क्या जाने..!
आँसूओं का मौन
कुछ कह भी पाता है
या
नहीं,
खिड़की से सिर निकाल कर
देखा तो था एक बार
अपने शहर को,
उस आँगन को,
उन गलियों को,
जहाँ मैं खेली थी,
धूल में
ग़ुम हो गए थे
दो बूँद आँसू,
मन ही में
अलविदा कह कर,
खींच ली थी
गर्दन मैंने
खिड़की के अन्दर,
पर पलकों पर
इक साया उभर ही आया था,
जीर्ण सी चारपाई
पर
पड़ी हुई काया,
मानो मुझे आँखों से
ही पुकार रही थी,
मन में करुणा और प्रेम के
कितने तूफ़ान आये थे,
जी तो किया था
रुक जाऊँ,
पहुँच जाऊँ
अपनी माँ के पास,
लेकिन चाह कर भी
ऐसा क्यूँ नहीं कर पायी मैं ?
सुहानी चांदनी रातें, हमें सोने नहीं देतीं.... आवाज़ 'अदा' की..
बेटियां कितना कुछ चाह कर भी नहीं कर पाती हैं ..
ReplyDeleteएक शहर , एक देश में फिर भी कुछ गुन्जायिश होती है , प्रवासियों की मुश्किल को समझा जा सकता है !
पुरानी गहरी और अमिट यादों को अच्छी तरह समेट कर प्रस्तुत किया है आपने अपनी कविता में.
ReplyDeleteमुक्ति फिल्म का ये गाना male voice में है. मुझे बहुत पसंद है और पूरा याद भी है. आपकी aavaz में सुना,अच्छा लगा.
bhawbhini kavita bahut achchi lagi.
ReplyDeletewahwa....badiya kavita...Ada ji sadhuwad swikaren....
ReplyDelete..........
ReplyDelete..........
aisi yadon se abad hai ye adhi duniya........
pronam.
अपनी अंतरात्मा से सवाल पूछती हुए नायिका की ब्यथा कथा का सुन्दर चित्रण ..
ReplyDeleteएहसास से भरी अच्छी नज़्म
ReplyDeletesahmat hoon, betiyon ke liye...pura bachpan beeta deti hai, lekin wo apna ghar nahi ho pata..!
ReplyDeleteek bahut pyari si kavita...dil pe chhap chhodne wali..
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (05.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
नारी हॄदय के जज्बातों को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने, बहुत कुछ अनकहा, अनसुना रह जाता होगा।
ReplyDeleteगाना हमेशा की तरह बेहद मधुर लगा।
आभार।
आँसुओं का कोई मोल नहीं, केवल भावनायें ही समकक्ष हैं।
ReplyDeleteजिन्दगी के कुछ लम्हें ऐसे होते है जब हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते है।
ReplyDeleteसुहानी चांदनी रातें, हमें सोने नहीं देतीं.... आपकी आवाज़ में जादू है 'अदा' जी.
ReplyDeleteसुन्दर लेखनी .....
सुन्दर दिलकश आवाज़....क्या खूब ....
Wonderful post ....... Beautiful expression!
ReplyDeleteगहन संवेदना से परिपूर्ण बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteमन की व्यथा का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण
ReplyDeleteनारी की विवशता और व्यथा का बेहतरीन चित्रण -
ReplyDelete@ वाणी जी,
ReplyDeleteआपने मेरे मनोभाव समझा...आभारी हूँ..
यूँ तो देश में हो या विदेश में...व्यथा की परिभाषा या परिमाण एक ही होता है...
@ कुँवर जी,
कुछ यादें ता-उम्र होती हैं ..साथ-साथ..
शुक्रिया..
@ मृदुला जी,
आपका हृदय से धन्यवाद..
@ मौदगिल जी,
आपको पसंद आई कविता..मेरा मनोबल बढ़ा..
आभार स्वीकार करें..
@ संजय झा जी,
ReplyDeleteसही कहा आपने यह हर नारी हृदय की व्यथा है...
धन्यवाद..
@ आशुतोष,
हर नारी की व्यथा कथा तो है ये..परन्तु क्या ही अच्छा हो अगर इसे हर पुरुष भी समझ जाए..
अच्छा लगा तुम्हारा यहाँ आना..
ख़ुश रहो..
@ संगीता दी,
आभारी हूँ...आप आईं..
@ मुकेश जी,
बेटियाँ सचमुच सारी उम्र बँटी रह जातीं हैं...उनका घर कौन सा है यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब उन्हें कभी नहीं मिल पाता..
आभार स्वीकार करें..
@ सत्यम,
ReplyDeleteमेरी रचना को इस योग्य समझा ...
आभारी हूँ
@ मो सम कौन जी,
यूँ तो ईश्वर ने नर-नारी दोनों को ही बनाया है..बस नारी को थोड़ा ज्यादा भावुक बना दिया है...साथ ही कुछ दुःख ऐसे दे दिए हैं जिनका स्वाद लेना सिर्फ़ नारी के ही हिस्से में है...यह भी एक ऐसा ही दुःख है...अपने पेड़ से टूट जाने का दुःख...एक डाली से कोई पूछे...!
@ प्रवीण जी,
ReplyDeleteसही कहते हैं आप आसूओं का कोई मोल नहीं लेकिन उससे जुड़ी भावनाएं अनमोल हैं...
आभार..
@ ehsaas ,
जीवन की इस विवशता से हम स्त्रियों को दो-चार होना ही पड़ता है...कहते हैं लोग कि यह विधि का विधान है...
परन्तु यह विधान हमारे लिए ही क्यूँ है ?
शुक्रिया..
डॉ. वर्षा,
मुझे ये गीत बहुत पसंद है...वैसे तो ये मुकेश जी के सदाबहार आवाज़ में है परन्तु मुझे इतना पसंद है कि गाने का लोभ संवरण नहीं कर पाई..
आपने पसंद किया ..हृदय से धन्यवाद स्वीकार करें...
@ डॉ. शरद,
ReplyDeleteआप आईं बेहद्द ख़ुशी हुई..
सच कहूँ तो मेरा मान बढ़ाया आपने..
आभार स्वीकार करें..
@ कैलाश जी,
एक संवेदनशील व्यक्ति ही..संवेदना को समझ सकता है...
और आप निश्चित तौर पर संवेदनशील हैं...
आपका शुक्रिया.
@ रजनीश जी,
मेरी भावनाओं को आपने समझा ...बहुत है मेरे लिए..
धन्यवाद..
@ अनुपमा जी,
आप मेरे दिल कि बात नहीं समझेंगी 'ऐसा हो नहीं सकता'..
हम दोनों एक ही डगर के मुसाफिर हैं..
हृदय से आभारी हूँ..
सुहानी चांदनी रातें, हमें सोने नहीं देतीं....
ReplyDelete'अदा' जी
मुझे ये गीत बहुत पसंद है
आपकी आवाज़ में जादू है
सुन्दर लेखनी ..... धन्यवाद
बेटियाँ सचमुच सारी उम्र बँटी रह जातीं हैं.