(मैं आज साड़ी कि हिमायत करने जा रही हूँ परन्तु एक बात स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं यहाँ यह हरगिज नहीं कह रही कि सबको प्रतिदिन साड़ी पहननी चाहिए ...इतनी तो पहननी ही चाहिए कि उसका अस्तित्व बना रहे.... कम ही पहने लेकिन पहने...आप अपनी मर्ज़ी से पहनें ...और ख़ुद के विवेक से ही काम लें ...और इतना ज़रूर सोचें....कि क्या साड़ी का लुप्त हो जाना सही होगा ?? )
आज कल हर किसी की जुबां से एक शब्द आम सुनाई पड़ता है Comfort ', अक्सर महिलायें ये कहती सुनी जाती हैं...मैं साड़ी में comfortable नहीं फील करती हूँ....साड़ी पहनना मुसीबत है ...बड़ा काम हो जाता है...इत्यादि.... आज कल साड़ी को दकियानूसी परिधान की श्रेणी में रखा जाता है...किसी भी नवयुवती से साड़ी की बात करो....तो चेहरे पर ऐसे भाव आते हैं जैसे उसे एवरेस्ट पर चढ़ने को कहा गया हो, लेकिन आज की महिला यह भूल रही है कि साड़ी हमारी पहचान है...और बहुत ही गरिमामय पहचान है...
दुनिया के किसी भी कोने में आप चले जाते हैं..आप अपनी त्वचा अपने साथ लेकर जाते हैं...इसे आप नहीं छुपा सकते हैं....यह त्वचा आपको आपकी जड़ों की याद दिलाती रहती है....आप चाह कर भी उससे पीछा नहीं छुड़ा सकते... तब यही कुछ चिन्ह आपको सुरक्षित महसूस कराते हैं, आपके आत्मसम्मान को बचाते हैं....और आपके व्यक्तित्व के साथी होते हैं...
भूल जाइए संस्कृति और संस्कार की बातें.....आज हम इनकी बात नहीं करेंगे.....क्यूंकि हर समय संस्कृति का राग अलापना भी बोरिंग हो जाता है....आज बात करते हैं सिर्फ़ 'पहचान' की...हर देश, का अपना भोजन, अपनी भाषा, अपना पहनावा है .....और ये चीज़ीं उनकी पहचान हैं....पहनावा एक ऐसी पहचान जिसे देख कर आप तुरंत जान जाते हैं कि यह व्यक्ति किस देश का है.....
अगर आप अपनी पहचान से शर्मिंदा हैं और स्वत्व को छोड़ कर दूसरों की पहचान ख़ुद पर लाद रहे हैं...तथा ऐसा करते हुए आपको दूसरे लोग देख रहे हैं तो भला कौन आपका सम्मान करेगा.... ??? दूसरे आपका सम्मान तभी करते हैं जब आप ख़ुद का सम्मान करते हैं.....
जैसे ही आप साड़ी पहनतीं हैं ...आप अपनी पहचान को पहनतीं हैं........आँख बंद करके लोग जान लेते हैं कि यह पहनावा भारत का है और कहीं का हो ही नहीं सकता .... तुरंत उनके मन में आपके प्रति आदर के भाव आ जाते हैं ...वो आपको सम्मान की दृष्टि से देखते हैं ....क्यूंकि आप अपनी पहचान का सम्मान कर रहे हैं...और आपके सम्मान का अपमान करने की हिम्मत कोई कभी नहीं करेगा....
आप किसी भी अमेरिकन या कनेडियन से भारतीय परिधान 'साड़ी' के बारे में उनके विचार पूछें तो, आप हैरान हो जायेंगे उनके जवाब सुन कर....आज तक मैंने जिससे भी पूछा है सबने एक सुर में यही कहा है की ...दुनिया का सबसे खूबसूरत परिधान साड़ी ही है और यकीन कीजिये यह अतिश्योक्ति नहीं है.....जब भी मैं साड़ी पहन कर अपने काम पर जाती हूँ...लोगों ने रुक रुक कर तारीफ की है....फिर चाहे कपडे की बात हो या रंग या फिर कारीगरी की ....मेरी कितनी व्हाइट सहेलियों ने मेरे घर आकर साड़ी पहन कर अपने मन की बहुत बड़ी इच्छा की पूर्ति की है....
