियाँ, लड़कों से अपनी तारीफ सुनना चाहतीं हैं, उनकी अपनी नहीं । लेकिन याद रखिये अपनी प्रेमिका या पत्नी की तारीफ़ इतनी भी मत कर दीजिये, कि उसे लगने लगे आप झूठ बोल रहे हैं । बस इतनी ही कीजिये कि उसमें बनावट न झलके, आपकी पत्नी या प्रेमिका, को लगे, आप सच कह रहे हैं ।
कुछ टिप्स आपको दे रही हूँ, इनको आजमाईये सुखी रहेंगे । अगर आप किसी पार्टी में गए, वहां आपने बहुत सुन्दर सी स्त्री या लड़की देखी, आपने उसपर ध्यान भी दिया। घर लौट कर आपकी पत्नी या प्रेमिका ने आपसे पूछ लिया, तुम्हें याद है उस लड़की ने क्या पहन रखा था ? आप सीधे नकार जाईये, कह दीजिये मैंने तो देखा ही नहीं, आप सुखी रहेंगे । अगर जो आपने उसके परिधान और मेकप का सप्रसंग व्याख्या करना शुरू कर दिया तो आपकी क्लास लगने से कोई नहीं रोक सकता :):):)
सुन्दरता के टिप्स लडकियाँ अपने प्रेमी के मुँह से सुनना पसंद नहीं करतीं, ये सब लड़कियों का काम है, वो कहते हैं 'जिसका काम उसी को साजे', इसलिए प्लीज मत दीजियेगा ।
अधिकतर लडकियाँ सीधा-सरल, गंभीर, बहुत प्यार करनेवाला, उसकी कदर करने वाला ही प्रेमी या पति चाहतीं हैं । मिले तो ठीक वर्ना ठोक-पीट के वो भी बना देतीं हैं :):)
हाँ नहीं तो !
(डिस्क्लेमर : हम कोई इश्क-उश्क एक्सपर्ट नहीं हूँ, इसको पढने के बाद अगर आप अपने में कोई बदलाव लाते हैं, और अगर ऊ बदलाव काम नहीं करता है तो हम कोई जिम्मेवारी नहीं लेंगे । आपसे कोई ऐसी लड़की टकरती है, जो कुछ और ही राग अलापती है, तो ऊ अपनी पोस्ट लिखे, और अगर कोई ऐसी टकरती है जो बिलकुल ऐसा ही सोचती है तो ई महज संजोग होगा । ई हमरी अपनी एकदम खाँटी सोच है, ईहाँ लिखने की जिम्मेवारी हम लेते हैं, बाकी इसके चलते कहीं कोई पंगा होता है तो उससे हमरा कोई लेना देना नहीं है...बोल दे रहे हैं )
सारे चित्र हिन्दू विधि-विधान से चर्च में मॉस दर्शाते हैं
इनदिनों एक खबर सुनने में आ रही है 'असाम' में बंगलादेशी मुसलमानों का आतंक और आधिपत्य बढ़ता ही जा रहा है, जिसके लिए प्रशासन कुछ भी नहीं कर रही है। लगता है, वो दिन अब दूर नहीं कि, ऐसा ही कुछ भारत के अन्य राज्यों में भी हो । भारतीय जनता और भारत सरकार बैठे हैं, कानों में तेल डाल कर । उनकी बला से जो होना है वो हो जाए ।
कई बार सोचती हूँ, आखिर हिन्दू धर्म का उतना विस्तार क्यों नहीं हुआ ? कोई तो बात है, जो हिंदुत्व बहुत कम अपने पंख फैला पाया ।
सोचने पर जो बात समझ में आती है, वो कुछ ऐसा लगता है :
हिन्दू धर्म, सरल नहीं है, कम से कम, जो हमें और दुनिया को देखने को जो मिलता है । इतने देवी-देवता हैं कि कोई भी परेशान हो जाए। फलतः सबको खुश करने के चक्कर में, हम किसी को खुश नहीं कर पाते । मन्त्र सुनने में अवश्य पवित्र लगते हैं, लेकिन कितने हैं जो इन मन्त्रों का, सही अर्थ समझ पाते हैं, फिर जब अर्थ ही नहीं पता तो आत्मसात क्या करेंगे ? इनका सरलीकरण बहुत आवश्यक है । धर्म पुस्तकों का पठन-पाठन सरल भाषा में होना चाहिए, जिसे सभी समझ सकें ।
हिन्दू धर्मावलम्बियों की सबसे बड़ी ख़ामी है, दुसरे धर्मावलम्बियों को खुल कर नहीं अपनाना। अगर बेटे ने किसी गैर धर्म की लड़की को पसंद कर लिया तो, ये नहीं होगा कि उसे अपना लें और उसे वही प्रतिष्ठा दें, जो अपने धर्म की लड़की को देते। अगर खुदा न खास्ते ऐसा हो भी गया, तो सारी उम्र वो लड़की स्वयं को अपनावाने के लिए संघर्ष करती रह जाती है, और मजाल नहीं कि कोई, उसे सचमुच दिल से अपना ले, शक की तलवार, सारी उम्र उसकी गर्दन पर झूलती ही रह जाती है । नतीज़ा यह, कि वो कभी अपनी हो ही नहीं पाती है। जबकि दुसरे धर्मों में ठीक इसके उलटा है । वो खुश-ख़ुशी जश्न मनाते हुए, लड़की को अपनायेंगे, उसे इतना मान सम्मान मिलेगा, कि वो हंड्रेड परसेंट श्योर हो जायेगी, कि शायद भगवान् ने गलती से उसे ग़लत जगह पैदा कर दिया था , और अब मैं सही जगह आ गयी है ।
इस मामले में ईसाई धर्म प्रचारक बहुत परिपक्व और मेथोडिकल और ओर्गनाइज्द हैं, इनके धर्म-परिवर्तन का तरीका बहुत ही सधा हुआ है। सच पूछिए तो, ये यह काम बहुत प्रेम से करते हैं। और प्रेम से तो किसी को भी जीता जा सकता है ! इस मामले में इनकी स्ट्रेटीजी बहुत सफल है। इन्होने धर्म परिवर्तन के काम के लिए, बहुत छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दिया है। इस काम के लिए, ये अपनी पूजा-उपासना के तरीकों में भी फेर-बदल करते रहते हैं। ये वक्त, जगह, परिवेश और संस्कृति के अनुसार, खुद के अनुष्ठानों को ढाल लेते हैं। ये अपनी हर चीज़ इतनी बदल देते हैं कि, जिसका धर्म-परिवर्तन होता है, उसे पता ही नहीं चलता, कि उसका धर्म-परिवर्तन हो गया। उसके लिए सब कुछ वैसा ही सामान्य रहता है ।
सबसे अहम् बात है इनकी पूजा-अर्चना, जो हमेशा लोकल भाषा में होती
है । दुनिया में आप कहीं भी, किसी भी चर्च में चले जाइए, 'मॉस' उस जगह की स्थानीय भाषा में ही होता हुआ आप देखेंगे । चाहे लन्दन हो, रोम हो, पेरिस हो या झुमरीतलैया । और यह तो बहुत ही सरल मानवीय गुण है, हरेक इंसान अपनी ज़मीन, अपनी संस्कृति और अपनी भाषा से हमेशा जुड़ा रहना पसंद करता है। इन सबके साथ वो ज्यादा सहज रहता है। पूजा या मॉस में सम्मिलित लोग, जब अपनी भाषा में ईश्वर की अराधना करते हैं, तो वो ईश्वर उनको अपना लगता है और वो खुद को ईश्वर के ज्यादा करीब पाते हैं ।
उन्हें महसूस होता है, कि ये वही, उनका अपना ईश्वर है, जिसकी अराधना वो करते आये हैं, ये येरुसलम या रोम से आया हुआ कोई अजनबी ईश्वर नहीं है । प्रार्थना स्थल का माहौल ही ऐसा बना दिया जाता है, कि कहीं कुछ बदला हुआ नहीं लगता है। काफी दिनों से, ख़ास करके भारत के, कस्बों, गाँव में, जहाँ भारतीय संस्कृति की पकड़ थोड़ी मजबूत हैं, कथोलिक चर्च ने इस तरह के हथकंडों से भारी संख्या में धर्म-परिवर्तन करवाए हैं ।
मैंने स्वयं, गिरजा घरों में, पूरे हिन्दू रीति से उपासना होते हुए देखा है, बल्कि मैं उस मॉस में शामिल हुई हूँ, जिसमें, भगवा वस्त्र, धोती, ज़मीन पर पूजा की वेदी, कलश, आरती ,पादरी के माथे पर तिलक, और कंधे पर भगवा अंगोछा था। धर्म के प्रसार के लिए यह तरीका सबसे कारगर है, और बहुत ज़रूरी भी । व्यक्ति को धर्म के योग्य नहीं, बल्कि धर्म के अनुष्ठान को इस योग्य होना चाहिए ताकि, लोग उसे आसानी से अपना सकें। आज के युग में धरम-प्रचार का सबसे अचूक तरीका यही है । पूजा अर्चना करते वक्त भक्त को अजनबियत का अहसास न हो, धर्म उनको अपना लगे, पराया नहीं, ।
वैटिकन इस बात को बहुत अच्छी तरह समझना है, अगर गरीब, कमज़ोर तबके को अपने धर्म में लाना है, तो न सिर्फ उनकी भाषा में , बल्कि उनकी संस्कृति के अनुरूप ही, पूजा-अर्चना करनी होगी, तभी वो इसमें शामिल होंगे, अगर वो लैटिन (LATIN ) पूजा करेंगे, तो ये कम पढ़े-लिखे लोग, क्या समझेंगे भला,उल्टा बिदक जायेंगे । कथोलिक धर्म समाज अपने प्रिस्ट्स और सिस्टर्स को इसी बात की ट्रेनिंग भी देता है, लोगों की इस नब्ज़ को बहुत अच्छी तरह पहचान लो, और इसी बात का उपयोग करो धर्म परिवर्तन के लिए ।
