Monday, January 25, 2010

कहते हैं लोग ...मैं मर जाऊँगी....



दिन था ७ मई २००९ दिन शायद गुरुवार था ...सुबह ८ बजे...मुझे ऑफिस जाना था और मैं तैयार होकर बस न्यूज़ देखने बैठी थी...ऑफिस के लिए निकलने में कुछ समय अभी था...


खैर मुझे याद है....न्यूज़ शुरू ही होने वाला था....मैं कुर्सी में बैठ गयी थी...और उसके बाद क्या हुआ मुझे याद नहीं....जब मेरी नींद खुली तो मैं अस्पताल में थी और दिन था शनिवार शाम ३ बजे....
बाद में मुझे ..पता चला कि मैं बैठे-बैठे बेहोश हो गई...घर में बच्चे थे....उस  दिन बच्चों की छुट्टी थी ..छुट्टी के दिन वो लोग ज़रा देर ही उठते हैं  ...उनलोगों ने  मुझे ११ बजे के लगभग बेहोश पाया.....९११ सेवा बुलाई गई ...और मुझे लाद कर अस्पताल पहुंचाया गया...जहाँ मैं ३ दिन बाद होश में आयी..



आज तक डाक्टर ठीक से बता नहीं पाए हैं कि क्या हुआ है....१५००० तसवीरें....अनगिनत टेस्ट्स और ना जाने क्या क्या...सारे टेस्ट्स के रिजल्ट्स  सही पाए गए हैं....कहीं कोई गड़बड़ी नहीं.....मुझे बड़े-बड़े मशीनों में डाल-डाल जो-जो करना था सब कर चुके... डाक्टर्स को भी चक्कर आ गया है....पूछने पर कुछ भी बता पाने में असमर्थ हैं ...लेकिन इतना ज़रूर बताते हैं कि...आपको कभी भी, कुछ भी हो सकता है....यहाँ तक कि मृत्यु भी...डॉक्टर्स हाथ धोकर मेरे पीछे पड़े रहते हैं...कि बस मैं हॉस्पिटल आऊं और वो मुझ पर अपना प्रयोग करें...कुछ दिनों तक तो झेल पाई मैं ... लेकिन रोज-रोज अस्पताल में ८ घंटे बिताना, मेरे वश की बात नहीं थी ..बस  मैंने हाथ खड़े कर दिए...और अब तो मैं उनके फ़ोन ही नहीं उठाती हूँ ....मौत तो सबको आनी है...मुझे भी....लेकिन मैं बिंदास जीना चाहती हूँ...मुझे हँसने की बीमारी है...मेरे सारे दोस्त ...मेरे माँ-बाप...मेरे बच्चे ...और मेरे 'वो'.....जो मुझे जी-जान से प्यार करते हैं...मेरे साथ अपने जीवन का एक-एक पल बिताते हैं...दिन-रात......वो सभी जानते हैं ...मुझे ठहाके लगाने की बिमारी हैं...जिन्होंने मुझे देखा नहीं है ... सिर्फ़ मुझसे बात की है ...फ़ोन पर,  वो भी जानते  हैं....कि मुझे हँसी से कितना लगाव है....


कभी-कभी डॉक्टर्स भी ना डराने में ज्यादा यकीन रखते हैं (माफ़ी दराल साहब )...और मुझे नहीं डरना है...कभी डरी ही नहीं.....किसी भी दिन, किसी को, कुछ भी, कहीं हो जाना, सब पर लागू होता है  ....हाँ ये सच है कि  मुझ पर थोडा सा ज्यादा लागू होता है...लेकिन मुझे परवाह नहीं है....मैं जी भर के लिखती हूँ.....जी भर के गाती हूँ...और जी भर के हँसती  हूँ....बस सिर्फ़ इतना ही सोचती हूँ कि जो भी बचा हुआ जीवन है ...उसे जी भर कर जीउँ.....अगर ऐसी कोई out of ordinary बात हो जाए और कारण का पता ना चले... तो मन में बेकार की बातें आने ही लगतीं हैं ...लेकिन  इस रहस्यमय बीमारी की मुझे कोई चिंता नहीं है ...मैंने अपने माता-पिता  को भी नहीं बताया है....मैं उनके जीवन में  किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं देना चाहती...