कितना ही अच्छा होता अगर हम अपनी तरफ से अपने देश के कुछ अमूल्य धरोहरों का देश-विदेश में विस्तार करने के बारे में सोचते....लेकिन हमेशा की तरह...हम स्वयं अपनी पहचान से शर्मिंदा हैं.....हमारी हर चीज़ की कीमत हमें विदेशियों ने ही बताया है...फिर चाहे वो योग हो या गाँधी, साड़ी की भी यही हालत हो जाती .....अगर विदेशों की आबोहवा साड़ी के मफ़िक होती तो ....'साड़ी' कब की अगवा हो चुकी होती और अमेरिका उसे पेटेंट करा चुका होता ...ठीक वैसे ही जैसे 'बासमती' चावल को करवाया गया है...
कुछ स्त्रियों की यह सोच है कि साड़ी बड़ी उम्र की महिलाओं का परिधान है...साड़ी पहन कर खूबसूरत नज़र नहीं आया जा सकता है....यह बिलकुल गलत है....
नवयुवतियां में यह सोच कि साड़ी पहन कर वो cool नहीं लगेंगी या आकर्षक नहीं लगेंगी....इस बात में कोई दम नहीं है ....उनका यह भी सोचना की साड़ी पहनना बहुत झंझट का काम है वो भी सही नहीं है......साड़ी बहुत आसानी से पहनी जा सकती है.....और बहुत सुविधाजनक भी होती है.....ज़रुरत है सही मौसम में सही साड़ी के चुनाव की......आज कल युवतियां यह भी सोचती हैं की वो कम कपड़ों में जितनी आकर्षक लगेंगी ...साड़ी में नहीं लगेंगी....तो विश्वास कीजिये यह उनका वहम है....छोटे कपड़ों से कहीं ज्यादा खूबसूरत और उससे ज्यादा आकर्षक साड़ी में युवतियां लगतीं हैं.......ये पक्की बात है..मेरा आजमाया हुआ है....:)
मैं जीवन में सुविधाओं के विपक्ष में नहीं हूँ, लेकिन सुविधा के लिए अपनी पहचान ही गवां देवें ...इसके पक्ष में मैं हरगिज़ नहीं हूँ....पहचान त्यागना ठीक वैसा ही है जैसे ....अपनी त्वचा का त्याग करना....और त्वचा के बिना आपकी क्या पहचान...???
धीरे धीरे साड़ी को इस तरह लुप्त होते देख मन बहुत आतंकित है....क्या होगा साड़ी का ?? क्या यह बिलकुल ही लुप्त हो जायेगी....क्या साड़ी का बोझ इतना भारी है कि आज की महिलाएं इसे सचमुच नहीं उठा पा रही हैं....अगर यही हाल रहा तो अगली एक दो पीढ़ियों में ही ना सिर्फ़ साड़ी लुप्त हो जायेगी...उसके साथ-साथ हमारी पहचान भी गुम जायेगी.....साथ ही बंद हो जाएगा एक बहुत बड़ा उद्योग और उसके साथ-साथ अपने घुटनों पर आ जायेंगे कला के कई सोपान..और निःसंदेह दम तोड़ देगी हमारी अपनी गरिमा.....
अच्छी बात कही है लेकिन अंत में बात अपनी-अपनी पसंद पर आकर ही ठहरती है.
ReplyDeleteनिस्संदेह साड़ी एक बहुत ही गरिमामय परिधान है ...साडी पूरे विश्व में हमारी संस्कृति की वाहक और पहचान है ...मध्यम वर्ग ने तो इस पहचान को अब तक बना कर ही रखा है ...मगर संस्कृति के प्रचार प्रसार की आवस्यकता और जिम्मेदारी क्या सिर्फ इसी वर्ग की होनी चाहिए ..
