अरेरेरे...कल अईसे ही ब्लॉग में इधिर-उधिर घूम रहे थे कि अच्च्क्के ई पोस्ट पर नज़र पड़ गई ...आईला हमरा फोटू !!....आउर हमरी बातें....मन तो बहुते खुस हुआ....थोड़ा लजा भी गए ..फिन सोचे... धुत्त ...अईसा भी का लजाना..छाप ही देते हैं....हाँ नहीं तो...!!
दाधीच साहेब....अब आपसे क्या कहें...!!
धन्यवाद बहुत ही छोटा शब्द प्रतीत हो रहा है..आज...!!! फिर भी स्वीकार कीजिये..कृतज्ञं हूँ....यही कह सकती हूँ....
राजस्थान पत्रिका के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ...धन्यवाद..!
राजस्थान पत्रिका के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ...धन्यवाद..!
प्रस्तुत आलेख निम्नलिखित पते से लिया गया है ...लेखक है...बालेंदु शर्मा दाधीच ..
बोझ संस्कारों और रस्मों का
Wednesday, 09 Feb 2011 10:40:26 hrs IST
विदेश में रहकर भी अपनी भूमि और भाषा के प्रति गहरा लगाव रखने वाली स्वप्नमंजूषा 'अदा' ब्लॉगर होने के साथ-साथ कवयित्री भी हैं। रांची में रहकर बड़ी हुई और फिलहाल ओटावा (कनाडा) में रह रहीं 'अदा' की कविताओं और ब्लॉग पोस्टों में नारीत्व के प्रति गौरव का भाव तो है ही, मातृभूमि और अपनों से दूर रहने की व्यथा भी झलकती है। नारी की दुनिया जिस तरह सीमाओं और संस्कारों के दायरे में समेट दी गई है, उसके प्रति मासूम-सा विद्रोह भी दिखाती हैं, स्वप्न मंजूषा की कविताएं-
इंसान के कंधों पे, रिवाजों का बोझ है/ पाजेब है संस्कार की, रस्मों का बोझ है/ आंखें वो हवस से भरी, हैं खार चुभोतीं / हैं फूल से बदन, उन निगाहों का बोझ है।
हालांकि कनाडा की जगमगाती और सुविधाजनक दुनिया में अदा को वह सब शायद ही सहन करना पड़ता हो जो आम भारतीय नारी करती है, लेकिन पारंपरिक नारी के प्रति उनके सरोकार खत्म नहीं होते। ब्लॉगिंग के बहाने अपने घरेलू जीवन में उपलब्ध उन्मुक्तता का जिक्र करते हुए वे अपनी देसज भाषा में लिखती हैं- ब्लॉगिंग से हमको का तकलीफ होगी भला ...तकलीफ तो बाकी लोगों को होती है... सब बोलते हैं कि जब देखो तब इसी में लगी रहती है... हम सुनकर भी कान में तेल दिए रहते हैं और मजे से करते हैं ब्लागिंग...।
जाहिर है, कनाडा में बसी प्रवासी भारतीय नारी और रसोईघर के कामकाज और दूसरों की सेवा में अपना ज्यादातर जीवन गुजार देने वाली विशुद्ध भारतीय गृहिणी के जीवन की सच्चाइयां अलग-अलग हैं। उनके जीवन-संघर्ष भी अलग-अलग हैं। लेकिन लंबे समय तक पारंपरिक çस्त्रयों के संसार से रूबरू होती रहीं अदा परिवार, पति और समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की पारंपरिक जद्दोजहद में लगी महिलाओं के अनुभवों से अनजान नहीं हैं। यह उदाहरण देखिए जिसमें वे द्रोपदी के बहाने आम स्त्री की पीड़ाओं और विवशताओं पर टिप्पणी करती हैं।
भावुक होकर भी वे अपने असंतोष को छिपाती नहीं। असंतोष, जो सिर्फ समाज या पुरूषों के रवैए के प्रति ही नहीं है बल्कि स्त्री की समर्पणकारी मन:स्थिति के विरूद्ध भी है-चौपड़ की गोटी बनी, रिक्त सा जीवन पाया / बिन सोचे-समझे पांडवों ने तुझ पर दांव लगाया/ अब बनो वस्तु से नारी और करो मनन / पांचाली तुम्हें किस रूप में करूं मैं स्मरण ?
