समय का शकुनी फेंकता जाता कितने ही पाँसे
और युधिष्ठिर खाता जाता हर कदम पर झांसे
और युधिष्ठिर खाता जाता हर कदम पर झांसे
कर्ण झूठ का बन गया हर दिन ही पर्याय
कुंडल-कवच बचाने का सोच रहा उपाय
उत्तरा अभिमन्यु के शव पर अब कभी विधवा ना होगी
कुंडल-कवच बचाने का सोच रहा उपाय
उत्तरा अभिमन्यु के शव पर अब कभी विधवा ना होगी
और दु:शासन की ताल पर ही द्रौपदी नृत्य करेगी
कृष्ण बन गए हैं सारथि दुर्योधन के रथ का
अर्जुन का गांडीव मुग्ध हुआ है भ्रष्टतम पथ का
गुरु द्रोण को एकलव्य ने दिया पटकनी लगाय
मलयागिरि की भीलनी ज्यूँ चन्दन देत जराय
और भीम का पराक्रम भी धूसर पड़ा दिखाई
नकुल-सहदेव की बात हम अब का करें मेरे भाई
गांधारी है आँखों वाली और नयन लिए धृतराष्ट्र
सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
अब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र
अंतःकरण सब सुप्त हुआ मूंद गए हैं नेत्र
कभी तो कोई बात बनेगी कहीं तो होगा न्याय
जब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय
जब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय
आँखों वाली गांधारी नयन लिए ध्रितराष्ट्र
ReplyDeleteसुबह शाम अब बेच रहे है बड़े ठाठ से राष्ट्र
कलयुग की अवधि इतनी लम्बी ....महाभारत काल से वर्तमान युग में कोई खास अंतर नहीं हुआ है ...
सब कुछ उलटबांसी ही है ....!!
गांधारी है आँखों वाली और नयन लिए धृतराष्ट्र
ReplyDeleteसुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
बहुत अच्छी रचना, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
मील का पत्थर।
सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
ReplyDeleteअब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र
सुंदर रचना-मानस को झकझोरती हुई। आभार
क्या लिखा है अदा जी...!!!
ReplyDeleteआपने ही लिखा है...???
कृष्ण भी जब सारथी है कौरवो के तब तो अब राम बचाये . प्रभु भी तब ही सोचते है धरती की जब वह अपनो से दुखी हो जाते है
ReplyDeleteहरे हरे!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर उलटबांसी!
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे,
ReplyDeleteनए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे.
कभी सुख, कभी दुख, यही ज़िंदगी है,
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है...
क्या अदा जी, आप भी न, ये पहली वाली फोटो सीधी नहीं लगा सकती थीं...अब मुझे शीर्षासन करते हुए आपकी
पोस्ट पढ़नी पढ़ रही है...
जय हिंद...
आल्हा की तर्ज है क्या?
ReplyDeleteकुछ तो अद्भुत हैं:
कर्ण - झूठ
अभिमन्यु
द्रौपदी - दु:शासन
ये तो लाजवाब है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही गड़बड़झाला है ...
ReplyDeleteरामचन्द्र कह गये सिया से ...
कभी तो कोई बात बनेगी कहीं तो होगा न्याय
ReplyDeleteजब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय
sat yug abhee नहीं aayegaa !
yatharth ko dharatal par utaar layi hain aap.........badhayi.
ReplyDeleteकरण अर्जुन आयेंगे, फिर आयेंगे।
ReplyDeleteऐसा विश्वास है।
पेड़ की तस्वीर बहुत भायी जी ।
दूसरी तो भाई खुशदीप ने पसंद करली।
बेहद सुंदर प्रयोग...सहज ही अभिभूत..!
ReplyDelete"सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
ReplyDeleteअब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र"
वाह अदा जी,
कमाल का कल्पनाशील बयान है आप का ये,समय और हालात पर अच्छा कटाछः भी.
’सच में’ पर स्नेह बनाये रखें.