ReplyDeleteहमारी नेत्रियों के लिए तो बहुत ही उपयोगी है ...सदी पहनकर भारतीय बहू बेटी बनकर वोट माँगना कितना सुविधाजनक होता है ...और जब मतदान करने जाए तो वही पुरानी जींस ... अब कोई क्या बिगाड़ लेगा वोट तो डल ही चुके जितने डलने थे ..
और साडी का सर्वाधिक सार्थक उपयोग तो हमारी अभिनेत्रियाँ करती हैं ....भारत में सार्वजनिक समारोहों में साडी पहनकर आदर्श बहू का खिताब प्राप्त करने के बाद अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में इनकी पोशाक देखने योग्य होती है ....आँखों की सेक पर क्या सिर्फ विदेशियों का हक है ...? ...:):) ....इस तरह के दोगलेपन की क्या आवश्यकता है ...
मेरा मानना है कि पोशाक सुविधाजनक होनी चाहिए मगर अपनी संस्कृति की पहचान बनाये रखने के लिए साडी का प्रयोग भी करना चाहिए कम से कम पारिवारिक , सामाजिक ,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में तो अवश्य ...!!
बहुत सार्थक आलेख .....लिखते रहे इसी तरह और भारतीयों को जागृत करती रहे ...!!
प्रथम चंद पंक्तियाँ पढ़कर आपका आग्रह टालने की हिमाकत तो नहीं कर सकता इसलिए:
ReplyDeleteकल साड़ी पहन कर तस्वीर खिंचवाता हूँ. :)
फिर पूरा पढ़कर:
बाकी तो पसंद की बात है..
@समीर जी..
ReplyDeleteअह्ह्हह्ह...!!!
आप सोच भी नहीं सकते ....मुझे कितना ज्यादा इंतज़ार रहेगा..:)
हे भगवान्....बस कल जनवरी ८, २०१० आ ही जाए...
हा हा हा हा :))
एक सारगर्भित लेख
ReplyDeleteनि:संदेह साड़ी एक बहुत ही गरिमामय परिधान है। अब यह संबंधित पर निर्भर है कि वह अपने आप को कैसे जाहिर करना चाहती है।
वाणी जी की टिप्पणी का मर्म भी बहुत कुछ कह जाता है
बी एस पाबला
समीर इन साड़ी!?
ReplyDeleteअदा जी, आप इंतज़ार ही करते रह जाएंगी
तस्वीर खिंचवाने की बात की गई है, दिखाने-भिजवाने की नहीं :-))))
बी एस पाबला
बहुत ही सुन्दर और सार्थक आलेख !
ReplyDeleteधन्यवाद !
समीर जी...
ReplyDeleteहम तो बचपन में ही पहन कर देखे थे एक दो बार...
असल में साडी पहनने के तरीके पे डिपेंड करता है सब कुछ...
लुक खराब होना या अच्छा होना...
और बाकी ब्लोउज के रंग..पल्ले के डिजाईन..उसे लेने के तरीके..
वगैरह वगैरह...
साडी पर काफी कुछ लिखा सोचा चित्रित किया जा सकता है......
तो ऐसी चीज का लुप्त होना कैसा लगेगा....??
राजीव तनेजा जी को करते हैं संपर्क
ReplyDeleteसबको पहना देंगे वे साड़ी, रहें सब एलर्ट
रहें सब एलर्ट काम ऐसा कर देंगे
साड़ी भी नहीं खरीदेंगे और सबको पहना भी देंगे।
पर लेख और पोस्ट की गंभीरता को न बिसराया जाये। मेरा विनम्र निवेदन है।
स्त्री की गरिमा साड़ी में ही होती है, और वही रुप हमने बचपन से देखा है पर अब हमारे बच्चे वो नहीं देख रहे हैं, हम तो भई साड़ी के शुरु से समर्थक हैं।
ReplyDeleteअपनी पसंद के अनुसार परिधान हो.. बस यही कहूँगा..
ReplyDeleteवाह्य आवरणों में साड़ी मेरी भी पहले पसंद है क्योकि यह कुछ अंतर अंगों को भी गरिमा प्रदान करती है
ReplyDeleteनिस्सन्देह साड़ी बहुत सुंदर परिधान है, आप का कहना पूरी तरह वाजिब। यह साड़ी प्रचार अभियान सफल हो!