हाँ ... अभी तो मेरे सारे काम बाकी है, बच्चों की पढ़ाई...उनका शादी-विवाह...कुछ भी तो नहीं किया है ...लेकिन मन में संतोष यह है कि बच्चों को अच्छे संस्कार दे दिए हैं....कभी-कभी तो उनसे मैं ही कुछ सीख लेती हूँ...इसलिए पूरा भरोसा है कि वो एक अच्छा जीवन जियेंगे...और फिर आपलोग तो हैं ही...मार्गदर्शन के लिए....आप सब वादा कीजिये... जब मैं न रहूँ...तब बीच-बीच में उनका हाल-चाल पूछते रहेंगे...


कुछ समय पहले की बात है...मेरी बिटिया को स्कूल जाना शुरू करना था ..और हमसब बहुत परेशान थे.. कि वो अंग्रेजी नहीं बोल पाएगी  ...क्योंकि हम घर में हिंदी बोलते हैं...मैंने अपने बड़े बेटे 'मयंक' से कहा कि तुम दोनों आपस  में अंग्रेजी में बात किया करो नहीं तो चिन्नी (मेरी बिटिया) नहीं बोल पाएगी अंग्रेजी...मेरे  बेटे का जवाब मुझे आज  भी याद...उसने कहा मम्मी चिन्नी को अंग्रेजी बोलने से दुनिया कि कोई ताक़त नहीं रोक सकती है ...अंग्रेजी बोलना उसकी  मजबूरी हो जायेगी और यह सीख ही लेगी...अब आप मुझसे मत कहिये कि मैं अपनी बहन से अंग्रेजी में बात करूँ...ये मुझसे नहीं होगा....और मैं अपने ८ साल के बेटे को मुंह बाए देखती रह गई थी...


कुछ  दिनों पहले ="http://swarnimpal.blogspot.com/2010/01/blog-post_20.html">दीपक मशाल

की पोस्ट पढ़ी... हालांकि वो तो बुखार में ही बडबड़ा रहा था....उसे कभी कुछ हो ही नहीं सकता....और अब तो वो फर्स्ट क्लास ..ठीक हो गया है.....ख़ैर, उसकी घबडाहट देखा और भावावेश में कह दिया की मैं अपने बारे में बताउंगी...और फिर जब कह दिया तो बता देना मेरा धर्म हो गया....  हो सकता है अगले ८० वर्ष तक जीवित भी रह जाऊं (फिर आप कहेंगे ..हुन्ह्ह ..बड़ा कहती थी... मरी भी नहीं हा हा हा ) ...लेकिन यह भी संभव है कि कल ही मेरे लिए आप में से कोई श्रधांजलि की  पोस्ट लिख रहे हों....इसलिए अगर ऐसा कुछ हो जाए तो अग्रिम क्षमायाचना है आप सबसे...जाने अनजाने आपको दुःख पहुँचाया  हो तो....एक बात तो तय है कि जीवन में हर किसी को खुश नहीं रखा जा सकता है ...इसलिए कुछ तो नाराज़ हैं और रहेंगे ही....फिर भी मैं  कोशिश यही करती हूँ कि सत्य का साथ दूँ...अन्याय बर्दाश्त नहीं करती और अगर कहीं कुछ ग़लत देखती हूँ तो मुखर हो जाती हूँ...क्या करूँ बचपन से आदत जो है...


जब मैं बहुत छोटी थी... हर पूर्णिमा को पंडित जी सत्यनारायण की कथा बाँचा  करते थे...उस दिन भी वो यही कर रहे थे ....मैं  उनके पीछे पड़ गयी कि.... आप तो सत्यनारायण की कथा  बता ही नहीं रहे हैं ...हर १५ दिन में आप साधू बनिया कि कहानी सुना कर चले जाते हैं...मैं  तो वो कथा सुनना चाहती हूँ  जिसको नहीं सुनने से लीलावती, कलावती को समस्या हुई थी....पंडित जी कोई जवाब नहीं दे पाए और मैं  उनके पीछे पड़ी  ही रही .... और तुर्रा ये कि आज तक नहीं जान पायी हूँ...अब क्या करें अपनी तो आदत है कि हम कह देते हैं....