Oh My God क्या लिखा है अदा जी ! बहुत दिनों बाद आज आपको ,आपके रंग में देखा है...बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना ..भगवान आपकी लेखनी का ये .स्तर बनाये रखे .बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteकृष्ण बन गए हैं सारथि दुर्योधन के रथ का
ReplyDeleteअर्जुन का गांडीव मुग्ध हुआ है भ्रष्टतम पथ का
गुरु द्रोण को एकलव्य ने दिया पटकनी लगाय
मलयागिरि की भीलनी ज्यूँ चन्दन देत जरायक्या
क्या बात है!!....सत्यवचन अदा मैम....पर ये सब बदलने की कोई सूरत तो नज़र आती नहीं. ..sad sad..very very sad..
uffffffffffff ada di kya likha hai samajh nahi aa raha lagta hai mujhe sir k bal baith kar padhna padega ya india ka naksha badalna padega...yaaaaaaaaaaaaaaaa mahabharat kahi.n aapne ulti to nahi padh li...arey bhaiya mera to dimag ghoom gaya reyyyyyyy (ha.ha.ha.)
ReplyDeleteehe rang bhi bahut bahdhiya hai. ib ka kahi hamka to kachhu samajh na aai, sasura sir khujaye khujaye ke paresaan hoi gava.
यह तो कबीरदास की अदा है, अदा जी।
ReplyDeleteबहुत पसन्द आयी यह उलटबासी।
"गांधारी है आँखों वाली और नयन लिए धृतराष्ट्र
ReplyDeleteसुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
रचना में सिर्फ कटाक्ष या व्यंग्य नहीं है
बल्कि आज के समाज में फैले घने अँधेरे
और अराजकता की व्यापक सुध ली गयी है
हर रचनाकार का
ये अधिकार भी है और कर्तव्य भी
कि वह अपने समय के
सत्य को उजागर करने में सहायक बन पड़े
हालांकि उजाला तो है ,,,
रौशनी की किरणें हैं
लेकिन खौफ़ के ग्रहण का साया ,,,
अनिश्चितता और असुरक्षा के बादल ...
अनुशासनहीनता और दुरव्यवहार का धुआँ
बहुत gehraa rahaa है ....
kuchh aise chehre vyaapt हैं
jinhein be-naqaab naa kar paane की
chhat-pataahat है hm sb mei
aahwaan....
is tarah का भी तो ho hi saktaa है....
gambheerta se kahee gayi
rachnaa ka
anumodan hona hi chahiye.....
दीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteअरे वाह क्या बात है, बहुत दिंनो बाद आपकी लाजवाब रचना पढने लो मिली ।
सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
ReplyDeleteअब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र
अंतःकरण सब सुप्त हुआ मूंद गए हैं नेत्र
कभी तो कोई बात बनेगी कहीं तो होगा न्याय
जब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय
हे प्रभु अब तो तोड़ो निद्रा और दो न्याय
उन सबको जिनके धैर्य का बांध टूट चुका है
और तुझ से विश्वास उठ चुका है
सचमुच यह समय की उलटबांसी ही चल रही है -पौराणिक पात्रों के बिम्ब के सहारे अभिव्यक्त एक नायब कविता !
ReplyDeleteआपको और सभी पाठकों को सपरिवार लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें..
ReplyDeleteअदा जी ,
ReplyDeleteआपकी ये उलटबांसी आज के परिपेक्ष्य में बहुत सापेक्ष है.....सुन्दर रचना....चिन्तन मनन करने को बाध्य करती हुई .
कविता में प्रयुक्त हुये बिम्ब तो लाजवाब हैं ही, बिल्कुल अपने शीर्षक चरितार्थ करते हुये, किंतु कविता का छंद भी खूब चुस्त है। आपने गा कर लिखा है ना...जैसा कि राव साब ने कहा है एकदम दुरुस्त, बिल्कुल आल्हा के करीब।
ReplyDelete...और इस छंद को तो आप एक बचपन से सुनती आयी होंगी राँची की गलियों में...
एक अच्छी रचना के लिये बधाई मैम।
उलटबाँसी लिखने का ढंग बेहतर लगा । तनाव ढीला नहीं कहीं भी !
ReplyDeleteसब कुछ कितना समर्थ होकर किया है आपने !
प्रविष्टि का आभार ।
वाह अदा जी,
ReplyDeleteकमाल का कल्पनाशील बयान है आप का ये,समय और हालात पर अच्छा कटाछः भी.