ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं
आँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं
कुछ चेहरों को सँवरने की, ज़रुरत कहाँ पड़ती है
रुख-ए-रौशन की झलक पाकर, आईने सँवर जाते हैं
इस ज़मीं से फ़लक तक की, दूरी नापने वालो
तेरे वज़ूद से तेरे फ़ासले, तुझको क्या बताते हैं ?
मैं तेज़ धूप में रहना चाहूँ, संग मेरे मेरा साया है
छाँह में मेरे खुद के साए, मुझसे मुँह छुपाते हैं
आँधी के सीने में 'अदा', महबूब की चाहत होती है
रेत पे उसकी साँसों से, कई अक्स उभर कर आते हैं
आपके हसीन रुख़ पे...आवाज़ 'अदा' की
|
वाह दी, हरेक पंक्ति रिश्तों को समझाती सी लग रही है..
ReplyDeleteइन पंक्तियों ने तो मजबूर ही कर दियामुझे भी कुछ लिखने को
मैं तेज़ धूप में रहना चाहूँ, संग मेरे मेरा साया है
छाँह में मेरे खुद के साए, मुझसे मुँह छुपाते हैं
वाह
ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं
ReplyDeleteआँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं
वाह , वाह , बहुत सही कहा अदा जी ।
मनमोहक गाना ।
ब्हुत सुंदर अदा जी। शानदार।
ReplyDeleteआँख में होकर भी चेहरे दिल से उतर जाते हैं ...
ReplyDeleteएक पंक्ति मेरी भी जोड़ लीजिये उधार की है
कैसे पड़ते हैं भंवर रिश्तों की नदी में कभी कंकर डाल कर नहीं देखा !
खूबसूरत ग़ज़ल ...
एक एक पंक्ति ने झंकृत कर दिया।
ReplyDeleteताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं,
ReplyDeleteआँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं...
आईना वही रहता है मगर चेहरे बदल जाते हैं...
जय हिंद...
जय हिंद...
रिश्तों की गरिमा बनाये रहने के कारगर नुस्खे ...
ReplyDeleteताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं,
आँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं.
बहुत खूबसूरत गज़ल
ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं
ReplyDeleteआँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं
kya baat kah di....didi ne........
pranam.
रुख-ए-रौशन की झलक पाकर, आईने सँवर जाते हैं....
ReplyDeleteये आईने तो झूठे होते होंगे :)
हर पंक्ति एक से बढ़कर एक, सोचने समझने को मजबूर करती हुई। गहरी बातें भी बहुत खूबसूरत और सहज तरीके से लिख डालती हैं आप।
ReplyDeleteगाना हमेशा की तरह मधुरम मधुरम।
खूबसूरत ग़ज़ल ...
ReplyDelete
ReplyDeleteहाँ जी.. आज टिप्पणी कर रहा हूँ,
भला बताइये, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर है ?
ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं
ReplyDeleteआँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं
कुछ सीख और सबक देती हुई पोस्ट . गाना तो बढ़िया है ही.
मैं तेज़ धूप में रहना चाहूँ, संग मेरे मेरा साया है
ReplyDeleteछाँह में मेरे खुद के साए, मुझसे मुँह छुपाते हैं
मन को छूती बहुत अच्छी पन्तियाँ ....
rishte agar sachhe hon to kabhi bigarte nahin,
ReplyDeleteunki sugandhi se bigare rishtey bhi sanwar jate hain.
bahut acchi baat likhi hai aapne, par main thora positive hun rishton ke prati,isliye apne vichar kuchh iss tarah vyakt kiye.
bahut khoobsurat gazal...daad kabool karen..
ReplyDeleteयूं तो सब बेहतर पर अपना वोट ...
ReplyDeleteमैं तेज़ धूप में रहना चाहूँ, संग मेरे मेरा साया है
छाँह में मेरे खुद के साए, मुझसे मुँह छुपाते हैं