ईसाई धर्मप्रचारकों में एक और बहुत अच्छी बात है, वो हमेशा लोगों के घरों तक जाते हैं, और बार-बार जाते हैं । सामने वाले को महसूस कराते हैं कि वो महत्वपूर्ण है । कम से कम तब तक, जब तक वो धर्म-परिवर्तन नहीं कर लेता, उनमें कोई अहंकार नहीं होता, वो गरीब से गरीब इंसान के समकक्ष आकर उनसे अपनत्व से बात करते हैं । उनकी परेशानियों को दूर करने की इतनी कोशिश करते हैं, कि सामने वाले को लगता है, अगर कोई तारनहार है मेरा तो यही है । व्यक्ति किसी भी जाति का हो, उसे, उतना ही महत्व उनसे मिलता है, जितना किसी उच्च जाति के व्यक्ति को वो देते हैं । उनका व्यवहार सबके साथ बराबर होता है, यह बहुत ही अच्छी नीति है उनकी । एक और अच्छी बात यह भी है, किसी भी गिरजा घर में कोई भी, कभी भी जा सकता है, कोई मनाही नहीं है न ही कोई रोक-टोक है ।
जो आर्थिक रूप से जो निर्बल होते हैं, और हिन्दू वर्ण-विभाजन के अनुसार, जिनका अनुक्रम नीचे है, उनके पास उनका स्वाभिमान और उनकी प्रतिष्ठा बहुत बड़ी होती है । उसके साथ जो खिलवाड़ करता है उसे वो माफ़ नहीं करते और जो उनको मान देता है, उनके साथ वो हो लेते हैं । कथोलिक धर्म-प्रचारक इनलोगों का साथ प्यार से देते हैं, और ये उनके साथ चले जाते हैं।
जबकि, हिन्दू धर्गुरुओं को कभी नहीं देखा है, बाहें फैला कर न्यून वर्णों के लोगों को अपनाते हुए । हाँ उनको पाँच हाथ दूर से खुद को बचाते हुए जाते ही देखा है । हिन्दू पण्डितों का अहम् इतना बड़ा होता है कि प्रेम, दया, सेवा जैसे गुण बिरले ही नज़र आता है । हिन्दू धर्मगुरुओं ने हमेशा इन वर्णों की अवहेलना की है, इनको हेय समझा है, यह बहुत बड़ा कारण है कि हिन्दू अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों में, हिन्दू धर्म से दुसरे धर्मों में धर्म परिवर्तन अत्यधिक देखने को मिलता है ।
हिन्दू धर्मगुरुओं का अहंकार हमेशा आड़े आता रहा है, वो जिससे भी बात करते हैं आसमान में बैठ कर बात करते हैं । पहले मंदिरों में निम्न वर्ण-जाति के लोगों को जाना वर्जित था, सामूहिक कुँवों पर जाना वर्जित था, इनके स्पर्श मात्र से पण्डित अशुद्ध हो जाते थे, जबकि होना उल्टा चाहिए था, अगर ब्रह्मण शुद्र का स्पर्श कर दे, तो शुद्र ब्रह्मण बन जाए, क्योंकि ब्रह्मण श्रेष्ठ ही माने जाते हैं । थेयोरीटीकली, जो श्रेष्ठ होता है वह पावरफुल होता है । यहाँ अगर ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं तो, उनको पावरफुल होना चाहिए न ! लेकिन यहाँ तो शुद्र के छूने से ब्रह्मण अपवित्र हो जाते थे, फिर पावरफुल कौन हुआ, ब्रह्मण या शुद्र ??
भारत में सारे गुरुओं, माताओं, देवियों को बैन कर देना चाहिए, सबसे ज्यादा गंद इन्होने ही मचाया हुआ है। जितने भी गुरु हुए हैं, अधिकाँश फ्रोड ही निकले हैं, फिर वो सत्य साई बाबा हों, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी हों या फिर रजनीश हों । ऐसे जीते जागते भगवानों पर सरकार की तरफ से, प्रतिबन्ध आवश्यक है। जीते-जागते भगवानों से, भारत की भोली जनता को निजात मिलना ही चाहिए । क्योंकि इनके चक्कर में आम जनता, गरीब होती जाती है और इन गुरुओं के बैंक अकाउन्ट मोटे होते जाते हैं । बड़ा अजीब लगता है, जब भोली-भाली जनता ऐसे ढोंगी साधुओं को, सिंहासन पर बिठा कर, भगवान् का दर्ज़ा दे देती है । ऐसी ही बातें हिन्दू धर्म के प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाते हैं । यह भी एक बहुत बड़ा कारण है, कि हिन्दू धर्म का ज्यादा प्रसार नहीं ही हो पाया । हिन्दू धर्मगुरुओं की ये जिम्मेदारी बनती है, कि वो हिन्दू घर्म की अच्छाइयों को सरल रूप में दुनिया के सामने लायें, उनका प्रचार करें, और थोथी मान्यताओं को तिलांजलि देकर, हिंदुत्व का मार्ग प्रशस्त करें।
आज सिर्फ इतना, बाकी फिर कभी।
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए... आवाज़ 'अदा' की..
माना... मैं, किसी की बेटी हूँ, किसी की बहन हूँ । कल मैं किसी की पत्नी बनूँगी, बहु बनूँगी, माँ बनूँगी। मुझे ये सब बनने से कोई इनकार नहीं । लेकिन ये मत भूलो, कुछ भी बनने से पहले, मैं एक इंसान हूँ । मेरे अपने कुछ लक्ष्य हैं, मेरी अपनी कुछ इच्छाएँ हैं, मेरे अपने कुछ सपने हैं, जो सिर्फ और सिर्फ मेरे हैं । और मेरा जीवन सिर्फ मेरा है। हाँ, तुम उसमें शामिल हो सकते हो । तुम्हारे साथ-साथ कुछ और भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन मेरा जीवन, मेरा ही रहेगा ।
मुझे बहुत कुछ करना है, बहुत कुछ बनना है, जिनको पूरा करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य हैं । ये मुझसे उम्मीद मत करना, कि इनको तिलांजलि देकर, मैं सिर्फ, तुम्हारे घर की बहु, तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे बच्चों की माँ बन जाऊँगी । ये सारी भूमिकाएं मैं निभा जाऊँगी, लेकिन मेरी अपनी भूमिका, मैं नहीं भुलाऊँगी । मुझे मेरा अपना वज़ूद, दुनिया में बनाना है, मुझे मेरे अपने लक्ष्य को पाना है और मेरे अपने सपनों को सजाना है ।
इनको पाने से मुझे, कोई नहीं रोक सकता, तुम भी नहीं। मैं तुम्हारे सपनों को पूरा करने में, तुम्हारा साथ दूंगी, तुम भी मेरे सपनों से खिलवाड़ नहीं करोगे। अगर तुम्हें ये मंजूर है, तो मैं तुम्हारे संग जीवन भर चलने को तैयार हूँ , वर्ना तुम अपना रास्ता नापो, और मैं अपना ।
“आरोही
साऊथ एशियन प्रोग्राम”
ने हिन्दी कविता का प्रसारण
9
दिसम्बर,
2004 -
संध्या 8
बजे कैनेडा की राजधानी ओटवा से 97.9
एफ.एम चिन रेडियो के “आरोही
साऊथ एशियन प्रोग्राम”
ने
हिन्दी कविता का प्रसारण किया। संध्या के पाँच बजे के लगभग श्रीमती स्वप्न
मंजूषा शैल ने हिन्दी चेतना के सम्पादक श्री श्याम त्रिपाठी जी के सम्पर्क
स्थापित किया कि किसी कारणवश उनके रेडियो अतिथि नहीं आ रहे तो उस समय के
दौरान वह रेडियो से हिन्दी कविता का प्रसारण करना चाहती हैं। क्या यह
त्रिपाठी जी के लिए सम्भव है कि इतने कम समय में कवियों को एकत्रित कर सकें
काव्यपाठ के लिये?
त्रिपाठी
जी ने तुरन्त हामी भर दी क्योंकि त्रिपाठी जी जानते थे कि कवि तो अवसर
ढूँढते रहते हैं कविता सुनाने के लिए और तिस पर रेडियो प्रसारण! कोई समस्या
ही नहीं थी! कुछ टेलीफोन की घंटियाँ बजीं और कविगण तैयार होकर बैठ गये
संध्या के 8
बजने की प्रतीक्षा में।
“आरोही
कार्यक्रम”
के
नियोजक शैल दम्पति हैं। श्री सन्तोष शैल जी टी.वी. से बहुत लम्बे अस्è
से
सम्बन्धित रहे हैं। डॉ.
स्वप्न मंजूषा शैल स्वयं कवयित्री हैं। यह कार्यक्रम ओटवा क्षेत्र से बाहर
अंतरजाल
रुरुरु.ारश्हi.च
पर भी सुना जा सकता है। संतोष और स्वप्न मंजूषा शैल जी ने न केवल टोरोंटो
के हिन्दी चेतना से सम्बन्धित कवियों को ही आमन्त्रित किया बल्कि ओटवा
क्षेत्र और माँट्रियॉल के कवियों को भी आमन्त्रित किया। परन्तु कार्यक्रम
पर टोरोंटो के कवि ही हावी रहे क्योंकि यहाँ का साहित्य समाज बहुत
क्रियाशील है। टोरोंटो से भाग लेने वाले कवियों में से - महाकवि हरिशंकर
आदेश,
राज महेश्वरी,
सुरेन्द्र पाठक,
भगवत शरण ‘शरण’
सरोज सोनी,
डॉ.
शैलजा सक्सेना,
सुमन कुमार घई,
पाराशर गौड़ और चेतना के संपादक श्याम त्रिपाठी थे। अन्त में डॉ.
