पुरानी कविता है...
इक ज़ुनून,
कुछ यादें,
थोड़ा प्यार,
थोड़ा प्यार,
छोड़ जाऊँगी,
इन हवाओं में मैं
इंतज़ार,
इंतज़ार,
छोड़ जाऊँगी,
ले जाऊँगी साथ,
कुछ महकते से रिश्ते,
मेरे नग़मों की बहार
मेरे नग़मों की बहार
छोड़ जाऊँगी,
कहीं तो होंगे,
मेरे भी कुछ ग़मगुसार,
जलाकर इक दीया
जलाकर इक दीया
प्रेम का यहीं कहीं,
ये मज़ार,
छोड़ जाऊँगी,
कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
मेरी सदाओं की मशाल,
मैं ज़िन्दगी जलाकर,
बार-बार,
छोड़ जाऊँगी,
मैं लफ्ज़-लफ्ज़ यक़ीं हूँ,
तुम भी यक़ीन कर लो,
मैं हर्फ़-हर्फ़
एतबार,
एतबार,
छोड़ जाऊँगी....!
एक गीत..नैनों में बदरा छाये...और आवाज़ वही...'अदा' की...
`कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
ReplyDeleteमेरी सदाओं की मशाल,
तेरी वीरान सी रातों के लिए
दिल को जलाया हमने :)
गीत में मजा आ गया। कविता भी कमाल की है।
ReplyDeleteदिल क़ी गहराई से लिखी गयी एक रचना , बधाई
ReplyDeleteबहुत उम्दा नज़्म है.
ReplyDeleteकहीं तो होंगे,
मेरे भी कुछ ग़मगुसार,
जलाकर इक दीया
प्रेम का यहीं कहीं,
ये मज़ार,
छोड़ जाऊँगी,
कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
मेरी सदाओं की मशाल,
मैं ज़िन्दगी जलाकर,
बार-बार,
छोड़ जाऊँगी,
इस से बढ़िया तरजे ब्याँ हो नहीं सकता.आपकी कलम को सलाम.आवाज़ को भी.
कभी अपनी लिखी नज़्म भी सुनाईये .
aap sangrahit karen na karen main apne udgar yahan chhod jaoongi-bahut khoob..
ReplyDeleteपुरानी है फिर भी अच्छी है ...
ReplyDeleteजलाकर एक दिया प्रेम का यही कहीं मजार छोड़ जाउंगी ...
यकीन , ऐतबार, प्रेम ...जीवन को और क्या चाहिए होता है !
भावों से सजी हुई छंदमुक्त कविता अच्छी लगी,आपकी आवाज़ का फैन हूँ.किसी गाने को आपकी कोमल और मधुर सी आवाज़ मिल जाते ही गाना आपने आप बेहद सुरीला और कर्णप्रिय हो जाता है.ज़ाहिर है ये गाना भी बहुत अच्छा लगा. आप व्यस्त हैं ये मैं समझ सकता हूँ ,मगर जब comfortable हों तो मेरे ब्लॉग कि तरफ भी देख लेंगी तो मेहरबानी होगी ,अदा जी.
ReplyDelete@ प्रसाद जी,
ReplyDeleteतेरी वीरान सी रातों के लिए
दिल को जलाया हमने :)
पर क्या करें किसी ने तब ही नलका चला दिया...:):)
@ सोमेश जी,
आपका शुक्रिया..आप भी कम कमाल नहीं करते हैं...
@ सुनील जी,
आपका धन्यवाद..
@ वंदना जी,
आभारी हूँ..आपने इस योग्य समझा..
sagebob,
ReplyDeleteआपके हौसलाफजाई को दाद देने का दिल करता है..
बहुत शुक्रिया..!
मनु जी,
आपकी टिप्पणी या तो भगवान समझते हैं या आप....
फिर भी जो भी है ये, उसका शुक्रिया..
@ वाणी जी,
एक कहावत है न...ओल्ड ईज गोल्ड ...
मैं कविता की बात नहीं कर रही हूँ....:):)
हाँ नहीं तो..!!
@ कुँवर जी,
मेरी बहुत छोटी सी कोशिश होती है गायिकी की...आप लोग पसंद करते हैं यह मेरा सौभाग्य है...
आपका धन्यवाद...
Hello ji,
ReplyDeleteKaise ho aap?
Bahut achhi awaaz hai aapki... uttam gaaya hai...
Aur rahi kavita ki baat -- Like always... wonderful thoughts... and very well written!
"मैं लफ्ज़-लफ्ज़ यक़ीं हूँ,
तुम भी यक़ीन कर लो" -- Simply wow!