ReplyDelete"साड़ी हमारी पहचान है...और बहुत ही गरिमामय पहचान है..."
ReplyDeleteदरअसल साड़ी को नहीं भुलाया जा रहा है, भुलाया जा रहा है अपनी पहचान को। सुविधा या Comfort तो महज एक बहाना है अपनी बात को वजन देने का।
पोस्ट पढ़ कर जो विचार मेरे मन में आये वह मैंने ऊपर लिख दिये क्योंकि इस पोस्ट को पढ़कर मुझे लगा था कि यह एक गम्भीर पोस्ट है और इसे एक गम्भीर चर्चा के उद्देश्य से लिखा गया है, किन्तु जब इस पोस्ट की इन टिप्णियों और (इनके बाद की कुछ टिप्पणियों) को पढ़ाः
"Udan Tashtari said...
प्रथम चंद पंक्तियाँ पढ़कर आपका आग्रह टालने की हिमाकत तो नहीं कर सकता इसलिए:
कल साड़ी पहन कर तस्वीर खिंचवाता हूँ. :)
'अदा' said...
@समीर जी..
अह्ह्हह्ह...!!!
आप सोच भी नहीं सकते ....मुझे कितना ज्यादा इंतज़ार रहेगा..:)
हे भगवान्....बस कल जनवरी ८, २०१० आ ही जाए...
हा हा हा हा :))"
तो मुझे लगा कि मैं मूर्ख हूँ जो इस पोस्ट को गम्भीर पोस्ट समझ बैठा था, मैं समझ नहीं पाया था कि इस पोस्ट को महज हास्य के लिये लिखा गया है।
अदा बहन, क्या इस पोस्ट में तुमने पुरुषों से साड़ी पहनने का आग्रह किया है? यदि किया है तो माफ करना कम से कम मैं तुम्हारे आग्रह को स्वीकार नहीं कर सकता। और यदि कभी किसी मजबूरी में मुझे साड़ी पहननी ही पड़े तो मैं सफे साड़ी को धोती की तरह से बांध लूँगा।
जहां पांव में पायल
ReplyDeleteहाथ में कंगन
और माथे पे बिंदिया
इट्स हैप्पन ओनली इन इंडिया...
भारतीयता, पहनावे और संस्कृति की वजह से ही तो हमारी दुनिया में पहचान है...ये पहचान भी खो गई तो हमें आखिर किस लिए कोई भाव देगा...
कामकाजी महिलाओं को ड्यूटी पर साड़ी से असुविधा का तर्क समझा जा सकता है लेकिन दूसरे मौकों पर कम्फर्ट की दलील देना शायद जायज़ नहीं है...
अन्त में समीर जी को साड़ी में देखने की बात सोच कर ही मन पुलकित हुआ जा रहा है...
जय हिंद...
जहां पांव में पायल
ReplyDeleteहाथ में कंगन
और माथे पे बिंदिया
इट्स हैप्पन ओनली इन इंडिया...
भारतीयता, पहनावे और संस्कृति की वजह से ही तो हमारी दुनिया में पहचान है...ये पहचान भी खो गई तो हमें आखिर किस लिए कोई भाव देगा...
कामकाजी महिलाओं को ड्यूटी पर साड़ी से असुविधा का तर्क समझा जा सकता है लेकिन दूसरे मौकों पर कम्फर्ट की दलील देना शायद जायज़ नहीं है...
अन्त में समीर जी को साड़ी में देखने की बात सोच कर ही मन पुलकित हुआ जा रहा है...
जय हिंद...
