अब..! 
शक़ मिजाज़ बन गया
शक़ मिजाज़ बन गया
कुछ सबूत जुटा रही हूँ ,
अलफ़ाज़ तक ख़फा हैं 
बिन आवाज़ गा रही हूँ ,
ख़ाली क्यों रहे कहो 
वरक़ कोई शजर का ,
चुप सी धडकनों की
सुनो सदा सुना रही हूँ ,
वरक़ कोई शजर का ,
चुप सी धडकनों की
सुनो सदा सुना रही हूँ ,
पहचान मेरी भी यहाँ ,
डगमग सी हो गयी है ,
डगमग सी हो गयी है ,
पानी में अपने पाँव के, 
मैं निशाँ बना रही हूँ......  
बेकरार दिल तू गाये जा...आवाज़ 'अदा' की...