आज शोषण, दुख, अन्याय, विश्वासघात, असमानता, भेदभाव आदि को उनकी लेखनी अस्वीकार्य मानती है- प्रभु तुम्हारी दुनिया में, इतना अन्याय क्यों होता है ?/ जीत-हार के अंतराल में, निर्दोष बलि क्यों चढ़ता है?
स्वप्न मंजूषा खालिस मध्यवर्गीय प्रवासी भारतीयों जैसी हैं जिन्हें वह हर चीज अच्छी लगती है जिसमें अपनी संस्कृति, अपने देश के साथ नोस्टेल्जिया का एहसास हो- पुरानी फिल्में, पुराने गाने, जगजीत सिंह, मेहंदी हसन की गजलें और लोपामुद्रा से लेकर पंचतंत्र और चाचा चौधरी जैसी पुस्तकें। ब्लॉगिंग भी एक कड़ी है जो उन्हें अपनी इस बिछुड़ी दुनिया से जोड़ती है और इसीलिए वे इसका जिक्र करते हुए जैसे किसी और कोमल-सी दुनिया में चली जाती हैं-
(अपनी ब्लॉग पोस्टों पर भारत से आने वाली टिप्पणियों को) देखते ही मैं भारत की अलसुबह के दर्शन करती थी....बिल्कुल वही एहसास होता था जैसे सुबह कि किरणें फूट रहीं हैं ..चिडियों की चहचहाहट...मंदिर की घंटी, मस्जिद की अजान... जैसे एक सुंदर सी गोरी इधर से उधर छमछम करती हुई आ-जा रही है...।।
भारतीय नारी की प्राथमिकताओं में परिवार बहुत दूर कैसे रह सकता है? लगाव उनकी रचनाओं में खूब दिखता है- कहीं बच्चों का जिक्र आने पर सहज उमड़ आने वाली प्रसन्नता के रूप में, तो कहीं माता-पिता का जिक्र आने पर उपजने वाले गौरव के जरिए। वे लिखती हैं- मेरे 3 बच्चे हैं। मेरी दुनिया उनसे शुरू और उन्हीं पर खत्म हो जाती है... इसी तरह एक जगह उन्होंने लिखा है कि मुझे समय निकालकर अपने माता-पिता को अच्छी जगहों पर घुमाने ले जाना बहुत पसंद है।
बालेंदु शर्मा दाधीच
अब एक ठो गीत....
आज सुबाद सुबह आपको अपने पुराने रूप में देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई अदा जी ।
ReplyDeleteबालेन्दु जी का लिखा लेख अक्षरश: सत्य को प्रकट करता हुआ लेख है ।
बधाई ।
बहुत सुन्दर पोस्ट है आपके बारे में ... हम यह चर्चामंच में शुक्रवार को रख्नेगे..
ReplyDeleteचलिए इस बहाने आपके बारे में कुछ जानकारियाँ मिल गईं। पर इस लेख में आपकी गायकी का जिक्र नहीं है आपका गायन भी कमाल का है।
ReplyDeleteबधाई आपको।
बधाई हो!
ReplyDeleteसबसे पहले तो हार्दिक बधाई स्वीकारिये! हमरे हिस्से की मिठाई किधर है?
ReplyDeleteईका मतबल हुआ के लोगबाग आपके बारे में लिखा-पढत कर रहे हैं, आपको खबर किये बिना। मीडिय़ा में छपे बिलागों की खबर छापने वाला भी एक बिलाग हुआ करता था न पहले? क्या वह भी ब्लॉगवाणी गति को प्राप्त हो गया? ये तो भला हुआ कि आपकी नज़र पड गयी वर्ना पता ही नहीं लगता?
मेरी भी हार्दिक बधाईयाँ स्वीकार कर लें।
ReplyDeleteआपनार चोर्चा केओ करे छे ..... से टा कोनो बरो कथा नय.......किन्तु 'मनोनिये' दधिचीजी करे छेन से टा बरो गल्पो.............
ReplyDeleteआपना केर भलो लागलो ........ अमादेर खुश होए छी..........
प्रणाम.
बहुत बधाई ...
ReplyDeleteमुदा हम इ सोच में हैं की जिसको देख के आपके मन में ऐसन भाव उपजा था उसका नाम कहे उड़ा दिए हैं ...बालेन्दु जी को कुछो तकलीफ हो गया है क्या हमसे ...हा हा हा !