आदरणीय अदा दीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteआज तो आपने छोटे भाई को इक दम खुश कर दिया । सच में बहुत ही लाजवाब लिखा है आपने, लेकिन मुझे बहुत ही आश्चर्य हो रहा है कि वे महिलाएं कहाँ है जो ऐसे बहुत सी चिजो का विरोध करती है बस ये कहकर कि बहुत ही प्राचिन और पूराने समय की है ।
भारत में महिलाओं द्वारा साड़ी का उपयोग वापस प्राचीन काल से जोड़ा जा सकता है, हालांकि पहनने की शैली समय के साथ बदलती रही है . भारत में एक भी महिला खोजने के लिए बहुत मुश्किल है, जो अपने अधिकार में एक साड़ी नहीं रखती है। साड़ी की लोकप्रियता इस बात से आंका जा सकता है, कि यह विशेष अवसरों पर महिलाओं का अभी भी प्रमुख पहनावा है।
साड़ी विभिन्न किस्मों में है, और साड़ी की कुछ अलग किस्म कांजीवरम, कोंरद, बनारसी, कोटा डोरिया, बलुचारी आदि है। विभिन्न साडी की किस्मों में बनने के तरीके और सामग्री के उपयोग में अंतर है. इसकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है, बावजूद इतने लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। हाल ही में कई हॉलीवुड अभिनेत्रियों भी इसकी प्रशंसा की है। हालांकि, साड़ी एक साधारण सादा कपड़ा है, परन्तु इसमे महिलाओं की सुंदरता बढ़ाने की ताकत है।
वहाँ एक आम बात भारत में कही है कि हर महिला साड़ी में सुंदर लगती है। हालांकि, एक चिंता सतह पर आने लगी है, आधुनिक महिलाओं की नई पीढ़ी यह जातीय पहनावे के साथ जारी रखने के लिए मुश्किल में है, क्योंकि वे कहती है कि यह चलने की गति कम देती है और इसके प्रबंधन के लिए मुश्किल है. एक बात तय है कि साड़ी सभी मुश्किलों में जीवित रहने जा रही है, क्योंकि इसके पास एक औरत की खूबसूरती बढ़ाने की ताकत है, जो इस धरती पर कोई अन्य कपड़े में नही है और ये आपके ब्लोग पर भी साफ देखा जा सकता है कि स्कर्ट वाली महिला ज्यादा सुंदर लग रही है साड़ी वाली ,तो जवाब होगा साडी । इस लाजवाब पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें ।
@अवधिया भईया,
ReplyDeleteक्षमा भईया, हरगिज भी पुरुषों की बात नहीं है यहाँ,
साड़ी का बहिष्कार एक ज्वलंत समस्या है...इसी पर विमर्श के लिए यह पोस्ट लिखी है मैंने....आपने इस समस्या की गहनता को मान दिया..बहुत अच्छा लगा...और बाकि बात ....बस थोड़ी सी नोक-झोंक थी.....करवद्ध आग्रह है भूल जाइए...
छोटी बहन
'अदा'
बहुत ही सुंदर और विचारणीय लेख ,साड़ी केवल पहनावा मात्र ही नहीं है अपितु यह हमारी चिन्तन और संस्कृति से भी जुडा है.
ReplyDeleteपसंद और नापसंद बात की बात और है पर यह गरिमामय और बडप्पन वाला पहनावा है.
बहुत सुन्दर, सार्थक आलेख है सही मे अपनी पहचान साढी मे है आब तो साडी का पहनना झंझट नहीं है बल डाले हुये साडी मिल जाती है नहीं तो दर्जी से नाप दे कर डलवा लें सदा के लिये झंझट खत्म अगर कोई इसे पहममा चाहता है तो। इस आलेख के लिये बधाई
ReplyDeleteनिश्च्य ही सार्थक आलेख है, सिर्फ़ एक्सन के कार्यों के अलावा साडी और कहां अन्कम्फ़र्टब्ल होती है( दक्षिण की फ़िल्मों में तो साडी वाली हीरोइन ्खूब फ़ाइट करती है ) गरिमा के अतिरिक्त साडी सबसे सेक्सी परिधान है ।
ReplyDeletebahut achcha likha hai aapne...kabhi dhoti-kurte ko bhi yaad keejiyega
ReplyDeleteएक वो कभी अलंकारों में एक दोहा पढ़ा करते थे, कुछ -कुछ याद आ रहा है
ReplyDeleteनारी बीच साड़ी है कि साड़ी बीच नारी है
नारी ही कि साड़ी है कि साड़ी ही कि नारी है ..ऐसा ही था शायद !!