स्वप्न मंजूषा शैल जी ने भी अपनी एक हास्य कविता सुनाई। सभी प्रवासी भारतीय
श्रोताओं ने उस कविता में अपनी छवि देखी। कविता में मंजूषा जी ने पहली बार
कैनेडा में एक प्रवासी के सम्मुख आने वाली बाधाओं का बहुत ही सुन्दरता और
रोचक रूप में वर्णन किया है।
मेरी बारी
आने पर सन्तोष जी ने साहित्य कुंज के विषय में कई प्रश्न पूछे तथा अपने
श्रोताओं को सूचित किया कि रुरुरु.ारश्हi.च
के मुख्य पृष्ठ द्वारा भी साहित्य कुंज तक पहुँचा जा सकता है। मैं उनके इस
प्रयत्न के लिए आभारी हूँ।
पहली बार
कैनेडा में हिन्दी कविता के रेडियो प्रसारण पर “साहित्य
कुंज”
शैल दम्पती को धन्यवाद व बधाई देता है और आशा रखता है कि भविष्य में भी ऐसा
होता रहेगा
तेरा आना
पागल दिल हो ,
झलक दिखाना
ख़ुशी का पल हो ,
छुप-छुप रहना
दर्द-ए-दिल हो ,
हाथ ना आना
बीता कल हो ,
नैन मिलाना
एक ग़ज़ल हो ,
नज़र में मेरी
ताजमहल हो ,
उम्र का हासिल
साथ का पल हो,
पाक़ हो जैसे
तुलसी दल हो ,
अंत समय तुम
बस गंगा जल हो ,
बात आज से ४ साल पहले की होगी...तब मैं रेडियो जॉकी थी, जो मेरा बहुत प्रिय
पार्ट टाईम शौक़ भी है, और बहुत प्यारा काम भी.... कनाडा, में ९७.९ FM, पर
'आरोही' मेरा और मेरे सुनने वालों का अपना प्रोग्राम हर दिन शाम ८ बजे
से १० बजे तक, सोमवार से शनिवार तक हुआ करता था, मेरी और मेरे सुनने वालों
की, सारी की सारी अभिव्यक्ति का बहुत ही प्यारा माध्यम था...हर तरह के
प्रोग्राम पेश करके, मैंने ख़ुद को रेडियो की दुनिया में बहुत अच्छी तरह
स्थापित कर लिया था...जो आज तक लोग भूल नहीं पाए हैं, श्रोताओं का प्यार आज
भी कम नहीं हुआ है, जब भी उनसे मिलती हूँ, एक ही बात वो कहते हैं, सपना जी
आप वापिस कब आ रही हैं आवाज़ की दुनिया में...हम आपको बहुत मिस करते
हैं...सुनकर सचमुच बहुत अच्छा लगता है...शायद किसी दिन फिर चली भी
जाऊं...मेरा क्या भरोसा.. :)
ख़ैर..रेडियो प्रोग्राम करते वक्त मैं हमेशा अपने श्रोताओं को शामिल करना
आवश्यक समझती हूँ, इस काम में सिर्फ़ रेडियो का माईक आपके वश में नहीं होता,
आपकी आवाज़ के वश में अनगिनत कान होते हैं..और कानों से उतर कर अनगिनत
दिलों पर भी आप राज करने लगते हैं...
मेरे श्रोता हर उम्र और हर तबके के लोग थे, मुझे याद है, एकाकी जीवन जीते
हुए बुजुर्ग दंपत्ति, हॉस्पिटल में ३ साल से आपाहिज पड़ी महिला, फैक्टरी में
रात की ड्यूटी करती हुई हिन्दुस्तानी महिलाएं, और अकेला टोरोंटो से रोज़
ओट्टावा आता हुआ ट्रक ड्राईवर, रात को बर्फ में टैक्सी चलाते टैक्सी
ड्राईवर, और घर में नितांत अकेले रहने वाले हमारे बुजुर्ग...जब भी उनके
फ़ोन आते थे, और उनको जब भी रेडियो पर मैं लेकर आती थी, उन्हें मैं उनकी
अपनी नज़र में ऊँचा उठते देखती थी...उनकी आवाज़ में जो ख़ुशी मैं महसूस करती
थी, उसको बयाँ करने की ताब मेरी लेखनी में नहीं है...
मुझे याद है, मेरी आवाज़ ने ३ साल से हॉस्पिटल में बिल्कुल पंगु पड़ी हुई
महिला को बहुत बल दिया...रोजाना उन्होंने मेरा प्रोग्राम सुनना शुरू
किया...मैं उनसे रोज़ बात करती थी, ये महिला (नाम लेना उचित नहीं होगा)
पिछले ३ साल से अपने बिस्तर पर पड़ी थीं, वो हिल नहीं पातीं थी...प्रोग्राम
का वो असर हुआ कि वो उठ कर बैठने लगीं, फिर एक दिन उन्होंने रेडियो पर ही
मुझसे कहा, क्या आप मुझसे मिलने आ सकतीं हैं सपना जी...मैंने रेडियो पर ही
उनसे वादा कर दिया...२ दिन बाद मैं हॉस्पिटल पहुँच गई...उन्होंने इतने
फ़ोन घुमा दिए कि बता नहीं सकती, भारत में अपने घर के हर सदस्य से मेरी बात
करवा दी...उनका उत्साह देखते बनता था, डॉक्टर, नर्स सभी अचम्भित
थे...कितनी ख़ुश थीं वो, उस दिन के बाद मैं उनसे हर दिन बाकायदा रेडियो पर
बात करने लगी, उनको यह अहसास दिलाया, वो अपने परिवार के लिए कितनी अहम्
हैं..और आप यकीन कीजिये...वो अब व्हील चेयर में चल-फिर लेतीं
हैं....शुक्रिया और आशीर्वाद के ना जाने कितने बोल उनके परिवार के एक-एक
सदस्य ने कहा मुझसे, जिसकी मैं हक़दार भी नहीं थी...मैं तो सिर्फ़ एक माध्यम
का सही उपयोग कर रही थी...
एक बुजुर्ग हैं, जिनको उनके अपने बच्चे नहीं पूछते, वो नितांत अकेले रहते
हैं, सरकार से उनको पेंशन मिलती है, लेकिन उतनी ही मिलती है, जितनी से वो
बस अपना गुजारा कर सकते हैं...उन्होंने एक दिन रेडियो पर ही कहा, सपना जी
आप ये प्रोग्राम अपने पैसों से चलातीं हैं, कोई विज्ञापन नहीं देतीं, आपका
बहुत खर्चा होता होगा, मैं कुछ योगदान करना चाहता हूँ..मैंने कहा भी था
उनसे, वर्मा जी जबतक कर सकतीं हूँ करुँगी, आप इसकी चिंता मत कीजिये, लेकिन
उन्होंने मेरे प्रोग्राम के लिए पैसे भेज ही दिए...मैंने उतना ध्यान भी
नहीं दिया..लेकिन उनका फ़ोन आ गया, सपना जी आपको पैसे मिले या नहीं..आख़िर
मैंने पूछ ही लिया वर्मा जी आपने कितने पैसे भेजे हैं...उन्होंने कहा $२०,
मैं सकपका कर रह गई...उनकी बातों से मुझे इतना तो महसूस हो ही गया था, कि
बेशक मेरे लिए वो रकम बहुत छोटी थी लेकिन उनके लिए बहुत बड़ी थी...उन्होंने
जो कहा था,वो हू-ब-हू लिख रही हूँ ..सपना बिटिया मैं जानता हूँ $२० से
आपका कुछ नहीं होने वाला है..लेकिन आपका यह रेडियो प्रोग्राम मेरे लिए बहुत
ज़रूरी है...मैं बहुत ग़रीब इन्सान हूँ, जो पैसे मैंने आपको भेजे हैं वो
मेरी दवा के पैसे हैं...मेरा कलेजा एकदम से मुँह को आ गया, मैं ने बोल ही
दिया वर्मा जी आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था... लेकिन उन्होंने कहा था सपना
बिटिया तुम्हारा ये प्रोग्राम मेरी दवा से ज्यादा ज़रूरी है मेरे
लिए...इसलिए इसे अपने पिता की तरफ से आशीर्वाद समझो...आज भी वर्मा जी हर
दो-तीन दिन में फ़ोन कर ही देते हैं...कहते हैं मैं हर सुबह तुम्हारे लिए
प्रार्थना करना नहीं भूलता हूँ बिटिया....भूल नहीं पाती हूँ ये सारी
बातें...
एक बुजुर्ग दंपत्ति, हर दिन ५ बजे शाम से ही रेडियो के सामने बैठ जाते थे,
जब कि मेरा प्रोग्राम ८ बजे शुरू होता था...बार-बार घड़ी को देखते जाते और
पूछते जाते एक-दूसरे से 'हल्ले नई होया' ..उनकी देखभाल करने के लिए जो
सोशल वर्कर आतीं थीं..वो हर दिन मुझे बतातीं थीं..सपना जी इनकी आखों में
इंतज़ार और बेताबी आप अगर देख लें तो अपने प्रोग्राम की टाईमिंग आप बदल देंगीं..
क्या-क्या और कितनी बातें बताऊँ...सैकड़ों बातें हैं...वो ट्रक ड्राईवर जो
टोरोंटो से ओट्टावा हर दिन आता था...कहता था मेरा सफ़र ४ घंटे का होता है
सपना जी, आपके प्रोग्राम को सुनने के लिए मैं ठीक ८ बजे चलता हूँ टोरोंटो
से, आपकी आवाज़ के साथ मेरे २ घंटे, कैसे बीत जाते हैं पाता ही नहीं
चलता....या फिर उस दंपत्ति का जिनका तलाक़ होने वाला था और मेरे रेडियो
प्रोग्राम ने वो होने नहीं दिया...या फिर उनलोगों का ज़िक्र करूँ, जो अपने
बुड्ढ़े माँ-बाप को गराज में रखते थे, और हर सुबह गुरुद्वारे छोड़ आते थे,
ताकि उनके खाने का खर्चा बच जाए..(इसके बारे में तफसील से लिखूंगी ), जिनको
मैंने इतना लताड़ा, कि वो सुधर ही गए और, उनके माता-पिता की दुआओं ने मेरी
झोली भर दी...
