Tuesday, February 22, 2011

फूल, दिल और काँटे....और एक गीत ...




आहों का, नगमों का, वो काफ़िला रह गया
कैसे कहें गुफ्तगूँ का, वो सिलसिला रह गया  

चले आये सफ़र में जी, हम तो बड़े शौक से
जो पीछे घर था मेरा, वो कैसे खुला रह गया

तमाम रात जागे, खुशबू की ओढ़े चादर  
था चाँद सिरहाने पे, बस उसका निशाँ रह गया

बस्ती हो, सहरा हो, सब खो गए पीछे कहीं 
ये दिल भी दीवाना है, जाने वो कहाँ रह गया  

चलतीं हैं मेरे ज़ह्न में, कुछ बात आँधियों सी
नज़र मेरी कुम्हला गई, और चेहरा बुझा रह गया  

गुज़रे कोहो-सहरा से तो, हम बाहोशो-हवास थे 
बस कूचा-ए-जाना से, अब गुजरना रह गया
 

ये माज़ी है, क्या चीज़ है, इक यादों का सहरा है
कभी फूल, कभी कोईकहीं, काँटा चुभा रह गया 

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए... आवाज़ 'अदा' की..

15 comments:

  1. सोया किये रात में, खुशबू की चादर ओढ़ कर
    था चाँद सिरहाने में, बस उसका निशाँ रह गया
    Aisa gazab likhtee hain aap,ki,kuchh kahne ke liye alfaaz nahee milte!

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  2. चले आये सफ़र में जी, हम तो बड़े शौक से
    जो पीछे घर था मेरा, कैसे खुला वो रह गया
    अच्छा लगा शेर , मुबारक

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  3. ये माज़ी है, क्या चीज़ है, इक यादों का सहरा है
    कभी फूल, कभी कोई, काँटा चुभा सा रह गया

    ये दुनिया ऐसी ही चलती रहेगी,फिर भी आशावादी सोच का दामन छोड़ना नहीं हैं, अदा जी.
    किसी का एक प्यारा सा शेर है:-

    जब कभी हाथ से उम्मीद का दामन छूटा,
    ले लिया आपके दामन का सहारा हमने.

    इसलिए BE OPTIMISTIC
    मैं आपकी पोस्ट खोल लेता हूँ और आपका गाना लगा लेता हूँ फिर आपकी पोस्ट पढता रहता हूँ और गाना सुनता रहता हूँ.कान और दिमाग दोनों को सुख मिलता है.आपकी आवाज में आज का गाना भी बहुत ही प्यारा लगा.

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  4. ये माज़ी है, क्या चीज़ है, इक यादों का सहरा है
    कभी फूल, कभी कोई, काँटा चुभा सा रह गया
    बिलकुल जी माज़ी के पास काँटे अधिक फूल कम होते हैं। अच्छी रचना के लिये बधाई।

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  5. जो पीछे घर था मेरा, कैसे खुला वो रह गया
    चाबी रह गई कमर मे, लटका ताला वो रह गया :)

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  6. श्री संजय अनेजा जी ने ये कमेन्ट भेजा है..ईमेल द्वारा...

    सुबह कमेंट किया था, पब्लिश की कमांड भी दे दी थी और कुछ देर के बाद नैट डिसकनैक्ट हो गया था। आपके ब्लॉग पर नहीं दिख रहा, शायद पहुंचा नहीं आप तक और अब आपके ब्लॉग पर कमेंट दिख रहे हैं लेकिन कमेंट बॉक्स नहीं दिख रहा, मेरे पी सी पर नैट में दिक्कत है कुछ। इसे ही कमेंट मान लीजियेगा -
    चाँद का निशान? पूर्णिमा का चाँद चमकेगा, इंतज़ार करें
    और यादों को सहारा बना लें तो बस्ती हो के सहरा, सफ़र खुशगवार हो जायेगा।
    कोई कांटा न चुभे, इसके लिये लिबर्टी की जगह बाटा इस्तेमाल कर देखियेगा:)
    देख लीजिये, कैसा जमाना आ गया है.. हम जैसे भी उनका मोरल बूस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने कभी ’ऐसा हो नहीं सकता; जैसी कविता लिखी और गाई थी:)
    पिछली दो पोस्ट्स से कुछ मायूसी सी झलक रही है, अगर मैं गलत नहीं तो(वैसे प्राय: गलत होता हूं और इस बार ये मना रहा हूं कि मैं गलत ही होऊं:) )

    अदरवाईज़ गज़ल बहुत अच्छी लगी, यहाँ तस्वीर हमेशा अच्छी होती है और गीत और आवाज तो अच्छी है ही:)
    तो जी हमारा अच्छा खासा आभार संभाल लीजिये, हाजिरी लगा ली जाये।

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  7. बात सही है, मायूसी जो अमूमन नहीं मिलती है, आजकल झलक रही है।
    वैसे उदासी भी एक रंग है, और अगर सिर्फ ग़ज़ल में है तो अच्छा है।
    यहाँ मीठा देखने/पढने/सुनने की आदत है न, इसलिए कहा। :)

    एक को चुनना हो तो ये कमाल है...

    गुज़रे कोहो-सहरा से तो, हम बाहोशो-हवास रहे
    बस कूचा-ए-जाना से, अब तो गुजरना रह गया

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  8. अच्छी लगी यह ग़ज़ल। उदासी झलक तो रही है ग़ज़ल से भी और गाने से भी पर जैसा अविनाश जी ने कहा यह भी एक रंग है जीवन का।

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  9. अच्छी लगी यह ग़ज़ल। उदासी झलक तो रही है ग़ज़ल से भी और गाने से भी पर जैसा अविनाश जी ने कहा यह भी एक रंग है जीवन का।

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  10. अच्छी लगी यह ग़ज़ल। उदासी झलक तो रही है ग़ज़ल से भी और गाने से भी पर जैसा अविनाश जी ने कहा यह भी एक रंग है जीवन का।

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  11. BHALO......BOLE TO......KHOOB BHALO........BOLE TO
    .....ONEK BHALO......."........HAN NAHI TO......."


    PRONAM.

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  12. एक यादों का सहारा है , कभी कोई फूल कभी कोई कांटा* सा चुभा रह गया !
    दर्द को भी खूबसूरत ग़ज़ल कहने का रिवाज़ है !

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  13. तमाम रात जागे, खुशबू की ओढ़े चादर
    था चाँद सिरहाने पे, उसका निशाँ सा रह गया
    बहुत खूबसूरत लगी आपकी ये गज़ल

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