Wednesday, January 13, 2010

उलटबाँसी ....



समय का शकुनी फेंकता जाता कितने ही पाँसे
और युधिष्ठिर खाता जाता  हर कदम पर  झांसे
कर्ण झूठ का बन गया  हर दिन ही पर्याय
कुंडल-कवच बचाने  का  सोच रहा उपाय
उत्तरा अभिमन्यु के शव पर अब कभी विधवा ना होगी
और दु:शासन  की ताल पर ही द्रौपदी नृत्य करेगी
कृष्ण  बन गए  हैं सारथि दुर्योधन के रथ का
अर्जुन का गांडीव मुग्ध हुआ है भ्रष्टतम पथ का
गुरु  द्रोण को एकलव्य ने दिया पटकनी लगाय
मलयागिरि की भीलनी ज्यूँ  चन्दन देत जराय


और भीम का  पराक्रम भी धूसर पड़ा दिखाई
नकुल-सहदेव की बात हम अब का करें मेरे भाई
गांधारी  है आँखों वाली और  नयन लिए धृतराष्ट्र
सुबह-शाम अब  बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
अब कहाँ महाभारत है और कहाँ  कुरुक्षेत्र
अंतःकरण सब सुप्त हुआ मूंद गए हैं  नेत्र
कभी तो कोई बात बनेगी कहीं तो होगा न्याय
जब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय 



28 comments:

  1. आँखों वाली गांधारी नयन लिए ध्रितराष्ट्र
    सुबह शाम अब बेच रहे है बड़े ठाठ से राष्ट्र
    कलयुग की अवधि इतनी लम्बी ....महाभारत काल से वर्तमान युग में कोई खास अंतर नहीं हुआ है ...
    सब कुछ उलटबांसी ही है ....!!

    ReplyDelete
  2. गांधारी है आँखों वाली और नयन लिए धृतराष्ट्र
    सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
    बहुत अच्छी रचना, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
    मील का पत्थर।

    ReplyDelete
  3. सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
    अब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र

    सुंदर रचना-मानस को झकझोरती हुई। आभार

    ReplyDelete
  4. क्या लिखा है अदा जी...!!!
    आपने ही लिखा है...???

    ReplyDelete
  5. कृष्ण भी जब सारथी है कौरवो के तब तो अब राम बचाये . प्रभु भी तब ही सोचते है धरती की जब वह अपनो से दुखी हो जाते है

    ReplyDelete
  6. हरे हरे!
    बहुत सुन्दर उलटबांसी!

    ReplyDelete
  7. उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे,
    नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे.
    कभी सुख, कभी दुख, यही ज़िंदगी है,
    ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है...

    क्या अदा जी, आप भी न, ये पहली वाली फोटो सीधी नहीं लगा सकती थीं...अब मुझे शीर्षासन करते हुए आपकी
    पोस्ट पढ़नी पढ़ रही है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  8. आल्हा की तर्ज है क्या?

    कुछ तो अद्भुत हैं:

    कर्ण - झूठ
    अभिमन्यु
    द्रौपदी - दु:शासन

    ReplyDelete
  9. ये तो लाजवाब है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  10. बहुत ही गड़बड़झाला है ...

    रामचन्द्र कह गये सिया से ...

    ReplyDelete
  11. कभी तो कोई बात बनेगी कहीं तो होगा न्याय
    जब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय

    sat yug abhee नहीं aayegaa !

    ReplyDelete
  12. yatharth ko dharatal par utaar layi hain aap.........badhayi.

    ReplyDelete
  13. करण अर्जुन आयेंगे, फिर आयेंगे।
    ऐसा विश्वास है।
    पेड़ की तस्वीर बहुत भायी जी ।
    दूसरी तो भाई खुशदीप ने पसंद करली।

    ReplyDelete
  14. बेहद सुंदर प्रयोग...सहज ही अभिभूत..!

    ReplyDelete
  15. "सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
    अब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र"

    वाह अदा जी,
    कमाल का कल्पनाशील बयान है आप का ये,समय और हालात पर अच्छा कटाछः भी.
    ’सच में’ पर स्नेह बनाये रखें.

    ReplyDelete
  16. Oh My God क्या लिखा है अदा जी ! बहुत दिनों बाद आज आपको ,आपके रंग में देखा है...बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना ..भगवान आपकी लेखनी का ये .स्तर बनाये रखे .बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  17. कृष्ण बन गए हैं सारथि दुर्योधन के रथ का
    अर्जुन का गांडीव मुग्ध हुआ है भ्रष्टतम पथ का
    गुरु द्रोण को एकलव्य ने दिया पटकनी लगाय
    मलयागिरि की भीलनी ज्यूँ चन्दन देत जरायक्या
    क्या बात है!!....सत्यवचन अदा मैम....पर ये सब बदलने की कोई सूरत तो नज़र आती नहीं. ..sad sad..very very sad..