ऐसी ही एक शाम थी, मैं रेडियो पर अपने श्रोताओं के साथ मशगूल थी...मेरे पास
७ फ़ोन लाईन्स थे..श्रोता कॉल करते, और मैं एक-एक श्रोता से बात करती
जाती, और गाने सुनाती जाती, या फिर किसी ज्वलंत विषय पर चर्चा करती
जाती..सारे लाईन हमेशा बिजी ही रहते थे...मुझे सुनने वाले कहीं से भी फ़ोन
करते थे....जब कनाडा में रात के आठ बजते तो भारत में सुबह के ५-३० बजता
है...उस दिन भी मैंने फ़ोन उठाया था...दूसरी तरफ से आवाज़ आई..सपना मैं
प्राण नाथ पंडित बोल रहा हूँ...जीSSSSS !!!! माफ़ कीजिये कौन बोल रहे
हैं...??? कॉलर ने दोबारा कहा...मैं प्राण नाथ पंडित बोल रहा हूँ, इंडिया
से...सुनते ही मैं खड़ी हो गई थी कुर्सी से...सर आप ?? हाँ मैं....मैं तो
बस हकलाने लगी थी...
श्री प्राण नाथ पंडित मेरे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर
हैं...अपने गुरु की आवाज़ सुन कर मैं कुर्सी से फट खड़ी हो गई, बैठ ही नहीं
पाई...मेरा साउंड इंजिनीयर, जो दूसरी तरफ बैठा था...वो भी घबरा गया...वो
बार-बार इशारा करने लगा..क्या हुआ...?? लेकिन मारे घबराहट मैं उसकी बात भी
समझ नहीं पा रही थी...ख़ैर, था वो गोरा लेकिन मेरी आवाज़ से समझ गया, डरने की
बात नहीं है....मेरे श्रधेय गुरु जी ने कहना शुरू किया..अरे तुम्हारा
प्रोग्राम मैं रोज़ इन्टनेट पर सुनता हूँ, बहुत ही अच्छा लगता
है...सुबह-सुबह तुम्हारी आवाज़ सुन कर, मन प्रसन्न हो जाता है...और जाने वो
क्या-क्या कहते जा रहे थे..और मैं तो बस जी जी करती जा रही थी...मैं पूरी
तरह वही छात्रा बन गई थी, जैसी मैं कॉलेज में थी...मेरी हिम्मत ही जवाब
देने लगी थी...लग रहा था, जैसे मेरे गुरु मेरे सामने खड़े हैं, बिल्कुल वही
घबराहट, वही डर मैंने महसूस किया था, मेरे लिए यह कितने सम्मान की बात थी,
कि उनको मेरा प्रोग्राम पसंद आता है, इतना ही नहीं, उन्होंने अपना कीमती वक्त निकाल कर,
मुझे फ़ोन करके न सिर्फ़ यह बताया, अपना आशीर्वाद भी दिया...यह कितना बड़ा
सौभाग्य था मेरा, न जाने कितने हज़ार स्टुडेंट्स उनके जीवन में आए होंगे, लेकिन
उन्होंने मुझे याद रखा, मेरे लिए इससे बड़ी खुशकिस्मती की और क्या बात हो सकती है
भला !!.....कुछ देर बात करने के बाद, फ़ोन काटना पड़ा मुझे...इस बीच मैं
एक भी फ़ोन नहीं ले पाई, डर के मारे मेरी आवाज़ काँप रही थी...कुछ संयत होकर
जब मैंने फ़ोन काल्स लेना शुरू किया...मेरे सुनने वालों ने साफ़-साफ़ बता
दिया...सपना जी, आपने जितनी देर अपने गुरु से बात की आप खड़ी थीं , हमें
पता चल गया था...आपकी आवाज़ में वो घबराहट, वो आस्था, वो सम्मान था, जिसे
हम न सिर्फ़ सुन रहे थे, महसूस भी कर रहे थे...और मैं हैराँ थी, आवाज़ की
दुनिया भी कितनी पारदर्शी होती है...है ना !!!
आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे....आवाज़ 'अदा' की
ब्लॉग जगत में, नारी और नारी विमर्श हमेशा अपने परवान पर चढ़ा रहता है, लेकिन कभी, किसी ने, पुरुष या पुरुषत्व की बात नहीं की है । कई बार सोचती हूँ आख़िर पुरुषत्व का अर्थ क्या है ?
शील प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्चति। न तस्य जीवितनार्थो न धनेन न बन्धुभि।।
अर्थात, किसी
भी पुरुष का सबसे प्रधान गुण उसका सच्चरित्र होना होता है, अगर वह नहीं है, तो फिर, उसके जीवन में धन और बन्धु-बान्धवों का होना कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं करता।
सच बात तो यह है, कि अपने पर नियंत्रण करना ही, पुरुषत्व का सबसे बड़ा और मजबूत प्रमाण माना जाता है।
पुरुषत्व महज एक लिंग पर टिका हुआ प्रश्न नहीं है, जो मनुष्य, शिष्ट, सभ्य हो, जो अकर्मण्य न हो, जो अज्ञानी न हो , अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण को प्राप्त करता है, जो अपने अधीन रहने वालों की रक्षा करता हो, सही अर्थों में वही पुरुषत्व का अधिकारी है, और वही पुरुष कहलाने योग्य है ।
एक बात याद रखें कि आज भी, हमारे देश के लोगों के हृदय महानायक भगवान श्रीराम
हैं और यह केवल इसलिये कि उन्होंने जीवन भर ‘एक पत्नी व्रत’ को निभाया।
उनके नाम से ही लोगों के हृदय प्रफुल्लित हो उठते हैं।
लेकिन आधुनिक समाज में पुरुषत्व की परिभाषा, कुछ लोगों के लिए व्यभिचार और भोग-विलास तक ही सिमित रह गयी है ।
इन दिनों, गुवाहाटी में हुए हादसे ने सबको उत्पीड़ित कर दिया है। रेप हो या रेप की कोशिश, दोनों ही हालत में इसे अपराध माना जाएगा । हर देश के कानून में इस कृत्य के लिए सज़ा का प्रावधान है, लेकिन क्या वो सज़ा काफी है ?? इस घिनौने हादसे से न जाने कितनी दुधमुंही बच्चियाँ, किशोरियाँ , युवतियां और बुजुर्ग महिलाएं गुज़रतीं हैं । इस उत्पीडन से गुजरी हुई बच्चियों, किशोरियों, युवतियों, प्रौढ़ एवं वृद्धा नारियों के, मनोबल और मनस्थिति को जो क्षति पहुँचती है, उसकी भरपाई, अपराधी को दिए गए मृत्युदंड से भी पूरी नहीं हो सकती । दो वर्ष, चार वर्ष, 8 वर्ष, 25 वर्ष या फिर मृत्युदंड काफी नहीं है, इस कृत्य के लिए सज़ा के तौर पर । मेरा मन बड़ा ही उद्विग्न रहा इनदिनों । ऐसे नपुंसक, कापुरुषों को क्या दंड मिलना चाहिए, बस यही सोचती रही ।
मेरी नज़र में बलात्कारी की बस एक ही सज़ा होनी चाहिए :
'बलात्कारी का लिंग काट कर, उसके सामने ही जला देना चाहिए,ताकि वो अपनी आँखों से, अपने दर्प भरे तथाकथित पुरुषत्व की निशानी को ख़ाक में मिल कर, हलाक़ होते हुए देख सके, और वह नराधम जब तक जीवित रहे, इस बात को याद रखे कि उसने क्या ग़लती की थी । हर पल उसे अपनी करनी की याद आती रहे, और हर पल वह अपनी मृत्यु की सिर्फ आकांक्षा करता रहे । ऐसी सज़ा से एक और फायदा है, वो कभी भी, किसी भी हाल में दुबारा ऐसा कुछ भी करने के क़ाबिल ही नहीं रहेगा।
ब्लोगर बनना आज कल का नया-नया फैशन हो गया है । अगर जे कौनो काम नहीं है आपके पास, तो कौनो 'चींते की बात नहीं', ब्लॉग्गिंग ऐसा परमानेंट काम है, जिसमें रिटायरमेंट का भी चान्स नहीं है, बस दायें-बायें दो-चार महान ब्लोगर को देखिये, उनकी पोपुलारिटी, उनके कोमेंत्वा का बैंक बैलेंस देख कर रश्क कीजिये और मन में प्रतिज्ञा करके कूद जाईये, ब्लॉग्गिंग का मैदान में, देखिएगा आप कईसन बीजी हो जाते हैं । अरे आप एईसन बीजी होंगे कि बीजी नेस को भी अपना दूसरा शब्द खोजना पड़ेगा, हम तो कहते हैं, अड़ोसी-पडोसी, गाँव-घर, दोस्त-मित्र ईहाँ तक कि, घर का लोग भी आपका शकल देखने को त्राहि माम त्राहि माम करे लगेगा । हमको देखिये, 24 में से 25 घंटा हम ब्लॉग्गिंग करते हैं, स्कूल से बच्चा कब आया और कब से चिचिया रहा है, खाना दे दो भूख लगी, लेकिन हम अपना पूरा ब्लाग्गर धर्म निभाते हैं, मजाल है हमरा कानों में एक ठो जूँ तक रेंग जाए, हम तो हियाँ तक सोचते हैं चीखने दो, ऊ चीख से भी एक ठो पोस्ट हम निकालिए लेंगे । लिखिए देंगे 'फेफड़ों को कैसे मजबूत बनाएं' । लाईफ में एक्सपीरियंस बहुते मायने रखता है। लो जी हमको एक ठो और टोपिक मिल गया 'ज़िन्दगी और मेरे अनुभव' । अब हम किसी से बातो करते हैं, तो उसका एक-एक सेन्टेंस से हमको, हमरा पोस्ट झड़ता दिखता है ।
