देखा है तुम्हें आज !!
कई सदियों बाद
उम्र की परछाईयां
नज़र आती थीं तुम पर
सवालों के कारवां
उफन पड़े थे
निगाहों से
लेकिन !
फेर ली नज़रें
तुमने सबसे बचा कर
पूछा तो नहीं
मैं फिर भी बताती हूँ
किस्सा-ए-दिल
अपना हाल सुनाती हूँ
जिस दिन तुमने
निगाहें मोड़ी थीं
उसी दिन,
वफ़ा की मौत हो गई
सब्र चुपके से खिसक गई
और
उम्मीद भी फ़ौत हो गई
हम तेरी जफ़ा से
कफ़न उतार अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
बाद में,
तेरी यादों के साथ
उसे दफ़ना आये थे
तब से
हर रोज़ हम
हर रोज़ हम
उस मज़ार पे जाते हैं
जी भर के तुम्हें
खरी-खोटी सुनाते हैं
उसपर भी अगर
जी नहीं भरता
तो
अश्कों के दीप जलाते हैं
अश्कों के दीप जलाते हैं
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
तो
ReplyDeleteअश्कों के दीप जलाते हैं
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
-क्या अंदाज है जी!! ये भी सही!! बहुत उम्दा!!
लकीरें जो नजर आती है चेहरे पर ...
ReplyDeleteउम्र का निशाँ नहीं ..
वो बहते आंसूं हैं
जो सुख गए बिना पोंछे ही ...
एक क्षणिका लिखी थी ...सोच रही थी ब्लॉग पर लिखने के लिए मगर तेरी ये ग़ज़ल पढने के बाद यहाँ के अलावा और कहीं लिखने का मन ही नहीं ..
मजार ...वह बेकस दिल ...जहाँ वफ़ा अक्सर मजबूर होती है जफ़ाओं की चादर ओढ़ कर सोने को ....!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteहमने जफ़ा न सीखी उनको वफ़ा न आई ...
This is indeed a good poem from you, as good as your velvety voice.Great.
ReplyDeleteजिस दिन तुमने
ReplyDeleteनिगाहें मोड़ी थीं
उसी दिन,
वफ़ा की मौत हो गई
सब्र चुपके से खिसक गई
और
उम्मीद भी फ़ौत हो गई
बहुत ही सुन्दर !
बहुत ही बढिया !!
ReplyDeleteहम तेरी जफ़ा से
ReplyDeleteकफ़न उतार अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
बाद में,
तेरी यादों के साथ
उसे दफ़ना आये थे
दिल के एहसासों को खोबसूरत अलफ़ाज़ दिए हैं.....बहुत खूब
सुंदर ... अति सुंदर भाव-अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteyou made my day.
ReplyDeleteshayd purani post ki tippni mil gayi hogi.ab ham bhi
चुपके से सो जाते हैं...
अश्कों के दीप जलाते हैं
ReplyDeleteऔर एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
वाह सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!
अश्कों के दीप जलाते हैं
ReplyDeleteऔर एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
वाह सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!
uff ! mohabbat ke dard ko kya khoob bayan kiya hai..........shabdheen kar diya.
ReplyDeleteअश्कों के दीप जलाते हैं
ReplyDeleteऔर एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
ये मारा पापड़ वाले को .....गज़ब की नज़्म कही है अदा जी ! माशाल्लाह बहुत खुबसूरत.
हम तेरी जफ़ा से
ReplyDeleteकफ़न उतार अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
बाद में,
तेरी यादों के साथ
उसे दफ़ना आये थे
यह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
जिस दिन तुमने
ReplyDeleteनिगाहें मोड़ी थीं
उसी दिन,
वफ़ा की मौत हो गई
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
"अश्कों के दीप जलाते हैं
ReplyDeleteऔर एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं..."
क्या कहने ! बेहतरीन पंक्तियाँ । आभार ।
पसंद आई आपकी यह रचना ..शुक्रिया
ReplyDeleteरचना ....