    ReplyDelete
  18. uffffffffffff ada di kya likha hai samajh nahi aa raha lagta hai mujhe sir k bal baith kar padhna padega ya india ka naksha badalna padega...yaaaaaaaaaaaaaaaa mahabharat kahi.n aapne ulti to nahi padh li...arey bhaiya mera to dimag ghoom gaya reyyyyyyy (ha.ha.ha.)
    ehe rang bhi bahut bahdhiya hai. ib ka kahi hamka to kachhu samajh na aai, sasura sir khujaye khujaye ke paresaan hoi gava.

    ReplyDelete
  19. यह तो कबीरदास की अदा है, अदा जी।
    बहुत पसन्द आयी यह उलटबासी।

    ReplyDelete
  20. "गांधारी है आँखों वाली और नयन लिए धृतराष्ट्र
    सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र

    रचना में सिर्फ कटाक्ष या व्यंग्य नहीं है
    बल्कि आज के समाज में फैले घने अँधेरे
    और अराजकता की व्यापक सुध ली गयी है

    हर रचनाकार का
    ये अधिकार भी है और कर्तव्य भी
    कि वह अपने समय के
    सत्य को उजागर करने में सहायक बन पड़े
    हालांकि उजाला तो है ,,,
    रौशनी की किरणें हैं
    लेकिन खौफ़ के ग्रहण का साया ,,,
    अनिश्चितता और असुरक्षा के बादल ...
    अनुशासनहीनता और दुरव्यवहार का धुआँ
    बहुत gehraa rahaa है ....
    kuchh aise chehre vyaapt हैं
    jinhein be-naqaab naa kar paane की
    chhat-pataahat है hm sb mei

    aahwaan....
    is tarah का भी तो ho hi saktaa है....

    gambheerta se kahee gayi
    rachnaa ka
    anumodan hona hi chahiye.....

    ReplyDelete
  21. दीदी चरण स्पर्श
    अरे वाह क्या बात है, बहुत दिंनो बाद आपकी लाजवाब रचना पढने लो मिली ।

    ReplyDelete
  22. सुबह-शाम अब बेच रहे हैं धूम-धाम से राष्ट्र
    अब कहाँ महाभारत है और कहाँ कुरुक्षेत्र
    अंतःकरण सब सुप्त हुआ मूंद गए हैं नेत्र
    कभी तो कोई बात बनेगी कहीं तो होगा न्याय
    जब ऐसे दिन आवेंगे प्रभु मुझे दीज्यो बताय

    हे प्रभु अब तो तोड़ो निद्रा और दो न्याय
    उन सबको जिनके धैर्य का बांध टूट चुका है
    और तुझ से विश्वास उठ चुका है

    ReplyDelete
  23. सचमुच यह समय की उलटबांसी ही चल रही है -पौराणिक पात्रों के बिम्ब के सहारे अभिव्यक्त एक नायब कविता !

    ReplyDelete
  24. आपको और सभी पाठकों को सपरिवार लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें..

    ReplyDelete
  25. अदा जी ,
    आपकी ये उलटबांसी आज के परिपेक्ष्य में बहुत सापेक्ष है.....सुन्दर रचना....चिन्तन मनन करने को बाध्य करती हुई .

    ReplyDelete
  26. कविता में प्रयुक्त हुये बिम्ब तो लाजवाब हैं ही, बिल्कुल अपने शीर्षक चरितार्थ करते हुये, किंतु कविता का छंद भी खूब चुस्त है। आपने गा कर लिखा है ना...जैसा कि राव साब ने कहा है एकदम दुरुस्त, बिल्कुल आल्हा के करीब।

    ...और इस छंद को तो आप एक बचपन से सुनती आयी होंगी राँची की गलियों में...

    एक अच्छी रचना के लिये बधाई मैम।

    ReplyDelete
  27. उलटबाँसी लिखने का ढंग बेहतर लगा । तनाव ढीला नहीं कहीं भी !
    सब कुछ कितना समर्थ होकर किया है आपने !
    प्रविष्टि का आभार ।

    ReplyDelete
  28. वाह अदा जी,
    कमाल का कल्पनाशील बयान है आप का ये,समय और हालात पर अच्छा कटाछः भी.

    ReplyDelete