आज तक जो भी लिखा है दिल से लिखा है..और आगे भी दिल से ही लिखूंगी (जब तक हूँ)...हर दिन एक प्रविष्ठी की आदत हो गई है...विश्वास कीजिये जब तक ना लिखूँ...  खाना ही हज़म नहीं होता...आज भला कैसे हज़म हो जाता ..लिख ही दिया...



और ये रही आज की कविता ...

वो...

शुद्ध भाव प्रबुद्ध शैली
बोली बोले मीत सा
 

मैं ...
अधर अक्षम भाव जर्जर
गीत मेरा अगीत सा

वाणी मेरी क्षीण सी
अश्रु कोटर रीत सा
देह सकुचाई है मेरी
मन मगर विस्तृत सा

झुक गई गर्दन हमारी
झुक गए हैं नयन दोउ
कृतज्ञं हूँ ज्ञापन करूँ
यह अर्चना संगीत सा
सानिध्य तेरा स्वर्ग सा
हार, जीत प्रतीत सा
दृग मेरे पथ जोहते हैं 

प्रिय तू प्रथम प्रीत सा 


39 comments:

  1. कितने डरपोक हैं हम.
    जिस दिन पैदा होते हैं भूल जाते हैं कि पैदा ही मरने के लिए हुए हैं.
    कई तो पूरी ज़िंदगी ही मर-मर कर बिता देते हैं.
    बिंदास रहने का.

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  2. अजी सौ बरस जीना है आपको...

    खुश रहिये और रोज एक पोस्ट चैंपिये...हमारी तो जित्ति बाकी है, तब तक हम पढ़ते रहेंगे.

    बढ़िया रचना!

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  3. राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  4. हम मौत से मिलने को ही पैदा होते है . और आप दो तीन दिन कहीं अनंत मे भ्रम्ण कर आयी . यही तो सांइस खामोश हो जाता है
    और लीलावती कलावती की कथा को सत्यनराय़ण की कथा सुनाने वाले लोग भी नही जानते कि असली कथा कौन सी है .

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  5. आपको कुछ नहीं होगा ...

    मनु 'बे-तखल्लुस'

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  6. ई काहे नहीं बोलती हैं कि फिलिम देख रहे थे और देखते देखते ऐसा खोये ....अब लोग के बहलाए खातिर कुछू बहाना तो लगाये के पड़ी ...
    कुछ नहीं होगा तुझे ....कर लेते दिल की अदला बदली मगर यहाँ भी मामला ऐसा ही है ... ऐसी टूट फूट हो चुकी है ...10 साल निकाल लिए हैं उसके बाद सारी रिपोर्ट को झुठलाते हुए ...जब तक जान है हार नहीं माने हैं , नहीं मानेंगे ना तुझे मानने देंगे ...तू जियेगी मेरी भी उम्र लेकर ...बस मोटापा कम कर ले तो ...मोटी ...

    और आज की कविता ...शुद्ध ...प्रबुद्ध , ऋचा , समिधा , कल्पना ,आहुति ...सब इकट्ठा है ...बस हम ही निःशब्द हैं ....