हाँ तो हम बात कर रहे थे बच्चा लोग स्कूल से आकर, जब भूख-भूख चिचियाते हैं, हम तो जी, फट से दांतों के नीचे जीभ दबा लेते हैं और बोल देते हैं, 'हाय राम खाना तो हम बनैबे नहीं किये । बेटा बस तनी सा और टाईम दे दो , बस एक ठो पोस्टवा लिख लें हम, या फिर बस ज़रा दो-चार गो कमेन्ट कर लेते हैं हम । चाहे कह देते हैं, आज तुमलोग सिरियले खा लो, लंच में, रात में खाना बना देंगे हम । लेकिन मम्मी लंच में सीरियल ? अरे तो का हो गया, कौनो डाक्टर बोला है कि लंच में सीरियल नहीं खाना है । लेकिन मम्मी कल भी यही खाए थे । कोई बात नहीं बेटा दो दिन में कुछ नहीं होता है । और फिर सीरियल फैट फ्री होता है, इसमें कितना रफेज होता है, हेल्दी होता है बेटा। मेरा राजा बेटा, अब मम्मी को लिखते दो । आज सीरियल के हेल्दिनेस पर ही पोस्ट लिख देते हैं ।
कभी-कभी पतिदेव भी चीत्कार करे लगते हैं, अरे कहाँ हो तुम ? हियाँ लैपटॉप पर हैं हम, कुछ लिख रहे हैं, अरे मैडम हमरा मोजा सब कहाँ हैं, अरे सब कपडा ऐसे ही पड़ल है ? कपडा सब धोयाया नहीं है ?? ऐ जी, प्लीज गन्दा कपडा का मोटरी से मोजवा निकाल के पहन लीजिये न , अरे हमको पोस्ट लिखना है, नहीं धो पाए, कल्हे ब्लॉग जगत में बहुते हंगामा था, एकदम मूडी फुटौवल हो रहा था, कोमेंट देने में लगे हुए थे, एही से नहीं धोवाया कपडा सब, आज पुरनका मोजा पहिन लो, कल पक्का सब कपडा धोवा जाएगा। । अरे लेकिन केतना बार हम गन्दा कपडा का मोटरी से मोजा निकाल-निकाल के पहिरेंगे, तुम भी न हदे कर देती हो एकदम से । का लिख रही हो ? 'शारीरिक स्वच्छता बहुत ज़रूरी है' इस पर लिख रहे हैं । उनका वक्र मुस्की, एकदम जी जरा देता है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार चार ठो युग बताया गया है - सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग। लेकिन बुझाता है, लिखने बाला को एक और युग का ज्ञान नहीं था 'ब्लागर युग' । आज ब्लागर युग का ज़माना है। जो कोई भी ब्लागर नहीं है, हमको नहीं लगता उसको मोक्ष या मुक्ति मिलने का चांस है । हम तो यही सोच के परेशान है, जों लोग ब्लोगार नहीं है, उनका तो जन्मे बेकार हो गया । क़यामत का दिन में तो, डेफिनेटली पूछा जाएगा, आप ब्लॉग्गिंग कीये कि नहीं, अगर कह दिया नहीं कीये, तब तो बच्चू कोई चांस नहीं है ज़न्नत-उन्नत का । इसी लिए हम कह देते हैं, जो भी आपके इस्टी-गुष्टि, दुलारे-प्यारे, परिजन-साजन, माने कि जिन लोगन को भी आप सोचते हैं जन्नत, स्वर्ग, नरक, जहाँ भी आप जाने का सोच रहे हैं, और अगर आपको बुझाता है उनको आपका पडोसी होना ही चाहिए, तो लगले हाथों उनका ब्लॉग्गिंग का मैदान में उतारिये दीजिये, काहे से कि दिस्मबर 2012 बस आवे वाला है।
ब्लॉग जगत में किसी का भद्द पीटना होवे, या कहीं कोई तीर-कमान छोड़ना होवे, तो हमरा दिल बहुते विशाल है, हम हरदम तत्पर रहती हूँ, बकिया एक मामला अइसन है, जो कि झेलेबुल नहीं हैं हमरे लिए, हमरे पति के मुंह से पराई स्त्री की तारीफ़, ई बात भला हम कैसे टोलरेट कर लेवेंगे, वैसे ऊ भी पूरा चाक-चौकस रहते हैं, कोइयो चांस नहीं देते हैं, लेकिन एक दिन बेचारे फिसल गए । कह दिए हमसे, बहुते चौड़ा होकर, तुम आज कल घर का कोइयो काम में धेयान नहीं देती हो, घर का देखो कैसा बाजा बजा रहता है, जब देखो, खाली ब्लॉग्गिंग-ब्लॉग्गिंग खेलते रहती हो, हमलोग सब तंग आ गए हैं, हम भी और बचवन भी ई तुम्हरी ब्लॉग्गिंग से । एतना तक तो हम झेल गए थे, बहुते आराम से, लेकिन अगला वाक्य बम जइसन लगा था । तुमको तो कुछो होश नहीं रहता, कल ऑफिस से लौटते बखत, पड़ोस वाले मिश्र जी बुला लिए थे हमको, उनका घर केतन सजा-सँवरा, हुआ था, बच्चा लोग भी शाम को पकौड़ी, समोसा सब खा रहा था, हम भी उनका घर से भी चाय पकौड़ी-समोसा खा कर आये थे, मिसेज मिश्र अपना हाथ से बनाई थीं । लेकिन तुमको तो तुम्हरा ब्लॉग्गिंग से ही फुर्सत कहाँ मिलता है, जानती हो, पूरा अढाई साल से हमलोगन का घर में पकौड़ी नहीं बना है । मने मन हम सोचे थे, हाँ-हाँ जानते हैं, कैसे नहीं जानेगे भला, लेकिन फिन सोचे, अगर जे एही हाल रहा तो ई मिसेज मिश्र तो मेरा घर तोडिये के रहेंगी । कल ही बुलाते हैं, उनको घर पर, बुझाता है ऊ ब्लॉग्गिंग नहीं करतीं हैं का । यही बात हम 'मित्रता' पर एक पोस्ट लिख मारे । अगले दिन मिसिज मिश्र को आमंत्रित करिए दिए और उनको ब्लॉग्गिंग पर क्रैश कोर्स भी देईए दिए । ई भी बता दिए की कैसे हम बहुत बड़ी सेलेब्रिटी बन गयी हूँ, उनकी गुमनाम ज़िन्दगी को दो-चार उलाहना भी देईए दिए ताकि उनका, सोया हुआ स्वाभिमान जाग जाए, और बस, इधर हमरी पोस्ट 'मित्रता' हिट हो गई, और उधर मिसेज मिश्र के पकौड़ी-समोसा का दूकान बंद ।
मिसेज मिश्र को जो तनी-मनी क्रैश कोर्स हम दिए थे, आपको भी बताइये देते हैं,
ब्लॉग बहुते काम की चीज़ है, बस ज़रुरत है इसका उपयोगिता समझने का । दू-चार ठो उपयोगिता तो हम हीं बताय दे रही हूँ , जैसे :
ब्लॉग का इस्तेमाल बहुते बढियां हथियार जैसन हो सकता है । अगर आपको किसी पर कोई खुन्नस निकालना है, तो आप ब्लॉग पर, जो मन में आये लिख सकते हैं और जनम-जन्म का खुन्नस निकाल सकते हैं ।
अगर किसी के भीतर, ज्ञान का सागर हिलोर मार रहा है, ज्ञान का गुब्बारा फूल कर फूटने वाला है, और ज्ञान उंडेलने का बहुते मन कर रहा है (जैसे हमको आज हो रहा है ) अब अईसे तो आप मजमा लगा कर नहीं बाँट सकेंगे ज्ञान, काहे से कि आपसे पहिले ही बहुत बाबा लोग, अपना-अपना पब्लिक का जोगाड़ कर लिए हैं, तो सबसे बेष्ट जगह है ब्लॉग । दिल खोल के आप अपना ज्ञान बघार सकते हैं, पब्लिक आपको भेटाइये जाएगा । कोई न कोई टकरीये जाएगा बेचारा ब्लोगार, आपका ज्ञान से ज्ञान प्राप्त करने।
जिनको गारी-गुप्ता का बहुते शौक है, और जो बाहर किसी को दे नहीं सकते हैं, काहे से कि हाथ-गोड़ टूटने का पूरा चांस होता है, ऊ बहुते आराम से जी भर के ब्लॉग पर, अनुसंधान कर-कर के गारी दे सकते हैं, बल्कि नया-नया गारी का निर्माण भी कर सकते हैं । कोई समस्या नहीं है । ऊ कभी 'सर्वश्रेष्ठ गारीकार प्रतियोगिता' में भी भाग ले सकते हैं।
कुछ बात का बहुते धेयान रखने का ज़रुरत है, बहुत सारे बेवकूफ लोग, आपकी आलोचना को पचा जाते हैं और आपकी बात मान लेते हैं, बाकि कुछ श्रेष्ठ ब्लोगर जो हैं, ऊ फट से बुरा मान जाते हैं । मूड़ी फुटौवल तक उतर आते हैं। ऐसे ब्लोगर को आप मन-ही-मन गधा मान लीजिये, और झट से मुंडी नवा दीजिये । दुलत्ती से भी आप बच बचा जायेंगे, काहे से की आपकी भलाई भी इसी में है ।
अगर कोई आपको बुरा कहे तो, तपाक से आप उसको धन्यवाद कीजिये और फट से कहिये , अब का कहें बुढ़ापा आ रहा है। ई तो हम सोचबे नहीं किये थे। अच्छा हुआ आप बता दिए नहीं तो इस जनम में तो हम जानबे नहीं करते।
अगर हो सके अपनी खाल मोटा कर लीजिये सुखी रहिएगा । पतला खाल वाला को बहुत तप्लिक हो जाता है । और अगर ई संभव नहीं है, तो तेल लगा कर बैठिये ब्लॉग्गिंग में । सब, गारी-गुप्ता, मीन-मेख, असहमति-आपत्ति पिछरना चाहिए, दिल दिमाग से। सुखी रहिएगा।
भूल कर भी गलत बात मत लिखिए ब्लॉग पर, काहे से की ई शाश्वत हो जाता है, कल आपके नाती-पोते देखेंगे की नाना/दादा या नानी/दादी महारसिक थे तो आपकी इज्ज़त का फालूदा बन सकता है।
किसी पर हमला करवाना है तो, भाड़ा में हमला करवाइए, खुद सामने एकदम मत आइये, जिसपर हमला करवाना है, उसका सामने एकदम बेश्तेष्ट फ्रेंड बने रहिये। ताकि सात जन्म तक, उसको पते न चले, कि ई का हुआ ।
यही सब कुछ ज्ञान वर्धक बात है, सोचे कि आज येही बात पर हमरी एक पोस्ट हो जाए। ऊ का कहते हैं बगल में छोरा और बाज़ार में ढिंढोरा, अब कहाँ जाते हम अपना पोस्ट का मटेरियल खोजने कहिये तो ?