बढ़िया बात कही
अदाजी बहूत अच्छा आलेख और चिंतन है |दक्षिण में अभी भी साड़ी का ही ज्यादा प्रचलन है और ऐसी बात नहीं है उत्तर भारत और गाँवो में भी अभी साड़ी ही पहनी जाती है और पारम्परिक कार्यक्रमों में तो निशित ही |किन्तु हमे तो एतराज उस पर है जो साडी पहनकर नाटक करते है और साड़ी पहनने वालो को दकियानूस समझते है |वानीजी ने बिलकुल सही कहा है |और नई पीढ़ी को जो हम देगे वही तो वे लेगे |
ReplyDeleteसाडी पहनने की आदत हो .. तो साडी बोझ नहीं बनती .. बहुत बढिया आलेख लिखा आपने !!
ReplyDeleteअपनी भारतीय पहचान बनाए रखने के लिए साड़ी बहुत सुन्दर पहनावा है।विचारणीय पोस्ट लिखी है।धन्यवाद।
ReplyDelete:) में इस बारे में कुछ कहने लायक तो नहीं ..पर भी ...भाई मुझे तो साड़ी बहुत पसंद है.:) .साड़ी बहुत गरिमामई परिधान है और सलीके से पहना जाये तो इससे ज्यादा खुबसूरत कुछ नहीं ....अदा जी परेशान न होइए साड़ी नहीं लुप्त होने वाली बल्कि इसका क्रेज दिन प्रतिदिन बढ ही रहा है ..इंडिया जाकर देखिये साड़ियों की कीमत आसमान छू रही है :).
ReplyDelete"नारी की ही साडी है की साडी ही की नारी है !"
ReplyDeleteसमीर भाई ने जो फोटो जारी कर दी तो ये लाइन मिट्वानी पड़ेगी !
हां नारी और साडी का चोली दामन का साथ ज़रूर होता है !
साड़ी विलुप्त तो नहीं हो रही...हाँ इसका प्रयोग कम जरूर हो गया है...नारी चाहे कितनी ही आधुनिक हो, शादी के रस्मों के समय साड़ी ही पहनती है....और उसकी आधुनिक सहेलियां भी साड़ी में ही नज़र आती हैं...ऑफिस में भी दिवाली या किसी traditional day के अवसर पर मिनी स्कर्ट वाली लडकियां भी बड़े शौक से साड़ी पहनती हैं.मैंने शायद अपने कॉलेज में कभी साड़ी नहीं पहनी...पर मुंबई के कॉलेजों में अक्सर 'साड़ी डे' मनाया जाता है....और जींस और 'टैंक टॉप' में घूमने वाली लड़कियों को उस दिन साड़ी और मैचिंग इयरिंग्स, बैंगल्स में सजे देख एक अलग ही अनुभूति होती है.ऐसे ही 10th के फेयरवेल में भी सब छुई मुई सी लडकियां साड़ी में ही नज़र आती हैं...
ReplyDeleteहाँ, सुविधा के ख़याल से ये विशेष मौके पर ही पहनी जाती है...और यहाँ बात comfort की ही है.हमने खड़े रहकर गैस पर खाना बनाना,घर में गाउन पहनना इसी comfort के ख़याल से शुरू कर दिया है.साड़ी पहनने में समय तो लगता है और फिर उसके साथ accessories की भी जरूरत पड़ती है...जो शर्त जींस के साथ नहीं है,इसलिए नवयुवतियां जींस को तरजीह देती हैं वरना उन्हें भी पता है की..साड़ी में वो ज्यादा ख़ूबसूरत लगती हैं.
साड़ी की महिमा से तो हमारा ग्लैमर वर्ल्ड भी अनभिज्ञ नहीं है..वरना मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड के कॉम्पिटिशन में साल दर साल best costume का ईनाम साड़ी को नहीं मिलता,जो हमारी भारतीय प्रतियोगी, पहने होती हैं....ऐश्वर्या राय भी हर बड़े समारोह में साड़ी ही पहनती है.इसलिए डरने की कोई बात नहीं,साड़ी की और नयी नयी किस्मे आ रही हैं.अच्छी मार्केट है,तभी ना.