    और ये सत्यनारायण कथा ...ऐसे सवाल पूछते कई बार कुतर्की होने का उलाहना झेल चुके हैं ...अब कोई तर्क नहीं सुन लेते हैं ..भगवानजी को हाथ जोड़ लेते हैं ....प्रसाद मिलता है ...अपना क्या जाता है .....:):)

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  7. मेरी सास की मेरे सात फेरों के समय ही अंतिम सांस चल रही थीं और अज सत्ताइसवें साल भी हेल हार्टी हैं -कल ही एक आँख का सफल आपरेशन karaa कर लौटी हैं ...हम कितने भग्यशाली हैं -
    आगे भी रहेगें -
    बस ऐसी ही प्रथम प्रीतम गीत लिखते जाईये -आखिर दूसरों की उम्र भी ऐसे ही थोड़े लग जाती है हा हा

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  8. मृत्यु के बारे में लिखूँगा तो आप कहेगी डरा रहा है।
    कविता की बात करते हैं। कविता है तो समझिए जीवन है।
    इतनी गरिमा और प्यार के साथ 'वो' को उसकी सीमा बता दिया!
    अब 'मैं
    '
    यह अगीत नहीं गीत है।
    भाव के साथ लय और शब्द प्रवाह दर्शनीय है।
    ऐसी कविताएँ प्रार्थना हैं, गीताञ्जलि सी अभिव्यक्ति लिए।

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  9. आप के साहस,आप की भावना को प्रणाम!

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  10. क्या बात है, पहले दीपक बबुआ अब आप...

    क्या हम जैसे दिल के कमज़ोरों को झटके देने का शौक हो गया है आपको...

    अभी डॉ अरविंद मिश्र जी की पोस्ट पर आपके लिए कमेंट कर के आया हूं कि अदा जी के दीवानों की फौज
    में अपने नाम का भी शुमार होता है...और आप है कि आनंद स्टाइल में हमारी जान लेने पर तुली हैं....

    पहली बात तो ये ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं...और आपका दिल इतना बड़ा है कि वो पूरी दुनिया
    को इस में समा सकता है...बेफिक्र रहिए आप बहुत सख्तजान है, आसानी से हिलने वाली नहीं, ये मैं कह
    रहा हूं...और सच्चे दिल वालों की बात ऊपर वाला भी कान खोल कर सुनता है...

    (वैसे एक बात और, ऊपर वाला इतना कमदिमाग नहीं कि बैठे-बिठाए अपने चैन का दुश्मन हो जाए...अरे बाबा तर्कों में आपसे बहस कर उसे अपनी नानी याद कोई करनी है...)

    जय हिंद...

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  11. आदरणीय और प्यारी अदा दीदी

    बहुत गलत बात है, ऐसी बातें करके दिल पर पत्थर गिरांने का ईरादा है क्या, आज तो हो गई ये मरने मराने वाली बात, लेकिन केहे देता हूँ कि आगे से ये सब नहीं चाहिए, नहीं अंजाम का होगा ये आपको पता ही है, और ऐसे कैसे चलीं जायेगीं आप अभी तो आपको मेरे बच्चो के बच्चो के बच्चो से बात करनी है, , लगता है भूल गयीं थी आप, । ये हंसने वाली बात आपने कभी बताई नहीं , मुझसे जब बात होती है आपसे तो आप मेरी जम कर क्लास लेती है, और कह रही है हँसती रहती है हा-हा । कविता आपकी लाजवाब लगी ........

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  12. "मुझे हँसने की बीमारी है..."

    बस इसी बीमारी को पाले रखो, बाकी सभी बीमारियाँ अपने आप ही भाग जायेंगी।

    मस्त रहो, धनात्मक सोच रखो, आशावादी बने रहो और खूब अच्छा अच्छा लिखो!

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  13. मरना तो सबको है कोई अमर होकर नहीं आया है, परंतु हम जितने भी समय जीवित हैं बस यही सोचें कि प्यार बांटते चलें, एक गाना था....

    जिंदगी तो बेबफ़ा है, एक दिन ठुकरायेगी
    मौत महबूबा है...

    शायद अमिताभ बच्चन की किसी फ़िल्म का...

    आपको बहुत सारी शुभकामनाएँ, अच्छा स्वस्थ्य जीवन जियें, प्यार बांटते चलें।

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  14. @विवेक भाई,

    ये गाना मुकद्दर का सिकंदर का है...

    जिंदगी तो बेवफ़ा है, एक दिन ठुकराएगी,
    मौत महबूबा है, जो साथ लेकर जाएगी,
    मर के जीने की अदा जो दुनिया को सिखलाएगा,
    वो मुकद्दर का सिकंदर, जानेमन कहलाएगा...