मुझे !
बस पत्थर की इक,
ख़ूबसूरत मूरत न समझ
तू नासमझ,
मैं ह्या हूँ, शर्म हूँ,
और हूँ
ग़ैरत, नासमझ,
तालिबे इल्म भी है, पास मेरे,
मैं नहीं जाहिल कोई
बेख़ौफ़ बढती जाऊँगी,
कई मंजिलें हैं मेरी,
तेरे बेशर्म इरादों से
हर मुमकिन टकराना है,
मेरी आबरू के पर्दों को
वहशियों से बचाना है,
खबरदार करती हूँ,
तू अब होश में आ जा,
मुझे बेपर्दा करने की
हिमाक़त अब न कर ,
ओ ज़ालिम ।
मशालें इल्म की रौशन करूँ
जहाँ में नूर फैलाउँगी ।
वो तेरे तल्ख़ मंसूबे
मुझे तकलीफ़ देने के
जो तुमने गढ़ लिए ,
तुम्हें बतला दूँ ,
कलम की सुर्ख़ियों से
वो मैंने सारे के सारे
ख़ारिज कर दिए,
मेरे इरादों की लपटों में
झुलसने को अब, तैयार हो ,
नसीहतों और कायदों को
अब नामंजूर ही तू पायेगा,
मैं कुदरत का करिश्मा हूँ
बस इतना जान लो तुम ज़ाहिलो,
जादूगरनी हूँ, मैं जादू करती हूँ
तेरे घर को जन्नत बना
तेरे बच्चे मैं जनती हूँ ,
आफ़ताब हूँ मैं, तेरी ज़ीस्त का
और तू फ़क़त इक दीया ही है ,
मुझसे क्या मिलाएगा आँख ?
तुझमें दम कहाँ, जो तू मेरी,
इक चोट सह पायेगा ?
गर मैं न हूँ, तो तू बेमुरौवत
जीते जी मर जाएगा...
अक्सर एक बात सुनने को मिलती है, पश्चिमी सभ्यता ने हमारा खानाख़राब कर दिया है। पश्चिम ने हमें कहीं का नहीं रखा, हमारे देश की सम्पूर्ण संस्कृति मटियामेट हो गयी, सिर्फ इनके कारण। एक बात हम नहीं समझ पाते, क्या पश्चिम के लोगो ने हिन्दुस्तानियों की गर्दन पर बन्दूक रख कर कहा है, कि तुम हमारी संस्कृति अपनाओ नहीं तो भुगतोगे। जैसे कपडे हम पहनते हैं, वैसे अगर तुमने अपनी बेटियों को नहीं पहनाया तो परमाणु बम गिरा देंगे। वाह भाई वाह ! दूकान आप जाते हैं, कपडे आप पसंद करते हैं, जेब में हाथ डाल कर आप पैसे निकलते हैं, ख़ुशी-ख़ुशी फुदकते हुए आप घर आते हैं, जब आपकी बेटी वो कपडे पहन कर निकलती है, तो सीना आपका फूल कर 45 इंच का होता है, जब आपके बच्चे अंग्रेजी में गिटिर-पिटिर करते हैं तो, मूँछों पर ताव आप देते हैं, फिर पश्चिमी लोगों को किस बात का सारा क्रेडिट दे रहे हैं आप ???
अपनी कमियों का दोष, दूसरों पर डालना एक किसिम की कायरता है, पश्चिम वाले नहीं आए थे कहने, कि आप मेरी संस्कृति अपनाएं, वर्ना आप कहीं के नहीं रहेंगे । उसे
अपनाना आप का अपना फैसला है । भारतीय विद्वानों, कुछ तो शर्म कीजिये, अपनी गलतियों को स्वीकारने का माद्दा रखिये । ई तो अच्छी रही 'खेत खाए गधा और मार खाए जोलहा '। और जब अपना ही लिया है, तो उसका जो भी अंजाम है, भुगतने के लिए भी तैयार रहिये । क्योंकि उसकी सारी जिम्मेदारी आपकी बनती है । जिसे देखो मुंह उठा कर, पश्चिम को दोष दे देता है । वो अगर ऐसा करते हैं तो ये उनकी अपनी इच्छा है । आप मत करें न नक़ल, किसने कहा है आपसे 'ओखर चढ़ के बराबरी करने को' ??? पश्चिम ने न हाथ जोड़ कर कहा, कि हम जो-जो करते हैं तुम करते चले जाओ, वड्डी किरपा होगी । आप तो अपनी चीज़ भी तभी अपनाते हैं, जब पश्चिम आपको बताता है, यह चीज़ अच्छी है, फिर चाहे वो 'योग' हो या 'गाँधी' ।
अगर कोई न चाहे, तो नहीं ही अपनाएगा । गांधी जी के ज़माने में जितने अँगरेज़ और जितनी अंग्रेजियत हिन्दुस्तान में थी, उतनी शायद हमारे इस जन्म में नहीं होने वाली है, लेकिन गाँधी जी को वो नहीं अपनाना था, तो नहीं अपनाया उन्होंने । उनके साथ बहुत थे, जिन्होंने उधर का रुख भी नहीं किया। मैनचेस्टर की ईट से ईट बजा कर रख दी थी उन्होंने। सारे विदेशी कपड़ों की होली जला दी थी। एक-एक, भारतीय ने विदेशी कपड़ों का ऐसा बोयकाट किया कि मैनचेस्टर की इकोनोमी चरमरा गयी। आप भी कीजिये ऐसे फैशन का बोयकाट किसने मना किया है। आप अपने बच्चे नहीं सम्हाल पाते और अपनी कमजोरी फट से दूसरों पर लाद देते हैं। अच्छा तरीका है, अपनी कमियों पर पर्दा डालने का।
मेरा घर ही पश्चिम में
है, मेरे बच्चे यहीं बड़े हुए हैं। हमने यहाँ की संस्कृति उतना ही अपनाया है, जितना हम पचा सकते हैं, और जितने से हमारी पहचान को कोई ठेस नहीं लगती। यहाँ का जो भी पहनावा है, वो यहाँ के मौसम के अनुसार है। आप लोग नहीं समझ सकेंगे, आना पड़ेगा यहाँ, और कुछ दिन रहना भी पड़ेगा, तभी बात समझ में आयेगी।
कितनी अजीब बात है, आज भारतीय पुरुषों का चरित्र, महिलाओं के कपड़ों पर निर्भर करता है। बहुत आसान सा तरीका है, लड़कों ने किसी लड़की को छेड़ दिया, पूछने पर, बहुत बेशर्मी से कारण मिलेगा 'जी इसने कपडे ही ऐसे पहने थे, तो हम क्या करते। वाह क्या दलील है, क्यों नहीं कुछ कर सकते थे आप। वही कपडे अगर अपने घर की कोई लड़की पहन कर निकले, तब तो नियत ख़राब नहीं होती, लेकिन अगर कोई दुसरे घर की लड़की निकले, फट नियत खराब हो जाती है। नियत भी परमिट ले-ले कर खराब होती है। यह सिर्फ और सिर्फ चारित्रिक पतन का द्योतक है, और कुछ नहीं।
पश्चिमी देशों में भी तो लडकियाँ हैं और वो भी
अत्याधुनिक हैं, भारत से कहीं ज्यादा । पुरुष भी हैं यहाँ, लेकिन ऐसी गलीज़ नहीं देखी यहाँ । छेड़-छाड़, ईव-टीज़ जैसी चीज़ यहाँ देखने को आज तक नहीं मिली। बल्कि यहाँ कोई किसी को घूरता भी नहीं है। पुरुष इस तरह की हरकत करने की हिम्मत भी नहीं करते क्योंकि कानून भी बहुत सख्त है।
महिलाएं,
पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं | मेरी बेटी यूनिवर्सिटी
जाती है, उसकी क्लास रात १० बजे ख़त्म होती है, घर आते आते उसे ११ बज ही
जाते हैं...लेकिन मुझे इस बात की फ़िक्र नहीं होती, कि उसके साथ कोई
अनुचित हादसा न हो जाए, हाँ मुझे फ़िक्र होती है,तो रोड एक्सीडेंट की । अब आप
बताइये कि इसमें लड़की के आधुनिक होने से, कहाँ कोई दिक्कत आ रही है । यहाँ
लडकियाँ हर तरह से सुरक्षित हैं, भारत में क्यों नहीं हैं नारियां सुरक्षित ???? पश्चिमी संस्कृति
अगर इतनी ही बुरी होती तो यहाँ भी आए दिन हंगामे होते, क्योंकि पुरुष यहाँ
भी हैं और उनमें होरमोंस भी हैं....
स्त्री की होड़ पुरुष बनने की कभी
नहीं रही है, हो भी नहीं सकती। स्त्री सिर्फ अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है और करती
रहेगी, क्योंकि स्त्री भी एक सामाजिक प्राणी है, और इसे आप पुरुषगण खुद के लिए अभिशाप भी समझ सकते हैं, ईश्वर ने हम स्त्रियों को भी, अच्छा-ख़ासा दिमाग
दे दिया है, और हम अपने दिमाग का इस्तेमाल करना चाहती हैं। स्त्री भी डॉक्टर,
ईन्जीनियर, पाइलट सबकुछ बन सकती है, और बनना चाहती है...वो अपने मष्तिष्क को
सिर्फ़ घर में रोटी बना कर, बेजा नहीं होने देना चाहती है । पुरुषों को तो ख़ुश
होना चाहिए कि स्त्री रोटी बनाने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ करके उनका हाथ बँटाना चाहती है । कभी इस नज़रिए से भी तो सोच कर देखें।
वाह रे वड्डे ब्लोग्गर !!