याद आई बहुत सुंदर पंक्तियां हैं, आप भी स्मरण कर आनंद लीजिए
ReplyDeleteनारी बिच सारी है
कि सारी बिच नारी है
नारी ही की सारी है
कि सारी की ही नारी है
कवि का नाम आप ही बतलायें। हम तो अपनी स्मृतियों को इससे अधिक नहीं कुरेद पाये।
जय साड़ी महिमा
are nhi todegi hamari garima dam..........abhi ismein bahut hai dam.........dekhiye jab purush saree pahnne ko taiyaar ho gaye hain to sochiye .........saree hamesha rahegi phir chahe koi bhi pahne............hahaha
ReplyDeletevaise saree hamari pahchan hai aur ajkal ki generation chahe shokiya hi pahne magar pahnti hai kyunki jo baat saree mein aati hai wo aur kisi bhi paridhan mein nhi ye sab jante hain isliye .......koi fikra nhi.........jai hind.
अदा जी , यह सही है की साड़ी भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।
ReplyDeleteलेकिन यह भी तर्कसंगत लगता है की पहनावा समय, स्थान और अवसर अनुसार ही सोच समझ कर अपनाना पड़ता है।
कहते है , जैसा देश वैसा भेष।
इसमें बुराई भी क्या है।
लेकिन चिंता मत कीजिये , भारतीय संस्कृति इतनी जल्दी ख़त्म नहीं होने वाली।
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ReplyDelete.
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साड़ी के पक्ष या विपक्ष में तो कुछ नहीं कहूंगा पर अपनी गरिमा जैसे भारीभरकम शब्द से एक परिधान को जोड़ लेना सही नहीं लगता।
वैसे अपने इर्द गिर्द देखता हूँ तो साड़ी के विलुप्त होने का खतरा मुझे तो नजर नहीं ही आता...हो सकता है कनाडा में आपको ऐसा लगता हो।
आरामदायक पहनावा ही अच्छा है। मेरे घर मेरी माँ, चाची, भाभियाँ, शादी हो जाने के बाद बहनें, आदि सभी बड़े आराम से साड़ी पहनते हैं। उन्हें किसी अन्य परिधान में मैने देखा ही नहीं। मेरी पत्नी सलवार सूट पहनने वाली घर की पहली विवाहित महिला रहीं। लेकिन जब भी किसी पर्व त्यौहार का मौका हो या शादी-विवाह या अन्य कोई भी औपचारिक आयोजन उन्हें साड़ी ही बेहतर लगती है और सबसे गरिमापूर्ण भी।
ReplyDeleteअच्छा दिखने की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। थोड़ा सलीके से, बिना भागे चलना साड़ी वाली महिला को बिल्कुल कठिन नहीं लगता है, बस फर्राटा भागने, कूदने और पेड़ पर चढ़ने के लिए यह सुविधा नहीं देती। लेकिन इनको इसकी बहुत जरूरत भी तो नहीं है।
इस पोस्ट में लगी तस्वीरें सब कुछ स्पष्ट समझा देती हैं। बधाई।
helo di..
ReplyDeletedi yaha india me apko pata schools me teachers k liye compulsory hai saree pehen kar aana. aur me school me hu so roz to nahi pehnti.(admn.staaf k liye comp.nahi he)but mostly pehnti hu aur meri sabse pasandeeda dress saree hi hai.so di aisa nahi ki saree lupt hoti ja rahi hai.aap shayed ye bhi jaanti hongi hamare india me Baniya culture me ladies k liye must hai saree pehnNa (except kuchh percentage chhod kar).so pareshan mat hoiye india me aisa nahi hai.aur aap bolywood prog.dekhte honge ki hamari actress film festivals me mostly saree hi pehen kar aati hai.
so atleast india me ye lupt nahi ho sakti.aaj bhi indian dulhan (except sikh dulhan) lehenge rupi sari me hi sajayi jati hai.
and now in end thanks to u for this nice article.
lekin bhaarteeya purush videsh mai agar theth dehaaee kuleen vastra pahankar ghoome to sirf aur sirf jokar lagenge
ReplyDeletecelebrity hone ke baad alag baat hai
mahatma gandhi apnaa lohaa manvaa lene ke baad ek chhotee langotee mai golmej sammelan mai ho aaye
collge padhne gaye to poore angrej hee the
बहुत अच्छी पोस्ट ...