    जय हिंद...

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  15. जिस अंदाज़ से आप जीवन जीती हैं वही असली जीवन है....
    कविता बहुत सुन्दर है मन को छूती हुई...पवित्र एहसास..

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  16. अदाजी मैं डॉक्टर तो नहीं हूँ , लेकिन कुछ Diagnosis डॉक्टरों से भी बेहतर बताता हूँ ! हो सकता है आपको मेरी बात बेहूदी लगे, लेकिन पता है आपको चक्कर क्यों आया था ? मैं बताता हूँ , लिखते रहने और ब्लॉग्गिंग के चक्कर में उनींदा रहने से ! अब मैं अपने मन का एक सच्चा संशय आपको बताता हूँ ! आपने जब पहले पहल मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी दी थी तो आपको याद होगा की किसी बात ( मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा ) पर आपने कुछ इस तरह से लिखा था कि यहाँ कैनेडा में हम लोग भी अपने देश को बहुत मिस करते है ! उस समय दिन का करींब एक बज रहा था ! मेरे दिमाग में पहला सवाल यही उठा था कि आप झूट बोल रही है कि आप कनाडा में है ! यहाँ के एक बजे का मतलब लगभग वही रात का समय कनाडा में !
    लेकिन जब सच में यकीन हो गया कि आप कनाडा से हे लिखती है तो मैं आश्चर्य करता रहता हूँ कि यह लेडी सोती कब है ?

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  17. अररररीएएएएएएएएएए अदा जी आपके शीर्शक ने तो डरा ही दिया भागी भागी आयी मगर -- ये क्या मजाक है जी --- मैं दावे के साथ कह सकती हूँ जब तक आप रोज़ एक पोस्ट ठेलती रहेंगी कभी नहीं बिमार होंगी ---- भगवानापको लम्बी आयू दे आशीर्वाद

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  18. 'अदा' साहिबा, आदाब
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
    कोई कुछ भी कहे, बस इसी तरह सकारात्मक रहें
    अल्लाह आपको लम्बी उम्र दे (आमीन)
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  19. गोदियाल साहब,
    बहुत शुक्रिया आपकी टिपण्णी का...
    शायद यह कारन हो सकता था ...अगर मैं ब्लॉग्गिंग कर रही होती....लेकिन तब तो मैंने ब्लॉग्गिंग शुरू भी नहीं कि थी..
    ये सच है कि दोनों मुल्कों के समय में फर्क है....आपकी तरह एक और ब्लॉगर हैं ..जिन्हें बहुत मुश्किल से भरोसा हुआ कि मैं कनाडा से ब्लॉग्गिंग करती हूँ....उन्हें बहुत दिनों तक यही लगता रह कि मैं झूठ बोलती हूँ....हा हा हा..

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  20. ये क्या अदा...बाबा ख़याल रखो,अपना...तुम्हारा लिखा,बहुत दिनों तक झेलना है :)....और इतनी लापरवाही ठीक नहीं...बार बार ना सही...कभी कभी डाक्टर्स से भी मिल लिया करो...वरना बच्चों से तुम्हारी शिकायत करनी पड़ेगी...:)

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  21. जो जो जब होना है वो वो तब होना है ...मुस्कराती रहे और लिखती रहे यही दुआ करेंगे और आपकी लिखी कविता बहुत पसंद आई

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  22. लेकिन यह भी संभव है कि कल ही मेरे लिए आप में से कोई श्रधांजलि की पोस्ट लिख रहे हों...



    शायद आप मेरे गुस्से को भूल रहीं हैं..... सोचा याद दिला दूं आपको.... ऊपर वाली पंक्ति और कुछ भी ऐसी पंक्तियाँ हैं मुझे नागवार गुज़री हैं..... मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ.... मौत से भी लड़ जाऊंगा आपके लिए तो.... कितने बार लड़ा भी हूँ.... आपको तो सब मालूम ही है.... फिर आप यह उलटी बातें क्यूँ करतीं हैं? मैं तो वैसे भी अजर अमर हूँ.... पिछले पांच सौ सालों से सब देख रहा हूँ.... आपको भी अपने साथ ही रखूँगा.... मौत के साथ तो मेरा नाश्ता होता है. मैं अपनी बाकी की कई हज़ारों उम्र में से आधी आपके नाम करता हूँ...