हम कई छोटे ब्लोगरों ने अपनी तरफ से सबसे अनुरोध किया था http://blogkikhabren.blogspot.ca का विरोध करने के लिए, जहाँ गलत तरीके से महिलाओं की तस्वीर लगाई जाती है, इन महिलाओं का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया है, लेकिन एक भी कमेन्ट किसी भी ब्लॉग पर या कहीं इस बात पर चर्चा नहीं हुई, इन महान ब्लोग्गरों द्वारा, कि हाँ ये गलत हो रहा है, और इसकी भर्त्सना होनी ही चाहिए, कम्प्लेन होना ही चाहिए । एक भी 'तथा कथित', आंग्ल भाषा में 'SO CALLED' बड़े ब्लोग्गर नहीं आये, इस बात के लिए सहयोग देने, या इतना भी कहने, हम आपके साथ हैं । जगह जगह अपने गीत-गोविन्द का राग अलापने का, अपनी बडाई करने का, वाह वाह करने का, वाह-वाह लेने का, समय है लोगों के पास, लेकिन इस काम के लिए वक्त नहीं है। बहुत बड़े ब्लोगार बनते हैं सब, अजी काहे के बड़े ब्लोग्गर ???? धन्य हैं आप और आपकी बड़ी ब्लोगरी ।
हाँ नहीं तो...!
हर मनुष्य में स्त्रियोचित गुण और पुरुष के गुण होते हैं। पुरुषों में पुरुषत्व ज्यादा होता है और स्त्रियों में स्त्रीत्व की अधिकता होती है। लेकिन कुछ पुरुष जो शारीरिक रूप से तो पुरुष होते हैं लेकिन उनमें स्त्रीगत गुण ज्यादा हो जाते और ठीक इसके उल्टा कुछ स्त्रियों में पुरुषत्व के गुण ज्यादा देखने को मिलता है। इस तरह के होर्मोनल इम्बैलेंस की वजह से किन्नर, गेय और लेसबियंस जैसे लोग हमें देखने को मिल जाते हैं। सच पूछा जाए तो समलैंगिगता, बायोलोजिकल और साइकोलोजिकल इम्बैलेंस का नतीजा होता है। इसमें ऐसे व्यक्तियों का कोई दोष भी नहीं होता, क्योंकि हारमोंस पर हमारा कोई इख्तियार नहीं। लेकिन समाज समलैंगिक लोगों को हिकारत की नज़र से देखने का आदि है । अपवादों (जिन्हें हम अपवाद कहते हैं) से दुनिया भरी पड़ी है, और ये भी अपवाद हैं, हमारी नज़र में ।
एक समय था, जब ऐसी कमियों वाले (जो हमारी नज़र में कमी है), खुद को बहुत अकेला पाते थे, एक त्रासदी से गुजरते थे, समाज की उलाह्नाओं के बीच खुद को दबा कर जी लेते थे। अब समय बदल रहा है और इनलोगों ने भी जीवन जीने की ठान ली है। सोचने वाली बात यह है, अगर यह उनकी मजबूरी नहीं होती तो भला ये क्यों नहीं एक नोर्मल ज़िन्दगी जीते ???
भारत और भारतीयों के लिए यह विषय बेशक चौंकाने वाला होगा, लेकिन यहाँ इन देशों
में समलैंगिक रिश्ते पूर्ण रूप से हैं स्वीकार्य हैं, मेरी बेटी की दोस्त ऐसी
ही माओं की बेटी है, और उसे कहीं कोई समस्या नहीं हुई है न ही होगी..बहुत
आराम से ऐसे जोड़े रहते हैं, और उनके बच्चे भी बिना किसी कुंठा के जीते हैं..जब
ऐसे सम्बन्ध बन ही रहे हैं तो हमें उन्हें स्वीकारने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए..
ये सही है कि, हमें ऐसी बातों की आदत नहीं है, लेकिन अगर हम उनकी दशा को समझने की कोशिश करें और उनकी भावनाओं को यथोचित सम्मान देते हुए उन्हें स्वीकार करें तो कहीं कोई मुश्किल नहीं है।
इस तरह की समस्या अगर घर में आ जाए, अर्थात आपका बच्चा अगर ऐसा निकल आये तो, माता-पिता झेल नहीं पाते हैं। मुश्किल भी है झेलना, लेकिन बच्चे को उलाहना देना, उसके साथ ज़बरदस्ती करना, अमानवीय होगा। इसे बिलकुल वैसे ही देखना चाहिये जैसे कोई नेत्रहीन हो, कोई गूंगा हो तो आप उसका साथ देते हैं, ऐसे बच्चों को हम ब्रेल सिखाते हैं, साईन लान्गुयेज सिखाते हैं ताकि वह अपना जीवन जहाँ तक हो सके नोर्मल जी सके, जो परिभाषा हमने नोर्मलसी की दी हुई है, फिर समलैंगिकता के साथ यह दुर्व्योहार क्यूँ ?
पहले मुझे भी अटपटा लगता था, लेकिन बात-चीत करने के बाद जो बातें सामने आयीं, उन्हें सुन कर लगा कि यही उनके लिए नोर्मल है। देखते रहने पर स्वीकार्य हो ही जाता है...अब मुझे बिल्कुल भी ऐसा रिश्ता अजीब नहीं लगता ।
दुनिया बदल रही है, और फिर ऐसे सम्बन्ध हमारे समाज में अनादिकाल से रहे हैं, बात सिर्फ इतनी है कि हमने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया, या यों कहें कि हम उसे स्वीकारना नहीं चाहते हैं..,एक बार अगर
स्वीकार लिया तो कुछ भी बुरा नहीं लगता है...
छी-छी..! कितनी गन्दगी है...! कितनी बदबू..! कितनी बीमारियाँ..? पूछते हो, ये कहाँ ले आई हूँ तुम्हें ?
अरे..! ये है तुम्हारे देश का ही हिस्सा, जहाँ.. काली बस्तियां हैं... यहाँ, हर दिन, ज़िन्दगी, आखें खोलती है, कीड़े-मकोड़ों सी रेंगती है, फिर खड़ी हो जाती है, घुप्प अंधेरों में..
और.. बन जाती है, बुनियाद, तुम्हारे शहर की...
यहाँ की औरतों से ही चलता है, तुम्हारे घर का, चूल्हा-चौका...
इनके बेटे-बेटियों ने ही, खड़ी कर दीं हैं , आलिशान इमारतें, तुम्हारे शहर की...
यही तो चलाते हैं, कल-कारखाने, तुम्हारे शहर के...
यहीं क्यूँ रुकते हो ? इन लोगों ने ही दे दिए हैं, तुम्हारे देश को, अजीब से नेता और करिश्माईअभिनेता, जिन्होंने, तुम सबको दिया है सिर्फ, ख़्वाबों का समंदर और बातों के, ख़ाली आसमान....
क्यों दे दिया तुमने इतना बोझ, इनके कमज़ोर कन्धों पर..? तभी तो, तुम्हारा पूरा शहर, हो गया है... इतना कमज़ोर, गन्दा, बीमार, और बदबू भरा....!
बोलीवुड का इतिहास उठा कर देखें, मुस्लिम औरतों ने उस समय फिल्मों में करना शुरू किया था, जब हिन्दू औरतों के लिए यह सब कल्पना से परे था । अधिकतर मुसलमान सिने तारिकाएँ, अच्छे घरों से नहीं थीं, किसी का सम्बन्ध, नाचने वाले घरों से था या फिर नौटंकी करने वालों से। फिर भी, ऐसा क्यूँ है कि हम भारतीय हिन्दुओं ने, आज तक कभी किसी भारतीय मुस्लिम सिने तारिका का अनादर नहीं किया है, हमने हमेशा, उन्हें ऊंचे से ऊंचा स्थान दिया है, उनको इज्ज़त बक्शी है, चाहे उनका भूत कैसा भी रहा हो। इसलिए कि, हमें बचपन से यही सिखाया गया है। हम चाह कर भी, किसी स्त्री का अनादर नहीं कर सकते।
अब उनकी मजबूरी चाहे जो भी रही हो, लेकिन मैं उनके
हिम्मत को सलाम करती हूँ, कि उन्होंने समाज और अपने धर्म की परवाह न करते हुए कला को अपनाया । और हिन्दुस्तान की अवाम ने जी भर कर उनका साथ निभाया। सोचती हूँ अगर ये सिने-तारिकाएं, किसी मुसलमान देश में जन्म लेतीं तो क्या वो ये वो मुकाम पातीं, जो यहाँ रह कर उन्होंने पाया ???