यह तो होना बनता ही है, हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आपसे सम्बंधित दधीची जी द्वारा लिखा आलेख पढ़ा .कुछ जानकारियां भी मिलीं. आलेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा,अदा जी.
ReplyDeleteआपको हार्दिक बधाई. आपकी बेहद मीठी और मधुर आवाज़ का ज़िक्र इसमें न देखकर अटपटा-सा लगा. मेरी नज़र में आपका विशेष गुण तो इसमें untouched ही रह गया. मगर गुण तो खुशबू की तरह होता है और खुशबू तो चारो तरफ बिखरेगी ही .
वादियाँ मेरा दामन आपकी आवाज़ में सुनकर बहुत अच्छा लगा
bahut sunder post
ReplyDelete..
bahut sunder post
ReplyDelete..
बहुत बधाई हो, ठीक है तो लिखा है।
ReplyDeleteवाह ! बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteचलो दधिची जी की एक पोस्ट निकल गई और आपको ख्याति भी मिल गई :) बधाई॥
ReplyDeleteराजस्थान पत्रिका जैसे सम्मानित अखबार में swapnamanjusha.blogspot.com का जिक्र, जैसे सोने पर सुहागा। लेकिन कंटेंट्स कम हैं, पूरा न्याय नहीं हुआ अभी।
ReplyDeleteमुबारकां..
बहुत बहुत बधाई....
ReplyDelete''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से.....'
बधाई और फिर से बधाई...
ReplyDeleteHi...
ReplyDeleteBadhayee ho...
Jeevan main aise kitne hi...
log hain man se judte jaate...
anjaane hi anjaanon se...
rishte naye swatah ban jaate...
so lajayen nahin...ye to sahaj bhav hai...aur aapne hamen ye padhne ka avasar diya eske liye aapka dhanyawad....
Deepak...
www.deepakjyoti.blogspot.com
सत्य बात बहुत सुन्दर ढंग से लिखे हैं दधिची जी...
ReplyDeleteमन परसन्न हो गया पढ़कर...उन्हें बहुत बहुत आभार...
(आजकल तो आप हमारी गली भूल ही गयीं, दी ... ऐसा का कसूर हो गया हमसे :(( ..)
sundar charcha .....badhai...
ReplyDeleteबहुत उम्दा पोस्ट.
ReplyDeleteआपको बधाई.
सलाम
bahut umda post.aapko 300 vee follower ki aur se bahut bahut badhai...
ReplyDeletebahut umda post.aapko 300 vee follower ki aur se bahut bahut badhai...
ReplyDelete@ दराल साहेब,
ReplyDeleteफॉर्म में तो हम रहना चाहते हैं...बस कभी-कभी आउट ऑफ़ फॉर्म हो जाते...
ये तो अच्छा है कि आप जैसे सुधिजन हैं...जिनका प्रोत्साहन मिलता रहता है..
आभारी हूँ...
@ डॉ. नूतन,
बहुत बहुत शुक्रिया आपका..
@ सोमेश जी,
हृदय से आभारी हूँ...
@नीलेश जी,
आपका धन्यवाद..
@ अनुराग जी,
अब आपसे का छुपायें...कोई धेयान नहीं देता है...ऊ तो अच्छा हुआ कि हम देख लिए नहीं तो सोचिये तो केतना बड़ा नुसकान हो जाता हमरा...
हाँ नहीं तो..!
@ निर्मला जी,
प्रणाम,
आप आई बहुत अच्छा लगा...
@ सोंजोय जी,
शेई तो ...अमार जिगेश होए छे, किछु बोडो कोथा नय...किन्तु के कोरेछे एई टा बोडो बात...शेई जोन्ने ई पोस्ट टा तुले छि...
आपनार धोंनोबाद ..
@ वाणी जी,
ReplyDeleteआप आईं बहार आई जी..
@ अविनाश,
अच्छा लगा तुम्हारा आना..
ख़ुश रहो..
@ वंदना जी,
आपका आभार आपने इस योग्य समझा...
@ कुवंर जी,
ये आपका बड़प्पन है जो आप ऐसा समझते हैं...
बहुत धन्यवाद...