    आइन्दा अगर ऐसी उलटी सीधी बातें की आपने .... तो मैं अपनी हज़ारों वर्ष की उम्र पूरी आपके नाम कर दूंगा...

    कविता पर मुझे कुछ नहीं कहना है.... कविता की महत्ता उपरोक्त पोस्ट के आगे गौण हो गई है.....

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  23. sabki dua hai hi saath ,bas isi tarah muskuraate rahe aap .gantanra divas ki badhai ,sabhi rachna padh li laazwaab rahi ,thoda aankhe nam bhi ho gayi ,baat bhi karne ko jee kiya magar namumkin hai ye ,raste nahi hai wo .bahut din se gana nahi gaayi .aapki aawaz mithi hai

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  24. अदा जी, आपने तो अपने सारे पाठकों को डरा दिया।

    लेकिन यकीन मानिये , भारतीय डॉक्टर मरीजों को नहीं डराते। कम से कम सरकारी डॉक्टर तो नहीं।

    इसलिए एक बार हमारे यहाँ आइये। आपका सारा शक दूर हो साफ़ हो जायेगा , की आप पूर्ण रूप से भली चंगी हैं।

    वैसे अगर एक बार ही ऐसा हुआ है, वो भी साल भर पहले , तो कोई भी डर की बात नहीं लगती।

    हालांकि , कभी कभी एपिलेप्सी में ऐसा हो सकता है। बाकि तो आपने कहा ही है की सब जांचें नोर्मल हैं।

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  25. अदा जी ! भाई गलत बात है ..इस तरह की बातें न किया करें आप...आप जिए हजारो साल और साल के दिन हों पचास हजार...एक शेर याद आ रहा है आपकी पोस्ट पढ़कर
    जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है ,मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं...और आप अपनी जिन्दगी ऐसे ही जिन्दादिली से जी रही हैं. ..और आगे भी बहुत जियेंगी.....

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  26. अदा जी की पोस्ट पढ ही रहा था कि ज़ेहन में अपना ही एक ख्याल कौन्ध गया.
    ’चारागर मसरूफ़ थे ईलाज़-ए-मरीज-ए- रुह में,
    बीमार पर जाता रहा तकलीफ़ उसको जिस्म की थी.’

    किस्सागो कह्ता रहा रात भर बातें सच्ची,
    नींद उनको आ गई तलाश जिन्हे तिलिस्म की थी"

    आप बिल्कुल न परेशान हों अदा जी, आप की रुहानी सेहत एक दम दुरुस्त नज़र आती है,आपके लिखे लेखो और कविताओं और उन पर मिली प्रशंसाओ से मेरी बात की पुष्टि होती है.
    जो लोग रूह से जीते है उनके लिये ऐसे एक आध अनुभव कोई नयी बात नहीं है.(खुद के तजुर्बे से कह रहा हूं) दरसल हमारी Medical Science अभी तक रूहानी स्तर तक पहुच ही नही पाई है.
    'जिस्मानी मौत' एक कभी न खुलने वाली गहरी नींद है, उनके लिये जो दुनियां के ’तिलिस्म’ में खुशी ढूंडते हुये दौडे जा रहे है,दरसल रूह से वो लोग कभी जिये ही नहीं, और मौत की फ़िक्र करते करते जिस्म से भी हाथ धो बैठते हैं.
    मैं न तो इस बात का प्रचारक हूं कि हमें भौतिक प्रगति को तिलांजलि दे कर आत्मिक उत्थान की और निकल पडना चाहिए, और न ही भौतिक जीवन शैली(Materealistic Life Stlye)का धुर विरोधी,पर यह ज़रूर कहना चाहता हूं, कि यदि इंसान शरीर की मौत के बजाय उस मौत के प्रति सजग रहे जो आजकल हम में से अधिकतर लोग रोज़ मर रहे हैं तो शायद मानव जाति की "अमरत्व" की शतत तलाश शायद खत्म हो जायेगी.
    यदि मेरे Argument में कोई कमी नज़र आये तो जरा बतायें कि क्या, ND Tiwari,Osamabin और Rathod जैसे लोग वाकई ज़िन्दा हैं.