ReplyDelete@ हरी शर्मा जी,
ReplyDeleteजब खुद पर भरोसा नहीं होता तो ऐसा ही लगता है...पहले आप खुद अपने पर, अपने पहनावे पर भरोसा कीजिये तब ही दूसरे उस पर भरोसा करेंगे....
आखिर क्या वजह है की साउदी अरब से आने वाले शेख लम्बे सफ़ेद लबादे में...सर पर फेंटा बाँध कर आते हैं और व्हाइट हाउस ...उनके आगे झुका हुआ रहता है.....क्यूँ ??
क्यूँ जो भी साउदी अरब जाता फिर चाहे वो अमेरिकन ही क्यूँ न हो सर ढँक कर जाता है.....क्यूंकि उन्हें अपने पर अपनी हर चीज़ पर विश्वास है....और उस विश्वास को दूसरे तोड़ नहीं सकते...
आज भी हमारे सरदार भाई अपनी पगड़ी, दाढ़ी, कृपन, कच्चा, कड़ा, कंघा पर विश्वास करते हैं और किसी भी कीमत पर उस पर डटे हुए हैं...मजाल है कोई उनसे इसे छुड़ा तो लेवे...
गाँधी जी को खुद पर विश्वास था...अपने पहनावे पर विश्वास था तो उन्होंने इसे मनवा लिया.....
भारतीयों को खुद पर ही शक है... कोई दूसरा नहीं आएगा इस शक को हटाने...आपको ही यह काम करना होगा...
बहुत अच्छा आलेख।
ReplyDeleteसुविधा को देखते हुए आज पहनावे में बदलाव ज़रूर हुआ है...लेकिन साड़ी रुपी परिधान विलुप्त होने वाला नहीं..और ये सच ही है कि साड़ी बहुत गरिमामयी पोशाक है.भारतीयता की पहचान भी .
ReplyDeleteबहुत ही बडीया आलेख है……
ReplyDeleteबाबा रे! बज़ पर बात चली और मैं यहाँ पहुँच गई. बात साड़ी की हो रही है यहाँ.
ReplyDeleteअदाजी! मैंने पहली बार काव्य-पाठ करते हुए आपकी वीडियो देखि आपने सदी ही पहन रखी थी.
सदी हर रूप रंग,आकार प्रकार की महिलाओं को 'सूट'कर जाती है.इसमें जितने रंग डिज़ाइन्स और वेरैतिज़ है दुनिया के किसी भी परिधान मे नही.यही करण है इससे ना मन भरा है ना भरेगा किसी भी साड़ी पहनने वाली औरत का.
हमारे देश मे तो हर स्टेट की साडियों की अपनी पहचान और विशेषताएं. ये 'ट्रेडिशनल' साडीयाँ बरसों बाद भी 'कोमन'नही होती.
अरे!ज्यादा नही लिखूंगी.मैं लोअर,टी-शर्ट्स ,सूट्स सब पहनती हूं किन्तु साडियाँ???? शानदार कलेक्शन है मेरे पास,हर स्टेट की साडियाँ.
साड़ी से व्यक्तित्व 'ग्रेसफुल' लगता है.
शिफोन,जोर्जट,सिल्क,कांजीवरम तांत,कोटन...वाओ
चिन्ता ना कीजिये ना ये लुप्त हुई है और ना ही हो सकती है.देश की ८०% महिलाएं आज भी साड़ी ही पहनती है,नई जनरेशन सुविधा और आराम के हिसाब से वेस्टर्न आउट फिट्स पहनती है इसमें कोई हर्ज भी नही.किन्तु साडीयाँ पसंद ही ना करे ऐसी औरते/बच्चियां कम ही है.
प्यार
bahut sunder post hai.
ReplyDeletenice one swapna :)
ReplyDeletesari is one of THE most beautiful and versatile apparels in the world, but i am against the concept of compulsion.
@@ "lupt hona" - no, it can never get extinct - because it is too adaptable, and things which can adapt never get extinct :)