मांग तो थी मोटर साईकिल की ....ये मिला ....कैसी है...???
सुरेन्द्र "मुल्हिद" के सौजन्य से...
पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं
कि ख्वाहिशों की बूंदें नज़र आने लगी हैं
अब हम कहाँ हँसते हैं पहले की तरह
दुखती सी है इक रग जो सताने लगी है
तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं
रुका हुआ मुसाफ़िर , मुसाफ़िर कहाँ जी
ख़ुद राहें भी उनसे तो अब कतराने लगीं हैं
क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
जब लहरें ख़ुद अब रास्ता दिखाने लगीं हैं
क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
ReplyDeleteजब लहरें ख़ुद अब रास्ते दिखाने लगीं हैं
-बहुत खूब..बेहतरीन!
दहेज़ में साइकिल है , बाईक है या रिक्शा है ...??
ReplyDeleteये दहेज़ किसने दिया किसको दिया ..?
तितलियाँ पंखों में डंक छुपाती है ...इस ख्याल से ही दहशत होती है ...
बेचारी तितलियाँ तो आंसू बहाना ही नहीं जानती ...
चाक गिरेबान यादों के मरहम से संभल जायेंगे ...??
हाँ...ठीक ही है ...जब लहरें खुद रास्ता दिखाती हों तो नाखुदा का इतंजार क्यों ...!!
छई छप छई...छपाक छई
ReplyDeleteपानियों पे छींटे उड़ाती हुई लड़की
देखी है हमने
आती हुई लहरों पे जाती हुई लड़की...
जय हिंद...
कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
ReplyDeleteपर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं
bahut khoob....!!!!!!
रुका हुआ मुसाफ़िर , मुसाफ़िर कहाँ जी
ReplyDeleteख़ुद राहें भी उनसे तो अब कतराने लगीं हैं
ये मुसाफ़िर क्या मैं हूँ, बस यही सोच रहा हूँ।
दहेज के लालची लोगों के लिये एकदम उपयुक्त वाहन है!
ReplyDeleteतितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
आज के जमाने का असर है!
चाक गिरेबाँ ...... नगमा जेरे जमी है दफ्न मगर
ReplyDeleteहैरा है इस वीराने क नाम गुलिस्ता आज भी है.
ये दहेज वाला सनसनीखेज टाइप शीर्षक क्यों?
ReplyDeleteवैसे बाइक अच्छी लगी । कितने में बिक रही है? सुमनवा का बियाह तय हुआ है, हमरे जिम्मे यह सामान तय किया गया है, सो दाम पूछ रहे हैं।
ग़ज़ल सुन्दर है। इसकी लय /धुन आप की फेवरिट है जिस पर आप पहले भी रच चुकी हैं।
जाने क्यूँ लगा कि सहायक क्रिया, सर्वनाम और एकाक्षरी शब्दों की प्रूनिंग कर दूँ लेकिन फिर सहम गया कि कैंची चलाना आया नहीं और बागों के वृक्ष सँवारने की सोचने लगे !
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
ReplyDeleteहा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं
ReplyDeleteकि ख्वाहिशों की बूंदें नज़र आने लगी हैं
तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं
अदा जी,
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है....पहला शेर बहुत अच्छा लगा....ख्वाहिशों की बूंदे ..
एक बात पूछनी है.....ख्वाहिश और आरज़ू के अर्थ में क्या अंतर है...स्पष्ट करना चाहती हूँ ..मैं थोड़ा कनफुजिया रही हूँ ...आशा है आप ज़रूर बतायेंगी
तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
ReplyDeleteपंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं \वाह लाजवाब । ये दहेज की क्या सनसनी है? क्या चोरी की बाईक दहेज मे? हा हा हा
"आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं"
ReplyDeleteपहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के मेहमां हो गए :)
क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
ReplyDeleteजब लहरें ख़ुद अब रास्ता दिखाने लगीं हैं
khubsurat khyal...or kamal ka sheershak :)
सोच रहा हूँ.. ये बाईक फायनेंस करवा लु.. बहुत महँगी होगी ना.. :)
ReplyDeleteतितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
बदलती दुनिया को नोटिस कर लिया आपने.. इस नज़र को सलाम
@संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआरज़ू और ख्वाहिश ..देखे तो एक ही बात है लेकिन...मेरे ख़याल से
आरज़ू उसे कहते है जिसकी चाह इंसान पूरे दिल से करता है....और ख्वाहिश उस इच्छा को कह सकते हैं....जो अगर पूरी हुई तो ठीक नहीं तो न सही...
मैं इन दोनों में यही फर्क समझती हूँ...बाकि मुझसे ज्यादा गुनी लोग हैं ही कोई न कोई बता देवे तो मेहेरबानी....!
तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनोपंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
वाह जी, ये तो टू इन वन है। यानि साइकल भी और मोटर भी। फिर शिकवा कैसा ?
ReplyDeleteक्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
जब लहरें ख़ुद अब रास्ता दिखाने लगीं हैं
बहुत खूब।
रुका हुआ मुसाफ़िर , मुसाफ़िर कहाँ जी
ReplyDeleteख़ुद राहें भी उनसे तो अब कतराने लगीं हैं
बेहतरीन। बधाई।
bahut bahut shukriya adaa ji, aarzoo ka matlab yani ki shiddat se chaahna hua....
ReplyDeletelog har mod pe ruk ruk ke sambhalte kyon hain,
ReplyDeleteitna darte hain to ghar se nikalte kyon hain....