कैसे कहें गुफ्तगूँ का, वो सिलसिला रह गया
चले आये सफ़र में जी, हम तो बड़े शौक से
जो पीछे घर था मेरा, वो कैसे खुला रह गया
तमाम रात जागे, खुशबू की ओढ़े चादर
था चाँद सिरहाने पे, बस उसका निशाँ रह गया
बस्ती हो, सहरा हो, सब खो गए पीछे कहीं
ये दिल भी दीवाना है, जाने वो कहाँ रह गया
चलतीं हैं मेरे ज़ह्न में, कुछ बात आँधियों सी
नज़र मेरी कुम्हला गई, और चेहरा बुझा रह गया
गुज़रे कोहो-सहरा से तो, हम बाहोशो-हवास थे
बस कूचा-ए-जाना से, अब गुजरना रह गया
बस कूचा-ए-जाना से, अब गुजरना रह गया
ये माज़ी है, क्या चीज़ है, इक यादों का सहरा है
कभी फूल, कभी कोईकहीं, काँटा चुभा रह गया
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए... आवाज़ 'अदा' की..
सोया किये रात में, खुशबू की चादर ओढ़ कर
ReplyDeleteथा चाँद सिरहाने में, बस उसका निशाँ रह गया
Aisa gazab likhtee hain aap,ki,kuchh kahne ke liye alfaaz nahee milte!
चले आये सफ़र में जी, हम तो बड़े शौक से
ReplyDeleteजो पीछे घर था मेरा, कैसे खुला वो रह गया
अच्छा लगा शेर , मुबारक
ये माज़ी है, क्या चीज़ है, इक यादों का सहरा है
ReplyDeleteकभी फूल, कभी कोई, काँटा चुभा सा रह गया
ये दुनिया ऐसी ही चलती रहेगी,फिर भी आशावादी सोच का दामन छोड़ना नहीं हैं, अदा जी.
किसी का एक प्यारा सा शेर है:-
जब कभी हाथ से उम्मीद का दामन छूटा,
ले लिया आपके दामन का सहारा हमने.
इसलिए BE OPTIMISTIC
मैं आपकी पोस्ट खोल लेता हूँ और आपका गाना लगा लेता हूँ फिर आपकी पोस्ट पढता रहता हूँ और गाना सुनता रहता हूँ.कान और दिमाग दोनों को सुख मिलता है.आपकी आवाज में आज का गाना भी बहुत ही प्यारा लगा.
ये माज़ी है, क्या चीज़ है, इक यादों का सहरा है
ReplyDeleteकभी फूल, कभी कोई, काँटा चुभा सा रह गया
बिलकुल जी माज़ी के पास काँटे अधिक फूल कम होते हैं। अच्छी रचना के लिये बधाई।
बहुत ही प्यारी गजल। बधाई।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
जो पीछे घर था मेरा, कैसे खुला वो रह गया
ReplyDeleteचाबी रह गई कमर मे, लटका ताला वो रह गया :)
श्री संजय अनेजा जी ने ये कमेन्ट भेजा है..ईमेल द्वारा...
ReplyDeleteसुबह कमेंट किया था, पब्लिश की कमांड भी दे दी थी और कुछ देर के बाद नैट डिसकनैक्ट हो गया था। आपके ब्लॉग पर नहीं दिख रहा, शायद पहुंचा नहीं आप तक और अब आपके ब्लॉग पर कमेंट दिख रहे हैं लेकिन कमेंट बॉक्स नहीं दिख रहा, मेरे पी सी पर नैट में दिक्कत है कुछ। इसे ही कमेंट मान लीजियेगा -
चाँद का निशान? पूर्णिमा का चाँद चमकेगा, इंतज़ार करें
और यादों को सहारा बना लें तो बस्ती हो के सहरा, सफ़र खुशगवार हो जायेगा।
कोई कांटा न चुभे, इसके लिये लिबर्टी की जगह बाटा इस्तेमाल कर देखियेगा:)
देख लीजिये, कैसा जमाना आ गया है.. हम जैसे भी उनका मोरल बूस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने कभी ’ऐसा हो नहीं सकता; जैसी कविता लिखी और गाई थी:)
पिछली दो पोस्ट्स से कुछ मायूसी सी झलक रही है, अगर मैं गलत नहीं तो(वैसे प्राय: गलत होता हूं और इस बार ये मना रहा हूं कि मैं गलत ही होऊं:) )
अदरवाईज़ गज़ल बहुत अच्छी लगी, यहाँ तस्वीर हमेशा अच्छी होती है और गीत और आवाज तो अच्छी है ही:)
तो जी हमारा अच्छा खासा आभार संभाल लीजिये, हाजिरी लगा ली जाये।
बात सही है, मायूसी जो अमूमन नहीं मिलती है, आजकल झलक रही है।
ReplyDeleteवैसे उदासी भी एक रंग है, और अगर सिर्फ ग़ज़ल में है तो अच्छा है।
यहाँ मीठा देखने/पढने/सुनने की आदत है न, इसलिए कहा। :)
एक को चुनना हो तो ये कमाल है...
गुज़रे कोहो-सहरा से तो, हम बाहोशो-हवास रहे
बस कूचा-ए-जाना से, अब तो गुजरना रह गया
अच्छी लगी यह ग़ज़ल। उदासी झलक तो रही है ग़ज़ल से भी और गाने से भी पर जैसा अविनाश जी ने कहा यह भी एक रंग है जीवन का।
ReplyDeleteअच्छी लगी यह ग़ज़ल। उदासी झलक तो रही है ग़ज़ल से भी और गाने से भी पर जैसा अविनाश जी ने कहा यह भी एक रंग है जीवन का।
ReplyDeleteअच्छी लगी यह ग़ज़ल। उदासी झलक तो रही है ग़ज़ल से भी और गाने से भी पर जैसा अविनाश जी ने कहा यह भी एक रंग है जीवन का।
ReplyDeleteBHALO......BOLE TO......KHOOB BHALO........BOLE TO
ReplyDelete.....ONEK BHALO......."........HAN NAHI TO......."
PRONAM.
खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteएक यादों का सहारा है , कभी कोई फूल कभी कोई कांटा* सा चुभा रह गया !
ReplyDeleteदर्द को भी खूबसूरत ग़ज़ल कहने का रिवाज़ है !
तमाम रात जागे, खुशबू की ओढ़े चादर
ReplyDeleteथा चाँद सिरहाने पे, उसका निशाँ सा रह गया
बहुत खूबसूरत लगी आपकी ये गज़ल