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  27. आप का लेख पढा, पहले मै भी बहुत डरता था मोत से, ओर अब नही मेरे पांच छे अप्प्रेशन हो चुके है, कुछ दिन पहले दिल मै भी पंचर हो गया, लेकिन मै हर समय हंसते हंसते जाने को तेयार हूं, मेरे बच्चे भी अभी छोटे है, बीबी भी कोई सर्विस नही करती, जिम्मेदारियां भी बहुत है, लेकिन इतना पता है कि अगर अचानक मुझे जाना पडा मरना भी पडा तो यह सब चलता रहे गा, बच्चे सम्भाल लेगे मां को, इस लिये अब मुझे कोई डर नही लगता हर पल मेरा है जिसे मै खुब मजे से जीता हुं, कोई कर्ज नही सर पर.
    तो मरने से पहले क्यो मरे, खुश रहे खुब कहकहे लगाये लम्बी उम्र जीये शुभकामनाये

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  28. जिंदगी एक सच्चाई है....
    और मौत !
    उस से भी बड़ी सच्चाई .....
    फिर डरना कैसा !!

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  29. माँ प्रणाम, मैं एक अदना सा पाठक....बस पढता रहता हूँ सब कुछ ....टिपण्णी बहुत ही कम कर पाता हूँ....आज आपका ये लेख देखा तो खुद को टिपण्णी करने से रोक ना सका....मैंने कभी चार पंक्तियां लिखी थी....नज़र करता हूँ....

    जिंदगी को कुछ इस तरह से जी, कि मौत से मिले अभी-२
    दुआ-सलाम की और कहा, कि मिलते रहा करो कभी-२

    जिंदगी तो सब जीते हैं, तू मौत को जीकर दिखा
    हो सके तो इन मरने वालों को जीने का फलसफा सिखा

    शुभेच्छा !

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  30. मौत.
    जिंदगी से बड़ी सच्चाई ...
    हो सकती है..?

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  31. सानिध्य तेरा स्वर्ग सा
    हार, जीत प्रतीत सा
    दृग मेरे पथ जोहते हैं
    प्रिय तू प्रथम प्रीत सा
    kya kahne!

    Gantantr diwas kee dheron shubhkamnayen!

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  32. आपने तो सचमुच डरा दिया था ...ईश्वर आपको लम्बी आयु प्रदान करे !!
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं....

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  33. क्यों डरा रही हैं हम सबको? वैसे हमारा अनुरोध तो यही है कि चिकित्सकों को पूरा सहयोग दीजिये. हम तो ऐसी परिस्थितियों में ज़फर बाबा को ही याद करते हैं जो कब के कह गए:
    मैंने पूछा क्या हुआ वो आपका हुस्नो शबाब
    हंसके बोला वो सनम शान-ए-खुदा थी मैं न था.

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  34. सोचा है कभी दास्ताँ हो या हो ज़िन्दगी..?
    क्या लुत्फ़ हो जो ख़त्म हो दिलकश मकाम पे..


    manu 'betakhallus'

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  35. अदा दीदी

    बहुत गलत बात है, ऐसी बातें करके दिल पर पत्थर गिरांने का ईरादा है क्या, आज तो हो गई ये मरने मराने वाली बात, लेकिन केहे देता हूँ कि आगे से ये सब नहीं चाहिए, नहीं अंजाम का होगा ये आपको पता ही है, और ऐसे कैसे चलीं जायेगीं आप अभी तो आपको मेरे बच्चो के बच्चो के बच्चो से बात करनी है,

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