Regards,
Dimple
बहुत ही भावपुर्ण प्रस्तुति है। आभार।
ReplyDeleteबेहद गहरे भाव है आपकी इस रचना में। वैसे उदासी अच्छी नही होती। मुस्कुराना ही जिंदगी है।
ReplyDeleteमैं लफ्ज़-लफ्ज़ यक़ीं हूँ,
ReplyDeleteतुम भी यक़ीन कर लो,
मैं हर्फ़-हर्फ़
एतबार,
छोड़ जाऊँगी....!
बहुत सुन्दर...आह्सासों और विश्वास से परिपूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति..कमाल का गाती हैं आप ..आभार
वाह ! नहीं आह ! नहीं वाह ! कन्फ्यूज हो गया
ReplyDeleteदीदी , जाने की बात ना किया करो :(
ओ. के...... अब वेरी वेरी सीरियसली
आपके ब्लॉग से ....... स्पेशली जब सुबह सुबह पढ़ा जाये (भारत में) तो एक सात्विक एनर्जी दिमाग में आती है ...... ऐसा लगता है बिना कहीँ जाये ही कहीँ घूम के आये हों (मतलब खयालों की नगरी में )......नयी नयी कवितायें सूझने लगती हैं ....... सच्ची :) पर मेरा तो शब्दकोश ही बिलकुल छोटा और मासूम सा है ....... आपकी रचनाएँ पढ के, समझ के अपना भी लिखने का अरमान पूरा हो गया है ( ऐसा महसूस होता है )
मैं लफ्ज़-लफ्ज़ यक़ीं हूँ,
तुम भी यक़ीन कर लो,
मैं हर्फ़-हर्फ़
एतबार,
छोड़ जाऊँगी....!
सुन्दर फोटो .. अति सुन्दर रचना ..(गीत सुनना शेष है )
कवितावों में ये प्यारी सी कविता भी छोड़ जाएँगी.
ReplyDeleteकविता कि अदा ही ऐसी हैं कि अदा भी छोड़ जाएँगी.
बहुत सुंदर प्रस्तुति...लाजवाब।
ReplyDeleteदिल के तार को झंकृत कर रही है आपकी ये सुंदर रचना।
*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
सबको पसंद आई है ये नज़्म, है भी पसंद आने लायक।
ReplyDeleteएक अजीब सा प्रयोग करके देखा मैंने, आपकी इस नज़्म में से ’छोड़ जाऊँगी....!’ सब जगह से हटाकर इसे फ़िर से पढ़ा, यकीन मानिये इस मौजूदा नज़्म से कम शानदार चीज नहीं थी वो, और आपकी छवि के ज्यादा अनुकूल। मौका लगे तो ट्राई कर देखियेगा, ज्यादा से ज्यादा नहीं ही पसंद आयेगी न।
और ये छोड़ जाऊँगी....!, छोड़ जाऊँगी....! की आदत छोड़ दीजिये, हाँ नहीं तो..ही ठीक है:))
तस्वीर और गीत हमेशा की तरह लाजवाब, आभार स्वीकार कीजिये बहुत सारा।
aapki kavita mai ek alagpan hai bahi sunder
ReplyDelete.
geet bhi sunder hai
.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
इक ज़ुनून,
ReplyDeleteकुछ यादें,
थोड़ा प्यार,
छोड़ जाऊँगी,
इन हवाओं में मैं
इंतज़ार,
छोड़ जाऊँगी,
बस वाह!!...बड़ा ख़ूबसूरत लिखा है
कहाँ-कहाँ बुझाओगे,
ReplyDeleteमेरी सदाओं की मशाल,
मैं ज़िन्दगी जलाकर,
बार-बार,
छोड़ जाऊँगी,
hum barambar apko pakar ke le aayenge.......
'palate devo na' bole di chhi.....di.
pranam.
बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......
ReplyDeleteहाँ बहुत कुछ छोड़ जाओगी
ReplyDeleteबहुत कुछ है तुम्हारे पास
इसलिए तो छोड़ जाओगी
खनकती हंसी
महकती साँसे
बिंदासपन
निश्छल मन के उजाले
विरोधियों को दिए प्रत्युत्तर
और पुराने गीतों को दिए स्वर
कितना कुछ है तुम्हारे पास छोड़ जाने को.
लिखती भी अच्छा हो और गाती भी.
मैं???????
ढेर सारे खाली कागज जिस पर जो चाहे जो लिख दे
ये जो गाया है ना 'नैनो बदरा छाये' उसकी एक पंक्ति भी .....'प्रेम दीवानी हूँ मैं सपनों की रानी हूँ मैं,पिछले जनम से तेरी प्रेम कहानी हूँ मैं,आ 'उस' जनम में ही गरवा लगा ले'
शायद 'वो' आये और मुझे गले से लगाए. खूब रोउंगी और उसे रुलाउंगी....बाकी दोनों हाथ खाली हैं.हा हा हा क्या करूं?
ऐसीच हूँ मैं तो.
प्यार