ReplyDeleteझकजोरती है
लफ़्ज़ों के तेवर
इंतक़ाम की हद्द तक ले जाते हैं
"कभी तन्हाईयों में यूं ...."
........... !?!
चुपके से सोते सोते इत्ता कुछ जफ़ा भी, वफ़ा भी ,सब कुछ तो कह दिया ,और क्या खूब कह डाला ,
ReplyDeleteअजय कुमार झा
Oh my my!!
ReplyDeleteWhat a good work done! :)
Really it is amazingly written.
Pain and love seem to be synonyms for true lover...
Regards,
Dimple
जिस दिन तुमने
ReplyDeleteनिगाहें मोड़ी थीं
उसी दिन,
वफ़ा की मौत हो गई
वाह वाह क्या बात है अदा मैडम मूड में हैं आप तो......पर अश्कों के पहले वो खरी खोटी वाली बात मुझे बहुत पसंद आई....(सॉरी इस बार जरा देर हो गयी आने में...पर आती जरूर..इतना विश्वास तो तुम्हे होना चाहिए)
और एक बार फिर
ReplyDeleteतेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं..
वाह! वाह! .... बहुत खूब.... ऐसे ही नहीं मैं कहता हूँ कि मुझे आपसे तो प्यार है ही.... अब तो आपकी लेखनी से भी प्यार हो गया है..... अब तो Valentine's Day का इंतज़ार कर रहा हूँ....
hnm
ReplyDeleteबहुत खूब अदा जी..
दिल के एहसासों को खोबसूरत अलफ़ाज़ दिए हैं.....बहुत खूब
ReplyDeleteada di bahut se vichar uthal puthal kar rahe hai aapki is lajawaab rachna ko padh kar. nahi janti kisi ki aap-biti he ya kalam ka ek aur rang.lekin dil me kahin bheetar tak ye dard mehsoos ho gaya...bahut se ehsaaso ka naya sa prayog laga..jaise..
ReplyDeleteउम्मीद भी फ़ौत हो गई
हम तेरी जफ़ा से
कफ़न उतार अपनी वफ़ा
को पहना आये थे ...ye lines bahut acchhi lagi.
अश्कों के दीप जलाते हैं
और एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
lekin di kya so paate hai???
bt at last bahut bahut khoobsurat rachna...dil se daad kabool kijiye..ise padh kar mera b dil kar raha hai kuchh aisa kamaal to nahi keh sakti bt aisa kuchh me b likh dalu...(ha.ha.ha.)duao k sath ijajet.
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम...
ReplyDeleteइक मुलाकात जरूरी है सनम..
@ Anonymous....
ReplyDeleteबेटा ...तुझे बहुत मुलाक़ात करने का शौक़ है... आजा मेरे पास तेरी मुलाक़ात मैं करवाता हूँ.... आज मुन्ना.... लल्ला मेरे.... आ जा.. तेरी मुलाक़ात तो मैं करवाता हूँ...
@ अदा जी...
आपको भी यही नमूना मिला था पब्लिश करने के लिए...
हम तेरी जफ़ा से
ReplyDeleteकफ़न उतार अपनी वफ़ा
को पहना आये थे
बाद में,
तेरी यादों के साथ
उसे दफ़ना आये थे
एक बार फिर
तेरी जफ़ा ओढ़ कर
क़ब्र-ए-मोहब्बत में
चुपके से सो जाते हैं...
शानदार...
मेड्मजी, मेने बिना अनुमुति माँगे आप का लेख अपने blogg पर पोस्ट किया , मेड्मजी हमें माफ करदेना।
ReplyDeleteआप की Comment से हमे सीख मिली औऱ मेने खुद ने भाई का पत्र बहन को…,सुन लो मेरी दर्द कहानी…को चाप डाला।
हम से कोइ गलती लेख मे हुई हो तो बता देना क्यो की मेने पहली बार लेख लिखा है।
तेरी यादों के साथ
ReplyDeleteउसे दफ़ना आये थे
यह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
jahr
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