उन्हें इतने ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने में भारतीय पुरुषों का सबसे बड़ा हाथ रहा है। यह भारतीय पुरुष के संस्कार ही हैं जिन्होंने, इन एक्ट्रेसस के फॅमिली-बैकग्राउंड को कभी तवज्जो नहीं दिया, सिर्फ उनकी कला को देखा और सराहा। जबकि, 40-70 के दशक की ज्यादातर मुसलमान सिने तारिकाओं का पारिवारिक परिवेश बहुत भव्य नहीं था।
लेकिन ब्लॉग जगत के मुस्लिम पुरुषों का, अच्छे घरों की हिन्दू महिलाओं, के प्रति रवैय्या देख कर हैरानी होती है, कि कितनी सफाई और कितनी प्लानिंग से वो, हिन्दू महिलाओं की बेईज्ज़ती करके, साफ़ निकल जाते हैं। उनकी आँखों में धर्मान्धता ऐसी कूट-कूट कर भरी हुई है, कि उनको नज़र ही नहीं आता, कि वो सम्मानित घरों की महिलाओं की प्रतिष्ठा से खेल रहे हैं। प्रतिष्ठा जैसी चीज़ का कोई धर्म नहीं होता। मुसलमान स्त्री की प्रतिष्ठा, हिन्दू स्त्री की प्रतिष्ठा से ऊंची नहीं होती। वो सिर्फ प्रतिष्ठा होती है। उस पर से हज़ारों थोथी दलील देना। ये वो लोग हैं जो औरत की आबरू, इज्ज़त का गाना गाते हुए थकते भी नहीं हैं। लेकिन जब अमल करने की बात आती है, तो धर्म के हिसाब से वो 'प्रतिष्ठा' का बंटवारा करते हैं।
सिनेमा में काम ही करना बहुत बड़ा 'बोल्ड' कदम माना जाता था, इसमें से कितनी ऐसी भी, मुसलमान सिने तारिकाएं हैं, जिनकी बोल्डनेस की सीमा रेखा पार करना, आज की तारिकाओं के लिए भी एक चुनौती है, फिर भी हिन्दुस्तान ने न सिर्फ इनकी इज्ज़त अफजाई की है, यहाँ इनको हर वो मुकाम हासिल हुआ है, जिसकी भी इन्होने तमन्ना की है/थी।
कुछ बहुत ही पुरानी तारिकाओं की हम बात करते हैं। बँटवारे के बाद अधिकतर ने हिन्दुस्तान को ही अपना घर माना था, कुछ ऐसी थीं जिन्होंने हिन्दुस्तान छोड़ कर जाने की, कोशिश की या चलीं गयी, गुमनामी के अँधेरे में डूबते वक्त नहीं लगा उनको । नूरजहाँ ने अपना कैरियर बरकरार रखा तो था, लेकिन वो चमक उनको पाकिस्तान में नहीं ही मिली, जो हिन्दुस्तान में उनको मिली थी।
ताज़ा मिसाल हैं रीना रॉय, उन्होंने पकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर मोहसिन खान से शादी की, कुछ ही सालों बाद, उनका पाकिस्तान में जीना मुहाल हो गया, कहते हैं उनकी ज़िन्दगी नरक से भी बदतर कर दी गयी, आखिर उन्हें भाग कर अपने हिन्दुस्तान आना ही पड़ा, जबकि ,उनके मज़हब के लिहाज़ से पकिस्तान उनको माफ़िक आना चाहिए था ।
बटवारे के बाद मशहूर सिने तारिका, खुर्शीद बानो, जो के.एल. सहगल के ज़माने की थीं, ने पकिस्तान को अपना नया घर बनाने का फैसला किया, लिहाज़ा वो अपने पति के साथ करांची शिफ्ट हो गयीं । भारत में उनकी आखरी फिल्म थी 'पपीहा रे'। पाकिस्तान जाकर उन्होंने दो फिल्मों में काम किया, लेकिन दोनों ही फिल्में लचर निर्देशन और फूहड़ तकनीकी की वजह से डब्बा बंद हो गयीं और खुर्शीद बानो के कैरियर का भी पटाक्षेप हो गया।
अक्सर देखती हूँ, पाकिस्तान के बड़े-बड़े गायक, जब तक पाकिस्तान में रहते हैं छोटे-छोटे ही रहते हैं, भारत में कदम रखते ही, उन्हें प्रसिद्धी, पैसा, पोजीशन, पावर और पहचान मिलती है। और कई तो ऐसे हैं जो आकर, वापिस जाने का नाम ही नहीं लेते, जैसे 'अदनान सामी', 'राह्त फ़तेह अली खाँ '। अदनान सामी या राह्त फ़तेह अली खाँ जब तक, पाकिस्तान में थे, गुमनाम ही थे, यहाँ तक कि फ़तेह अली खाँ को भी नाम तभी मयस्सर हुआ, जब उन्हें हिन्दुस्तान की अवाम का साथ मिला।
आज तक, कोई भी बता दे, एक हिन्दुस्तानी नाम, जो मुसलमान न हो, जिसे कहीं भी, किसी भी मुसलमान देश में सम्मान मिला हो, किसी भी विषय में। आप ढूँढ ही नहीं पायेंगे। जबकि हिन्दुस्तान ने, कई गैर हिन्दुस्तानियों को, उनकी कला की वजह से, या उनके और दुसरे गुणों के लिए, न सिर्फ पहचान दिया है, बल्कि उन्हें , पैसा, पोजीशन, प्रसिद्धि और भी हर तरह की सौगात से नवाज़ा है।
हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों का ही दिल इतना बड़ा है, जो ऐसा कर पाते हैं, उसके बावज़ूद, यहाँ के मुसलमान, जो मुसलमान बाद में हैं, पहले हिन्दुस्तानी हैं, यहाँ रह कर, यहीं से सबकुछ लेकर, पहली फुर्सत में हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों के अगेंस्ट हो जाते हैं। क्रिकेट की ही बात लीजिये। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान में मैच हो रहा हो, तो पाकिस्तान के जीतने पर मुसलमान मोहल्ले में जश्न मनना, कोई बहुत नयी बात नहीं है। कोई पाकिस्तान में ऐसा जश्न मना कर दिखा दे, हिन्दुस्तान के जीतने पर तो हम मान जाएँ ।
कहते हैं मुसलमान का अर्थ होता है 'मुसल्लम हो ईमान जिसका', ये कैसा ईमान है जो अपनी सर-ज़मीन, उनके अपनों और उन्हें अपनाने वालों का ही नहीं है। जब आप अपने देश के प्रति ही ईमानदार नहीं हैं, देश के लोगों के प्रति इमानदार नहीं हैं, तो फिर ईमान की बात ही कहाँ रह जाती है। मैं यह नहीं कहती कि सारे मुसलमान ऐसे हैं, हज़ारों ऐसे होंगे जिन्हें, हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों से बे-पनाह मोहब्बत होगी। जो हिन्दुस्तान के लिए जान दे सकते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिनके दिल में हर वक्त धर्म का ज़हर उबाल खाता रहता है। मेरे ऐसा लिखने पर, बहुत सारे आ जायेंगे कहने आपने गलत लिखा है। लेकिन जो कहेगा वो मुझे यह भी तो दिखाए कि ऐसा नहीं है। तो मैं मान जाऊँगी अपनी गलती, और माफ़ी भी मांग लूँगी । लेकिन पहले मुझे ऐसा कोई नज़ारा दिखाया जाए।
सच कहूँ ये मुझे यह लिखते हुए अपार दुःख हो रहा है। लेकिन जो सच है, उसे कहना तो पड़ेगा ही। हिंदी ब्लॉग जगत में गिने चुने मुसलमान हैं, लेकिन उन गिने-चुने में ही, 80% से अधिक ऐसे हैं, जो सिर्फ दहशतगर्दी, गुंडागर्दी के पर्याय हैं। जो बचे हुए हैं, उनकी शराफत, भलमानसहत की कसमें खायी जा सकतीं हैं। लेकिन जो ग़लत हैं, वो निहायत ही ग़लत हैं। उन्होंने बहुत सोची-समझी साज़िश के तहत, हिन्दू महिलाओं को, ग़लत तरीके से, दुनिया के सामने पेश किया है। ऐसा कैसे होता है कि, सिर्फ हिन्दू महिलाओं की तसवीरें, गलत लेबल के साथ, अभद्र सन्दर्भ से लिथड़ी हुई, उनके ब्लोग्स की शोभा बढ़ातीं हैं ??? कोई हिन्दू महिला अगर अपने दुधमुहे बच्चे को छोड़ कर, बिना तलाक़ लिए हुए किसी मुसलमान पुरुष की अंकशायनी बन जाए तो वो वीरांगना कहाती है ???
हमने बहुत, शराफ़त से आग्रह किया है कि, जो पोस्ट्स हिन्दू महिलाओं के
सम्मान को हर्ट कर रहीं हैं, उन पोस्ट्स को हटाया जाए। उनकी तस्वीर हटाई
जाए। लेकिन, सुन कर बात को अनसुनी किया जा रहा है। उनके मंसूबे यहाँ एक बार क़ामयाब हो गए हैं। बार-बार नहीं होंगे। हमें उनको बताना होगा कि हम अमन-पसंद हिन्दुस्तानी तो हैं, लेकिन उनकी चालबाजी हमारी समझ में अब आ गयी है। उनकी गलत-सलत दलीलें यहाँ काम नहीं आएँगी। वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए, या तो वो अपना रवैय्या बदलें, और वो पोस्ट्स तुरंत हटायें या फिर वो तैयार हो जाएँ, क्योंकि अब हर तरह की कार्यवाही की जायेगी और हम क़ामयाब होंगे।
मैं गुज़ारिश करतीं हूँ, उन सभी बहनों से जिन्होंने, ऐसे ब्लोग्स पर अपनी मौजूदगी दर्ज की है, अपना नाम वापिस लें, क्योंकि जो ब्लॉग, आपकी सखियों को प्रतिष्ठा नहीं दे सकता, वो आज नहीं तो कल आपको भी इस योग्य नहीं समझेगा। मैं सिर्फ रिक्वेस्ट कर सकती हूँ। बाकी आप बहनों को जो उचित लगे वही कीजिये। लेकिन अगर आप अपना नाम उन विध्वंशी ब्लोग्स से वापिस लेंगी, तो यकीन कीजिये, एक दिन आप अपने इस फैसले से बहुत खुश होंगी। ये मेरा आपसे वादा भी है और सलाह भी।
आप सबसे निवेदन है कि भारी संख्या में जाकर, इस लिंक पर जाकर अपना विरोध दर्ज करवाएं..:
I am presenting this complaint letter, with
reference to a situation, where a community blog has been using Hindu women's
pictures, inappropriately, writing about them maliciously and using labels for
search
in undignified manner.
I
hereby submit the links of the posts that have been submitted for universal
audience to view.
I have requested the blog owner many times, to remove
these uploaded posts, but so far have received lame excuses. These writing
have been hurting these women's dignity severely and they are going
through,
mental agony continuously. These writings are also against our
religious belief, and tarnishing our sentiments.
Therefore, I urge you, to please look into this matter
urgently and hope an strict action from your honorable office, to end
this notorious act, that is being played for very long time.
Defamation/Libel/Slander को सेलेक्ट करें
और Continue दबाएँ
दुसरे पेज में Blogger/Blogspot
सेलेक्ट करें
scroll डाउन करें और
I have found content that may be defamation/libel
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अगले खाली बक्से जिसके ऊपर लिखा है In order to ensure specificity, please quote the exact text from each
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