दीप्ती जी,
ReplyDeleteशुक्रिया आपका...
प्रवीण जी,
जब आपने कह दीया कि ठीक है..तो अब तो ठीक होना ही है...
हाँ नहीं तो..!
@ अली जी,
आपका दिल से शुक्रिया..
@ प्रसाद जी,
अब का कहें...दाधीच जी की ऊ जाने ...बाक़ी हमरी सब ब्लॉग फिल्में फ्लॉप हो रहीं थीं...ई स्कैंडल ना हुआ होता तो कहाँ बच पाता हमरा ब्लॉग कैरिअर ! ऊ तो अस्ताचल में चहुप ही गया था....:):)
बहुत हार्दिक बधाई...
ReplyDeleteनमस्ते संजय जी...
ReplyDeleteठीक कहते हैं आप कंटेंट बहुत कम है...४-५ फीट जो धरती के नीचे है उसका तो जिकिर ही नहीं हुआ...हाँ नहीं तो..!!
शुभम जी,
शुक्रिया..!
समीर जी,
आपको धन्यवाद आउर एक बार आउर धन्यवाद....
@ शुक्ला जी,
आपकी बात सही है...ऐसा हो तो रहा है ख़ास करके ब्लॉग जगत में..
आभार..
@रंजना,
ReplyDeleteतुम्हारा यहाँ आना बहुत अच्छा लगा....
अरे इतना प्यार से कहोगी तो कुछ नहीं कह पायेंगे हम...माफ़ कर दो बाबा ...हम आज कल बहुत व्यस्त हैं...लेकिन ऐसी बात नहीं है..तुम्हारी पोस्ट पढ़ चुके हैं आउर हमरी नानी याद आ चुकी है....हाहा हा
@ रूप जी,
हृदय से धन्यवाद..
@ sagebob जी,
शुक्रिया...आपने हमेशा हौसला बढ़ाया है ...
@ शालिनी जी,
सबसे पहले तो मेरे ब्लॉग को फोल्लो करने के लिए आपका आभार..
और आपको पसंद आया ..इसके लिए धन्यवाद..
@ कैलाश जी,
आपका शुक्रिया...
प्रिय पाठकगण,
ReplyDeleteआज किसी ने मुझसे कहा है कि सर्वश्री दाधीच जी ने मेरा इंटरवियू लेकर यह आलेख छापा है...
मैं इस बात का खंडन करती हूँ..और जैसा कि मैंने लिखा है...यह आलेख वास्तव में मुझे अचानक मिल गया ...और यही सत्य है...इस बात की पुष्टि जिन्हें भी करना है वो कर सकते हैं...
धन्यवाद..
यह आलेख अगर किसी इंटरव्यू के बाद छपा होता तो ऐसा स्वीकार करने में भला आपको क्या दिक्कत हो सकती थी? क्या किसी पत्रकार या स्तंभकार द्वारा इंटरव्यू लिया जाना किसी अपमान का वायस है? बात कुछ क्लियर हुई नहीं। ऐसी बातें भी शक करने लायक हैं क्या, हमें तो अखबार में आपका और आपके ब्लाग का जिक्र देखकर खुशी हुई। पुष्टि-वुष्टि करने के लिये नहीं पूछा है, बात अजीब सी लगी इसलिये लिखा है ये सब।
ReplyDeleteवैसे ’बिटवीन द लाईंस’ ऐसी बातों का कोई और मतलब हो तो फ़िर अपनी अज्ञता क्षम्य है, पहले से ही सर्टिफ़ाईड फ़ैल्योर हैं हम इस विधा के:))
वैसे तो आजकल हर कमेंट पर ईंट का जवाब पत्थर से मिल रहा है हमें, लेकिन खुद को बैनेफ़िट ऑफ़ डाऊट दे रहे हैं कि यह आपका हास्यबोध ही है। निवेदन है कि मेरा कोई कमेंट अनुचित लगे तो स्पष्ट कह दीजियेगा।
और उस आलेख में कंटेंट तो कम है ही, आप तो नाम भर आने से खुश हैं, हमारी राय में तो आपकी आवाज, सामाजिक और सामयिक विषयों पर स्पष्ट राय जैसी चीजों और ’हाँ नहीं तो...!!’ का जिक्र होना ही चाहिये था, हाँ नहीं तो...!! :))