चल रही साँस पर, लग रही तलवार है
बिक रहे हैं लोग यहाँ, सुबहो-शाम हर तरफ
ये जन्नते-आदम नहीं, बस चोर-बाज़ार है
है खड़ा हुआ कोई, बुलंदियों की शाख़ पर
और कोई पड़ा हुआ, ज्यूँ गिरी हुई दीवार है
मुनादी हो गयी यहाँ, मेरी नीलामी की सुनो
कोई उसे खबर करो, वो मेरा ख़रीददार है
ख़याल सँवरने लगे, अब रूह की ज़मीन पर
पहचान जायेंगे लोग, इक शक्ल इख्तियार है
बहुत खूब..
ReplyDeleteअच्छा है
ReplyDeleteअब आपकी आवाज सुनने की आदत सी हो गयी है, आपकी आवाज सुनने को नहीं मिली तो थोड़ी निराशा हुई|
है खड़ा हुआ कोई, बुलंदियों की शाख़ पर
ReplyDeleteऔर कोई पड़ा हुआ, ज्यूँ गिरी हुई दीवार है
बहुत सुन्दर गज़ल
मेरा कहने का ये है मन, अदा जी.
ReplyDeleteबिना गाने के सूनापन , अदा जी.
लगा दें आप अपना एक गाना .
तो आये झूम के सावन, अदा जी.
बेहतरीन।
ReplyDeleteमेरा कहने का ये है मन, अदा जी.
ReplyDeleteबिना गाने के सूनापन , अदा जी.
लगा दें आप अपना एक गाना .
तो आये झूम के सावन, अदा जी.
bahut sundar .
शानदार गजल।
ReplyDeleteसादर।
‘ये जन्नते-आदम नहीं, बस चोर-बाज़ार है’
ReplyDeleteयह तो हम रोज़ टीवी पर देख ही रहे हैं :)
खरीदारी की उम्मीद भी किससे :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आने से बहुत रोचक है आपका ब्लॉग बस इसी तह लिखते रहिये येही दुआ है मेरी इश्वर से
ReplyDeleteआपके पास तो साया की बहुत कमी होगी पर मैं आप से गुजारिश करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे भी पधारे
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
एक नैतिक कथा थी जिसमें सबसे सुखी आदमी का पहना हुआ कुर्ता\कमीज मंगवाया था किसी महात्मा ने। सबसे सुखी जो आदमी मिला, उसके बदन पर कमीज\कुर्ता ही नहीं था।
ReplyDeleteऐसी नीलामी में बोली लगाने योग्य कौन है?